पाणिनीय अष्टाध्यायी तृतीयः अध्यायः| PANINIYA ASHTADHYAYI 03|सुस्पष्ट उच्चारणसहित |JSD VED VIDYALAYA

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  • Опубліковано 6 жов 2024
  • पाणिनीय अष्टाध्यायी तृतीयः अध्यायः| PANINIYA ASHTADHYAYI 03|सुस्पष्ट उच्चारणसहित BY@JAGATGURU SHREE DEVNATH VED VIDYALAYA, NAGPUR.
    "अष्टाध्यायी" महर्षि पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ है। अष्टाध्यायी छह वेदांगों में मुख्य माना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं; प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं; प्रत्येक पाद में 38 से 220 तक सूत्र हैं। इस प्रकार अष्टाध्यायी में आठ अध्याय, बत्तीस पाद और सब मिलाकर लगभग 4000 सूत्र हैं।
    १) संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है। इसका अन्य भारतीय भाषाओं परभी बहुत बड़ा प्रभाव है।
    २) वैदिक भाषा को ज्ञेय , विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनी अग्रणी हैं।
    ३) अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है। इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात,उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है।
    ४) आरम्भ में इसमे चतुर्दश (१४) सूत्र दिये हैं। इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है। प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है।
    ५) पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।
    ६) गोत्र जनपद और वैदिक चरणों के नाम से स्त्रियों के नामकरण की प्रथा का 'अष्टाध्यायी' में पर्याप्त उल्लेख हुआ है। इससे स्त्रियों की सामाजिक प्रतिष्ठा और गौरवात्मक स्थिति का संकेत मिलता है।
    ७) पाणिनि ने निम्नलिखित नामों का सूत्र में उल्लेख किया है- अवंती जनपद के क्षत्रिय की कन्या अवंती, कुंती जनपद या कोंतवार देश की राजकुमारी कुंती, कुरु राष्ट्र की राजकुमारी कुरु, भर्ग जनपद की राजकुमारी भार्गी आदि। पांचाली, वैदेही, आंगी, वांगी, मागधी, यह नाम प्राच्य देश के जनपदों की स्त्रियों के थे।
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