Bagadwal Dance, Urgam

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  • Опубліковано 25 лис 2024
  • देश और दुनियां में किसी भी लोक संस्कृति को दिलचस्प बनाने में लोक जीवन पद्धति के साथ ही लोक में प्रचलित गाथाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। उत्तराखंड में ऐसी ही गाथाओं के बीच प्रेम की राजुला-मालुशाही, तैड़ी-तैलगा और जीतू-भरणा की लोकगाथा प्रचलित है। जीतू-भरणा की लोकगाथा गढवाल क्षेत्र के लोक जीवन में इस कदर रची बसी है कि आज भी गढ़वाल के गावों में इस जोड़ी को लोग लोककला, आस्था और संगीत से जोड़ते हुए याद करते हैं। जिसका प्रमाण है कि यहां ग्रामीणों आज भी प्रतिवर्ष गांवों में बगड़वाल नृत्य आयोजित कर जीतू और भरणा के प्रेम के याद करते हैं।
    मान्यताओं के अनुसार जीतू गढ़वाल रियासत की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव का अधिपति था। व्यवसाय के रुप में उसकी जहां ताबें की खान थी। वहीं उसका व्यापार तिब्बत तक फैला था। लेकिन एक बार जब जीतू अपनी बहन सोबनी को मायके लेने के बहाने से भरणा को मिलने उसके ससुराल रैथल गया। तो इस दौरान रैथल जाते हुए संगीत प्रेमी जीतू जंगल में भरणा की याद में बांसुरी बजाने लगता है। उसकी बांसुरी की धुन पर मुग्ध होकर आंछरियां उसे अपने साथ ले जाने को आतुर थी। जिस पर जीतू ने स्वेच्छा से उनके साथ चलने का वचन दिया। उसके बचन के अनुसार आषाण माह की छः गते को रोपाई के समय आंछरियां उसे हल पर जोते गये बैलों के साथ अपने लोक ले गई। जिसके बाद उसके भाई की हत्या हो जाने पर परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा और जीतू ने अदृश्य रुप में परिवार की मदद की। इस पूरे घटना क्रम की जानकारी मिलने पर जीतू की शक्तियों को भांपकर गढ़वाल नरेश ने जीतू की गढ़वाल क्षेत्र में देवता के रुप में पूजा करने का ऐलान किया। जिसके बाद से आज तक गढ़वाल के गांवों में इस प्रेम गाथा को धार्मिक अनुष्ठान के रुप में प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है

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