एक पूरानी आम औरत की कहानी...

Поділитися
Вставка
  • Опубліковано 20 вер 2024
  • सुई में धागा पिरोना नहीं जानती
    फटे कपड़ों को सिलना नहीं जानती
    हाँ है वो तो पूराने ज़माने की एक लड़की
    पर वो पूराने रिवाजों के साथ जीना नहीं
    जानती।
    ब्रह्म मुहूर्त में उसकी आँखें नहीं खुल पाती
    अंधभक्ति और दिखावे में विश्वास नहीं रख पाती
    रिश्तों की माला जपती,सबसे निभाते हुए चलती
    मुहँफट है थोड़ी मन में छल कपट नहीं रख पाती।
    छोटी-छोटी बातों में आँखें भर‌ लेती है
    बिन बात ही मुस्कान होंठों पे सजा लेती है
    रोते रोते हँसने और हँसते हँसते रोने लगती है
    बेरोजगार हैं पर खुशियाँ बाँटने का व्यापार कर
    लेती है।
    परिवार , प्यार,बस ज़िंदगी इसी का नाम
    ईश्वर से माँगें बस रहे सुखी मेरा संसार
    पिया के नाम का श्रृंगार भी करती‌ है
    पर अपनी पहचान के लिए भी लड़ती है।
    हरप्रीत कौर

КОМЕНТАРІ • 6