डॉ सुरेंद्र कुमार जी द्वारा किया गया कार्य अभिनंदन के योग्य ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है इस वीडियो के माध्यम मेरे बहुत सारे संशय मिटे हैं पुनः बहुत बहुत धन्यवाद
डॉ. साहब ने जो भाष्य किया है वह बहुत ही अद्भुत है, अपनी हर बात को प्रमाण से पोषित किया है। ये एक बहुत बड़ा कार्य सनातन वैदिक धर्म के लिए इन्होंने किया है। वास्तव में मनु के वंशज कहलाने योग्य हैं डा. साहब।
अत्यन्त सुंदर वार्तालाप डॉक्टर सुरेंद्र कुमार जी की मनुस्मृति की व्याख्या को हम सब को पढ़ना चाहिए और इस विषय में जो गलत धारणाएं हैं उनको दूर करना चाहिए। मैंने स्वयं यह पुस्तक ली है और दूसरों को भेंट भी की है, जिससे इस विषय में जागरूकता बढ़े। डॉ सुरेन्द्र जी ने प्रक्षिप्त श्लोकों को बड़े ही scientific तरीके से कई मापदंड , बिंदुओं के आधार पर चिन्हित किया है, जिससे कोई संदेह नहीं रह जाता है। निसंदेह मनुस्मृति हमारा एक आध्यात्मिक , नीति और सामाजिक व्यवस्था का ग्रन्थ है और हर सनातनी के घर में उसका पठन पाठन और व्यवहार होना चाहिए। डॉ साहब का महर्षि मनु की जयपुर high court में स्थापित प्रतिमा के कोर्ट केस पर पक्ष रखने के लिए बहुत बहुत साधुवाद।
यदि मनुस्मृति की बातों की गहराई को समझें , तो परिवार अस्तित्व के लिए सबसे उपयोगी बातें है । यदि इन सभी बातों व्यापक प्रचार प्रसार हो , शिक्षा में अधिकतम जोड़ा जाए , तो सांसारिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव होने लग जाएंगे । साधुवाद , डा० सुरेन्द्र कुमार जी 🙏
धन्यवाद हो स्वामी रामभद्राचार्य का जिन्होंने मनुस्मृति में क्षेपकों का होना स्वीकार किया। महाकुम्भ प्रयागराज से दिए गए एक India TV के इंटरव्यू में उन्होंने मनुस्मृति का संदर्भ(2.103) देते हुए बतलाया जो द्विज 2 समय सन्ध्या नहीं करता वह शूद्र समान है, यानि व्यक्ति आचरण से ब्राह्मण या किसी और वर्ण को प्राप्त होता है।
डॉ सुरेन्द्र कुमार जी भूतपूर्व उपकुलपति, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, डॉ विवेक आर्य एवं कुशविन्दर आर्य जी को इस सुन्दर पोडकास्ट के लिये बहुत बहुत बधाई। प्रोफेसर सुरेन्द्र जी ने ठीक ही कहा है कि जिन्हें मनुस्मृति का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है वही इसका विरोध करते हैं। सभी ज्ञान के प्रेमी सज्जनों को चाहिए कि इस धर्म शास्त्र में हुए प्रक्षेपों को डॉ साहब के द्वारा बताये गए 7 प्रकार के साहित्यिक मानदंडों के आधार पर विभिन्न श्लोकों की पहचान/ परीक्षण कर क्षेपक रहित विशुद्ध मनुस्मृति का अवलोकन करें।
Excellent podcast on the subject of Manusmriti. This was truly enlightening! I like how well structured and factual the arguments are. Dr. Surender Kumar has countered the misconceptions surrounding Manusmriti thoroughly. It is unfortunate that such an important ancient scripture has been criticised for political reasons. Every Indian should watch this podcast to understand the subject. I hope it reaches more people.
*महर्षि मनु के अनुसार अपराध करने पर राजा सबसे अधिक दण्ड का अधिकारी। (मनुस्मृति 8/336)* ---------- *कार्षापणं भवेद्दण्ड्यो यत्रान्यः प्राकृतो जनः । तत्र राजा भवेद्दण्ड्यः सहस्त्रमिति धारणा ॥ (मनुस्मृति 8/336)* *”जिस अपराध में साधारण मनुष्य पर एक पैसा दण्ड हो उसी अपराध में राजा को सहस्त्र पैसा दण्ड होवे अर्थात साधारण मनुष्य से राजा को सहस्र गुणा देना होना चाहिए*। *मनु महाराज को ठीक प्रकार से समझने के लिये प्रक्षेप रहित विशुद्ध मनुस्मृति का अवलोकन करें*।
🧘🌞॥ ओ३म् ॥🌞🧘 श्रद्धेय डॉ सुरेन्द्र कुमार जी को सादर नमस्ते 🙏🏻 बहुत ही सुन्दर और तार्किक तथ्यों के साथ मनुस्मृति के संदर्भ में आपने कहा इस चर्चा को सुनकर हम सभी बहुत लाभान्वित हुए इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🏻🌹🌻💐 आज के मनुष्य को विशुद्ध मनुस्मृति देकर आपने बहुत बड़ा कल्याण का कार्य किया है। ईश्वर आपको स्वस्थ, निरोगी और दीर्घायु जीवन प्रदान करें जिससे समाज का बहुताधिक कल्याण हो। 🙏🏻🌹🌻💐🌻🌹🙏🏻 कृष्ण कुमार आर्य चेतगंज वाराणसी
Time Stamp 00:00 Precap 03:50 Intro 09:29 Varna vs Jaati 27:00 On Ambedkar 35:46 Shudra and other related words 49:37 Punishment of crime 54:07 Adulteration criteria (Milawat) 1:01:53 Purush Sukta and other Veda Mantras 1:14:22 Relevance of Manu Smriti 1:20:45 On women 1:32:10 On food, drink and meat eating, animal sacrifice 1:41:00 Statue of Manu / Court case 1:49:58 Towards end/ conclusion 1:52:13 Books by Dr Surendra Kumar
Since last 4 months... when ever someone quoted Manusmriti... I always checked references.. and literally 100% of them are prakshipt... . So whenever someone quotes any reference.... just open it in front of them... Its guaranteed that it will be false.... because we dont have any wrong thing..
*दक्षिण-पूर्वी एशिया में मनु* *Philippine* "फिलिप्पीन के निवासी यह मानते हैं, कि उनकी *आचार-संहिता मनु और लाओ-त्से* की स्मृतिओं पर आधारित है। इसलिये वहां की *विधानसभा के द्वार पर इन दोनों की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं"*। *Mynamar - बर्मा* "धमसथ वर्ग के जो अनेक ग्रंथ सत्रहवीं और अठारवीं सदियों में बर्मा में लिखे गए, उनके साथ भी मनु का नाम जुड़ा हुआ है। इसका कारण यही है, की बर्मा का कानून तथा विधान शास्त्र भारत के प्राचीन स्मृति ग्रंथों पर आधारित था।" *Vietnam - चम्पा* न्याय व्यवस्था - चम्पा के अभिलेखों से सूचित होता है कि *कानून प्रधानतया मनु, नारद तथा भार्गव की स्मृतिओं* या धर्मशास्त्रों पर आधारित थे। एक अभिलेख के अनुसार राजा जयइंद्रवर्मदेव मनुमार्ग *(मनु द्वारा प्रतिपादित मार्ग)* का अनुसरण करने वाला था" (साभार: दक्षिण-पूर्वी और दक्षिणी एशिया में भारतीय संस्कृति, *सत्यकेतु विद्यालंकार*, संस्करण:2008),नई दिल्ली)
*मनुस्मृति में बाद कि मिलावट/श्लोकों का जोड़ा जाना - यूरोपियन विद्वान मोनियर विलियम की साक्षी:* Extract from Mr.Monier William's book *Hinduism*(First Ed.1877, Reprinted Ed.1951), pub by Susil Gupta(India) Ltd, Calcutta. Above author confirms additions made to Grihya Sutras (by a group of Brahamans). The compilation was later known as Manusmriti to provide weight & dignity to the compilation. *Mr Monier Williams states*: "The law-book of Manu, which may be assigned in its present form to about the fifth century B.C.is a metrical version of the traditional observances of a tribe of Brahmans called Manavas, who probably belonged to a school of the Black Yajurveda and lived in the north-west of India, not far from Delhi, which, observances were originally embodied in their Grihya Sutras. *To these Sutras many precepts on religion, morality, and philosophy were added by an author or authors unknown, the whole being collected in more recent times by a Brahman or Brahmans, who, to give weight and dignity to the collection, assigned it's authorship to the mythical sage Manu."* As per *Buhler another western scholar first and last chapters of Manusmriti are interpolations.* डॉ सुरेन्द्र कुमार जी लिखते हैं कि महात्मा गांधी, रविन्द्रनाथ टैगोर और डॉ राधाकृष्णन ने भी वर्तमान मनुस्मृति में प्रक्षेपों के होने को स्वीकारा है। यह सच है कि अनेक आर्य विद्वानों ने मनुस्मृति के शुद्ध एवं परिष्कृत संस्करण निकाले हैं, लेकिन इस मिलावटी पुस्तक की जितनी बढ़िया सर्जरी साहित्यिक एवं वैज्ञानिक आधार पर डॉ सुरेन्द्र कुमार जी ने की है वह अतुलनीय है। डॉ साहब के श्रम को कोटि- कोटि नमन। आशा करते हैं की मनुस्मृति के विश्व व्यापी प्रभाव पर शोध कार्य आगे भी चलता रहेगा।
किसी नियम/ धर्म ग्रंथ/ परंपरा/ संविधान में जो सामाजिक चलन और मान्यताएं संशोधन के रूप में जुड़ती जाती हैं वही आगे वालों के लिए नियम बन जाते हैं.......... यह पूर्णतया संभव है मूलतः मनुस्मृति वर्ण आधारित थी जो कर्म पर आधारित थी लेकिन कालांतर में उसमें जाति आधारित विकृतियाँ लाभार्थी वर्णों द्वारा ही उत्पन्न की गई और समाज में भी उन जाति आधारित विकृतियों को उन्होंने ही फैलाया जिसके कारण उसकी प्रासंगिकता धीरे धीरे समाप्त होती गई.......... मनुस्मृति के वर्तमान विकृत स्वरूप के आधार पर उसका विरोध भी वर्तमान में उचित ही है......... और प्रबुद्ध वर्णों को इसे स्वीकार भी करना चाहिए। अतः उक्त ग्रंथ साहित्यिक स्रोत के रूप में हमारी सीख के लिए ही उचित है,उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर ज्यादा बल देने वालों की नियति में सन्देह ही उत्पन्न करता है।
*Was Maharshi Manu against women? The answer is 'Certainly Not'. The well known German Philosopher, Nietzsche was highly impressed by Manu and paid him rich tributes for showing reverence to women. At one place Nietzsche says " I know of no book in which so many delicate things are said of woman as in the Law Book of Manu."*
*माता का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है (मनुस्मृति 2/145)* दस उपाध्यायों की अपेक्षा आचार्य, सो आचार्यों की अपेक्षा पिता, हजार पिताओं की अपेक्षा माता (जो कि एक स्त्री है) का महत्व अधिक है। *RANK OF MOTHER HIGHEST IN THE SOCIETY - MAHARSHI MANU* Maharishi Manu says in Manusmriti(2.145) that the rank of one acharya(Principal) is equal to 10 ordinary teachers, the rank of one father is equal to that of 100 acharyas. The rank of one mother is equal to that of 1000 fathers. Why did Manu give such a high position to mother who is a woman? Just because a learned mother inculcates in her children good sanskaras and education as a first Guru. These thoughts received from mother go deep into the mind of the child forming his/her attitude and values of the later age.
*वर्ण-व्यवस्था कर्म के अनुसार परिवर्तनशील है (मनुस्मृति 10/65)* गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शुद्र ब्राह्मण बन जाता है यानि ब्राह्मणता प्राप्त करता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य का भी वर्ण परिवर्तन कर्म के अनुसार हो जाता है। *सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानन्द द्वारा मनुस्मृति श्लोक 10/65 पर दी गई व्याख्या:* "जो शूद्रकुल में उत्पन्न हो के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के समान गुण, कर्म,स्वभाव वाला हो, तो वह शुद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाए। वैसे ही जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कुल में उत्पन्न हुआ हो और उस के गुण,कर्म,स्वभाव शुद्र के सदृश हो,तो वह शूद्र हो जाये। वैसे क्षत्रिय वा वैश्य के कुल में उत्पन्न हो के ब्राह्मण वा शूद्र के समान होने से ब्राह्मण और शूद्र भी हो जाता है। अर्थात चारों वर्णों में जिस-जिस के सदृश जो-जो पुरुष व स्त्री हो, वह-वह उसी वर्ण में गिनी जानी चाहिये। *Manu Smriti allows for Change of Varna - Upward And Downward Mobility of Varna* *As per Manusmriti 10/65 a Shudra can become a brahmin by acquiring learning, merit, virtuous life, etc.and a brahmin lacking in above traits becomes a Shudra. The above principle of merit, action and personality traits(Guna-karma-Swabhava) also holds good for Kshatriya and Vaishya for their upward or downward mobility.* *Swami Dayanand Saraswati explaining Manusmriti shloka 10/65 in Satyartha Prakash says* : "If a person born of a low class family attains the virtues, habits and tendencies of the Brahmana, Kshatriya or Vaishya class, he/she should be classed with them according to merit. On the contrary, if a person born of a Brahmana, Kshatriya or Vaishya family goes down to the nature, character and habits of a lower class, he/she should be classed with the lower class."(Source: Eng.Translation of above shloka by Dr.Tulsi Ram from his book Swami Dayanand's Vision of Truth).
मनुस्मृति को अच्छा साबित करने के लिए सिद्धांतों को मारने की जरूरत नहीं। वह जैसे हैं वैसे ही अच्छे हैं हितकारक हैं। श्रृति -स्मृतियों को जानने के लिए आचार्यों को ही ढूंढे जिन्होंने परंपरा से अध्ययन किया हो। ऐसे मनुस्मृति से किसी का भला नहीं होने वाला जिसमें सिद्धांत की हानि करके श्लोकों को समझाया जाए।
आदरणीय गुरूजी, मनुस्मृति में कुछ कुटिल लोगों द्वारा स्वार्थसिद्धि हेतु समय-समय पर मिलावट की गयी है जिसका आधुनिक समय में आप जैसे विद्वानों के द्वारा संशोधन किया गया है। लेकिन क्या आप लोगों ने विशुद्ध मनुस्मृति के लिये बड़े स्तर पर सभी अलग-अलग हिन्दू वर्गों के विद्वानों की सभा में विस्तृत चर्चा करके इसे स्वीकार्य करवाया है? मनुस्मृति में मौजूद वर्णव्यवस्था को इसमें अब भी ज्यों का त्यों रखा गया है जो कि समाज के लिये पहले भी घातक सिद्ध रही है और आगे भी घातक ही सिद्ध होगी। वर्णव्यवस्था का दिखायी देने वाला सुन्दर रूप आगे चलकर भयानक जातिवाद की कुरुपता में बदलता है और समाज को विखंडन की तरफ ले जाता है। सर्वविदित हैं कि भारत की बारह सौ साल की गुलामी का मूल कारण यही वर्णव्यवस्था रही है। अपनी सभी खामियों का ठीकरा केवल जातिवाद के सिर फोड़कर जिस वर्णव्यवस्था की प्रासंगिकता पर जोर दिया जा रहा है। क्या यह काठ की हाण्डी को दोबारा चढा़ने की गलती नही है? क्या आगे चलकर यह फिर से विकृत होकर सामाजिक-राजनैतिक दुर्दशा का कारण नही बनेगी? जिस मूल कारण से यह ग्रन्थ समाज में स्वीकारोक्ति के मामले में इतना विवादास्पद है तो बेशक वर्णव्यवस्था का विषय प्रक्षिप्त ना हो तो भी इस ग्रन्थ से इस विषय को समाप्त कर दिया जाना चाहिये ताकि यह सभी के लिये ग्राहय बन जाये और समय के साथ इसकी प्रासांगिकता बरकरार रहे। यदि आप इस व्यवस्था को श्रुतिसम्मत मानकर उचित और अपरिवर्तनशील मानते हैं तो मैं मानता हूं कि वेद का ज्ञान और व्यवस्था तो सार्वभौमिक होनी चाहिये; जिसमें विकृति के लिये कोई गुंजायश नही है। यदि विकृति आती है तो मानव कल्याण हेतु इसमें न्यायसंगत बदलाव भी यथेष्ट है। क्या भारत के बाहर इस वर्णव्यवस्था से रहित दूसरे समाज नही हैं? और क्या वे सामाजिक विकास में आगे नही बढ़ रहे है?
आचरण व्यवहार अलग विषय है और चार वर्ण कर्म विषय अलग है । चारवर्ण कर्म का मतलब है जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण। आचरण व्यवहार तो चारवर्ण कर्म करने वाले द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) का सही होना चाहिए। इसलिए चारो वर्ण कर्म ( शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम) कर्म करने वालो को आचरण व्यवहार गलत करने पर दण्ड देकर सुधार करना कहा गया है ।
सुनना चाहता था लेकिन एंकर के कारण चीढ़ लग रही है। एंकर को अधिक टोकना नहीं चाहिए। जी जी अधिक सुनाई दे रहा हे जिससे चिढ़ हो रही हे। प्रश्न पूछने के बाद चुप रहने का प्रयास होना चाहिए। पॉडकास्ट के अतिथि बहुत महत्व पूर्ण हे।
पद्भ्यां शूद्रोSअजायत - यजुर्वेद अध्याय 31 मंत्र 11 अर्थ - शूद्र: = शूद्र ने पद्भ्याम् = पैरों के समान, पैरों जैसा, पैरों के बिना शरीर नहीं चल सकता है वैसे ही वस्तुओं के बिना सृष्टि नहीं चल सकती है। अजायत = सृष्टि में वस्तुओं का जनन् किया है, जनन् करता है, जनन् करता रहेगा
मनुस्मृति की बजाय आज भारत भारत का संविधान से चल रहा है इसलिए आज मनुस्मृति पर चर्चा या बहस प्रासंगिक नहीं है इसके बावजूद इसके द्वारा कभी हमारा समाज वैसे ही नियंत्रित रहा जैसे आज संविधान से नियंत्रित है इसलिए इस पर चर्चा होना बुरा नहीं है अपितु पूर्ण न्यायिक दृष्टि से चर्चा हो यह अच्छी बात है।सच्चाई को बिना चर्चा,तर्क,परीक्षण और प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए यह वैदिक धर्म की मान्यता है और महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने स्पष्ट कहा है कि सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्दत रहना चाहिए। आर्य समाज हमेशा शास्त्रार्थ की चुनौती को स्वीकार करता आया है और यह शास्त्रार्थ उसने विधर्मियों से ही नहीं किया बल्कि हिंदू धर्म में व्याप्त पाखण्ड फैलाने वाले पाखंडियों से भी किया है और पराजित किया है।इसलिए वैदिक विद्वान और वैदिक प्रकाशन संस्थान द्वारा प्रकाशित ग्रंथों को ही प्रमाण मानकर पढ़ना चाहिए।एक स्थापित सिद्धांत है कि किसी देश के सभी कानून उसके संविधान के आधार पर बने और टिके होते हैं।जो बात संविधान स्वीकार नहीं करता वह बात किसी अन्य कानून द्वारा भी स्वीकार नहीं की जा सकती है ठीक उसी प्रकार जो किसी भी धर्म ग्रंथ में लिखी गई है यदि वह वेद स्थापित सत्य के विरुद्ध है तो या तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा या उसे मिलावट मानकर छोड़ा जाएगा।
🪷 ओ३म् 🪷 मेरे पास माननीय, आदरणीय, आर्य महान वैदिक विद्वान डाक्टर श्री सुरेंद्र कुमार की विशुध्द मनुस्मृति है । मैने इस पवित्र महान ग्रंथ विशुध्द मनुस्मृति को कई बार आत्मसात किया है और समय-समय पर करता रहता हूं । 🌷ओ३म् शान्ति:शान्ति:शान्ति:।🌷
*वेदानुकूल तर्क से धर्म को जानें* (मनुस्मृति 12/106) वेदानुकूल तर्क के द्वारा अनुसंधान करता हुआ व्यक्ति धर्म के तत्व को समझ पाता है, अन्य नहीं। *Explore Dharma through Logic/Reasoning and teachings of Vedas (Manusmriti 12/106)* Anyone who uses reasoning/logic in conformity with teachings of the Vedas, knows the nuances of Dharma (law and duty), none else.
विशुद्ध मनुस्मृति जो कि महाराज मनु ने बताया है वह तो हमारे संविधान से भी ज्यादा अच्छी है । इसलिए अब समझ में आता है कि प्राचीन वैदिक भारत जगद्गुरु क्यों कहलाया
वर्ण-व्यवस्था अर्थात् जीविका व्यवस्था द्विज - जितने व्यक्ति अध्ययन कार्य में लगे हुए हैं उन सब को द्विज कहा गया है। विप्र- जितने व्यक्ति अध्ययन कार्य पूर्ण कर चुके हैं उन सबको विप्र कहा गया है। ब्राह्मण - जितने व्यक्ति पढ़ाने की, उपदेश करने की, यज्ञ-संस्कार कराने की जीविका से परिवार का भरण-पोषण करते हैं उन सभीं को ब्राह्मण कहा गया है। क्षत्रिय - जितने व्यक्ति सैनिक कार्य करके, न्यायिक कार्य करके, प्रशासनिक कार्य करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं उन सभीं को क्षत्रिय कहा गया है। वैश्य - जितने व्यक्ति बनी बनायी वस्तुओं का व्यापार करके, भाड़ा का कार्य करके, ब्याज लेने का कार्य करके जीविका चलाते हैं उन सभीं को वैश्य कहा गया है। शूद्र - जितने व्यक्ति वस्तुओं का निर्माण करके जीविका चलाते हैं, कृषि कार्य से अन्न उत्पादन करके जीविका चलाते हैं, पशुपालन के द्वारा भिन्न भिन्न वस्तुओं का निर्माण करके जीविका चलाते हैं उन सभीं को शूद्र कहा गया है। सवर्ण - जितने व्यक्ति जीविका चलाने का कार्य करते हैं उन सभीं को सवर्ण कहा गया है। अवर्ण - जितने व्यक्ति किसी प्रकार की जीविका करने योग्य नहीं हैं सक्षम नहीं हैं उन सभीं को अवर्ण कहा गया है। सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में शूद्र विषयक विवेचन में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के निधन के पश्चात् गोपनीयता से प्रकाशन के समय मिलावट किया गया है। शूद्र अर्थात् निर्माता को अपढ़ गंवार लिख दिया गया है।
मित्रो! प्रिंट सुधार करवाएं । जब ब्रह्म शब्द में ण जोड़कर ब्रह्मण लिख कर प्रिंट करते हैं तो शूद्र शब्द मे ण जोड़कर शूद्रण लिखकर प्रिंट क्यों नहीं करते हैं? यजुर्वेद अनुसार शूद्रं शब्द में बङे श पर बङे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की मात्रा बिंदी लगती है जिसके कारण शूद्रन शूद्रण शूद्रम लिख प्रिंट कर बोल सकते हैं। अत: ब्रह्म में जोड़कर ब्रह्मण लिखा करते हैं तो फिर शूद्र में भी ण जोड़कर शूद्रण लिखना प्रिंट करना चाहिए और शूद्रण ही बोलना चाहिए । अर्थात शूद्रण को उत्पादक निर्माता तपस्वी उद्योगण ही बोलना चाहिए। वैदिक शब्द शूद्रण, क्षुद्र, अशूद्र तीनो शब्दो का मतलब अलग अलग समझना चाहिए। चार वर्ण कर्म विभाग मे कार्यरत मानव जन ब्रह्मण-अध्यापक, क्षत्रिय-सुरक्षक, शूद्रण-उत्पादक और वैश्य-वितरक होते हैं तथा पांचवेजन इन्ही चतुरवर्ण में वेतनभोगी होकर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन होते हैं।
*Hindu Laws codified by Maharshi Manu adopted as fundamental law by countries of East and West. Commonwealth of India Bill, 1925 - a precursor to the Draft Constitution of India - based on the teachings of Manu.* Maharshi Manu is considered to be the first law giver of the world and his Manusmriti as the most authentic book of law. He has provided code of conduct for humanity and his work is cited in several ancient texts like Ramayana, Mahabharata, etc. *In this regard, Dr.Deen Bandhu Chandora of Atlanta, Georgia in his book Hindu-Centum has quoted French author Mr Louis Jacolliot of France*. In his book *La Bible Dans L'Inde* written in 1876 he described: *"The Hindoo laws were codified by Manu more than three thousand years before the Christian era and the Hindoo laws were copied by entire antiquity, notably, by Rome alone, leaving us a written law, the 'Code of Justinian', which has been adopted as the fundamental law of all modern legislation."* Further, *Annie Besant* (President of Theosophical Society from 1907 to 1933 who had remarked that Swami Dayanand Saraswati was the first person to proclaim India for Indians), has made significant contributions to the exposition of Manu's teachings in her book Hindu Ideals and Dharma. Dr.Kewal Motwani writes about Annie Besant in his book Manu Dharma Sastra: *"Dr.Besant presented the fundamentals of Manu's teachings and applied them to the problems of India and the present-day world, and it would be no exaggeration to affirm that she made the world Manu-conscious as no man or woman has done during the last several centuries. Perhaps, her most daring and monumental piece of work, which may well be the most outstanding contribution to philosophy and sociology of political institutions and of great benefit to the whole of humanity, was the drafting of a Constitution for India, the Commonwealth of India Bill, based on the teachings of Manu.* (Source: Manu Dharma Sastra by Dr.Kewal Motwani with a foreword by Ernest Wood of American Academy of Asian Studies,SF, California, published by Ganesh & Co.(Madras) Pvt.Ltd., Ed.1958).
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार। धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने ! इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें। अध्यापक/ धर्माचार्य को - 1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए , 2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए, 3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए, 4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए, 5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए, 6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए, 7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए, 8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए, 9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए, 10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए, 11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए, 12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए, 13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए, 14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, 15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए, 16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए , 17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए, 18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए, 19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और 20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए। इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए। पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम - ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।। विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं । साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
महर्षि मनु महाराज का ओरिजिनल संस्कृत श्लोक- हे मनुष्यों ! हिंदी भावार्थ: बलपूर्वक जो दिया जाए, बलपूर्वक जो भोग किया जाए, बलपूर्वक जो लिखवाया जाए और जो जो बलपूर्वक कर्म करवायें जाएं वे मानवा नहीं करने करवाने चाहिए। यह विधिनियम मनु महाराज ने दिया है। संस्कृत श्लोक- ॐ बलाद्दतं बलाद् भुक्तं बलाद्याच्चापि लेखितम् । सर्वान्बलकृतानर्थानकृतान्मनुरब्रवीत् ।। (वैदिक मनुस्मृति धर्मशास्त्र ) इस उत्तम विचार की तुलना कुरान कुराह, बाइबिल बबाल, बौद्ध त्रिपिटिक और नंगेजिन्न गुरुओ की किताबो से करनी चाहिए।
आदरणीय जी आपने कुरान पढा ही नहीं है कुरान झूठ और लूट पर आधारित विचार है कुरान सूरा 8 आयत नंबर 41 में अल्लाह और मोहम्मद लूट के माल से पांचवां हिस्सा लेते हैं सही बुखारी 335 में भी यही लिखा है , अकबर इसलिए महान था क्योंकि उसने अपने हरम में 5000 महिलाओं को गुलाम बना कर रखा था
दोस्तों 1925 में एक सम्मेलन हुआ था जिसको महाड़ सम्मेलन कहते हैं उसमें कुछ अन्य लोगों ने मनुस्मृति को जलाने का उपक्रम किया था और उस समय डॉ भीमराव आंबेडकर जी वहां उपस्थित नहीं थे
*महर्षि मनु के सन्देश केवल भारतीय जनमानस के लिए ही नहीं अपितु समग्र मानव-जाति के लिये हैं। WORLDWIDE IMPACT OF MANU*. डॉ केवल मोटवानी अपनी पुस्तक में लिखते हैं: *"Manu belongs to no single nation or race, he belongs to the whole world. His teachings are not addressed to an isolated group, caste or sect, but to humanity.They transcend time and address themselves to the eternal in man."*(Source: Manu Dharma Sastra - A Sociological and Historical Study by Dr.Kewal Motwani, published by Ganesh & Co.(Madras) Private Ltd.Ed.1958).
Ye to arya samajiyo ki manusmriti hai. Jaha pe bhi faste hai waha milawat bol deta hai. Pura hindu samaj murty pujak hai. Jinko 2% hindu samaj bhi nahi manta uski koi value nahi hai. Visuddh manusmriti pehle shankracharya ko samaja
माननीय ने बहुत ही मनुस्मृति पर अच्छा व्याख्यान किया है लेकिन वर्तमान समय के संदर्भ में भारतीय सविंधान ही लागू होता है क्योंकि सविंधान मे हर वर्ग जाति व हर धर्म के लोगों को अधिकार देता है। मनुस्मृति मे पक्षपात का बोलबाला होता था।
The interviewer is so so so annoying by constantly interrupting the guest. If he thinks he is so knowledgeable, then why did he invite the guest. A clear sign of a immature interviewer. Ruined the entire interview.
किसी भी शास्त्र का अध्ययन परम्परा प्राप्त आचार्यों के सान्निध्य में होता हैं, जो लोग ख़ुद Macaulay education system के प्रोडक्ट हैं वो कैसे किसी संस्कृत के ग्रंथ पर टिप्पणी कर सकते हैं l वर्ण और जाति एक ही होती हैं और वर्ण इस जन्म में नहीं बदला जाता हैं l
तुम्हारी कोई परम्परा आदि काल का है ही नहीं। बुद्ध के पश्चात ही तुम लोगों ने अपना साम्राजवाद फैलाया है और उसे प्राचीन परंपरा का नाम दिया है। बौद्धिक ठग। तुमने अपने आरक्षण को धर्म और परंपरा का नाम दिया। तृष्णा से ग्रस्त लोगों ने ही धर्म और परंपरा का मुखौटा पहन कर अपना साम्राज्यवाद स्थापित किया है और अब पुनः उसी कार्य में लगे हुए हो। बरसाती मेंढक!
खूब पढ़लो नफरती किताब है,,, आज तक ना तो कोई ब्राह्मण शूद्र नहीं बना ना कोई शूद्र ब्राह्मण बना,,, मनुस्मृति मे लिखा है चाहे खाना फेकना पड़े लेकिन शूद्र को मत दो क्योंकि वह बलवान हो जाएगा
डॉ सुरेंद्र कुमार जी द्वारा किया गया कार्य अभिनंदन के योग्य ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है
इस वीडियो के माध्यम मेरे बहुत सारे संशय मिटे हैं
पुनः बहुत बहुत धन्यवाद
डॉ. साहब ने जो भाष्य किया है वह बहुत ही अद्भुत है, अपनी हर बात को प्रमाण से पोषित किया है। ये एक बहुत बड़ा कार्य सनातन वैदिक धर्म के लिए इन्होंने किया है। वास्तव में मनु के वंशज कहलाने योग्य हैं डा. साहब।
आर्यवीर डॉ. सुरेंद्र कुमार जी को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और साधुवाद! अब सारे विश्व को आर्य और मनुवादी बनाना है......
We are so fortunate and thankful to listen to the scholars like Dr. Surendra Kumar. Koti Koti Naman!!!
See my reply to a comment
अत्यन्त सुंदर वार्तालाप
डॉक्टर सुरेंद्र कुमार जी की मनुस्मृति की व्याख्या को हम सब को पढ़ना चाहिए और इस विषय में जो गलत धारणाएं हैं उनको दूर करना चाहिए।
मैंने स्वयं यह पुस्तक ली है और दूसरों को भेंट भी की है, जिससे इस विषय में जागरूकता बढ़े।
डॉ सुरेन्द्र जी ने प्रक्षिप्त श्लोकों को बड़े ही scientific तरीके से कई मापदंड , बिंदुओं के आधार पर चिन्हित किया है, जिससे कोई संदेह नहीं रह जाता है।
निसंदेह मनुस्मृति हमारा एक आध्यात्मिक , नीति और सामाजिक व्यवस्था का ग्रन्थ है और हर सनातनी के घर में उसका पठन पाठन और व्यवहार होना चाहिए।
डॉ साहब का महर्षि मनु की जयपुर high court में स्थापित प्रतिमा के कोर्ट केस पर पक्ष रखने के लिए बहुत बहुत साधुवाद।
Bogus book ka bhashya bhi bogus or bhasyakar bhi bogus
यदि मनुस्मृति की बातों की गहराई को समझें , तो परिवार अस्तित्व के लिए सबसे उपयोगी बातें है । यदि इन सभी बातों व्यापक प्रचार प्रसार हो , शिक्षा में अधिकतम जोड़ा जाए , तो सांसारिक जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव होने लग जाएंगे ।
साधुवाद , डा० सुरेन्द्र कुमार जी 🙏
बहुत ही सारगर्भित ज्ञानवर्धक बातचीत। हार्दिक धन्यवाद और आभार आप दोनों विद्वानों का।
Dhanyawad
आदरणीय विद्वानों को इस अद्भुत वार्तालाप के लिए हार्दिक अभिनन्दन।
धन्यवाद हो स्वामी रामभद्राचार्य का जिन्होंने मनुस्मृति में क्षेपकों का होना स्वीकार किया। महाकुम्भ प्रयागराज से दिए गए एक India TV के इंटरव्यू में उन्होंने मनुस्मृति का संदर्भ(2.103) देते हुए बतलाया जो द्विज 2 समय सन्ध्या नहीं करता वह शूद्र समान है, यानि व्यक्ति आचरण से ब्राह्मण या किसी और वर्ण को प्राप्त होता है।
आदरणीय डॉ सुरेन्द्र कुमार जी मनुस्मृति के अधिकारी विद्वान हैं ।
आज के समय में ऐसे ही विषय मनुस्मृति का प्रचार जरुरी है।मूल को जानना चाहिए। अद्भुत है।आपकी वाणी सुनना चाहिए।
वाह ! अति उत्तम एवं भ्रांत धारणाओं के निराकरण की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण वीडियो ❤
Dhanyawad
डॉ सुरेन्द्र कुमार जी भूतपूर्व उपकुलपति, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, डॉ विवेक आर्य एवं कुशविन्दर आर्य जी को इस सुन्दर पोडकास्ट के लिये बहुत बहुत बधाई।
प्रोफेसर सुरेन्द्र जी ने ठीक ही कहा है कि जिन्हें मनुस्मृति का सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है वही इसका विरोध करते हैं।
सभी ज्ञान के प्रेमी सज्जनों को चाहिए कि इस धर्म शास्त्र में हुए प्रक्षेपों को डॉ साहब के द्वारा बताये गए 7 प्रकार के साहित्यिक मानदंडों के आधार पर विभिन्न श्लोकों की पहचान/ परीक्षण कर क्षेपक रहित विशुद्ध मनुस्मृति का अवलोकन करें।
Excellent podcast on the subject of Manusmriti. This was truly enlightening! I like how well structured and factual the arguments are. Dr. Surender Kumar has countered the misconceptions surrounding Manusmriti thoroughly. It is unfortunate that such an important ancient scripture has been criticised for political reasons. Every Indian should watch this podcast to understand the subject. I hope it reaches more people.
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय।अति सुंदर,ज्ञानवर्धक वार्तालाप।
आपका भाष्य विशुद्ध मनुस्मृति मैंने पढा है अति उत्तम प्रस्तुति के साथ विवेचना सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हार्दिक बधाई। बहुत बहुत धन्यवाद।।
इस वीडियो के द्वारा मनुस्मृति पर लगे सभी आरोपों का निराकरण किया गया है ।
Ye arya samaji hai jo visuddh manusmriti naam se book likhai hai
Very very good explanation about Manusmriti.
मनुस्मृति पर सर्वथा पक्षपात रहित, सामयिक और आँखे खोल देने वाला वीडियो। आप दोनों बधाई के पात्र हैं।
चलो आज विशुद्ध मनुस्मृति के भाष्यकार के दर्शन हो गए ।
माता-पिता से जाति मिलती है और गुरू से वर्ण मिलता है।
अतीवशोभनम्।
बहुशः धन्यवादः।
आपने वैदिक धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की बहुत बड़ी सेवा की है।
अनेक शुभकामनाएं।
डॉक्टर सुरेन्द्र जी ने मनुस्मृति पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है ।
*महर्षि मनु के अनुसार अपराध करने पर राजा सबसे अधिक दण्ड का अधिकारी। (मनुस्मृति 8/336)*
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*कार्षापणं भवेद्दण्ड्यो यत्रान्यः प्राकृतो जनः । तत्र राजा भवेद्दण्ड्यः सहस्त्रमिति धारणा ॥ (मनुस्मृति 8/336)*
*”जिस अपराध में साधारण मनुष्य पर एक पैसा दण्ड हो उसी अपराध में राजा को सहस्त्र पैसा दण्ड होवे अर्थात साधारण मनुष्य से राजा को सहस्र गुणा देना होना चाहिए*।
*मनु महाराज को ठीक प्रकार से समझने के लिये प्रक्षेप रहित विशुद्ध मनुस्मृति का अवलोकन करें*।
उत्तम निराकरण। मनुस्मृति के मिलावटी अंशों के कारण ये भ्रांतियां उतपन्न हुई हैं
Kisne milawat ki
@@PratikMakwana-fg5brसुमती भार्गव ऋषी ने मिलावट किया है.ओरीजनल मनुस्मृती दुषित किया.और इतना नहीं उसीने आगे मनू का नाम धारण किया.
विशुद्ध मनुस्मृती आच्छी है.
सुमती भार्गव ऋषी ने मिलावट किया है.ओरिजनल मनुस्मृती दुषित किया, और इतना नहीं उन्होंने आगे मनू का नाम धारण किया.इसिलीऐ आगे आगे मनू स्मृती बदनाम होई.
शंका समाधान के लिए गुरुजी का धन्यवाद 🙏🏻
मनुस्मृति पर गुरुजी के परिश्रम को नमन 🙌🏻
🧘🌞॥ ओ३म् ॥🌞🧘
श्रद्धेय डॉ सुरेन्द्र कुमार जी को सादर नमस्ते 🙏🏻
बहुत ही सुन्दर और तार्किक तथ्यों के साथ मनुस्मृति के संदर्भ में आपने कहा इस चर्चा को सुनकर हम सभी बहुत लाभान्वित हुए इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🏻🌹🌻💐
आज के मनुष्य को विशुद्ध मनुस्मृति देकर आपने बहुत बड़ा कल्याण का कार्य किया है।
ईश्वर आपको स्वस्थ, निरोगी और दीर्घायु जीवन प्रदान करें जिससे समाज का बहुताधिक कल्याण हो।
🙏🏻🌹🌻💐🌻🌹🙏🏻
कृष्ण कुमार आर्य
चेतगंज वाराणसी
मनु स्मृति सबसे पहला मानव धर्म शास्त्र है
बहुत अच्छा और अति आवश्यक !
मोनू स्मृति दुनिया की सबसे अच्छी सुंदर स्मृति है
बहुत सुंदर भ्रमनाशक वीडियो
Time Stamp
00:00 Precap
03:50 Intro
09:29 Varna vs Jaati
27:00 On Ambedkar
35:46 Shudra and other related words
49:37 Punishment of crime
54:07 Adulteration criteria (Milawat)
1:01:53 Purush Sukta and other Veda Mantras
1:14:22 Relevance of Manu Smriti
1:20:45 On women
1:32:10 On food, drink and meat eating, animal sacrifice
1:41:00 Statue of Manu / Court case
1:49:58 Towards end/ conclusion
1:52:13 Books by Dr Surendra Kumar
जो आप ज्ञान दे रहे हो ये ही ज्ञान शंकराचार्यों को ही समझाओ तो ज्यादा बेहतर होगा।
, बहुत बढ़िया विश्लेषण
आदरणीय डॉ जी को सादर प्रणाम।
Since last 4 months... when ever someone quoted Manusmriti... I always checked references.. and literally 100% of them are prakshipt...
.
So whenever someone quotes any reference.... just open it in front of them... Its guaranteed that it will be false.... because we dont have any wrong thing..
Ji bilkul
*दक्षिण-पूर्वी एशिया में मनु*
*Philippine*
"फिलिप्पीन के निवासी यह मानते हैं, कि उनकी *आचार-संहिता मनु और लाओ-त्से* की स्मृतिओं पर आधारित है। इसलिये वहां की *विधानसभा के द्वार पर इन दोनों की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं"*।
*Mynamar - बर्मा*
"धमसथ वर्ग के जो अनेक ग्रंथ सत्रहवीं और अठारवीं सदियों में बर्मा में लिखे गए, उनके साथ भी मनु का नाम जुड़ा हुआ है। इसका कारण यही है, की बर्मा का कानून तथा विधान शास्त्र भारत के प्राचीन स्मृति ग्रंथों पर आधारित था।"
*Vietnam - चम्पा*
न्याय व्यवस्था - चम्पा के अभिलेखों से सूचित होता है कि *कानून प्रधानतया मनु, नारद तथा भार्गव की स्मृतिओं* या धर्मशास्त्रों पर आधारित थे। एक अभिलेख के अनुसार राजा जयइंद्रवर्मदेव मनुमार्ग *(मनु द्वारा प्रतिपादित मार्ग)* का अनुसरण करने वाला था"
(साभार: दक्षिण-पूर्वी और दक्षिणी एशिया में भारतीय संस्कृति, *सत्यकेतु विद्यालंकार*, संस्करण:2008),नई दिल्ली)
अद्भुत जानकारी
*मनुस्मृति में बाद कि मिलावट/श्लोकों का जोड़ा जाना - यूरोपियन विद्वान मोनियर विलियम की साक्षी:*
Extract from Mr.Monier William's book *Hinduism*(First Ed.1877, Reprinted Ed.1951), pub by Susil Gupta(India) Ltd, Calcutta. Above author confirms additions made to Grihya Sutras (by a group of Brahamans). The compilation was later known as Manusmriti to provide weight & dignity to the compilation.
*Mr Monier Williams states*: "The law-book of Manu, which may be assigned in its present form to about the fifth century B.C.is a metrical version of the traditional observances of a tribe of Brahmans called Manavas, who probably belonged to a school of the Black Yajurveda and lived in the north-west of India, not far from Delhi, which, observances were originally embodied in their Grihya Sutras. *To these Sutras many precepts on religion, morality, and philosophy were added by an author or authors unknown, the whole being collected in more recent times by a Brahman or Brahmans, who, to give weight and dignity to the collection, assigned it's authorship to the mythical sage Manu."*
As per *Buhler another western scholar first and last chapters of Manusmriti are interpolations.*
डॉ सुरेन्द्र कुमार जी लिखते हैं कि महात्मा गांधी, रविन्द्रनाथ टैगोर और डॉ राधाकृष्णन ने भी वर्तमान मनुस्मृति में प्रक्षेपों के होने को स्वीकारा है। यह सच है कि अनेक आर्य विद्वानों ने मनुस्मृति के शुद्ध एवं परिष्कृत संस्करण निकाले हैं, लेकिन इस मिलावटी पुस्तक की जितनी बढ़िया सर्जरी साहित्यिक एवं वैज्ञानिक आधार पर डॉ सुरेन्द्र कुमार जी ने की है वह अतुलनीय है। डॉ साहब के श्रम को कोटि- कोटि नमन। आशा करते हैं की मनुस्मृति के विश्व व्यापी प्रभाव पर शोध कार्य आगे भी चलता रहेगा।
अद्भुत जानकारी 🙏🙏🙏
surendra kumar is best
🙏🏽 sir & ❤️ for the truth that was written in Manusmriti
बहुत सही
किसी नियम/ धर्म ग्रंथ/ परंपरा/ संविधान में जो सामाजिक चलन और मान्यताएं संशोधन के रूप में जुड़ती जाती हैं वही आगे वालों के लिए नियम बन जाते हैं.......... यह पूर्णतया संभव है मूलतः मनुस्मृति वर्ण आधारित थी जो कर्म पर आधारित थी लेकिन कालांतर में उसमें जाति आधारित विकृतियाँ लाभार्थी वर्णों द्वारा ही उत्पन्न की गई और समाज में भी उन जाति आधारित विकृतियों को उन्होंने ही फैलाया जिसके कारण उसकी प्रासंगिकता धीरे धीरे समाप्त होती गई..........
मनुस्मृति के वर्तमान विकृत स्वरूप के आधार पर उसका विरोध भी वर्तमान में उचित ही है.........
और प्रबुद्ध वर्णों को इसे स्वीकार भी करना चाहिए।
अतः उक्त ग्रंथ साहित्यिक स्रोत के रूप में हमारी सीख के लिए ही उचित है,उसकी वर्तमान प्रासंगिकता पर ज्यादा बल देने वालों की नियति में सन्देह ही उत्पन्न करता है।
*Was Maharshi Manu against women? The answer is 'Certainly Not'. The well known German Philosopher, Nietzsche was highly impressed by Manu and paid him rich tributes for showing reverence to women. At one place Nietzsche says " I know of no book in which so many delicate things are said of woman as in the Law Book of Manu."*
*माता का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है (मनुस्मृति 2/145)*
दस उपाध्यायों की अपेक्षा आचार्य, सो आचार्यों की अपेक्षा पिता, हजार पिताओं की अपेक्षा माता (जो कि एक स्त्री है) का महत्व अधिक है।
*RANK OF MOTHER HIGHEST IN THE SOCIETY - MAHARSHI MANU*
Maharishi Manu says in Manusmriti(2.145) that the rank of one acharya(Principal) is equal to 10 ordinary teachers, the rank of one father is equal to that of 100 acharyas. The rank of one mother is equal to that of 1000 fathers.
Why did Manu give such a high position to mother who is a woman? Just because a learned mother inculcates in her children good sanskaras and education as a first Guru. These thoughts received from mother go deep into the mind of the child forming his/her attitude and values of the later age.
*वर्ण-व्यवस्था कर्म के अनुसार परिवर्तनशील है (मनुस्मृति 10/65)*
गुण, कर्म और स्वभाव के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शुद्र ब्राह्मण बन जाता है यानि ब्राह्मणता प्राप्त करता है। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य का भी वर्ण परिवर्तन कर्म के अनुसार हो जाता है।
*सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानन्द द्वारा मनुस्मृति श्लोक 10/65 पर दी गई व्याख्या:*
"जो शूद्रकुल में उत्पन्न हो के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के समान गुण, कर्म,स्वभाव वाला हो, तो वह शुद्र, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हो जाए। वैसे ही जो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कुल में उत्पन्न हुआ हो और उस के गुण,कर्म,स्वभाव शुद्र के सदृश हो,तो वह शूद्र हो जाये। वैसे क्षत्रिय वा वैश्य के कुल में उत्पन्न हो के ब्राह्मण वा शूद्र के समान होने से ब्राह्मण और शूद्र भी हो जाता है। अर्थात चारों वर्णों में जिस-जिस के सदृश जो-जो पुरुष व स्त्री हो, वह-वह उसी वर्ण में गिनी जानी चाहिये।
*Manu Smriti allows for Change of Varna - Upward And Downward Mobility of Varna*
*As per Manusmriti 10/65 a Shudra can become a brahmin by acquiring learning, merit, virtuous life, etc.and a brahmin lacking in above traits becomes a Shudra. The above principle of merit, action and personality traits(Guna-karma-Swabhava) also holds good for Kshatriya and Vaishya for their upward or downward mobility.*
*Swami Dayanand Saraswati explaining Manusmriti shloka 10/65 in Satyartha Prakash says* :
"If a person born of a low class family attains the virtues, habits and tendencies of the Brahmana, Kshatriya or Vaishya class, he/she should be classed with them according to merit. On the contrary, if a person born of a Brahmana, Kshatriya or Vaishya family goes down to the nature, character and habits of a lower class, he/she should be classed with the lower class."(Source: Eng.Translation of above shloka by Dr.Tulsi Ram from his book Swami Dayanand's Vision of Truth).
चारकर्म = शिक्षण + शासन + उद्योग + व्यापार
चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम।
ब्रह्म वर्ण = ज्ञानी वर्ग।
क्षत्रम वर्ण = ध्यानी वर्ग।
शूद्रम वर्ण = तपसी वर्ग।
वैशम वर्ण = तमसी वर्ग।
1- अध्यापक चिकित्सक = ब्रह्मन
2- सुरक्षक चौकीदार = क्षत्रिय
3- उत्पादक निर्माता = शूद्रन
4- वितरक वणिक = वैश्य
पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत = दासजन सेवकजन राजसेवक ।
वर्ण चार हैं पाँच नहीं।
अति सुंदर व्याख्या
अति महत्वपूर्ण प्रस्तुति
मैने भी इनकी मनुस्मृति ली है। सबको पढ़नी चाहिए धन्यवाद
कितने रूपए में खरीदी ?
@NewworldBaby-p6r इस समय पांच छह सौ की है। मैंने दस वर्ष पूर्व डेढ़ सौ में खरीदा था
बहुत अच्छी व्याख्या । ❤
मनुस्मृति को अच्छा साबित करने के लिए सिद्धांतों को मारने की जरूरत नहीं।
वह जैसे हैं वैसे ही अच्छे हैं हितकारक हैं।
श्रृति -स्मृतियों को जानने के लिए आचार्यों को ही ढूंढे जिन्होंने परंपरा से अध्ययन किया हो।
ऐसे मनुस्मृति से किसी का भला नहीं होने वाला जिसमें सिद्धांत की हानि करके श्लोकों को समझाया जाए।
बहुत अच्छी बात रही
मैने आज ही विशुद्ध मनुस्मृति जो डॉ सुरेंद्र कुमार की लिखी हुई है खरीदी है। अवश्य ही इसको पढूंगा ।
कितने रूपए में खरीदा ?
आदरणीय गुरूजी, मनुस्मृति में कुछ कुटिल लोगों द्वारा स्वार्थसिद्धि हेतु समय-समय पर मिलावट की गयी है जिसका आधुनिक समय में आप जैसे विद्वानों के द्वारा संशोधन किया गया है। लेकिन क्या आप लोगों ने विशुद्ध मनुस्मृति के लिये बड़े स्तर पर सभी अलग-अलग हिन्दू वर्गों के विद्वानों की सभा में विस्तृत चर्चा करके इसे स्वीकार्य करवाया है? मनुस्मृति में मौजूद वर्णव्यवस्था को इसमें अब भी ज्यों का त्यों रखा गया है जो कि समाज के लिये पहले भी घातक सिद्ध रही है और आगे भी घातक ही सिद्ध होगी। वर्णव्यवस्था का दिखायी देने वाला सुन्दर रूप आगे चलकर भयानक जातिवाद की कुरुपता में बदलता है और समाज को विखंडन की तरफ ले जाता है। सर्वविदित हैं कि भारत की बारह सौ साल की गुलामी का मूल कारण यही वर्णव्यवस्था रही है। अपनी सभी खामियों का ठीकरा केवल जातिवाद के सिर फोड़कर जिस वर्णव्यवस्था की प्रासंगिकता पर जोर दिया जा रहा है। क्या यह काठ की हाण्डी को दोबारा चढा़ने की गलती नही है? क्या आगे चलकर यह फिर से विकृत होकर सामाजिक-राजनैतिक दुर्दशा का कारण नही बनेगी? जिस मूल कारण से यह ग्रन्थ समाज में स्वीकारोक्ति के मामले में इतना विवादास्पद है तो बेशक वर्णव्यवस्था का विषय प्रक्षिप्त ना हो तो भी इस ग्रन्थ से इस विषय को समाप्त कर दिया जाना चाहिये ताकि यह सभी के लिये ग्राहय बन जाये और समय के साथ इसकी प्रासांगिकता बरकरार रहे। यदि आप इस व्यवस्था को श्रुतिसम्मत मानकर उचित और अपरिवर्तनशील मानते हैं तो मैं मानता हूं कि वेद का ज्ञान और व्यवस्था तो सार्वभौमिक होनी चाहिये; जिसमें विकृति के लिये कोई गुंजायश नही है। यदि विकृति आती है तो मानव कल्याण हेतु इसमें न्यायसंगत बदलाव भी यथेष्ट है। क्या भारत के बाहर इस वर्णव्यवस्था से रहित दूसरे समाज नही हैं? और क्या वे सामाजिक विकास में आगे नही बढ़ रहे है?
अति सुन्दर
Om Ji Om
My ideal 😊😊😊 dr Surendra Kumar ji❤
आचरण व्यवहार अलग विषय है और चार वर्ण कर्म विषय अलग है । चारवर्ण कर्म का मतलब है जैसे कि शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण। आचरण व्यवहार तो चारवर्ण कर्म करने वाले द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) का सही होना चाहिए। इसलिए चारो वर्ण कर्म ( शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादन-शूद्रम और वितरण-वैशम) कर्म करने वालो को आचरण व्यवहार गलत करने पर दण्ड देकर सुधार करना कहा गया है ।
अद्भुत
मनुस्मृति का सच्चा अर्थ सत्यार्थ प्रकाश मे जाने
धन्यवाद भायी डाक्टर विवेक जी आदरणीय डाक् सुरेन्द्र कुमार जी
सभी मनुष्यों की एक जाति है मनुष्य
मनुस्मृति के अंध विरोधी एक बार निष्पक्ष भाव से इस वीडियो को अवश्य सुने और फिर अपनी टिप्पणी करें
Dhanyawad
मैनें पढ़ रहा हूँ विशुद्ध मनुस्मृति
सुनना चाहता था लेकिन एंकर के कारण चीढ़ लग रही है। एंकर को अधिक टोकना नहीं चाहिए। जी जी अधिक सुनाई दे रहा हे जिससे चिढ़ हो रही हे। प्रश्न पूछने के बाद चुप रहने का प्रयास होना चाहिए। पॉडकास्ट के अतिथि बहुत महत्व पूर्ण हे।
जयतु सनातन
पद्भ्यां शूद्रोSअजायत - यजुर्वेद अध्याय 31 मंत्र 11
अर्थ -
शूद्र: = शूद्र ने
पद्भ्याम् = पैरों के समान, पैरों जैसा, पैरों के बिना शरीर नहीं चल सकता है वैसे ही वस्तुओं के बिना सृष्टि नहीं चल सकती है।
अजायत = सृष्टि में वस्तुओं का जनन् किया है, जनन् करता है, जनन् करता रहेगा
मनुस्मृति की बजाय आज भारत भारत का संविधान से चल रहा है इसलिए आज मनुस्मृति पर चर्चा या बहस प्रासंगिक नहीं है इसके बावजूद इसके द्वारा कभी हमारा समाज वैसे ही नियंत्रित रहा जैसे आज संविधान से नियंत्रित है इसलिए इस पर चर्चा होना बुरा नहीं है अपितु पूर्ण न्यायिक दृष्टि से चर्चा हो यह अच्छी बात है।सच्चाई को बिना चर्चा,तर्क,परीक्षण और प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए यह वैदिक धर्म की मान्यता है और महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने स्पष्ट कहा है कि
सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्दत रहना चाहिए।
आर्य समाज हमेशा शास्त्रार्थ की चुनौती को स्वीकार करता आया है और यह शास्त्रार्थ उसने विधर्मियों से ही नहीं किया बल्कि हिंदू धर्म में व्याप्त पाखण्ड फैलाने वाले पाखंडियों से भी किया है और पराजित किया है।इसलिए वैदिक विद्वान और वैदिक प्रकाशन संस्थान द्वारा प्रकाशित ग्रंथों को ही प्रमाण मानकर पढ़ना चाहिए।एक स्थापित सिद्धांत है कि किसी देश के सभी कानून उसके संविधान के आधार पर बने और टिके होते हैं।जो बात संविधान स्वीकार नहीं करता वह बात किसी अन्य कानून द्वारा भी स्वीकार नहीं की जा सकती है ठीक उसी प्रकार जो
किसी भी धर्म ग्रंथ में लिखी गई है यदि वह वेद स्थापित सत्य के विरुद्ध है तो या तो उसे स्वीकार नहीं किया जाएगा या उसे मिलावट मानकर छोड़ा जाएगा।
हिंदू धर्म के दिमक हैं जातिवादी नस्लवादी गुरू, शंकराचार्य ये सब।
🪷 ओ३म् 🪷
मेरे पास माननीय, आदरणीय, आर्य महान वैदिक विद्वान डाक्टर श्री सुरेंद्र कुमार की विशुध्द मनुस्मृति है ।
मैने इस पवित्र महान ग्रंथ विशुध्द मनुस्मृति को कई बार आत्मसात किया है और समय-समय पर करता रहता हूं ।
🌷ओ३म् शान्ति:शान्ति:शान्ति:।🌷
*वेदानुकूल तर्क से धर्म को जानें* (मनुस्मृति 12/106)
वेदानुकूल तर्क के द्वारा अनुसंधान करता हुआ व्यक्ति धर्म के तत्व को समझ पाता है, अन्य नहीं।
*Explore Dharma through Logic/Reasoning and teachings of Vedas (Manusmriti 12/106)*
Anyone who uses reasoning/logic in conformity with teachings of the Vedas, knows the nuances of Dharma (law and duty), none else.
विशुद्ध मनुस्मृति जो कि महाराज मनु ने बताया है वह तो हमारे संविधान से भी ज्यादा अच्छी है । इसलिए अब समझ में आता है कि प्राचीन वैदिक भारत जगद्गुरु क्यों कहलाया
Nityanand mishra ka podcast aaya hai Manusmriti par hi vaad naam ke channel par, Dr Surendra ji ka ye podcast laakh guna better aur gyanvardhak hai.😇
Dhanyawad
Bilkul Sahi.
Wo Nityanand Mishra ek fraud hai theek Devdatt Patnaik ki tarah. Wo samaj me jhuth faila raha hai.
नित्यानंद मिश्र पूर्वाग्रही है।
वर्ण-व्यवस्था अर्थात् जीविका व्यवस्था
द्विज - जितने व्यक्ति अध्ययन कार्य में लगे हुए हैं उन सब को द्विज कहा गया है।
विप्र- जितने व्यक्ति अध्ययन कार्य पूर्ण कर चुके हैं उन सबको विप्र कहा गया है।
ब्राह्मण - जितने व्यक्ति पढ़ाने की, उपदेश करने की, यज्ञ-संस्कार कराने की जीविका से परिवार का भरण-पोषण करते हैं उन सभीं को ब्राह्मण कहा गया है।
क्षत्रिय - जितने व्यक्ति सैनिक कार्य करके, न्यायिक कार्य करके, प्रशासनिक कार्य करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं उन सभीं को क्षत्रिय कहा गया है।
वैश्य - जितने व्यक्ति बनी बनायी वस्तुओं का व्यापार करके, भाड़ा का कार्य करके, ब्याज लेने का कार्य करके जीविका चलाते हैं उन सभीं को वैश्य कहा गया है।
शूद्र - जितने व्यक्ति वस्तुओं का निर्माण करके जीविका चलाते हैं, कृषि कार्य से अन्न उत्पादन करके जीविका चलाते हैं, पशुपालन के द्वारा भिन्न भिन्न वस्तुओं का निर्माण करके जीविका चलाते हैं उन सभीं को शूद्र कहा गया है।
सवर्ण - जितने व्यक्ति जीविका चलाने का कार्य करते हैं उन सभीं को सवर्ण कहा गया है।
अवर्ण - जितने व्यक्ति किसी प्रकार की जीविका करने योग्य नहीं हैं सक्षम नहीं हैं उन सभीं को अवर्ण कहा गया है।
सत्यार्थ प्रकाश के आठवें समुल्लास में शूद्र विषयक विवेचन में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के निधन के पश्चात् गोपनीयता से प्रकाशन के समय मिलावट किया गया है।
शूद्र अर्थात् निर्माता को अपढ़ गंवार लिख दिया गया है।
मित्रो! प्रिंट सुधार करवाएं ।
जब ब्रह्म शब्द में ण जोड़कर ब्रह्मण लिख कर प्रिंट करते हैं तो शूद्र शब्द मे ण जोड़कर शूद्रण लिखकर प्रिंट क्यों नहीं करते हैं?
यजुर्वेद अनुसार शूद्रं शब्द में बङे श पर बङे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की मात्रा बिंदी लगती है जिसके कारण शूद्रन शूद्रण शूद्रम लिख प्रिंट कर बोल सकते हैं। अत: ब्रह्म में जोड़कर ब्रह्मण लिखा करते हैं तो फिर शूद्र में भी ण जोड़कर शूद्रण लिखना प्रिंट करना चाहिए और शूद्रण ही बोलना चाहिए । अर्थात शूद्रण को उत्पादक निर्माता तपस्वी उद्योगण ही बोलना चाहिए।
वैदिक शब्द शूद्रण, क्षुद्र, अशूद्र तीनो शब्दो का मतलब अलग अलग समझना चाहिए।
चार वर्ण कर्म विभाग मे कार्यरत मानव जन ब्रह्मण-अध्यापक, क्षत्रिय-सुरक्षक, शूद्रण-उत्पादक और वैश्य-वितरक होते हैं तथा
पांचवेजन इन्ही चतुरवर्ण में वेतनभोगी होकर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन होते हैं।
*Hindu Laws codified by Maharshi Manu adopted as fundamental law by countries of East and West. Commonwealth of India Bill, 1925 - a precursor to the Draft Constitution of India - based on the teachings of Manu.*
Maharshi Manu is considered to be the first law giver of the world and his Manusmriti as the most authentic book of law. He has provided code of conduct for humanity and his work is cited in several ancient texts like Ramayana, Mahabharata, etc. *In this regard, Dr.Deen Bandhu Chandora of Atlanta, Georgia in his book Hindu-Centum has quoted French author Mr Louis Jacolliot of France*. In his book *La Bible Dans L'Inde* written in 1876 he described: *"The Hindoo laws were codified by Manu more than three thousand years before the Christian era and the Hindoo laws were copied by entire antiquity, notably, by Rome alone, leaving us a written law, the 'Code of Justinian', which has been adopted as the fundamental law of all modern legislation."*
Further, *Annie Besant* (President of Theosophical Society from 1907 to 1933 who had remarked that Swami Dayanand Saraswati was the first person to proclaim India for Indians), has made significant contributions to the exposition of Manu's teachings in her book Hindu Ideals and Dharma. Dr.Kewal Motwani writes about Annie Besant in his book Manu Dharma Sastra: *"Dr.Besant presented the fundamentals of Manu's teachings and applied them to the problems of India and the present-day world, and it would be no exaggeration to affirm that she made the world Manu-conscious as no man or woman has done during the last several centuries. Perhaps, her most daring and monumental piece of work, which may well be the most outstanding contribution to philosophy and sociology of political institutions and of great benefit to the whole of humanity, was the drafting of a Constitution for India, the Commonwealth of India Bill, based on the teachings of Manu.* (Source: Manu Dharma Sastra by Dr.Kewal Motwani with a foreword by Ernest Wood of American Academy of Asian Studies,SF, California, published by Ganesh & Co.(Madras) Pvt.Ltd., Ed.1958).
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार।
धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने !
इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें।
अध्यापक/ धर्माचार्य को -
1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए ,
2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए,
3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए,
4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए,
5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए,
6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए,
7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए,
8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए,
9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए,
10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए,
11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए,
12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए,
13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए,
14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए,
15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए,
16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए ,
17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए,
18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए,
19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और
20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए।
इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए।
पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम -
ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।।
जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं ।
साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए।
जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
मनुस्मृती कितनी भी श्रेष्ठ क्यों न हो संविधान से बढकर नही हो सकती.
महर्षि मनु महाराज का ओरिजिनल संस्कृत श्लोक-
हे मनुष्यों !
हिंदी भावार्थ: बलपूर्वक जो दिया जाए, बलपूर्वक जो भोग किया जाए, बलपूर्वक जो लिखवाया जाए और जो जो बलपूर्वक कर्म करवायें जाएं वे मानवा नहीं करने करवाने चाहिए। यह विधिनियम मनु महाराज ने दिया है।
संस्कृत श्लोक- ॐ बलाद्दतं बलाद् भुक्तं बलाद्याच्चापि लेखितम् । सर्वान्बलकृतानर्थानकृतान्मनुरब्रवीत् ।। (वैदिक मनुस्मृति धर्मशास्त्र )
इस उत्तम विचार की तुलना कुरान कुराह, बाइबिल बबाल, बौद्ध त्रिपिटिक और नंगेजिन्न गुरुओ की किताबो से करनी चाहिए।
आदरणीय जी आपने कुरान पढा ही नहीं है कुरान झूठ और लूट पर आधारित विचार है कुरान सूरा 8 आयत नंबर 41 में अल्लाह और मोहम्मद लूट के माल से पांचवां हिस्सा लेते हैं सही बुखारी 335 में भी यही लिखा है , अकबर इसलिए महान था क्योंकि उसने अपने हरम में 5000 महिलाओं को गुलाम बना कर रखा था
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दोस्तों 1925 में एक सम्मेलन हुआ था जिसको महाड़ सम्मेलन कहते हैं उसमें कुछ अन्य लोगों ने मनुस्मृति को जलाने का उपक्रम किया था और उस समय डॉ भीमराव आंबेडकर जी वहां उपस्थित नहीं थे
मनुस्मृति सर्वश्रेष्ठ संविधान हैं 🙏
जी मैं दलित वर्ग से हूं मैंने भी मनुस्मृति पढ़ी है उसमें तो योग्यता के अनुसार व्यक्ति के वर्ण निर्धारण का प्रावधान है।
झूठे कहीं के।
जी बिल्कुल
*महर्षि मनु के सन्देश केवल भारतीय जनमानस के लिए ही नहीं अपितु समग्र मानव-जाति के लिये हैं। WORLDWIDE IMPACT OF MANU*.
डॉ केवल मोटवानी अपनी पुस्तक में लिखते हैं:
*"Manu belongs to no single nation or race, he belongs to the whole world. His teachings are not addressed to an isolated group, caste or sect, but to humanity.They transcend time and address themselves to the eternal in man."*(Source: Manu Dharma Sastra - A Sociological and Historical Study by Dr.Kewal Motwani, published by Ganesh & Co.(Madras) Private Ltd.Ed.1958).
जवाहरलाल नेहरू ने डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को आधुनिक मनु की उपाधि से विभूषित किया था
🙏❤❤
आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी आपने पाश्चात्य विद्वान शब्द का प्रयोग किया है वास्तव में वास्तव में वो विद्वान नहीं थे
Ye to arya samajiyo ki manusmriti hai. Jaha pe bhi faste hai waha milawat bol deta hai. Pura hindu samaj murty pujak hai. Jinko 2% hindu samaj bhi nahi manta uski koi value nahi hai. Visuddh manusmriti pehle shankracharya ko samaja
Jis jis shlok milawati hai... uska reason de koi book hai...
👌🙏
डॉ अंबेडकर ने मनुस्मृति कभी नहीं जलाई। वह जिस कार्यक्रम में शामिल हुए थे उसे कार्यक्रम में उनके जाने के घंटे बाद किसी ने मनुस्मृति को जलाया।
Sargarbhit updesh
Shankaracharya Log to Jati aur Varna ko Ek hi mantey h..aur wo bhi janam se hi....
Supreme Court mai... aur ak PIL file karna hai... koi agar kisi "Manuwadi" bolega, iye hate speech mai fela jaye...
माननीय ने बहुत ही मनुस्मृति पर अच्छा व्याख्यान किया है लेकिन वर्तमान समय के संदर्भ में भारतीय सविंधान ही लागू होता है क्योंकि सविंधान मे हर वर्ग जाति व हर धर्म के लोगों को अधिकार देता है। मनुस्मृति मे पक्षपात का बोलबाला होता था।
इसे उन्हें सुनना चाहिए जो मनुवादी चिल्लाते हैं
The interviewer is so so so annoying by constantly interrupting the guest. If he thinks he is so knowledgeable, then why did he invite the guest. A clear sign of a immature interviewer. Ruined the entire interview.
जब शूद्र को पढ़ने का अधिकार ही नहीं है तो कैसे ऊपर के वर्णों में जा सकता है?
Bina padhe likh diya itna
Vaidik Dharma me gurukul naam ka koi sakshya nhi hai
😂😂😂 ......
किसी भी शास्त्र का अध्ययन परम्परा प्राप्त आचार्यों के सान्निध्य में होता हैं, जो लोग ख़ुद Macaulay education system के प्रोडक्ट हैं वो कैसे किसी संस्कृत के ग्रंथ पर टिप्पणी कर सकते हैं l
वर्ण और जाति एक ही होती हैं और वर्ण इस जन्म में नहीं बदला जाता हैं l
तुम्हारी कोई परम्परा आदि काल का है ही नहीं। बुद्ध के पश्चात ही तुम लोगों ने अपना साम्राजवाद फैलाया है और उसे प्राचीन परंपरा का नाम दिया है। बौद्धिक ठग। तुमने अपने आरक्षण को धर्म और परंपरा का नाम दिया। तृष्णा से ग्रस्त लोगों ने ही धर्म और परंपरा का मुखौटा पहन कर अपना साम्राज्यवाद स्थापित किया है और अब पुनः उसी कार्य में लगे हुए हो। बरसाती मेंढक!
खूब पढ़लो नफरती किताब है,,, आज तक ना तो कोई ब्राह्मण शूद्र नहीं बना ना कोई शूद्र ब्राह्मण बना,,, मनुस्मृति मे लिखा है चाहे खाना फेकना पड़े लेकिन शूद्र को मत दो क्योंकि वह बलवान हो जाएगा
जब मनुष्यमृत्यू ईतना ही सबसे अच्क्षा था तो फिर वर्न बेवसथा कयों