मैं मुरीद हूं तेरा चाहने वाला हूं गालिब, मै तुझे तेरे अंजाम ओ आगाज़ में ढूंढता हूं...मुझे तोलता रहा तू लफ्जों में अपने, मै तुझे तेरे शायराना अल्फाज में ढूंढता हूं...शायरी का धर्म न ही मजहब है कोई,मंदिरों की घंटियों और मस्जिदों की नमाज़ में ढूंढता हूं...बीते हुए कल से आने वाले कल की भीड़ ऐ तालिब में, मै हर वर्क ए किताब में गालिब ऐ आज को ढूंढता हूं...मैंने बनते बिगड़ते देखा है लफ्जों का नसीब,उन लफ्ज़ों में अदीब ऐ मिजाज को ढूंढता हूं ...लोग पढ़ते हैं जिसे जोड़ कर अपने दर्द ऐ दिल से,तेरी कलम से निकले उस अंदाज़ को ढूंढता हूं।(अशोक सावल)
CHACHA YEH BOHI MUGAL HEI JINO NEI CRORO LOGO KA KATAL KIYA , JAB EN KA BURA BAQAT AYA TO YEH SHIRE BAN GYE , JAB ANGREJO NEI EN KEI NASALQUSI KEI JAISE YEH DUSRE KOMO KA KARTE THE .ESKA NAM DEKH LO “ MIRZA GALIB
Very Much Informative
Ghalib is my favorite Poet as He is Teacher of The Great Molana Altaf Hussain Hali
Shan Abbas Zaidi
مرزا غالب ❤👍🥭Mirza Ghalib
well done sir
Well done sir👍💖
Brilliant thank you
मैं मुरीद हूं तेरा चाहने वाला हूं गालिब, मै तुझे तेरे अंजाम ओ आगाज़ में ढूंढता हूं...मुझे तोलता रहा तू लफ्जों में अपने, मै तुझे तेरे शायराना अल्फाज में ढूंढता हूं...शायरी का धर्म न ही मजहब है कोई,मंदिरों की घंटियों और मस्जिदों की नमाज़ में ढूंढता हूं...बीते हुए कल से आने वाले कल की भीड़ ऐ तालिब में, मै हर वर्क ए किताब में गालिब ऐ आज को ढूंढता हूं...मैंने बनते बिगड़ते देखा है लफ्जों का नसीब,उन लफ्ज़ों में अदीब ऐ मिजाज को ढूंढता हूं ...लोग पढ़ते हैं जिसे जोड़ कर अपने दर्द ऐ दिल से,तेरी कलम से निकले उस अंदाज़ को ढूंढता हूं।(अशोक सावल)
Excellent, more so that it is Ghalib.
سورج کو آئینہ نہی چراغ دیکھنا کہتے ہیں
CHACHA YEH BOHI MUGAL HEI JINO NEI CRORO LOGO KA KATAL KIYA , JAB EN KA BURA BAQAT AYA TO YEH SHIRE BAN GYE , JAB ANGREJO NEI EN KEI NASALQUSI KEI JAISE YEH DUSRE KOMO KA KARTE THE .ESKA NAM DEKH LO “ MIRZA GALIB
मुझे आपसे बात करनी है आसिफ साहब, आप अपना नंबर इनायत करें