स्वामी जी आपका ये ऋण हमारे उपर सदा रहेंगा आप जेसे वैदिक सन्यासी विद्वानों से हि भारत भारत है वरना यहाँ 50% मुर्दे लोग ओर40% दोगलेपन से भरे हुए हैं ओर 10% हि सच्चे देश हित धर्म संस्कृति को ठिक ठाक समझने वाले लोग हैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनाएं नमस्ते
वेदों में जो कहा गया है वह सब ठीक है! शंका इस बात की है कि वेदों मे कही ईश्वर संबोधन करते है, कहीं ऋषि, कहीं विद्वान विद्वान को,कही आम जनता को ऋषि संबोधन कर रहे हैं! इससे यह सिद्ध हो रहा है कि वेदों को ऋषियों ने समाधी मे जाकर देखा समझा फिर कहा और लिपिबद्ध किया, इस बात से ऐसा लगता है कि यह उच्च कोटि के महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित हुए ऐसा लगता है!🙏🙏🕉️🙏🙏
🎉 जगत की उत्पत्ति स्वप्न से हुई है इसलिए संसार स्वप्न है। अर्थात सत्य नहीं है और सत्य प्रतीत होता है। इसी का नाम संसार है। परमात्मा संसार में नहीं है परमात्मा की सत्ता से संसार चल रहा है लेकिन परमात्मा संसार से अलग है।😊 वेद कहते हैं न इति जैसे कुम्हार ने घड़ा बनाया लेकिन कुमार घड़े के अंदर नहीं है।
जैसे हमारे स्वप्न मे पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, दिशा, काल सब हमारा मन का ही उल्लास, विलास होता है वैसी ही सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म का ही विवर्त है | ब्रह्म ही जगत का निमित्त और उपादान कारण है
ब्रह्मा जी के चार सिर वाले स्वरूप को शाब्दिक अर्थ मे समझते हुए उसकी व्याख्या करना आपकी सीमित समझ को इंगित करता है। यदि हम संसार की समस्त पुस्तकालयों की समस्त पुस्तकों को रट भी लें तो भी जो ज्ञान हासिल होगा वह अज्ञानता के कैनवास मे एक छोटे बिन्दु के आकार का ही होगा। शेष कोरा कैनवास शेष रहेगा वह अज्ञानता ही होगा। अत: ज्ञान के स्थान पर अज्ञानता को enjoy किया जाए। क्योंकि अज्ञान अनन्त है और ज्ञान बहुत सीमित। वैसे भी अर्जित किया हुआ ज्ञान " ज्ञान " नही वरन महज सूचना है। अर्जित ज्ञान सत्य की खोज मे एक बड़ी बाधा है। अर्जित ज्ञान अतीत है। सत्य वर्तमान है। यानी ज्ञान (अर्थात सूचना से रहित)।
सिद्धांत तो यह है कि मेहनत से और पुरुस्कार में प्राप्त धन,घर आदि सदा के लिए उसका का हो जाता है। फिर से जीवात्मा को मोक्ष के आनंद के बाद जन्म, मृत्यु, भोग चक्र दोबारा किस सिद्धांत से, क्यूं दिया जाता है।
जी जी उसका ही होता है जीवित काल तक उस प्रकार मोक्ष काल में सभी उसका ही है । सीमित कर्म का फल असीमित काल के लिए संभव होने से नहीं रहता है ना जीव रखना चाहता है । ~ आचार्य प्रियेश
ईश्वर और ब्रह्मांड अनंत हैं तो इनका ज्ञान भी अनंत है और अनंत को जानना असंभव ही है मगर एक इशारा भर मिलता है कि सत्य क्या है और समझदार को इशारा काफी l ईश्वर आत्मा जीवात्मा पुनर्जन्म कर्मफल 26 तत्व और शून्य ये बड़ा और गूढ़ ज्ञान है और बहुत बारीक बुद्धि चाहिए l
नहीं जी, मुक्त आत्मा ईश्वर के आनंद को निरंतर प्रपट कर रहा है होस में है आनंद में है । ये प्रकृति एसे यहाँ पड़ा है ये विचारे जीवात्माएँ मूर्छित यहाँ एसे है जनता भी है । नमस्ते प्रदीप जी । धन्यवाद ~आचार्य प्रियेश -9306374959
जैसे हमारे स्वप्न मे पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, दिशा, काल सब हमारा मन का ही उल्लास, विलास होता है वैसी ही सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म का ही विवर्त है | ब्रह्म ही जगत का निमित्त और उपादान कारण है
भगवान सब जगह है लेकिन गंदगी परमात्मा को गंदा नही कर सकती जैसे सूर्य का प्रकाश गंदगी पर पड़ने से गंदा नही होता वैसे परमात्मा सब जगह होने पर भी प्रकृति से प्रभावित नही होता
नमस्ते आचार्य जी जो तीन चीजें अनादि है आत्मा, परमात्मा और प्रकृति। इनमें से आत्मा और परमात्मा के बारे में तो समझ आता है परंतु प्रकृति के बारे में उलझन है तो आचार्य जी कृपा हमें प्रकृति के बारे में समझाएं, उसमें क्या-क्या सम्मिलित है।
देवताओ को आर्य समाज मानता है लेकिन काल्पनिक देवताओ को नही असली देवताओ को मानता है। पुराण प्राचीन ग्रंथो को कहते है जिसमे वेद दर्शन वेदांग उपवेद है मानते है। आर्य समाज परमेश्वर की बनाई मूर्तियो को पूजता है ना कि स्वंय मनुष्य की बनाई मूर्तियो को
@@akhandbharatrajupaswan123 देवता दो प्रकार के होते है जड़ देवता और चेतन देवता जड़ मे अग्नि वायु जल देवता आते है उनको मानते है चेतन मे एक परमेश्वर देव और दूसरे माता पिता आचार्य अतिथि देवता है इनको मानते है हम
@@akhandbharatrajupaswan123 मेने मूर्ति पूजा पर आपको उत्तर दिया है ईश्वर की बनाई मूर्तिया पर्वत पहाड़ जल पृथ्वी आदि को मानते है। मनुष्य की बनाई मूर्तियो की ईश्वर के स्थान पर नही मानते है हम
Jay Shri Saint Rampalji Maharaj Jagat Guru
नमस्ते स्वामी जी आप ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहे
सादर प्रणाम एवं आभार स्वामी जी
पदार्थ सूक्ष्म तत्व परमात्मा आत्मा जीवात्मा ये सब और इनका ज्ञान मष्तिष्क को झकझोर देता है l
नमस्ते 🙏स्वामी जी।
ब्रह्म अव्यक्त सागर है
एक से अनेक बना।
💐🙏 ओ३म् 🙏💐 स्वामी जी सादर नमस्ते 💐🙏
Guru ji Sadar Namastey
स्वामी जी प्रणाम मैं नित्य शंका समाधान कार्य क्रम सुनती हूँ बहुत ही आनंद आता है मैं आर्य परिवार की हूँ ईश्वर आपकी दीर्घायु करे धन्यवाद
स्वामी जी नमस्ते आपकी विडिओ bar-bar देखने का मन करता है 28:43 28:46 28:47
स्वामी जी आपका ये ऋण हमारे उपर सदा रहेंगा आप जेसे वैदिक सन्यासी विद्वानों से हि भारत भारत है वरना यहाँ 50% मुर्दे लोग ओर40% दोगलेपन से भरे हुए हैं ओर 10% हि सच्चे देश हित धर्म संस्कृति को ठिक ठाक समझने वाले लोग हैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनाएं नमस्ते
100% राईट है.
ओउम् नमस्ते स्वामी जी
वेदों में जो कहा गया है वह सब ठीक है! शंका इस बात की है कि वेदों मे कही ईश्वर संबोधन करते है, कहीं ऋषि, कहीं विद्वान विद्वान को,कही आम जनता को ऋषि संबोधन कर रहे हैं! इससे यह सिद्ध हो रहा है कि वेदों को ऋषियों ने समाधी मे जाकर देखा समझा फिर कहा और लिपिबद्ध किया, इस बात से ऐसा लगता है कि यह उच्च कोटि के महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित हुए ऐसा लगता है!🙏🙏🕉️🙏🙏
Swami Ji Namaste Charan Sparsh
ओ३म् सादर नमस्ते जी।
धन्यवाद।
Ati sundar ji
🎉 जगत की उत्पत्ति स्वप्न से हुई है इसलिए संसार स्वप्न है। अर्थात सत्य नहीं है और सत्य प्रतीत होता है। इसी का नाम संसार है। परमात्मा संसार में नहीं है परमात्मा की सत्ता से संसार चल रहा है लेकिन परमात्मा संसार से अलग है।😊 वेद कहते हैं न इति
जैसे कुम्हार ने घड़ा बनाया लेकिन कुमार घड़े के अंदर नहीं है।
Very good video. Every scientist should read it.
सादर नमस्ते स्वामी जी
Super views of swamiji Vivakanand ji
कोटी कोटी नमन
स्वामी जी नमस्ते, आपको शत शत प्रणाम और बहुत बहुत धन्यवाद l बहुत अच्छी तरह सरल करके समझाया गया l
AR yasmaj 8:50 😊😅😮😢😢🎉😂❤❤
जैसे हमारे स्वप्न मे पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, दिशा, काल सब हमारा मन का ही उल्लास, विलास होता है वैसी ही सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म का ही विवर्त है | ब्रह्म ही जगत का निमित्त और उपादान कारण है
ब्रह्म जगत का निमित्त कारण है और प्रकृति उपादान कारण हैं
@@iabhishek_arya एकदम सही कहा
वाह वाह स्वामी जी मे धन्य हुआ आपके सम्पर्क में आकर
सब कुछ समन्वय कर्ना होगा, एक दो मन्त्रों से काम नहिं चलेगा ।
Gurudev ji ko koti koti Naman🙏🙏🙏🙏
तुम्हारा कल्याण हो वत्स 🙌🙌🙌🙌
ओ३म्
१५ः३० लेकिन आकाश तो पञ्च भौतिक की एक भाग है ।
अति उत्तम है।
आदर्श बिश्रोई आर्या।
Nice
ब्रह्मा जी के चार सिर वाले स्वरूप को शाब्दिक अर्थ मे समझते हुए उसकी व्याख्या करना आपकी सीमित समझ को इंगित करता है। यदि हम संसार की समस्त पुस्तकालयों की समस्त पुस्तकों को रट भी लें तो भी जो ज्ञान हासिल होगा वह अज्ञानता के कैनवास मे एक छोटे बिन्दु के आकार का ही होगा। शेष कोरा कैनवास शेष रहेगा वह अज्ञानता ही होगा। अत: ज्ञान के स्थान पर अज्ञानता को enjoy किया जाए। क्योंकि अज्ञान अनन्त है और ज्ञान बहुत सीमित। वैसे भी अर्जित किया हुआ ज्ञान " ज्ञान " नही वरन महज सूचना है। अर्जित ज्ञान सत्य की खोज मे एक बड़ी बाधा है। अर्जित ज्ञान अतीत है। सत्य वर्तमान है। यानी ज्ञान (अर्थात सूचना से रहित)।
परमात्मा क्यों है अस्तित्व मे और ये स्पेस भी क्यों ही है l
सिद्धांत तो यह है कि मेहनत से और पुरुस्कार में प्राप्त धन,घर आदि सदा के लिए उसका का हो जाता है।
फिर से जीवात्मा को मोक्ष के आनंद के बाद जन्म, मृत्यु, भोग चक्र दोबारा किस सिद्धांत से, क्यूं दिया जाता है।
जी जी उसका ही होता है जीवित काल तक उस प्रकार मोक्ष काल में सभी उसका ही है । सीमित कर्म का फल असीमित काल के लिए संभव होने से नहीं रहता है ना जीव रखना चाहता है । ~ आचार्य प्रियेश
ईश्वर और ब्रह्मांड अनंत हैं तो इनका ज्ञान भी अनंत है और अनंत को जानना असंभव ही है मगर एक इशारा भर मिलता है कि सत्य क्या है और समझदार को इशारा काफी l
ईश्वर आत्मा जीवात्मा पुनर्जन्म कर्मफल 26 तत्व और शून्य ये बड़ा और गूढ़ ज्ञान है और बहुत बारीक बुद्धि चाहिए l
स्वामी जी, आपको कोटि कोटि प्रणाम.
क्या मोक्ष वाले जीव भी प्रलय मे बेहोश रहते है?
नहीं, मोक्ष आनंद भोगते रहते है।
आपका धन्यवाद.
नहीं जी, मुक्त आत्मा ईश्वर के आनंद को निरंतर प्रपट कर रहा है होस में है आनंद में है । ये प्रकृति एसे यहाँ पड़ा है ये विचारे जीवात्माएँ मूर्छित यहाँ एसे है जनता भी है ।
नमस्ते प्रदीप जी । धन्यवाद
~आचार्य प्रियेश -9306374959
kindly make one playlist of satyaarthprakash 1 to last episode
ua-cam.com/play/PL46Bt-Y7lNqPv7l9WG7j6Wz-7OQ_kOgLX.html
मोक्ष में जाना क्या है स्वामी जी?कृपया समझाने की कृपा करें ।
ब्रम्ह से उत्पन्न होता तो वह ब्रम्ह नहीं रहता । कार्यको प्राप्त होता, किन्तु ब्रम्ह कुछ भि नहि कर्ता । यह नाम भि उसका नहिं है । बिडु ।
Branch isvar me kya Antar hai?
कर्तुम अकर्तुम अन्यथा कर्तम समर्थः । क्या हे भाइ ।
Swami ji ke sath iss live class pe judne ka kya madhyam hai krapaya bataiye.. 🙏🙏
aap kya karoge Aap to nirakar ko mante nahi ho Aap log to cha cha muhvale ko mante ho
आपने कहा कि भगवान सर्व्यापी है ,तो क्या आपका भगवान कीचड़ में भी है🤔
Tatti me b h🤣🤣
@Gaurav Singh Bahut acha..👏👏👏
जैसे हमारे स्वप्न मे पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, दिशा, काल सब हमारा मन का ही उल्लास, विलास होता है वैसी ही सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म का ही विवर्त है | ब्रह्म ही जगत का निमित्त और उपादान कारण है
जी हां,
भगवान सर्वव्यापक है और वह कीचड़ में भी रहता है, लेकिन उसमें पार्टिकल नहीं होने के कारण कीचड़ की गंदगी उसको (परमात्मा) को नहीं लगती ।
भगवान सब जगह है लेकिन गंदगी परमात्मा को गंदा नही कर सकती जैसे सूर्य का प्रकाश गंदगी पर पड़ने से गंदा नही होता वैसे परमात्मा सब जगह होने पर भी प्रकृति से प्रभावित नही होता
नमस्ते आचार्य जी
जो तीन चीजें अनादि है आत्मा, परमात्मा और प्रकृति।
इनमें से आत्मा और परमात्मा के बारे में तो समझ आता है परंतु प्रकृति के बारे में उलझन है तो आचार्य जी कृपा हमें प्रकृति के बारे में समझाएं, उसमें क्या-क्या सम्मिलित है।
Ram Krishna god nehi hai to kya too hai
Ji ve Mahapurush hai
Aur hum unhe bhagwan bhi keh skte hai
Bhagwan ka arth hota hai pujne yogya manushya
आर्य समाज का सब कुछ ठीक है बस पुराणों, देवताओं, मूर्ति पूजा को नहीं मानते है जो की गलत है
कृपया ऐसा न करें. इससे हिन्दू धर्म मे विकृति आने लगती है
देवताओ को आर्य समाज मानता है लेकिन काल्पनिक देवताओ को नही असली देवताओ को मानता है।
पुराण प्राचीन ग्रंथो को कहते है जिसमे वेद दर्शन वेदांग उपवेद है मानते है।
आर्य समाज परमेश्वर की बनाई मूर्तियो को पूजता है ना कि स्वंय मनुष्य की बनाई मूर्तियो को
@@Ram47988 वेद को मानने पे वेद भी देवताओं को मानता है फिर आर्य समाज देवताओं को काल्पनिक कैसे मानते है?? मूर्ति पूजा भी वैदिक है फिर उसका विरोध क्यों??
@@akhandbharatrajupaswan123 देवता दो प्रकार के होते है जड़ देवता और चेतन देवता
जड़ मे अग्नि वायु जल देवता आते है उनको मानते है
चेतन मे एक परमेश्वर देव और दूसरे माता पिता आचार्य अतिथि देवता है इनको मानते है हम
@@akhandbharatrajupaswan123 मेने मूर्ति पूजा पर आपको उत्तर दिया है ईश्वर की बनाई मूर्तिया पर्वत पहाड़ जल पृथ्वी आदि को मानते है।
मनुष्य की बनाई मूर्तियो की ईश्वर के स्थान पर नही मानते है हम
@@Ram47988 दोस्त तो क्या वायु, अग्नि आदि जड़ है??? चेतन देव नहीं है आर्य समाजियो के नज़र मे???
मोक्ष से तुम्हारा अर्थ किसी अन्य लोक को जाने से है शायद। मुझे ठीक नहीं लगता
गलत अर्थ है आपका
Aagya Ni hai murkh hai
Tum log nastik ho