Tandava strotam (official video)

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  • Опубліковано 23 лис 2024
  • श्रीताण्डवस्तोत्रम् में भगवान शिव के तांडव रूप की महिमा का वर्णन किया गया है। हर श्लोक में उनकी शक्ति, सौंदर्य और अनंत कृपा को अभिव्यक्त किया गया है। नीचे प्रत्येक श्लोक का संक्षिप्त हिंदी अर्थ दिया गया है:
    पहला श्लोक - भगवान शिव को प्रणाम करता हूँ, जिनकी नृत्यलीला भवानी के प्रेमभरे दृष्टि से आनंदित है। वे अपने नृत्य में लीन हैं, जिन्हें मैं वंदन करता हूँ।
    दूसरा श्लोक - वह शिव, जो भवसागर से पार करने का साधन हैं, और जिनके चरणों में विष्णु और ब्रह्मा भी श्रद्धा रखते हैं, उनको मैं प्रणाम करता हूँ।
    तीसरा श्लोक - जटाओं में चंद्रमा धारण करने वाले, त्रिनेत्रधारी, और नटराज के रूप में आकाश में नृत्य करते शिव को मैं नमन करता हूँ।
    चौथा श्लोक - जिनके चरणों की ताल पर देवगण वीणा आदि वाद्य बजाते हैं और दैत्यों का नाश करते हैं, ऐसे शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
    पाँचवां श्लोक - जिनके चरण कमल से सारा संसार प्रकाशित होता है और जिनके चरण सभी देवताओं को आकर्षित करते हैं, उनको प्रणाम करता हूँ।
    छठा श्लोक - कृपा के सागर और शिवानंद के दाता, जिनके नृत्य के पदकमल आश्चर्यजनक हैं, उन्हें नमन।
    सातवां श्लोक - सोने की कमरबंद से सजे, घंटियों की मधुर ध्वनि वाले और सिंह गर्जना जैसे शक्तिशाली शिव को प्रणाम।
    आठवां श्लोक - जिनकी भुजाओं में अमूल्य रत्न जड़े गदा और सूर्य के समान तेजस्वी आभा है, उन्हें नमन।
    नौवां श्लोक - अपने नृत्य से भयानक हास्य उत्पन्न करने वाले और महायोगियों के हृदय में स्थित शिव को प्रणाम।
    दसवां श्लोक - भवानी और समस्त भूतों के स्वामी, जिनका वास्तविक रूप कोई नहीं जानता, उन्हें नमन।
    ग्यारहवां श्लोक - जिनके हाथों में पद्म है और जो देवताओं एवं योगियों के प्रिय हैं, कुंदफूल जैसे सुंदर दांतों वाले शिव को प्रणाम।
    बारहवां श्लोक - जिनकी जटाओं से गंगा की तरंगें बहती हैं और जो पूर्णिमा के चंद्रमा जैसे चमकते हैं, उन शिव को नमन।
    तेरहवां श्लोक - जिनके हाथों में रत्न की अंगूठी है और जिनकी भुजाओं में स्वर्ण मुकुट शोभित हैं, उन शिव को नमन।
    चौदहवां श्लोक - सभी दिशाओं में अनंत रूप में स्थित, चमत्कारी वस्त्र पहने और भवानी के हृदय में निवास करने वाले अनंत शिव को प्रणाम।
    पंद्रहवां श्लोक - देवों के देव, जिन्हें कोई और देवता स्पर्धा नहीं कर सकता, और जो थोड़ी पूजा से ही प्रसन्न हो जाते हैं, उन महेश को प्रणाम।
    सोलहवां श्लोक - शिवानंद का गुणगान करने वाले, भवानंदमूर्ति और शरणागतों के एकमात्र सहारा शिव को नमन।
    सत्रहवां श्लोक - जगत के रचयिता, त्रिनेत्रधारी, और पापों का नाश करने वाले, उन शिव को नमन।
    अठारहवां श्लोक - पार्वती के प्रिय, समस्त लोकों के स्वामी और विष्णु के हृदय में निवास करने वाले, उन शिव को नमन।
    उन्नीसवां श्लोक - कैलासवासी, रत्नाभूषण धारी और सभी यज्ञों के ज्ञाता, उन शंकर को नमन।
    बीसवां श्लोक - यह स्तोत्र जो तांडव रूप शिव की महिमा का वर्णन करता है, जो इसे सुबह पढ़ता है, उसे देवताओं के आनंद का अनुभव होता है और अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है।
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