सत्य सनातन वैदिक धर्म और संस्कृति अमर रहे। स्वामी दयानंद जी सरस्वती अमर रहे। आर्य समाज मिशन जिन्दाबाद। स्वामी सचिदानंद जी आर्य की सदा जय हो विजय हो। ॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ.............
मैं पहले नास्तिक था आर्य समाज के सम्पर्क में आने के बाद मैं आस्तिक हुआ और मूर्ति पूजा का विरोधी बना पर बाद में मुझे मूर्ति पूजा का महत्व और उपयोगिता भी समझ मे आयी मूर्ति पूजा करना गलत नही है तो अब मैं मूर्तिपूजक भी बन गया हूँ पर दयानंद स्वामीजी में मेरी अपार श्रद्धा है मैं उनका ऋणी हूँ
वेद सनातन की जड़ें है, मूल हैं जड़ कटे हुए भटकते रहते हैं । आज फसलें और नस्ले दोनो विकृति और बीमार दवाई पर डिपेंड हैं पर ऑर्गेनिक और मूल बीज जो हाइब्रिड नही हुआ वह स्वस्थ हैं।
@@Arramy-s2q Hey Bhagwan....Are Bhai uske kahne ka matlab hai ki abhi Muslim, Christian, Britishers ke aane ke baad Bas Maharshi Dayanand saraswati hi the jinhone Vedon ka thik se bhasya kiya wrna britishers aur adhiktar logon ne Vedon me maans khana, Gay ko maarna,etc. jaise paakhand faila ke translation kr diya tha....
*@omyadav1557* शमा करना, रामभद्राचार्य जी जैसे एक योग्य कथावाचक के अंदर भले ही थोड़ा सा अहंकार और राजनीति कूट कूट कर भरी हुई हो, लेकिन जातिवाद उनके अंदर बिलकुल भी भरी हुई नहीं हैं। इस बात की guarantee मैं दे सकता हूं। 🙏🏻
*@omyadav1557* तुम आर्य समाज के लोगो की बातों में बहुत बड़ा CONTRADICTION हैं। अगर तुम आर्य समाज के लोग श्री राम और श्री कृष्ण को पहले से ही भगवान मानते हो तो ईश्वर क्यों नहीं मानते? ईश्वर का ही तो दूसरा शब्द है भगवान, जैसे पानी और जल एक ही तरल पदार्थ के दो शब्द हैं। श्री रामभद्राचार्य अकेले हिंदू आचार्य नहीं हैं जो राम और कृष्ण को ईश्वर मानते है क्योंकि वेद और महाभारत जैसे मूल ग्रंथ की शुरुआत ही इस श्लोक से होती है कि श्री कृष्ण स्वयं परमेश्वर नारायण हैं। तो तुम लोग इस महत्वपूर्ण कथन को कैसे नकार सकते हो? यदि प्रभु श्री राम और श्री कृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते तो ईश्वर नाम की कोई इकाई नहीं हो सकती, बस इतनी सि बात आपको समझ आनी चाहिए। मेरी तरफ से सभी आर्य विद्वानों से निवेदन है कि भले ही आप लोग रामभद्राचार्य जी का खुलकर विरोध करे लेकिन भूल कर भी कभी परमेश्वर नारायण के अवतार प्रभु श्री राम और श्री कृष्ण को ईश्वर मानने से इंकार न करे। अन्यथा मुक्ति नहीं मिलेगी कभी। जय श्री राम 🙏🏻
@@jaydutta7711 श्री मान जी ऐसा नहीं है मैं स्वयं श्री रामभद्राचार्य जी के प्रोग्राम में गया हूं, की राम रस उनकी वाणी से लें, तो मुझे जो महसूस हुआ, मैं मथुरा भी आए दिन जाता हूं तो हमारे देश में योग्य साधु संतों का अभाव नहीं है पर सत्यता में देखा जाए , तो एक पर्सेंट सच्चे साधक के गुण है,वाकी जैसे भी है ठीक है हमारे लिए पूजनीय हैं,श्री प्रेमानंद जी जैसे सच्चे साधक होना चाहिए, जिनके अंदर कोई किसी तरह का विकार नहीं,,
kuch nhi hi unke under jhota hi bas politics karta hi kisi se debate nhi kar sakte hi zakirnaik ne kaha key hinduo mai koi ek vidwan nhi hi jo debate kar skatey
हिंदू धर्म जब आंतरिक और बाह्य आघातों से अपनी अंतिम सांसे ले रहा था तब स्वामी दयानंद सरस्वती जी का इस धरा पर अवतरण हुआ और हिन्दू संस्कृति में नयी जान फूंकी और हिन्दू संस्कृति का उद्धार कर वेद विज्ञान को एक नई दिशा दी।धन्य हैं ऐसे महामानव।
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
धर्म की सही व्याख्या जिसने की, हिन्दुओं को अपने प्राचीन गौरव का अहसास कराया। जातीपाती और छुआछूत से परे रहना सिखाया। ईश्वर के सच्चे सपूत थे आप। आपने ही ये कर दिखाया। ऋषि दयानंद की जय।
@@tigerraj1456ye vedo ko Mane bale bhe nastiko jese bybuar karte hai inhone seedhe seedhe Meera ki bhkti ko jhoota bata diya unhone to krishna ko pati mana tha
@@tigerraj1456 तथाकथित आर्यसमाजी ही वेदों को नहीं मानते हैं सिर्फ अंग्रेजी शासनकाल में पैदा हुए दयानंद के भाष्य को ही वह वेद मानते हैं ! दयानंद ही वास्तव में उनका निराकार ईश्वर है ?
आर्य समाज जिंदाबाद हमे एक दिन आर्य समाज के अनुसार चलना होगा। आर्य समाज प्रमाणित बात करता है । आर्य समाज भगवान राम कृष्ण को मानते है । सनातन धर्म के सच्चे रक्षक है आर्य समाज। देश भक्त है आर्य समाज। रामभदराचारय को भुल स्वीकार करना चाहिए। हठठी जिद्दी गुस्सा सन्त का काम नही होता। स्वामी दयानंद सरस्वती को कोटी कोटी नमन।
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
😮😮 Vagban ko ap to dakte ne ,kab dakte hai jab ab bipad me haie to ek dusra Avatar ki asli maina kea e samja ne ap Vagban sab kuch kar denge r ap baithke ke indirio ki purti karte rahenge,ap vi abtar hai kuch kare
@@AnilKumar-ol6eo mere pas to ved nahi hai or mai ved ke pas kyu jau yadi ved mere liye hi hai to vo khud mere pas Aana chahiye yahi Sacha niyam hai ha uske baad mai unhe na padu to ye meri galti hai mai Aapni taraf se une dundu ye kaha ka sindhant hai
🙏 आचार्य जी बड़ी ख़ुशी होती है जब आप हमें इतना बारीकी से समझाते हो ईश्वर करे इस दुनिया का हर इंसान आर्य समाजी बन जाए ईश्वर करे वो दिन जल्दी आए ओर बुराई का नाश हो जाए
भाई इसके लिए प्रयास करना होगा जैसे इन स्वामी सच्चिदानंदजी एवं उनके जैसे कुछ और विद्वानों नेअपनी जान हथेली पर लेकर वेद का सत्य का प्रचार प्रसार करने का बीड़ा उठाया है हम चाहे बहुत बड़े विद्वान नहीं है, चिंटू विचारों से प्रभावित है जानते हैं तो फिर हमें मजबूत कार्यकर्ता बनना चाहिए! पूरा समय नहीं दे सकते तो वर्ष में 10 दिन ही निकाल कर हम गांव गांव जाकर वेद प्रचार करें! इसके साथ ही आवश्यक है कि हम अपना चरित्र व्यवहार दिनचर्या, सुखी संतुष्ट पारिवारिक सामाजिक व्यवहार आदि एक पवित्र रखें कि भगवान रामकृष्ण तो बहुत बड़ी बात वे हमारे जैसे आर्य जनों का ही उदाहरण देने लगा जाए!
@@mohanlalarypushp5886जी आज सोशल मीडिया हर आदमी के हाथ में मोबाइल के द्वारा है। कहीं न जाओ। घर बैठो मेरी तरह प्रचार करो वेद का एक एक आदमी के फेसबुक, ट्विटर इंस्टा, यू ट्यूब पर।
@@mohanlalarypushp5886साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
स्वामी सच्चिदानंद जीने रामभद्राचार्य द्वारा महर्षि दयानंद पर लगाए गए सभी आरोपों का एक एक करके सटीक उत्तर दिया और शास्त्रार्थ सार्वजनिक स्थान पर होगा रामभद्राचार्य जी के आश्रम पर नहीं |बिल्कुल सही है| मैं भी महर्षि दयानंद पर लगाए गए आरोप से बहुत दुखी हूं {आर्य समाज का संगठन इस आरोप को हटाने के लिए पूर्ण रूप से संगठित रहे| डॉ प्रतिभा सिंघल संरक्षिका आर्य समाज अवंतिका गाजियाबाद{
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
अंत मे यही कहूंगा अलग अलग समाज बना कर सनातन का बटवारा ना करे, अलग पंत में बटे सभी हिंदुओ को भगवा के तले जोड़ कर पुनः सनातन धर्म सनातन समाज की स्थापना करें प्रचार करे इसी में समस्त हिंदुओ का उद्धार है,जय श्री राम🙏🏼🚩
murtipoja to band karo bhaio kyo kisi ko hasne k moka det eho murti poja choro phele ke log murti poj anhi karte they hawan karte they kyoke iswar kahi dikhta thore na tha iswar ek hi or ek bat ye pakhand badn karao nhi to barbad ho jaoge bhai
सही कहा सनातन हो,पर हिन्दू नहीं। क्यों कि हिन्दू वर्ण व्यवस्था का पोषणकरता है।जो अमान्य है।वोट के लिए हिन्दू को एक बनाना छलावा है। फिर वर्ण आधारित धर्म में हिन्दू बनना उचित नहीं है।
दयानंद सरस्वती जी समाज के लिए बहुत कल्याण योजना सरल तरीके से ईश्वर की ओर जाना सबको सदा प्रेरणा गायक रहे हैं अपने अनुसार समाज को अक्षय कर्म का मार्ग दिखाइए ऐसे महापुरुषों को हर प्राणी धन्यवाद के साथ भोले हर हर महादेव जय माता की दिल्ली से❤
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र और योगेश्वर श्रीकृष्ण जी को महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के आदर्श है। आर्यावर्त भारत के उज्ज्वल रत्न है। जय श्री राम।। जय सत्य सनातन वैदिक धर्म।। आर्य पुत्र।। ❤
@@HaridevSharma-rc1jv 😆😁😄joker ho yaa murkh yaa Andhbhakt yaa all in one ho, In dono ko purash or mahapursh bolta hai, aur sath hi ye avtar nhi, ye bhagwan nhi sath me ye bhi likhta hai tera DallaNAND
परमात्मा ही ईश्वर है, और कण-कण में व्याप्त है, अगम है, अपरिभाषित है । भगवान, देवी देवता, ब्रह्मऋषि, दानव, यक्ष आदि वर्तमान समय के शंकराचार्य, जगत्गुरू, महात्मा, साधु, संत, ऋषि, मुनि ये सभी पद हैं, और परिभाषित हैं ।
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
अंधे आंखों के दिमाग के अंधे भारत भुमि और धर्म को जग हंसाई पर उतारू हैं स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सत्य को जीवित किया पखंड का नाश किया जै संतों महापुरुषों की❤❤❤
@@vishramchoudharysaran5653Dost Dharm Anubav ki baat hai jah Discussion ki sabi sant maha purasho na Practical experience ka bina baat kerna sa mana kerha
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@lakhvirsingh9492साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@RamPrasad-wi9fr साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
स्वामी दयानंद महाराज बहुत उच्च कोटि के ज्ञानी थे। वेदों में अवतार नहीं है। यह सत्य है। वेदों का पठन-पाठन से दूर होने के बाद सनातन धर्म संस्कृति को क्षति हुई है। वेद प्रथम स्तर का ज्ञान है। और पौराणिक काल द्वितीय स्तरीय ज्ञान हैं। ज्ञान चर्चा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनाएं।
@@kunaldobhal996 ye Arya samaji logo, khud ke max-muller wale vedo ko hi asli btaate hai, ye british agent tha dyanand max-muller aur EMS , CMS kaa agent tha vo ,
@@ashvisingh2562 ved toh bhagwan ke diye hue hai ! Abh hai hum Kanyakubja Brahmins ram ki kripa se toh hai ! Sitaram , shiv , Krishna , Laxmi Narayan jo naam priye ho usko japo bhagwan khub sabit krdenge ko hai ki nhi ! Yeh duniya gorakh dhanda h sb jag Maya mai andha hai jisne kabhi prabhu ko dekha nhi voh roop btana kya jane ! Sb naam dharti pr mere prabhu ke he naam har har dharm mai naam he le rhe hai log prabhu ka ! Iss yug mai science , maths sb jaruri h sbki shiksha lo grihasth dharm mai ho toh baacho ko padao aache aacharan sikhao ! Agr lgta hai bhagwan nhi krte exist toh be an atheist be a good person be a doctor , scientist , or any profession of your choice for betterment of the human society and isse he punya bn jaenge aapke ! Brahmin kabhi pakshpat krte he nhi yeh sb kalyugi brahmino ki vjah se hai lekin uski galti voh bhog bhi rhe hai mere prabhu ka vidhaan sbse aacha hai ! Hum sb logo mai bhagwat bhav krte hai sb kr ander mere prabhu ka vass hai ! Shudra ko bhi vaikuntha ka adhikar hai bs bhagwan ki sharan mai aa jae toh . Otherwise be an atheist and go good !
जब ये स्वीकार कर रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने सभी को वेदों का सिद्धांत समझाया और उससे हिंदू धर्म की उन्नति हुई तो उसी वैदिक सिद्धांत को मानने में इनका कौन सा अहंकार सामने आ रहा है ? महर्षि दयानंद ने एक बात कही थी जो जिसका रामभद्राचार्य जीवंत उदाहरण हैं , उन्होंने कहा था की “ मनुष्य का आत्मा सत्य असत्य को जानने वाला होता है किन्तु अविद्या हठ, दुराग्रह या अपने किसी प्रयोजन को प्राप्त करने के लिए सत्य स्वीकारने से इंकार कर देता है” इनको अविद्या भी है, हठ भी और अपनी दुकान चलाने का प्रयोजन भी।
राम भद्राचार्य काकभुशुण्डि जी है और आगे भी रहेंगे। सत्य कथा जो समझ ना पाये हंस बनै नहीं काग कहाये।। लौमश ऋषि के वचन ना मानै काकभुशुण्डि भये जग जाने।। आर्य पुत्र।।
कारभुसुंडि ने वेद ज्ञान नहीं लिया था। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@SanatandevAvinashi1234 जो भगवान को देखेगा वही भगवान की व्याख्या करेगा। कोई नशेड़ी भांग का शौकीन हो, जो ईश्वर को देख ही न पाया, वह कैसे व्याख्या करेगा। स्वांस स्वांस में नाम जपो, वृथा स्वांस न खोये, न जाने इस स्वांस को, आवन होए न होए। कबीर वाणी कबीर बीजक :- साखी (343) जो कहते हैं ईश्वर निराकार है उनको :- 1. ढूंढ़त ढूंढ़त ढूँढिया, भया तो गूना गून ढूंढ़त ढूंढ़त न मिला, हारी कहा बेचून ( निराकार)। बीजक साखी 345 2. सोई नूर दिल पाक है, सोई नूर पहिचान, जाके किये जग हुआ, सो बेचून ( निराकार) क्यों जान। (ईश्वर साकार है कबीर साहेब का ज्ञान) बे चूने जग चूनिया, साईं नूर निनार। आखिरता के बखत में, किसका करो दीदार। कबीर बीजक ( वसंत) 12 छाड़हु पाखंड मानहु बात, नहीं तो परबेहु जम के हाथ। कहें कबीर नर कियो न खोज, भटक मुअल( मरा) जस वन का रोज ( नील गाये) । थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे? (संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित ) इन प्रश्नो के उत्तर जाने पढ़िए नि शुल्क फ्री पुस्तक ज्ञान गंगा ला जबाब पुस्तक 📘📘📘📘📘📘📘📘 हम सभी देवी देवता ओं की भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यो? ईस. कौन है? ईश्वर कौन है? परमेश्वर कौन है? परम +आत्मा =परमात्मा कौन है? वह कौन सी भक्ति है जिससे समस्त दुखों का नाश होता है? सच्चा संत गीता के वेद शास्त्र अनुसार कैसा होता है ? मीराबाई का मोक्ष कैसे हुआ ? बृह्मा जी की आयु 50 बर्ष हो गई और आज तक हम इन भक्तियों को करते आ रहे फिर भी आज तक हमारा मोक्ष क्यों नहीं हुआ ? यदि हम ईश्वर में ही तो विलीन थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे? (संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित ) इन प्रश्नो के उत्तर जाने पढ़िए नि शुल्क फ्री पुस्तक ज्ञान गंगा 📘📘📘 आप को 15/से 30 दिन मे होम डिलेवर कर दी जाबेगी आप अपनी ये जानकार हमें दे 👇 1) मोबाइल नंबर :-.......... 2) नाम :-.......... s/o ....... 4) गांव/शहर :-.......... 5) जिला :-.......... 6) राज्य :-.......... 7) पिन कोड :-..........
@@SanatandevAvinashi1234 जब जबाब नहीं तो लोग ऐसी बात करते हैं। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
सनातन धर्म के सभी अंगों को कोमिलकर सनातन धर्म पर आने वाले व्यक्तियों से लड़ना चाहिए ना कि एक दूसरे की टांग खींचकर दूसरों को अपने ऊपर हंसने का मौका देना चाहिए
pakhand ko bahdane dey janta ko lot rhe hi pakahdn ke naeme par khob kama rhe hi pura pakhand itna ho gya hi ke iswar ko log khath kilma bana diya iswar ke hi uske koi phtoo nhi murit nhi
आदरणीय आपको नमन। यद्यपि मैं मूर्ति पूजक हूँ किंतु महर्षि दयानंद का अत्यंत आदर करता हूँ। महर्षि की कृपा से ही आज हमें वेद उपलब्ध है। वे महान समाज सुधारक एवं प्रखर राष्ट्रभक्त भी थे। रामभद्राचार्यजी विद्वान और आदरणीय व्यक्ति हैं किंतु उनके द्वारा या किसी भी सन्त के द्वारा महर्षि दयानंद के विरुद्ध बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए। आप स्वयं सत्य के प्रति आग्रही हैं। अवतारवाद को मानना या ना मानना उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना हिन्दू मात्र को संगठित रखना। आपसे और रामभद्राचार्यजी दोनों से करबद्ध प्रार्थना है कि कोई भी ऐसा कदम ना उठाएं जिससे से हिंदुओं में रत्ती भर भी बिखराव हो। ।। वन्देमातरम।।
murti hta do maine hta diya kuch din dikkat hua th ab nhi same sabpoja wahi karta ho jaise pehle bas photo murti hta diya ab koi hamre asntan par ungli nhi utha skata iswar ke hi uska koi phtoo nih hi uske murti nhi hi
आपका धन्यवाद 🙏 सत्यमेव जयते।। वेद तो सृष्टि के प्रारंभ से हैं। राम और कृष्ण वेद का आचरण करने वाले सर्वश्रेष्ठ महापुरूष थे जो भगवान तो हैं परन्तु ईश्वर नहीं। ।। जय हिन्द।।
@@shivanibhooch6182 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@ashokkumararya6806 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@vaidikdharm1118 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है। इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी। ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं। आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है। शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है। तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है। कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था। इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
मैं स्वयं भी 5 साल तक आर्य समाज मंदिर में रहा हूं ऐसी बात और ऐसा शब्द कहीं नहीं है कि राम को और कृष्ण को नहीं मानते हैं जयकारे भी लगाते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम चन्द्र की जय कितनी बड़ी बात यह कि गऊ माता की जय सभी संतों की जय मैं आर्यरामभद्राचार्य जी का भी सम्मान करता हूं मगर आर्य समाज के विषय ये टिप्पणी उन्होंने गलत कि है।
@@ramsinghchauhan1936 आपने जयगुरुदेव जी की फोटो लगाई है। बताओ शाकाहरी पत्रिका 7 सितंबर 1971 में जय गुरुदेव ने कहा था कि जो सब संसार को ज्ञान देगा वह महापुरुष आज 20 बर्ष का हो गया। बताओ कौन 1951 में जन्म लिए थे। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
प्रणाम महोदय🙏 मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि जब भी आप किसी का खण्डन करे तो कृपया वेद से तथ्य प्रमाण दिया करे ताकि जब हम किसी से तर्क करे तो उन तथ्यों को उनके सामने रख सके ।
ये आ गए बड़े वाले वेदांती। अब ध्यान से पढ़ें: सनातनी वेदों में केवल झूठ और गंदगी और कुछ स्तुतियां हैं। अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है। इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी। ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं। आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है। शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है। तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है। कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था। इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
भगवान कहीं नहीं है भगवान कभी मरते नहीं जो मारा है वह इंसान है हर इंसान के अंदर कुछ शक्तियां अलग अलग सबके पासहै उन्हीं को हम भगवान कहे या महापुरुष जीव जो बनता है ब्रह्मांड की शक्तियों सेबनता है वह है धरती और आकाश
पुराणिक बात प्रमाणिक नहीं शास्त्रार्थ करने से दुथ का दुध पानी का पानी हो जाएगा ये रामभद्राचार्य सत्य सनातन परमात्मा को न जाना है न जानते हैं अवतार जन्म का नाम है वैदो में सर्व व्यापक परमात्मा को बताया है जो सत्य सनातन है। नमस्ते ओ३म्
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
*@RamnareshTyagi-x1r* नहीं, स्पष्ट ये है कि भगवान और ईश्वर भिन्न नहीं है। देव और भगवान में अंतर है लेकिन भगवान और ईश्वर में कोई अंतर नहीं है क्योंकि भगवान, ईश्वर का ही दूसरा नाम है। इसीलिए महाभारत में भगवान विष्णु का नाम भी *'स्वयंभू'* है जिसका मतलब जो खुद से ही जन्मे हैं।
रामभद्राचार्य जी कुछ अच्छा बोला करो जब राम को कृष्ण को मानने वाला ही समाप्त हो रहा है इस दुनिया से तो फिर आप ही कैसे बचोगे उच्च शिक्षा दो भविष्य में जो हिंदू लड़ सके और अपने आप को अपनी बहनों को बेटों को माता को बचा सके भारत माता कोबचा सके
भगवान की कृपा से संत महापुरुष धरती पर अवतरित होते हैं कल्याणकारी होकर कॉल रुपी संसार में आसक्त होना माया का स्वरूप प्रतिष्ठा पैसा बड़प्पन यह जीवात्मा को सम्मान जनक जीने की इच्छा जागती है भक्ति का पुत्र ज्ञान में वह विलीनहोत ईश्वर को पीछे खुद को आगे प्रचारित करते हैं सर्व धर्मन परित्यज्य ममेकम शरण राजा❤ धर्मशास्त्र पर तकरार नहीं मंथन करें जीव ब्रह्म का दर्शन कैसे करता है शब्दों का ज्ञानी नकलची कहा जाता है कर्म भी होना चाहिए जिसने परमात्मा को देखा है वही परमात्मा का मार्ग दिखा सकता है शब्द उतना ही समाज वोलें जितना स्वयं कर्म करते जय माता की दिल्ली से
जय श्रीराम मैं एक गांव की गवारिन हूं एक बात आप।से जाना चाहती हूं आप लोग ईतना पहूंचे हूय उच्च कोटि का संत है कोटि कोटि नमन फिर भी एक दुसरे से क्यो पछारने के पिछे पडं रहते है क्या महर्षि बालमिकी से भी आप उपर है क्षमा करियगा ईश्वर एक है अवतार अनेक है भगवान जिस रूप मे चाहेगे दर्शन देते रहते है जिसका जहां आस्था है भेजने दिया जाना चाहियेभगवान को आप भी नही जान पाइयगा उनका तरक वि तरक नही कर सकते भगवान और उनकी लीला अलौकिक है
माताजी आपकी पहली बात का उत्तर यह है कि हम किसी के पीछे नहीं पड़े यह पाखंडी धर्मगुरु इस आर्य समाज के पीछे पड़े हैं जिसके 85% से 90% नौजवान देश को आजाद करने के लिए अपना बलिदान देते हैं यदि आपको शक है तो आप और स्वाध्याय कर सकती हैं आप की दूसरी बात का उत्तर सच्चिदानंद जी ने कभी भी नहीं कहा कि वह महर्षि वाल्मीकि जी से ऊपर है महर्षि वाल्मीकि जी भी एक महर्षि थे जो कि संत की श्रेणी में आते हैं ना कि वह कोई ईश्वर थे। समस्त जग का ईश्वर एक ही है जिसका ना रूप है ना रंग है जो की निराकार है जिसका नाम ओ३म है।
@@ramenderrajput88261 अगर आपको वाकई में लगता है आप का तरीका इतना सही है तुझे अपने आप में ऐसा परिवर्तन लाकर दिखाइए की दुनिया आपकी बात मानने को मजबूर हो जाए जो कि आप बात करते हैं प्रेमानंद जी महाराज के बारे में अन्य के बारे में आज उन्होंने अपने अंदर उसे तत्व को जगा लिया है जिसको ईश्वरी तत्व कहते हैं वह उनकी वाणी उनके स्वभाव सब में प्रदर्शित होता है उनको देखते ही व्यक्ति का मन निर्मल हो जाता है तो पहले अपने अंदर उसे तेज को प्राप्त कर लीजिए उसके बाद आगे बात कीजिए बातों से कुछ नहीं होगा।
Ayra smaj ke pratinidhi sivaye alochna ke or kuchh nhi krte. arey bhai ap apna kam kriye or smprdaye apna kaam kr rhe h. Sbki apni apni astha or vishvash. Saari dunia ka theka le lia aapne.ap isi trha alochna krte rhe to ap me or svymbhu sent rampal me kya frk rha. Vo bhi isi trha sbki reject kr rhe the
ईश्वर के दो रूप होते हैं।निराकार और साकार। निराकार अंतःकरण का बिषय है और अदृष्य रूप है। साकार बाह्य जगत की दृष्य स्वरूप है।दृष्य रूप की पूजा करती है। साकार
वेद ईश्वर ने खुद दिये, अपनी जानकारी के लिए। उनमें जो ईश्वर की स्थिति है वह ईश्वर का साक्षात अनुभव है। अब ईश्वर के साक्षात अनुभव के उपर अपना अनुभव क्यों जोड़ो जो काल प्रेरित हो। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
Rambhracharya Insan ko Insan ni smjhta vo bramhanwadi hai uske najar me sirf bramhan jati hi shreth h baki jatiyo ko hmesa nicha dikhata h isliye bhgwan use aandha bnaya h
उनके लिए रामभद्राचार्य जी और आप एक ही हो.. हिन्दू.. जब वह काटने पर आएंगे तो आपको सलाम नहीं करेंगे.... आपस में गणउ-ग़दर बंद करिये.. स्वामी दयानन्द का व्यक्तित्व इतना छोटा नहीं है की किसी के कुछ कहने से मलिन हो जाएगा.... इतनी कठोरता ठीक नहीं है.... आर्य समाज को इस्लाम न बनाइये
@@vinaypandey5038 वह खुद आपस में लड़ मर रहे हैं और यह लोग भी। जी साहेब ने 600 साल पहले ही कहा था कि जब :- कलयुग बीते पचपन सौ पाँचा, तब मेरा बचन होगा साँचा। तेरहवें वंश हम ही चल आवें, सब पंथ मिटा एक पंथ चलावें। (कबीर सागर जो कि धर्मदास जी ने 600 साल पहले लिखा, उससे यह प्रमाणित है, आज 5505 + ही चल रहा है कलयुग) कलयुग 5505 बीत जायेगा तब संत कबीर जी स्वयम आकर सारी दुनिया को कबीर मार्ग पर लगा देंगे। दुनिया में एक ईश्वर एक भक्ति और एक धर्म वही करेंगे। कबीर सागर में बोल कर लिखा दिया। अपने पास रखी गीता जी में आज की संध्या /भक्ति/नियम करते समय जरूर देखिये अद्भुत रहस्य:- गीता अध्याय :- अध्याय श्लोक 👇 👇 10 श्लोक 2 :- ऋषियों की स्थिति 4 श्लोक 34:- तत्वदर्शी संत की महिमा 15 श्लोक 1 :- तत्वदर्शी संत की पहिचान 18 श्लोक 46:- सबसे बड़े ईश्वर की महिमा 16 श्लोक 34 :- शास्त्र विधि से हटने से नुकसान 7श्लोक 23,29 :- देवताओं और गीता ज्ञान दाता के आगे 9 श्लोक 21 :- महास्वर्गों से बापस आने का प्रमाण 8 श्लोक 13 :- ओम् मंत्र बृह्म का जो पूर्ण नहीं 17 श्लोक 23 :- इसमें पूर्ण परमात्मा का मंत्र जो केवल तत्वदर्शी संत बताएगा नोट :- आत्मा परमात्मा में विलीन नहीं होगी क्योंकि यह वेद या गीता शास्त्र में कहीं नहीं लिखा ऐसे गहरे रहस्य शास्त्रों से जानने और ज्ञान गंगा बुक मंगाने के लिए पूरा पता :- मोबाइल नम्बर :- हमें कमेंट में लिखकर भेजिये #गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत (रामपाल जी संकलन कर्ता हैं)
मिट्टी के एक छोटे से छोटे कण को ईश्वर मानकर उसे प्राप्त किया जा सकता है मिट्टी की मूर्ति तो फिर भी बहुत बड़ी है..ईश्वर को किसी भी रूप में प्राप्त किया जा सकता है निराकार रूप में भी और साकार रूप में भी में किस रूप में उसे प्राप्त करना चाहता हूं वो मेरी आस्था पर निर्भर करता है...ओम 🙏अगर कोई आर्य समाजि मुझसे सहमत नहीं है तो अपनी उपस्थित दर्ज करे 🙏
जय जय श्री राधे कृष्ण पाखंडी है रामभद्राचार्य ये न राम को जानता है न रामायण को न श्री राम भक्ति को, ऐसे पाखंडियों ने ही हिन्दू के हिन्दुत्व की गलत व्याख्या कर जाति वाद पार्टी वाद पाखंड वाद और तथाकथित धार्मिक उन्माद फैलाया है हिन्दुत्व की रक्षा हेतु इसको बहिष्कृत और दण्डित करना अनिवार्य है।
Satya Sanatan Dharm*--*--Bhagwan ki Satta Kan Kan mein vidhmaan hai Jo chhatri rajputon mein Ansh Avatar ke roop mein aate Hain-*********-***--*-*******-- Avatar ke roop mein
@@ramsanehijariya9888 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
अब तो स्पष्ट है कि भगवान और ईश्वर भिन्न नहीं है। केवल देव और भगवान में अंतर है, लेकिन भगवान और ईश्वर में कोई अंतर नहीं है क्योंकि भगवान, ईश्वर का ही दूसरा नाम है। इसीलिए महाभारत में भगवान विष्णु का नाम भी *'स्वयंभू'* है जिसका मतलब जो खुद से ही जन्मे हैं।
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है। इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी। ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं। आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है। शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है। तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है। कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था। इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
आर्यसमाज की धूर्तता और झूठ समझने के लिए पढ़ें अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है। इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी। ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं। आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है। शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है। तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है। कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था। इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
कभी वेद पर, कभी पुराण पर, कभी महाभारत पर तो कभी और कुछ पर सवाल उठाने से अच्छा है कि सनातन हिन्दू धर्म के समस्त विद्वानों को इकट्ठा हो, इस पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए। इस मंथन में चाहे 2 साल लगे 3 साल लगे। संविधान को भी 2/3 साल लगा था, जो हिन्दूओं के साथ ही भेदभाव करता है। सनातन हिन्दू धर्म के विद्वानों को एक साथ बैठकर मंथन करना चाहिए। इस मंथन से निकले परिणाम के आधार पर एक नया ग्रंथ की रचना हो। जो हिन्दू को हिन्दू मानता हो , ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र और आदिवासी और दलित नहीं। लेकिन ऐसा नहीं होगा क्योंकि स्वार्थ ऐसा नहीं करने देगा। फिर अपनी डफ़ली अपना राग अलापते रहो।
सनातन के विद्वानों को आपस में विवाद नहीं करना चाहिए। स्वामी दयानंद सरस्वती निराकार , सर्वशक्तिमान, सर्वाअन्तर्यामी,अजर ,अमर ,नित्य व पवित्र मानते थे। उन्होंने समाज की बहुत सी कुरीतियों का उन्मूलन किया
भुला ना देना बंग्लादेश की कहानी जहाँ लुटी मां बहनो की जवानी नही तो तुम्हे देनी पडेगी कुर्बानी सुना ना पाओगे अपनी जुबानी तुम सब अपनी अपनी कहानी मत करना तुम ये नादानी 🙏🇮🇳 जागो हिन्दुओ जागो
अनंत ब्रह्मांड को चलाने वाला अगर धरती पर अवतरित हो गया तो फिर वहां कौन चलाएगा😂😂😂 अपनी छोटी सोच से ईश्वर को समझो.... वहां का क्या मतलब है और अगर ईश्वर इतना ताकत वर नहीं है तो वो ईश्वर नही है
राजनीति पूरी तरह से सनातन पर हावी हो गई है, और सनातन अपने अंत की दिशा में बढ़ रहा है। उसकी मूल भावना को राजनीतिक लुटेरों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बदल दिया है। इस तरह की बातों से, जैसे कि अंतरिक्ष में 'ॐ' की ध्वनि है, विज्ञान को ईश्वर, जादू-टोना और अंधविश्वास मात्र बना दिया गया है।
@@AashishMusicalEvents -सनातन धर्म की मूल भावना वेदों और उपनिषदों में समाहित है, जो "सनातन" यानी शाश्वत और सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है। यह धर्म न केवल मानव समाज के लिए, बल्कि पूरी सृष्टि के लिए है। सनातन की मूल भावना सनातन धर्म का आधार सत्य, अहिंसा, करुणा, और सह-अस्तित्व है। यह किसी एक विचारधारा, जाति, धर्म, या सीमा में बंधा हुआ नहीं है। इसका उद्देश्य "वसुधैव कुटुंबकम्" यानी पूरी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में देखना है। राजनीतिक स्वरूप का प्रभाव जब सनातन को राजनीतिक विचारधारा से जोड़ दिया जाता है: मूल सिद्धांत कमजोर हो जाते हैं: वेदों और उपनिषदों में जो सार्वभौमिक और शाश्वत संदेश हैं, वे राजनीतिक हितों के तहत विकृत हो सकते हैं। हिंसा और भेदभाव को बढ़ावा: राजनीति अक्सर विभाजन और प्रभुत्व की भाषा का उपयोग करती है। अगर इसे धर्म से जोड़ा जाता है, तो सनातन धर्म के मूलभूत मूल्य, जैसे करुणा और सहिष्णुता, खतरे में पड़ सकते हैं। सांप्रदायिकता का खतरा: सनातन धर्म को किसी विशेष राजनीतिक या सांप्रदायिक विचारधारा के साथ जोड़ने से इसकी वैश्विक और सर्वकालिक पहचान सीमित हो सकती है। सनातन का वास्तविक स्वरूप आदि और अनंत: सनातन धर्म समय और स्थान से परे है। यह सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर अंत तक के सिद्धांतों को समाहित करता है। सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय: यह केवल मानव मात्र के लिए नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड के कल्याण के लिए है। धर्म का अर्थ: यहाँ धर्म का अर्थ "कर्तव्य" और "सत्य" है, न कि केवल अनुष्ठान या परंपराएं। चिंता की दिशा अगर सनातन को राजनीतिक रूप दिया जाता है, तो यह अपनी सार्वभौमिकता खो देगा। इसका वास्तविक उद्देश्य भटक सकता है, और एक ऐसा स्वरूप उभर सकता है जो "मारने-काटने" या विभाजन की भाषा बोलता हो। सनातन का भविष्य सनातन को उसकी अध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता के साथ समझना और सहेजना जरूरी है। राजनीति से इसे अलग रखना चाहिए ताकि इसकी मूल भावना - प्रेम, सह-अस्तित्व, और सार्वभौमिकता - संरक्षित रहे। सनातन किसी विचारधारा से नहीं बंध सकता। यह आदि और अनंत है, और इसका मूल उद्देश्य सृष्टि के हर तत्व का कल्याण है।
@@badrivishalnathtewari3470 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
सत्य सनातन वैदिक धर्म और संस्कृति अमर रहे। स्वामी दयानंद जी सरस्वती अमर रहे। आर्य समाज मिशन जिन्दाबाद। स्वामी सचिदानंद जी आर्य की सदा जय हो विजय हो। ॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ ॐॐ.............
मैं पहले नास्तिक था आर्य समाज के सम्पर्क में आने के बाद मैं आस्तिक हुआ और मूर्ति पूजा का विरोधी बना पर बाद में मुझे मूर्ति पूजा का महत्व और उपयोगिता भी समझ मे आयी मूर्ति पूजा करना गलत नही है तो अब मैं मूर्तिपूजक भी बन गया हूँ पर दयानंद स्वामीजी में मेरी अपार श्रद्धा है मैं उनका ऋणी हूँ
Pakhandi
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने हमको सच्चे वैदिक धर्म से परिचय करवाया 🙏
@@kavandesai8459 उससे पहले क्या कोई जानते नहीं थे भारतवर्ष में क्या एक दयानंद जी ही पैदा हुए ऐसा जानकार व्यक्ति ???
To fir vadic ganit(math) kyu nahi padte ho tum dayanand ke chelo
वेद सनातन की जड़ें है, मूल हैं जड़ कटे हुए भटकते रहते हैं । आज फसलें और नस्ले दोनो विकृति और बीमार दवाई पर डिपेंड हैं पर ऑर्गेनिक और मूल बीज जो हाइब्रिड नही हुआ वह स्वस्थ हैं।
@@Arramy-s2q right
@@Arramy-s2q Hey Bhagwan....Are Bhai uske kahne ka matlab hai ki abhi Muslim, Christian, Britishers ke aane ke baad Bas Maharshi Dayanand saraswati hi the jinhone Vedon ka thik se bhasya kiya wrna britishers aur adhiktar logon ne Vedon me maans khana, Gay ko maarna,etc. jaise paakhand faila ke translation kr diya tha....
ओउम् 🙏गुरूजी कोटि कोटि नमन
रामभद्राचार्य जी कथावाचक है और योग्य भी है इसमें संदेह नहीं पर अहंकार जातिवाद राजनीति उनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई है,,
*@omyadav1557* शमा करना, रामभद्राचार्य जी जैसे एक योग्य कथावाचक के अंदर भले ही थोड़ा सा अहंकार और राजनीति कूट कूट कर भरी हुई हो, लेकिन जातिवाद उनके अंदर बिलकुल भी भरी हुई नहीं हैं। इस बात की guarantee मैं दे सकता हूं। 🙏🏻
*@omyadav1557* तुम आर्य समाज के लोगो की बातों में बहुत बड़ा CONTRADICTION हैं। अगर तुम आर्य समाज के लोग श्री राम और श्री कृष्ण को पहले से ही भगवान मानते हो तो ईश्वर क्यों नहीं मानते? ईश्वर का ही तो दूसरा शब्द है भगवान, जैसे पानी और जल एक ही तरल पदार्थ के दो शब्द हैं। श्री रामभद्राचार्य अकेले हिंदू आचार्य नहीं हैं जो राम और कृष्ण को ईश्वर मानते है क्योंकि वेद और महाभारत जैसे मूल ग्रंथ की शुरुआत ही इस श्लोक से होती है कि श्री कृष्ण स्वयं परमेश्वर नारायण हैं। तो तुम लोग इस महत्वपूर्ण कथन को कैसे नकार सकते हो? यदि प्रभु श्री राम और श्री कृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते तो ईश्वर नाम की कोई इकाई नहीं हो सकती, बस इतनी सि बात आपको समझ आनी चाहिए। मेरी तरफ से सभी आर्य विद्वानों से निवेदन है कि भले ही आप लोग रामभद्राचार्य जी का खुलकर विरोध करे लेकिन भूल कर भी कभी परमेश्वर नारायण के अवतार प्रभु श्री राम और श्री कृष्ण को ईश्वर मानने से इंकार न करे। अन्यथा मुक्ति नहीं मिलेगी कभी। जय श्री राम 🙏🏻
@@jaydutta7711 श्री मान जी ऐसा नहीं है मैं स्वयं श्री रामभद्राचार्य जी के प्रोग्राम में गया हूं, की राम रस उनकी वाणी से लें, तो मुझे जो महसूस हुआ, मैं मथुरा भी आए दिन जाता हूं तो हमारे देश में योग्य साधु संतों का अभाव नहीं है पर सत्यता में देखा जाए , तो एक पर्सेंट सच्चे साधक के गुण है,वाकी जैसे भी है ठीक है हमारे लिए पूजनीय हैं,श्री प्रेमानंद जी जैसे सच्चे साधक होना चाहिए, जिनके अंदर कोई किसी तरह का विकार नहीं,,
kuch nhi hi unke under jhota hi bas politics karta hi kisi se debate nhi kar sakte hi zakirnaik ne kaha key hinduo mai koi ek vidwan nhi hi jo debate kar skatey
@@jaydutta7711😂😂😂
हिंदू धर्म जब आंतरिक और बाह्य आघातों से अपनी अंतिम सांसे ले रहा था तब स्वामी दयानंद सरस्वती जी का इस धरा पर अवतरण हुआ और हिन्दू संस्कृति में नयी जान फूंकी और हिन्दू संस्कृति का उद्धार कर वेद विज्ञान को एक नई दिशा दी।धन्य हैं ऐसे महामानव।
जय हो आर्यसमाज दयामनंद सरस्वती की 👌👍💪💪🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 jy हिंदी राष्ट्र 🕉️ नमः शिवाय
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
धर्म की सही व्याख्या जिसने की, हिन्दुओं को अपने प्राचीन गौरव का अहसास कराया। जातीपाती और छुआछूत से परे रहना सिखाया। ईश्वर के सच्चे सपूत थे आप। आपने ही ये कर दिखाया।
ऋषि दयानंद की जय।
रामभद्राचार्य को अपना स्वाध्याय बढ़ाने की आवश्यकता है.🙏🚩
आर्य समाज एक श्रेष्ठ समाज है स्वामी दयानंद सरस्वती जी एक श्रेष्ठ ऋषि थे शत शत नमन।
आपने बेहतरीन तरीके से अपनी बात रखी । मैं आपको प्रणाम करता हूं
ज्ञान पर चर्चा बहस जांच-पड़ताल आवश्यक है। जिससे समाज को सही धर्म दिशा दी जा सके। हर हर महादेव
वेद भी ऋषियों के रचित मंत्रों का ही संकलन है। ये भी कोई ईश्वर प्रदत्त नही है
बताओ ठाकुर जी की भावना क्या आहत हुई तुमने तो वेदों पर ही प्रश्न उठा दिया😂😂😂
Jo vedon ko nahi mante bo nashtik kahlaate hai
@@tigerraj1456ye vedo ko Mane bale bhe nastiko jese bybuar karte hai inhone seedhe seedhe Meera ki bhkti ko jhoota bata diya unhone to krishna ko pati mana tha
ये कोई नई बात नहीं है।
@@tigerraj1456 तथाकथित आर्यसमाजी ही वेदों को नहीं मानते हैं सिर्फ अंग्रेजी शासनकाल में पैदा हुए दयानंद के भाष्य को ही वह वेद मानते हैं ! दयानंद ही वास्तव में उनका निराकार ईश्वर है ?
❤Science Journey❤ Rational World ❤Zindabad
👍🏻
Namo budhay
Sanatan samiksha ne kuta Thai wahi😂😂
√
Sanatan samiksha zindabad ❤❤
आर्य समाज जिंदाबाद
हमे एक दिन आर्य समाज के अनुसार चलना होगा। आर्य समाज प्रमाणित बात करता है । आर्य समाज भगवान राम कृष्ण को मानते है । सनातन धर्म के सच्चे रक्षक है आर्य समाज। देश भक्त है आर्य समाज। रामभदराचारय को भुल स्वीकार करना चाहिए। हठठी जिद्दी गुस्सा सन्त का काम नही होता।
स्वामी दयानंद सरस्वती को कोटी कोटी नमन।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
स्वामी जी ने ईश्वरीय विषय को बहुत अच्छे से समझाया है सत सत नमन
अवतारवाद अवैदिक है अगर अवतारवाद होता तो आज दुनिया में भारत में आज सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा है उनके लिए भगवान अवतार क्यों नहीं ले रहे है।
😮😮 Vagban ko ap to dakte ne ,kab dakte hai jab ab bipad me haie to ek dusra Avatar ki asli maina kea e samja ne ap Vagban sab kuch kar denge r ap baithke ke indirio ki purti karte rahenge,ap vi abtar hai kuch kare
Har achcha byakti jo logo ki help karta hai vo bhagwaan ka awtar hai
@@AnilKumar-ol6eo or ved kaha se Aaye
@@AnilKumar-ol6eo mere pas to ved nahi hai or mai ved ke pas kyu jau yadi ved mere liye hi hai to vo khud mere pas Aana chahiye yahi Sacha niyam hai ha uske baad mai unhe na padu to ye meri galti hai mai Aapni taraf se une dundu ye kaha ka sindhant hai
Ved koi kitab to hai nahi
Swamiji ko koti pranam
🙏 आचार्य जी बड़ी ख़ुशी होती है जब आप हमें इतना बारीकी से समझाते हो ईश्वर करे इस दुनिया का हर इंसान आर्य समाजी बन जाए ईश्वर करे वो दिन जल्दी आए ओर बुराई का नाश हो जाए
भाई इसके लिए प्रयास करना होगा जैसे इन स्वामी सच्चिदानंदजी एवं उनके जैसे कुछ और विद्वानों नेअपनी जान हथेली पर लेकर वेद का सत्य का प्रचार प्रसार करने का बीड़ा उठाया है हम चाहे बहुत बड़े विद्वान नहीं है, चिंटू विचारों से प्रभावित है जानते हैं तो फिर हमें मजबूत कार्यकर्ता बनना चाहिए! पूरा समय नहीं दे सकते तो वर्ष में 10 दिन ही निकाल कर हम गांव गांव जाकर वेद प्रचार करें! इसके साथ ही आवश्यक है कि हम अपना चरित्र व्यवहार दिनचर्या, सुखी संतुष्ट पारिवारिक सामाजिक व्यवहार आदि एक पवित्र रखें कि भगवान रामकृष्ण तो बहुत बड़ी बात वे हमारे जैसे आर्य जनों का ही उदाहरण देने लगा जाए!
कभी नहीं बन सकते जो हमारी संस्कृति पर सवाल उठाते हैं और इसी कारण ये पहले भी संकुचित थे और आज भी
@@mohanlalarypushp5886जी आज सोशल मीडिया हर आदमी के हाथ में मोबाइल के द्वारा है। कहीं न जाओ।
घर बैठो मेरी तरह प्रचार करो वेद का एक एक आदमी के फेसबुक, ट्विटर इंस्टा, यू ट्यूब पर।
@@mohanlalarypushp5886साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
आर्य समाज की जय हो स्वामी दया नन्द सरस्वती की जय हो। बेद सत्य व सनातनी है
Aary smaj saty aursnatni hai.dayanandsarsvti.par.ungli.
Uthane vale.jhoothe.aur.ahankari.hai
Unako.bedon.ka.gyan.hi.nhi.hai.❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
स्वामी सच्चिदानंद जीने रामभद्राचार्य द्वारा महर्षि दयानंद पर लगाए गए सभी आरोपों का एक एक करके सटीक उत्तर दिया और शास्त्रार्थ सार्वजनिक स्थान पर होगा रामभद्राचार्य जी के आश्रम पर नहीं |बिल्कुल सही है|
मैं भी महर्षि दयानंद पर लगाए गए आरोप से बहुत दुखी हूं {आर्य समाज का संगठन इस आरोप को हटाने के लिए पूर्ण रूप से संगठित रहे|
डॉ प्रतिभा सिंघल संरक्षिका आर्य समाज अवंतिका गाजियाबाद{
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
महर्षि दयानंद सरस्वती का सबसे महत्वपूर्ण कार्य मूर्ति पूजा का जोरदार तार्किक खंडन है
मूर्ति पूजा पंडे पुजारियों की कमाई का साधन मात्र हैं
Tumhare liye hogi. Lekin jab tak duniya rahegi koi nahi mita sakta hasti humari. Jai Sanatan Dharma
अंत मे यही कहूंगा अलग अलग समाज बना कर सनातन का बटवारा ना करे, अलग पंत में बटे सभी हिंदुओ को भगवा के तले जोड़ कर पुनः सनातन धर्म सनातन समाज की स्थापना करें प्रचार करे इसी में समस्त हिंदुओ का उद्धार है,जय श्री राम🙏🏼🚩
Jay shri Ram
1 hi panth h o h ved
Ye bjp k agent h iski bato par jyda dhyan dene ki nhi h
murtipoja to band karo bhaio kyo kisi ko hasne k moka det eho murti poja choro phele ke log murti poj anhi karte they hawan karte they kyoke iswar kahi dikhta thore na tha iswar ek hi or ek bat ye pakhand badn karao nhi to barbad ho jaoge bhai
@@sonukumarmishra4120तू किसका एजेंट है कांग्रेश का😅😅😅
सही कहा सनातन हो,पर हिन्दू नहीं। क्यों कि हिन्दू वर्ण व्यवस्था का पोषणकरता है।जो अमान्य है।वोट के लिए हिन्दू को एक बनाना छलावा है। फिर वर्ण आधारित धर्म में हिन्दू बनना उचित नहीं है।
दयानंद सरस्वती जी समाज के लिए बहुत कल्याण योजना सरल तरीके से ईश्वर की ओर जाना सबको सदा प्रेरणा गायक रहे हैं अपने अनुसार समाज को अक्षय कर्म का मार्ग दिखाइए ऐसे महापुरुषों को हर प्राणी धन्यवाद के साथ भोले हर हर महादेव जय माता की दिल्ली से❤
नमस्ते स्वामी जी 🙏🙏🙏🙏🙏 युग प्रवर्तक महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जी अमर रहें।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र और योगेश्वर श्रीकृष्ण जी को महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के आदर्श है। आर्यावर्त भारत के उज्ज्वल रत्न है। जय श्री राम।। जय सत्य सनातन वैदिक धर्म।। आर्य पुत्र।। ❤
सत्यार्थ प्रकाश में तो नहीं लिखा है।
@@HaridevSharma-rc1jv 😆😁😄joker ho yaa murkh yaa Andhbhakt yaa all in one ho,
In dono ko purash or mahapursh bolta hai, aur sath hi ye avtar nhi, ye bhagwan nhi sath me ye bhi likhta hai tera DallaNAND
इसीलिए गीता के 700 श्लोकों में से 630 श्लोकों को मिलावट बताकर उन्हें गीता से बाहर करके 70 श्लोकी गीता प्रकाशित की है समाजियों ने ❓
और सत्यार्थ प्रकाश में राम स्नेहियों को रां*स्नेही लिखा है ❓
दिन रात राधा जी के विषय में उल्टा सीधा बोलते हैं ❓
स्वामी सच्चिदानंद की बातें वेदों एवं पुराणों से प्रमाणित है
भई हिंदुओं के रक्षक है आर्यसमाजी हिंदू आर्य में अंतर कैसा
सारे आर्यसमाजी
जी-जान लगायें हैं
सनातन हिंदूधर्म बुतपरस्ती पत्थरमूर्तिपूजा ढोंग आडम्बर भगवा छुआछूत ऊंच-नीच गैरबराबरी अस्पृश्यता जातिवाद जात-पात नफ़रत ज़हर बैरभाव वैमनस्यता नृशंसता वहसीपन हवसीपन शोषण यौन-शोषण झूठ ठगी काफ़िर पामर दैत्य दस्यु बेअदबी क्रूरता को बचाने में...
परमात्मा ही ईश्वर है, और कण-कण में व्याप्त है, अगम है, अपरिभाषित है ।
भगवान, देवी देवता, ब्रह्मऋषि, दानव, यक्ष आदि वर्तमान समय के शंकराचार्य, जगत्गुरू, महात्मा, साधु, संत, ऋषि, मुनि ये सभी पद हैं, और परिभाषित हैं ।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
अंधे आंखों के दिमाग के अंधे भारत भुमि और धर्म को जग हंसाई पर उतारू हैं स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने सत्य को जीवित किया पखंड का नाश किया जै संतों महापुरुषों की❤❤❤
आर्य समाज में महिलाएं भी वेदों में शास्त्रार्थ करने में सक्षम है🙏🙏🚩🚩🚩
वेदों का अर्थ ही सही नहीं कर रखा है
ज्ञान चर्चा के लिए कभी भी आ सकते हैं
@@vishramchoudharysaran5653Dost Dharm Anubav ki baat hai jah Discussion ki sabi sant maha purasho na Practical experience ka bina baat kerna sa mana kerha
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@lakhvirsingh9492साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
यह आपके साथ 10 मिनट भी नहीं टिक पाएंगे स्वामी महाराज
@@RamPrasad-wi9fr साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
भद्राचार्य आंखों से नहीं अक्ल से भी अंधे हैं ।
Tu apni buddhi check kar le kahi teri budhhi to
राइट
Very true statement
स्वामी दयानंद महाराज बहुत उच्च कोटि के ज्ञानी थे। वेदों में अवतार नहीं है। यह सत्य है। वेदों का पठन-पाठन से दूर होने के बाद सनातन धर्म संस्कृति को क्षति हुई है। वेद प्रथम स्तर का ज्ञान है। और पौराणिक काल द्वितीय स्तरीय ज्ञान हैं। ज्ञान चर्चा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनाएं।
Inko sb ved kanthasth hai kalyugi shudro ! Tum log mere sath he shastrarth krlo advait , aryasamaj , vishishtadvaita pr
@@kunaldobhal996 ye Arya samaji logo, khud ke max-muller wale vedo ko hi asli btaate hai, ye british agent tha dyanand max-muller aur EMS , CMS kaa agent tha vo ,
@@kunaldobhal996 Mtlb pathak shudra hote h 😂😂😂 jis jati ke logo ved jaisi fake chize bnayi h jab usi ko kanthast yaad ni hoga to kisko fir 😂😂😂😂😂😂😂😂😂
@@ashvisingh2562 ved toh bhagwan ke diye hue hai ! Abh hai hum Kanyakubja Brahmins ram ki kripa se toh hai ! Sitaram , shiv , Krishna , Laxmi Narayan jo naam priye ho usko japo bhagwan khub sabit krdenge ko hai ki nhi ! Yeh duniya gorakh dhanda h sb jag Maya mai andha hai jisne kabhi prabhu ko dekha nhi voh roop btana kya jane ! Sb naam dharti pr mere prabhu ke he naam har har dharm mai naam he le rhe hai log prabhu ka ! Iss yug mai science , maths sb jaruri h sbki shiksha lo grihasth dharm mai ho toh baacho ko padao aache aacharan sikhao ! Agr lgta hai bhagwan nhi krte exist toh be an atheist be a good person be a doctor , scientist , or any profession of your choice for betterment of the human society and isse he punya bn jaenge aapke ! Brahmin kabhi pakshpat krte he nhi yeh sb kalyugi brahmino ki vjah se hai lekin uski galti voh bhog bhi rhe hai mere prabhu ka vidhaan sbse aacha hai ! Hum sb logo mai bhagwat bhav krte hai sb kr ander mere prabhu ka vass hai ! Shudra ko bhi vaikuntha ka adhikar hai bs bhagwan ki sharan mai aa jae toh . Otherwise be an atheist and go good !
Bhai bol ra hai apne bachcho ko achche acharan do 😂 and khud shudra shurda kar ra hai, tumhe achhe achran ni mile kya bhai?? 😂😂 @@kunaldobhal996
जब ये स्वीकार कर रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने सभी को वेदों का सिद्धांत समझाया और उससे हिंदू धर्म की उन्नति हुई तो उसी वैदिक सिद्धांत को मानने में इनका कौन सा अहंकार सामने आ रहा है ? महर्षि दयानंद ने एक बात कही थी जो जिसका रामभद्राचार्य जीवंत उदाहरण हैं , उन्होंने कहा था की “ मनुष्य का आत्मा सत्य असत्य को जानने वाला होता है किन्तु अविद्या हठ, दुराग्रह या अपने किसी प्रयोजन को प्राप्त करने के लिए सत्य स्वीकारने से इंकार कर देता है” इनको अविद्या भी है, हठ भी और अपनी दुकान चलाने का प्रयोजन भी।
राम भद्राचार्य काकभुशुण्डि जी है और आगे भी रहेंगे। सत्य कथा जो समझ ना पाये हंस बनै नहीं काग कहाये।। लौमश ऋषि के वचन ना मानै काकभुशुण्डि भये जग जाने।। आर्य पुत्र।।
❤ right inko rambhdra jee jese GURU SANT ki mhtaa nhi ptaa inke bhgay abhi soye huye hai
कारभुसुंडि ने वेद ज्ञान नहीं लिया था।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
ये पाखण्डी कहां से बीच में कूद पड़े हैं। जिन्हें व्याकरणादि का व वर्ण उच्चारण करने का वोध नहीं है वह वेद मंत्रों की व्याख्या कर रहे हैं।
@@SanatandevAvinashi1234 जो भगवान को देखेगा वही भगवान की व्याख्या करेगा।
कोई नशेड़ी भांग का शौकीन हो, जो ईश्वर को देख ही न पाया, वह कैसे व्याख्या करेगा।
स्वांस स्वांस में नाम जपो,
वृथा स्वांस न खोये,
न जाने इस स्वांस को,
आवन होए न होए। कबीर वाणी
कबीर बीजक :- साखी (343)
जो कहते हैं ईश्वर निराकार है उनको :-
1. ढूंढ़त ढूंढ़त ढूँढिया,
भया तो गूना गून
ढूंढ़त ढूंढ़त न मिला,
हारी कहा बेचून ( निराकार)।
बीजक साखी 345
2. सोई नूर दिल पाक है,
सोई नूर पहिचान,
जाके किये जग हुआ,
सो बेचून ( निराकार) क्यों जान।
(ईश्वर साकार है कबीर साहेब का ज्ञान)
बे चूने जग चूनिया,
साईं नूर निनार।
आखिरता के बखत में,
किसका करो दीदार।
कबीर बीजक ( वसंत) 12
छाड़हु पाखंड मानहु बात,
नहीं तो परबेहु जम के हाथ।
कहें कबीर नर कियो न खोज,
भटक मुअल( मरा) जस वन का रोज ( नील गाये) ।
थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे?
(संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित )
इन प्रश्नो के उत्तर जाने
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हम सभी देवी देवता ओं की भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यो?
ईस. कौन है? ईश्वर कौन है? परमेश्वर कौन है?
परम +आत्मा =परमात्मा कौन है?
वह कौन सी भक्ति है जिससे समस्त दुखों का नाश होता है?
सच्चा संत गीता के वेद शास्त्र अनुसार कैसा होता है ?
मीराबाई का मोक्ष कैसे हुआ ?
बृह्मा जी की आयु 50 बर्ष हो गई और आज तक हम इन भक्तियों को करते आ रहे फिर भी आज तक हमारा मोक्ष क्यों नहीं हुआ ?
यदि हम ईश्वर में ही तो विलीन थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे?
(संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित )
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1) मोबाइल नंबर :-..........
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@@SanatandevAvinashi1234 जब जबाब नहीं तो लोग ऐसी बात करते हैं।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
सनातन धर्म के सभी अंगों को कोमिलकर सनातन धर्म पर आने वाले व्यक्तियों से लड़ना चाहिए ना कि एक दूसरे की टांग खींचकर दूसरों को अपने ऊपर हंसने का मौका देना चाहिए
pakhand ko bahdane dey janta ko lot rhe hi pakahdn ke naeme par khob kama rhe hi pura pakhand itna ho gya hi ke iswar ko log khath kilma bana diya iswar ke hi uske koi phtoo nhi murit nhi
ईश्वर योगी के हृदय मे अवतरित होता है बाहर नहीं
आदरणीय आपको नमन। यद्यपि मैं मूर्ति पूजक हूँ किंतु महर्षि दयानंद का अत्यंत आदर करता हूँ। महर्षि की कृपा से ही आज हमें वेद उपलब्ध है। वे महान समाज सुधारक एवं प्रखर राष्ट्रभक्त भी थे। रामभद्राचार्यजी विद्वान और आदरणीय व्यक्ति हैं किंतु उनके द्वारा या किसी भी सन्त के द्वारा महर्षि दयानंद के विरुद्ध बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए। आप स्वयं सत्य के प्रति आग्रही हैं। अवतारवाद को मानना या ना मानना उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना हिन्दू मात्र को संगठित रखना। आपसे और रामभद्राचार्यजी दोनों से करबद्ध प्रार्थना है कि कोई भी ऐसा कदम ना उठाएं जिससे से हिंदुओं में रत्ती भर भी बिखराव हो।
।। वन्देमातरम।।
murti hta do maine hta diya kuch din dikkat hua th ab nhi same sabpoja wahi karta ho jaise pehle bas photo murti hta diya ab koi hamre asntan par ungli nhi utha skata iswar ke hi uska koi phtoo nih hi uske murti nhi hi
@@नतस्यप्रतिमाअस्ति-थ4तमूर्ति हटा दो फिर वेद की जगह कुरान बाइबल तुरन्त जगह ले लेगा ... वे भी तो मूर्ति नही पूजते एक मूर्ति है तो पहचान है सनातन का
@@नतस्यप्रतिमाअस्ति-थ4त चुप करो। तुम अल्लाह का काबा हटवा दो।
रामभद्राचार्य चौबे,पाठक,दीक्षित को नीच ब्राह्मण कहते है। मुस्लिम इनके वीडियो इस्तेमाल करते है तोड़ने के लिए हमलोगों को।
@@नतस्यप्रतिमाअस्ति-थ4त😝🤣😅 Dallaannd aapke ghar me safal ho gya aage ki generation me Christian missionaries aayegi
आपका धन्यवाद 🙏
सत्यमेव जयते।।
वेद तो सृष्टि के प्रारंभ से हैं। राम और कृष्ण वेद का आचरण करने वाले सर्वश्रेष्ठ महापुरूष थे जो भगवान तो हैं परन्तु ईश्वर नहीं।
।। जय हिन्द।।
भगवान सहस्त्र नामो मे से भगवान कान ईश्वर भी है भगवान or ईश्वर एक ही है 🕉️ नमः शिवाय.
@@shivanibhooch6182 साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@@ashokkumararya6806 साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
Are bahi kya tum murkh ho
Vo iswar bhi te bhagwan bhi te aur h
@@VisheshBadgoti-nw8ir थे नहीं है ओर अनंत कल तक रहे गे जीका ना अंत है ना आदि है जी अजन्मा है वो है शिव. 🕉️ नमः शिवाय.
।।ओ३म्।। सादर नमस्ते आचार्य जी 🙏🙏🙏, बहुत ही बारीकी से जानकारी देते हुए,
@@vaidikdharm1118 साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
100% आप सही कह रहे है। भगवान अवतार क्यों लेंगे। भगवान तो खुद इतने पावरफुल है।
“जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”
ये आर्यसमाजी भी बहुत झूठे हैं। न तो भगवान पावरफुल है और न ही अवतार लेता है।
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है।
इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी।
ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं।
आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है।
फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है।
शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है।
तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है।
कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था।
इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
@@SamajikNyay8asli baat ka toh bhai kisi ko nhi pata h sab apni apni baat ko leke Beth gye h
Swami Sachchidanand ji has explained the whole issue with 100% proof.
Unko sadhuvaad.
मैंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा है परम पूज्य श्री दयानंद सरस्वती जी महाराज का एक एक शब्द परम सत्य है
मैं स्वयं भी 5 साल तक आर्य समाज मंदिर में रहा हूं ऐसी बात और ऐसा शब्द कहीं नहीं है कि राम को और कृष्ण को नहीं मानते हैं जयकारे भी लगाते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम चन्द्र की जय कितनी बड़ी बात यह कि गऊ माता की जय सभी संतों की जय मैं आर्यरामभद्राचार्य जी का भी सम्मान करता हूं मगर आर्य समाज के विषय ये टिप्पणी उन्होंने गलत कि है।
@@ramsinghchauhan1936 आपने जयगुरुदेव जी की फोटो लगाई है।
बताओ शाकाहरी पत्रिका 7 सितंबर 1971 में जय गुरुदेव ने कहा था कि जो सब संसार को ज्ञान देगा वह महापुरुष आज 20 बर्ष का हो गया।
बताओ कौन 1951 में जन्म लिए थे।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
Satay sanatan Hindu dharm ki jai ho , ram ram
नमस्ते स्वामीजी🙏 ओ३म्
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥"
प्रणाम महोदय🙏
मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि जब भी आप किसी का खण्डन करे तो कृपया वेद से तथ्य प्रमाण दिया करे ताकि जब हम किसी से तर्क करे तो उन तथ्यों को उनके सामने रख सके ।
ये आ गए बड़े वाले वेदांती।
अब ध्यान से पढ़ें:
सनातनी वेदों में केवल झूठ और गंदगी और कुछ स्तुतियां हैं।
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है।
इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी।
ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं।
आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है।
फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है।
शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है।
तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है।
कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था।
इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
भगवान कहीं नहीं है भगवान कभी मरते नहीं जो मारा है वह इंसान है हर इंसान के अंदर कुछ शक्तियां अलग अलग सबके पासहै उन्हीं को हम भगवान कहे या महापुरुष जीव जो बनता है ब्रह्मांड की शक्तियों सेबनता है वह है धरती और आकाश
पुराणिक बात प्रमाणिक नहीं शास्त्रार्थ करने से दुथ का दुध पानी का पानी हो जाएगा ये रामभद्राचार्य सत्य सनातन परमात्मा को न जाना है न जानते हैं अवतार जन्म का नाम है वैदो में सर्व व्यापक परमात्मा को बताया है जो सत्य सनातन है। नमस्ते ओ३म्
Kabhi ved pade ho...wese Sare ved puran muglo ke time likhe gaye hai
महर्षि दयानंद सरस्वती जी जय हो वैदिक ही सत्य है
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
स्पष्ट है कि भगवान और ईश्वर का का भाव भिन्न है।
*@RamnareshTyagi-x1r* नहीं, स्पष्ट ये है कि भगवान और ईश्वर भिन्न नहीं है। देव और भगवान में अंतर है लेकिन भगवान और ईश्वर में कोई अंतर नहीं है क्योंकि भगवान, ईश्वर का ही दूसरा नाम है। इसीलिए महाभारत में भगवान विष्णु का नाम भी *'स्वयंभू'* है जिसका मतलब जो खुद से ही जन्मे हैं।
कोई तो है जो भगवान और ईश्वर में अन्तर कर सकता है, दोनों की व्याख्या करें प्लीज।
रामभद्राचार्य जी कुछ अच्छा बोला करो जब राम को कृष्ण को मानने वाला ही समाप्त हो रहा है इस दुनिया से तो फिर आप ही कैसे बचोगे उच्च शिक्षा दो भविष्य में जो हिंदू लड़ सके और अपने आप को अपनी बहनों को बेटों को माता को बचा सके भारत माता कोबचा सके
À😊
Samapta ho rahe??? Kya matlab he???
जय हो सत्य सनातन धर्म की🌷🌷🚩🚩
😅😅😅😅 joker mu shnkr
एक तरफ आप रामकृष्ण को मानने की बात करते हैं दूसरी तरह उनकी लीलाओं का उपवास भी उड़ाते हैं
kon se leela btao jra
😂😂😂😂😂 kya likha hai 2 rupees ke liye comment likhne vale 😅
भगवान की कृपा से संत महापुरुष धरती पर अवतरित होते हैं कल्याणकारी होकर कॉल रुपी संसार में आसक्त होना माया का स्वरूप प्रतिष्ठा पैसा बड़प्पन यह जीवात्मा को सम्मान जनक जीने की इच्छा जागती है भक्ति का पुत्र ज्ञान में वह विलीनहोत ईश्वर को पीछे खुद को आगे प्रचारित करते हैं सर्व धर्मन परित्यज्य ममेकम शरण राजा❤ धर्मशास्त्र पर तकरार नहीं मंथन करें जीव ब्रह्म का दर्शन कैसे करता है शब्दों का ज्ञानी नकलची कहा जाता है कर्म भी होना चाहिए जिसने परमात्मा को देखा है वही परमात्मा का मार्ग दिखा सकता है शब्द उतना ही समाज वोलें जितना स्वयं कर्म करते जय माता की दिल्ली से
Sadara namaste Swamiji Maharaj 🙏🙏🙏❤️❤️🥀🌹🌹🌹👍
आर्य समाज जिंदा बाद जय हो आर्य समाज कि स्वामी जी को मेरा नमस्कार ❤❤
रामभद्राचार्य जी माफीमांगे
जय श्रीराम मैं एक गांव की गवारिन हूं एक बात आप।से जाना चाहती हूं आप लोग ईतना पहूंचे हूय उच्च कोटि का संत है कोटि कोटि नमन फिर भी एक दुसरे से क्यो पछारने के पिछे पडं रहते है क्या महर्षि बालमिकी से भी आप उपर है क्षमा करियगा ईश्वर एक है अवतार अनेक है भगवान जिस रूप मे चाहेगे दर्शन देते रहते है जिसका जहां आस्था है भेजने दिया जाना चाहियेभगवान को आप भी नही जान पाइयगा उनका तरक वि तरक नही कर सकते भगवान और उनकी लीला अलौकिक है
माताजी आपकी पहली बात का उत्तर यह है कि हम किसी के पीछे नहीं पड़े यह पाखंडी धर्मगुरु इस आर्य समाज के पीछे पड़े हैं जिसके 85% से 90% नौजवान देश को आजाद करने के लिए अपना बलिदान देते हैं यदि आपको शक है तो आप और स्वाध्याय कर सकती हैं
आप की दूसरी बात का उत्तर सच्चिदानंद जी ने कभी भी नहीं कहा कि वह महर्षि वाल्मीकि जी से ऊपर है महर्षि वाल्मीकि जी भी एक महर्षि थे जो कि संत की श्रेणी में आते हैं ना कि वह कोई ईश्वर थे। समस्त जग का ईश्वर एक ही है जिसका ना रूप है ना रंग है जो की निराकार है
जिसका नाम ओ३म है।
@@ramenderrajput88261 अगर आपको वाकई में लगता है आप का तरीका इतना सही है तुझे अपने आप में ऐसा परिवर्तन लाकर दिखाइए की दुनिया आपकी बात मानने को मजबूर हो जाए जो कि आप बात करते हैं प्रेमानंद जी महाराज के बारे में अन्य के बारे में आज उन्होंने अपने अंदर उसे तत्व को जगा लिया है जिसको ईश्वरी तत्व कहते हैं वह उनकी वाणी उनके स्वभाव सब में प्रदर्शित होता है उनको देखते ही व्यक्ति का मन निर्मल हो जाता है तो पहले अपने अंदर उसे तेज को प्राप्त कर लीजिए उसके बाद आगे बात कीजिए बातों से कुछ नहीं होगा।
Ayra smaj ke pratinidhi sivaye alochna ke or kuchh nhi krte. arey bhai ap apna kam kriye or smprdaye apna kaam kr rhe h. Sbki apni apni astha or vishvash. Saari dunia ka theka le lia aapne.ap isi trha alochna krte rhe to ap me or svymbhu sent rampal me kya frk rha. Vo bhi isi trha sbki reject kr rhe the
😂 समय ऐसा मत लाओ मैया वरना लुटवा दोगी गरीबों को 😂
Gawaran mat raho satya or asatya mein fark karna seekho
आप विद्वान हैं, परंतु समय की मांग सनातनियों कि एकता है। रही बात हिन्दू धर्म की तो अनेक विचारधाराएं एकसाथ रह सकती है, यही इसकी खूबसूरती है।
ईश्वर के दो रूप होते हैं।निराकार और साकार।
निराकार अंतःकरण का बिषय है और अदृष्य रूप है।
साकार बाह्य जगत की दृष्य स्वरूप है।दृष्य रूप की पूजा करती है।
साकार
वेद ईश्वर ने खुद दिये, अपनी जानकारी के लिए। उनमें जो ईश्वर की स्थिति है वह ईश्वर का साक्षात अनुभव है। अब ईश्वर के साक्षात अनुभव के उपर अपना अनुभव क्यों जोड़ो जो काल प्रेरित हो।
साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
“जब जब होई धरम की हानी, बाढ़हि असुर अधम अभिमानी। तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा, हरहि दयानिधि सज्जन पीरा।।”
छोटी छोटी बातो पर ध्यान नही देना चाहिए रामभद्राचार्य जी भी एक मनुष्य ही तो है ।
Guru ko असाधारें samjhne wala aprahi ha marne ke bad usse latka dia jata ha,
Rambhracharya Insan ko Insan ni smjhta vo bramhanwadi hai uske najar me sirf bramhan jati hi shreth h baki jatiyo ko hmesa nicha dikhata h isliye bhgwan use aandha bnaya h
उनके लिए रामभद्राचार्य जी और आप एक ही हो.. हिन्दू..
जब वह काटने पर आएंगे तो आपको सलाम नहीं करेंगे....
आपस में गणउ-ग़दर बंद करिये..
स्वामी दयानन्द का व्यक्तित्व इतना छोटा नहीं है की किसी के कुछ कहने से मलिन हो जाएगा....
इतनी कठोरता ठीक नहीं है.... आर्य समाज को इस्लाम न बनाइये
@@vinaypandey5038 वह खुद आपस में लड़ मर रहे हैं और यह लोग भी।
जी
साहेब ने 600 साल पहले ही कहा था कि जब :-
कलयुग बीते पचपन सौ पाँचा,
तब मेरा बचन होगा साँचा।
तेरहवें वंश हम ही चल आवें,
सब पंथ मिटा एक पंथ चलावें।
(कबीर सागर जो कि धर्मदास जी ने 600 साल पहले लिखा, उससे यह प्रमाणित है, आज 5505 + ही चल रहा है कलयुग)
कलयुग 5505 बीत जायेगा तब संत कबीर जी स्वयम आकर सारी दुनिया को कबीर मार्ग पर लगा देंगे। दुनिया में एक ईश्वर एक भक्ति और एक धर्म वही करेंगे। कबीर सागर में बोल कर लिखा दिया।
अपने पास रखी गीता जी में आज की संध्या /भक्ति/नियम करते समय जरूर देखिये अद्भुत रहस्य:-
गीता अध्याय :-
अध्याय श्लोक
👇 👇
10 श्लोक 2 :- ऋषियों की स्थिति
4 श्लोक 34:- तत्वदर्शी संत की महिमा
15 श्लोक 1 :- तत्वदर्शी संत की पहिचान
18 श्लोक 46:- सबसे बड़े ईश्वर की महिमा
16 श्लोक 34 :- शास्त्र विधि से हटने से
नुकसान
7श्लोक 23,29 :- देवताओं और गीता ज्ञान
दाता के आगे
9 श्लोक 21 :- महास्वर्गों से बापस आने
का प्रमाण
8 श्लोक 13 :- ओम् मंत्र बृह्म का जो
पूर्ण नहीं
17 श्लोक 23 :- इसमें पूर्ण परमात्मा का
मंत्र
जो केवल तत्वदर्शी संत बताएगा
नोट :- आत्मा परमात्मा में विलीन नहीं होगी
क्योंकि यह वेद या गीता शास्त्र में
कहीं नहीं लिखा
ऐसे गहरे रहस्य शास्त्रों से जानने और ज्ञान गंगा बुक मंगाने के लिए
पूरा पता :-
मोबाइल नम्बर :-
हमें कमेंट में लिखकर भेजिये
#गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत (रामपाल जी संकलन कर्ता हैं)
जो हिंदू को पाखंड और अंधविश्वास की तरफ ले जाए वो ही इस्लाम और बाहर से आए लोगों ने किया
धर्म वही है जो वेद पुराण मैं लिखा गया है मनमानी कर्म समाज स्वीकार कर सकता है परमात्मा नहीं
Mahrshi Dayanand ki Jay
जय हो जय आर्य समाज
वेद तो ईश्वर से ही प्रकट हुआ है |
🙏सादर प्रणाम स्वामीजी महोदय
मिट्टी के एक छोटे से छोटे कण को ईश्वर मानकर उसे प्राप्त किया जा सकता है मिट्टी की मूर्ति तो फिर भी बहुत बड़ी है..ईश्वर को किसी भी रूप में प्राप्त किया जा सकता है निराकार रूप में भी और साकार रूप में भी में किस रूप में उसे प्राप्त करना चाहता हूं वो मेरी आस्था पर निर्भर करता है...ओम 🙏अगर कोई आर्य समाजि मुझसे सहमत नहीं है तो अपनी उपस्थित दर्ज करे 🙏
एक म्यान में दो तलवार कैसे रखे जनाब
भाई जल की बूंद , आक्सीजन और सल्फर आक्साइड से सालफूरिक एसिड ही बनेगा ना की नाइट्रिक अम्ल 😢
@@thoughtofnatkhat जो आपको उचित लगे वो करो।
मजबूरन कोई नहीं कहता कि भजन करो
महाराज जी, स्वामी रामभादराचार्य जी ने कर भी दी कथा तो कौनसा पहाड़ टूट जायेगा। किसी माध्यम से आपस मे जुड़े रहना तो है ही आवश्यक।
महर्षि दयानन्द सरस्वती की जय जय।
पूज्य स्वामी जी महाराज श्री १००%सत्य कहा है आपने। आपका विचार वैदिक है।।
भगवान का अंश हैं दिव्यचक्षु को वेद कंठस्थ है
जय जय श्री राधे कृष्ण
पाखंडी है रामभद्राचार्य ये न राम को जानता है न रामायण को न श्री राम भक्ति को, ऐसे पाखंडियों ने ही हिन्दू के हिन्दुत्व की गलत व्याख्या कर जाति वाद पार्टी वाद पाखंड वाद और तथाकथित धार्मिक उन्माद फैलाया है हिन्दुत्व की रक्षा हेतु इसको बहिष्कृत और दण्डित करना अनिवार्य है।
आप मूर्ख हैं रामभद्राचार्य जी बहुत गुणी और ज्ञानी हैं मूर्ति पूजा वेदो में है क्योंकि वेदो मे ईश्वर का पूजा साकार और निरंकार दोनों रूपो में बताई गई है
Satya Sanatan Dharm*--*--Bhagwan ki Satta Kan Kan mein vidhmaan hai Jo chhatri rajputon mein Ansh Avatar ke roop mein aate Hain-*********-***--*-*******--
Avatar ke roop mein
आप धन्य हैं स्वामी जी सूरदास जी आप से शाश्त्रों में नहीं जीत सकते हैं
@@ramsanehijariya9888 साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
सत्यसनातन की जय सभी सनातनी धर्माचार्य आपस में न भिंडे इससे सनातन का भला नहीं होता सभी के विचारों का सम्मान करना चाहिए,🙏🙏
अब तो स्पष्ट है कि भगवान और ईश्वर भिन्न नहीं है। केवल देव और भगवान में अंतर है, लेकिन भगवान और ईश्वर में कोई अंतर नहीं है क्योंकि भगवान, ईश्वर का ही दूसरा नाम है। इसीलिए महाभारत में भगवान विष्णु का नाम भी *'स्वयंभू'* है जिसका मतलब जो खुद से ही जन्मे हैं।
शांत रहो और लोगों की बहस का आनन्द लो 😂
आर्य समाज के आचार्य जी आपकी बातें मुझे बहुत अच्छी लगी आपसे अनुरोध है के आप वेदों को ना मानने वाले धर्म के लोगों पर ज्यादा प्रकाश डालने कीकृपा करें
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है।
इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी।
ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं।
आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है।
फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है।
शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है।
तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है।
कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था।
इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
आर्यसमाज की धूर्तता और झूठ समझने के लिए पढ़ें
अच्छी इसलिए लगीं कि आपने आर्यसमाज और और उसके संस्थापक के बारे में पढ़ा नहीं है।
इसका संस्थापक था एक धूर्त बाभन मूलशंकर तिवारी।
ज्योतिबा फुले ने जब 1873 में सत्यशोधक समाज की स्थापना कर सनातन की पोल खोलना शुरू किया तब उसके प्रतिक्रियास्वरूप तिवारी ने आर्यसमाज की स्थापना की। उसका उद्देश्य था कि हिंदू धर्म में छोटे परिवर्तन करके उसके पाखंड को बरकरार रखा जाय। उसने केवल मूर्तिपूजा का विरोध किया, बाकी चीजें वैसे ही चलती रहीं।
आर्यसमाजी यज्ञ हवन बहुत करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है।
फिर तिवारी ने सत्यार्थप्रकाश लिखा जिसमें बहुत झूठ है।
शंकर का जन्म तिवारी 2200 ईसवी पूर्व बताता है जबकि इसकी पैदाइश 8 वीं सदी की है।
तिवारी विधवा विवाह का विरोध करता है और नियोग का समर्थन करता है।
कुल मिलाकर ये तिवारी supremacist मनुवादी ब्राह्मणवादी पाखंडी था।
इसने वेदों के श्लोकों के अर्थ को तोड़ मरोड़कर उसमें से विज्ञान ढूंढ निकाला।
कभी वेद पर, कभी पुराण पर, कभी महाभारत पर तो कभी और कुछ पर सवाल उठाने से अच्छा है कि सनातन हिन्दू धर्म के समस्त विद्वानों को इकट्ठा हो, इस पर गंभीरता से मंथन करना चाहिए। इस मंथन में चाहे 2 साल लगे 3 साल लगे। संविधान को भी 2/3 साल लगा था, जो हिन्दूओं के साथ ही भेदभाव करता है। सनातन हिन्दू धर्म के विद्वानों को एक साथ बैठकर मंथन करना चाहिए। इस मंथन से निकले परिणाम के आधार पर एक नया ग्रंथ की रचना हो। जो हिन्दू को हिन्दू मानता हो , ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र और आदिवासी और दलित नहीं। लेकिन ऐसा नहीं होगा क्योंकि स्वार्थ ऐसा नहीं करने देगा। फिर अपनी डफ़ली अपना राग अलापते रहो।
सनातन के विद्वानों को आपस में विवाद नहीं करना चाहिए। स्वामी दयानंद सरस्वती निराकार , सर्वशक्तिमान, सर्वाअन्तर्यामी,अजर ,अमर ,नित्य व पवित्र मानते थे। उन्होंने समाज की बहुत सी कुरीतियों का उन्मूलन किया
सनातन संस्कृति को जो भी आगे बढ़ा रहे हैं बेशक वह मूर्ति पूजा करते हैं ये उन की श्रद्धा है इस पर आर्या समाजी प्रचारकों को मुख्य विषा नहीं बनाना चाहिए।
ये सनातनी समाज न तो कभी आर्यसमाजियों के अनुसार न चला है न चलेगा यह कटु सत्य है
जय श्रीराम, जय श्री कृष्ण, जय महर्षि दयानन्द सरस्वती।
स्वामी जी आपका मैं बहुत आदर करता हूं किंतु आप सनातन की सभी परंपराओं को जानने की कोशिश करें
स्वामीजी,जो,निराकार,ईश्र्वर,साकार,श्रुष्टीकी,रचना,करसकताहै,ओरहम,ईश्र्वरका,जो,कार्यहैउनमे,हमारीजो,भुमीका,हमको,ईश्र्वरने,दीहै,उनको,साकाररुपमेही,पुर्ण,करसकतेहै,उनकामहत्वहमे,समजाने,क्याईश्र्वर,साकार,नहीबनसकता,ईसीलीये,मेरा,नम्रनिवेदनहै,की,साकार,निराकार,दोनो,सत्यहै,जेसे,शरीरकेबीना,आत्मा,ओर,आत्मा,के,बीना,शरीरका,कोईवजुदनहीहै,वेसे,साकार,निराकार,ऐकदुसरेके,पुरकहै,तो,क्रुपयाये,लडाई,मत,लडीये,जयसनातन,।
भुला ना देना बंग्लादेश की कहानी
जहाँ लुटी मां बहनो की जवानी
नही तो तुम्हे देनी पडेगी कुर्बानी
सुना ना पाओगे अपनी जुबानी
तुम सब अपनी अपनी कहानी
मत करना तुम ये नादानी 🙏🇮🇳
जागो हिन्दुओ जागो
सत्य को नकारता नहीं, यदि कोई ज्ञानी नकारता है तो कुछ संसय या कल्पना है तो ही नकारेगा,
ईश्वर या अवतार वाद को कयी महा पुरुष, ज्ञानी लोग नकारें है
अनंत ब्रह्मांड को चलाने वाला अगर धरती पर अवतरित हो गया तो फिर वहां कौन चलाएगा😂😂😂 अपनी छोटी सोच से ईश्वर को समझो.... वहां का क्या मतलब है और अगर ईश्वर इतना ताकत वर नहीं है तो वो ईश्वर नही है
Woh khud ko anek roop m bna skta h murkh ye smjh pehle
सवाल तो यह है जो कि जब इनको दोनों आंखों से दिखता ही नहीं है तब ये वेद-पुराणों के अक्षरों को कैसे पढ़ लेते हैं?
राजनीति पूरी तरह से सनातन पर हावी हो गई है, और सनातन अपने अंत की दिशा में बढ़ रहा है। उसकी मूल भावना को राजनीतिक लुटेरों ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बदल दिया है। इस तरह की बातों से, जैसे कि अंतरिक्ष में 'ॐ' की ध्वनि है, विज्ञान को ईश्वर, जादू-टोना और अंधविश्वास मात्र बना दिया गया है।
Sanatan kabhi samapt nahi ho sKta
@@AashishMusicalEvents -सनातन धर्म की मूल भावना वेदों और उपनिषदों में समाहित है, जो "सनातन" यानी शाश्वत और सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है। यह धर्म न केवल मानव समाज के लिए, बल्कि पूरी सृष्टि के लिए है।
सनातन की मूल भावना
सनातन धर्म का आधार सत्य, अहिंसा, करुणा, और सह-अस्तित्व है।
यह किसी एक विचारधारा, जाति, धर्म, या सीमा में बंधा हुआ नहीं है।
इसका उद्देश्य "वसुधैव कुटुंबकम्" यानी पूरी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में देखना है।
राजनीतिक स्वरूप का प्रभाव
जब सनातन को राजनीतिक विचारधारा से जोड़ दिया जाता है:
मूल सिद्धांत कमजोर हो जाते हैं: वेदों और उपनिषदों में जो सार्वभौमिक और शाश्वत संदेश हैं, वे राजनीतिक हितों के तहत विकृत हो सकते हैं।
हिंसा और भेदभाव को बढ़ावा: राजनीति अक्सर विभाजन और प्रभुत्व की भाषा का उपयोग करती है। अगर इसे धर्म से जोड़ा जाता है, तो सनातन धर्म के मूलभूत मूल्य, जैसे करुणा और सहिष्णुता, खतरे में पड़ सकते हैं।
सांप्रदायिकता का खतरा: सनातन धर्म को किसी विशेष राजनीतिक या सांप्रदायिक विचारधारा के साथ जोड़ने से इसकी वैश्विक और सर्वकालिक पहचान सीमित हो सकती है।
सनातन का वास्तविक स्वरूप
आदि और अनंत: सनातन धर्म समय और स्थान से परे है। यह सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर अंत तक के सिद्धांतों को समाहित करता है।
सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय: यह केवल मानव मात्र के लिए नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड के कल्याण के लिए है।
धर्म का अर्थ: यहाँ धर्म का अर्थ "कर्तव्य" और "सत्य" है, न कि केवल अनुष्ठान या परंपराएं।
चिंता की दिशा
अगर सनातन को राजनीतिक रूप दिया जाता है, तो यह अपनी सार्वभौमिकता खो देगा। इसका वास्तविक उद्देश्य भटक सकता है, और एक ऐसा स्वरूप उभर सकता है जो "मारने-काटने" या विभाजन की भाषा बोलता हो।
सनातन का भविष्य
सनातन को उसकी अध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता के साथ समझना और सहेजना जरूरी है।
राजनीति से इसे अलग रखना चाहिए ताकि इसकी मूल भावना - प्रेम, सह-अस्तित्व, और सार्वभौमिकता - संरक्षित रहे।
सनातन किसी विचारधारा से नहीं बंध सकता। यह आदि और अनंत है, और इसका मूल उद्देश्य सृष्टि के हर तत्व का कल्याण है।
आप श्री जी को नमन
प्रभु श्री राम जी एवं भगवान श्री कृष्णा कोई महापुरुष नहीं है वह साक्षात परमेश्वरहै।
किसको कह रहे हो भाई 😂
सबकी अपनी-अपनी धारणा है ,
जबरदस्ती किसी को अपनी बात मनवाने के चक्कर में क्यों समय खराब करे 😂
आरोप-प्रत्यारोप से बाहर नहीं आ पा रहे। बातें भगवान की कर रहें हैं।
Arya samaj Ram Bhagwan krishn Bhagwan mante Hain
Jai Shri Rama...Excellent points made in this video. PLEASE do give regular STATUS of your requests to jagatguru maharaj. Thank you.
कोई भी बात अंतिम सत्य नहीं है। आर्य समाज में भी तमाम विसंगतियां हैं।अभिमान में मत रहिए।सम्मान करेंगे तो ही मिलेगा।
हम अवतार मानते हैं।
@@badrivishalnathtewari3470 साकार और अवतार पर मतदान
प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये।
:- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:-
अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।।
अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे।
(उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में)
जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है।
भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है।
यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है।
(B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18
ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।
ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।
अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।
(C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि =
(कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है।
यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13
यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है,
(l) वेदमत या (ll) आर्य मत ?
प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है?
(l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी
(ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा?
(I) वेद ने (II) दयानंद जी ने
कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
शूद्रों को तीनों वर्ण की सेवा करना है
Aaa karta hu