भाऊ तुम्ही करता तेच योग्य आहे . माझ्या कडे गावरान आंबे आहेत मी नैसर्गिक पद्धतीने पिकवतो आंबे खूप गोड आहेत पण लोकांना कमी भावात पाहिजे कलर पण पाहिजे गोड पण पाहिजे तरी पण लोक आंब्याला नावचं ठेवतात
Sir chan vhidio aahe pan ase rasaynik ghatak waparun shariras hani pohachate tenwha sarwani thodech uttpadan घ्या पण ते विष मुक्त पने पिकवा,साठवा असे आपल्या vidiotun लोकांना सांगा कारण विषमुक्त अन्न खाणे आणि आरोग्य जपणे काळाची गरज आहे,
रसायन के प्रयोग का चलन अब खेती के अलावा कच्चे फलों को समय पहले पकाने और स्वादिष्ट बनाने में भी होने लगा है। लोग बिना जानकारी बाजार से रोजाना फल खरीद कर स्वाद तो चख रहें, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उसे पकाने और रसीला बनाने के लिए कितने प्रकार के रसायनों का प्रयोग हो रहा और इससे उन्हें क्या नुकसान हो सकता है। इसे लेकर दैनिक भास्कर की टीम ने पड़ताल की। जिसमें यह बात सामने आई की व्यवसायी फल पकाने लिए एथलीन गैस, कार्बाइड और इथ्रेल 39 नामक रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसके सेवन से मानव शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। भास्कर टीम ने सेामवार को शहर के संजय मार्केट, कोतरा रोड में थोक व चिल्हर फल व्यवसायियों के बीच जाकर पड़ताल की। उनके द्वारा फल पकाने की तकनीक को जाना और पाया कि उनके द्वारा उपयोग किए जा रहे रसायन का कोई मापदंड नहीं है। कार्बाइड की अलग-अलग पुडिय़ा बनाकर केलो के बीच रख कर केला पका रहे हैं। कुछ व्यवसायी इथ्रेल 39 के घोल में फलों को डुबाकर फल पका रहे हैं। संजय मार्केट के एक दो थोक व्यवसायी ही ऐसे है, जो एथिलीन गैस का प्रयोग कर रहे हैं। इस तकनीक को लेकर जब स्थानीय विशेषज्ञों से जब बात की तो यह बात सामने आई की कार्बाइड और इथ्रेल की अधिकता से कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। दोनों ही एक तरह के रसायन है, सिर्फ इनके नाम में अंतर है। पानी के संपर्क में आते ही दोनों एथिलीन गैस रिलीज करती है, जिससे फल समय से पहले पक जाते हैं। जो कि मानव शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक है।
भाऊ तुम्ही करता तेच योग्य आहे . माझ्या कडे गावरान आंबे आहेत मी नैसर्गिक पद्धतीने पिकवतो आंबे खूप गोड आहेत पण लोकांना कमी भावात पाहिजे कलर पण पाहिजे गोड पण पाहिजे तरी पण लोक आंब्याला नावचं ठेवतात
जयहिंद मीत्रा छान मार्गदर्शन व माहीती मीत्रा
Sir ashe pikavleli phale kallyavar aajar konte hotat tyacha sudha vdo taka plls
❤
Jasta pramanat Wapas any cancer la aamantran
लवकरच सेंद्रिय पद्धतीने घरगुती आंबे pikawinyacha व्हिडीओ टाका आम्ही पाहायला आवाढेल
ua-cam.com/video/HlmbP2xCJec/v-deo.html
Sarvsadharan mango vyapari kiti rs kg kharedi kartat chalu bhav kiti he
Etreil pirman kite
बायर कंपनीच काय जे फवारतात ते शरीरासाठी घातक नाही का औताडे सर आपण हा व्हिडीओ दाखवण्याऐवजी नेर्सगीक पध्दतीने आंबा कसा पिकवावा याचा व्हिडीओ दाखवत जा
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ही हर्बल आंबा पिकविण्याची विषमुक्त पावडर आहे.Dip-N-Ripe
इथरेल आम्हाला मिळेल का
Sir chan vhidio aahe pan ase rasaynik ghatak waparun shariras hani pohachate tenwha sarwani thodech uttpadan घ्या पण ते विष मुक्त पने पिकवा,साठवा असे आपल्या vidiotun लोकांना सांगा कारण विषमुक्त अन्न खाणे आणि आरोग्य जपणे काळाची गरज आहे,
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सरकार ने ethrel वर बंदी घातली पाहिजे व्यापारी योग्य प्रमानात वापर करत नाही
Market madhe enripe navach packet ahe tyavar kahi mahiti dyal ka sir?
Amchya kade vyapari hech pocket use kartat
hya spry madhe konta kemikal aahe
कोणत्याही कृषी सेवा केंद्र मधे मिळेल
असे करून लोकांच्या किडण्या खराब करा व क्यांसरला आमंत्रण द्या .परमेश्वरा याना सुबुद्धी दे.
एक लीटर पानी मे Ethrel कितना दाल ते है
1-2ml
जबाब दो
Ethrel ne amba kharab hoto
प्रमाण जास्त झाल्यास होतो
Dada Etherel vishari ahe
हो, पण व्यापारी हेच वापर करत आहेत
आंबा पिकविण्यासाठी Ethrel चे प्रमाण प्रति लिटर किती वापरावे
१.५ ते २ मि. प्रति लि.
Rip to eaters in advance
म्हणून चार पैसे जास्त गेले तरी डायरेक्ट शेतकऱ्यांकडून शेतमाल खरेदी करा आणि तो ही बार्गेनिंग न करता
कलमी आंब्याला चालतो का
हो
रसायन के प्रयोग का चलन अब खेती के अलावा कच्चे फलों को समय पहले पकाने और स्वादिष्ट बनाने में भी होने लगा है। लोग बिना जानकारी बाजार से रोजाना फल खरीद कर स्वाद तो चख रहें, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उसे पकाने और रसीला बनाने के लिए कितने प्रकार के रसायनों का प्रयोग हो रहा और इससे उन्हें क्या नुकसान हो सकता है। इसे लेकर दैनिक भास्कर की टीम ने पड़ताल की। जिसमें यह बात सामने आई की व्यवसायी फल पकाने लिए एथलीन गैस, कार्बाइड और इथ्रेल 39 नामक रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसके सेवन से मानव शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
भास्कर टीम ने सेामवार को शहर के संजय मार्केट, कोतरा रोड में थोक व चिल्हर फल व्यवसायियों के बीच जाकर पड़ताल की। उनके द्वारा फल पकाने की तकनीक को जाना और पाया कि उनके द्वारा उपयोग किए जा रहे रसायन का कोई मापदंड नहीं है। कार्बाइड की अलग-अलग पुडिय़ा बनाकर केलो के बीच रख कर केला पका रहे हैं। कुछ व्यवसायी इथ्रेल 39 के घोल में फलों को डुबाकर फल पका रहे हैं। संजय मार्केट के एक दो थोक व्यवसायी ही ऐसे है, जो एथिलीन गैस का प्रयोग कर रहे हैं। इस तकनीक को लेकर जब स्थानीय विशेषज्ञों से जब बात की तो यह बात सामने आई की कार्बाइड और इथ्रेल की अधिकता से कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। दोनों ही एक तरह के रसायन है, सिर्फ इनके नाम में अंतर है। पानी के संपर्क में आते ही दोनों एथिलीन गैस रिलीज करती है, जिससे फल समय से पहले पक जाते हैं। जो कि मानव शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक है।
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एक लीटर मे Ethrel कितना दाल है
1-1.2ml/litre