श्री भक्ति प्रकाश भाग [857]**नाम की महिमा**(भावपूर्ण जप की महिमा)*

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  • Опубліковано 7 лют 2025
  • Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
    परम पूज्य डाक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
    ((1556))
    श्री भक्ति प्रकाश भाग [857]
    नाम की महिमा
    (भावपूर्ण जप की महिमा)
    देवर्षि ने जाकर परमात्मदेव को प्रणाम किया । मत्था टेका । बातचीत हुई ।
    कहा देवर्षि किधर से आ रहे हो, और किधर जाना है । शायद भगवान देवर्षि को भी अपने पास बहुत देर नहीं बिठाते ।
    आओ और चलते बनो । उनका काम ही चलते रहना है, अतएव अपने पास उन्हें बिठाते नहीं । किधर से आए हो, किधर जाना है । कहां दर्शनार्थ आया हूं । रास्ते में दो भक्त मिले थे । प्रभु उन्होंने प्रश्न पूछा है, वह आपकी सेवा में रख रहा हूं ।
    एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठा तपस्या कर रहा है अनेक वर्षों से । मैंने पूछा नहीं ।
    दूसरा इमली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ तपस्या कर रहा है । अनेक वर्ष बीत गए हैं। दोनों ने हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना की है, पूछा है, प्रभु क्या हमें भी कभी दर्शन होंगे ?
    भगवान श्री कहते हैं मुझे पता है दोनों किस प्रकार के तपस्वी हैं । किस प्रकार का उनका त्याग है, किस प्रकार की उनकी उपासना है। मुझे बहुत अच्छी तरह से बोध है । इतना ही कहना देवर्षि, इतनी जल्दी नहीं ।
    जिस जिस पेड़ के नीचे बैठे हैं, जितने-जितने पत्ते हैं उन पेड़ों पर, उतने वर्षों के बाद उम्मीद रखना । इमली के पेड़ के पत्ते आदमी गिन नहीं सकता । पीपल के पेड़ बाहर हैं । देखो कैसे फैले हुए हैं, इन के पत्तों को गिना नहीं जा सकता । इतने वर्षों के बाद भगवान ने आज कहा, दर्शन होने की संभावना है । होंगे, इतने वर्षों के बाद । देवर्षि ने, बेचारे ने, हिम्मत ही नहीं की वहां बैठने की । झट से प्रणाम किया और चलते बने । कौन कोई argue कर सकता है ।
    कौन कोई कह सकता है, कि प्रभु यह क्या कर रहे हो आप ? तनिक सोचो तो पीपल के पेड़ के पत्ते कितने और इमली के पेड़ के पत्ते कितने । इतने वर्षों के बाद । किसने यह हिसाब किताब देखा है । चरण छुए और चलते बने ।
    उसी रास्ते से निकले । दोनों ने रोका, पूछा- देवर्षि प्रणाम । क्या हमारी चर्चा वहां हुई ? हां हुई । क्या कहा है परमात्मा ने ।
    चुप कर गए उठ गए । मानो संकोच हुआ,
    ना जाने इसका हार्ट फेल हो जाए, किसका क्या हो जाए, यह चर्चा बताने योग्य नहीं है, परमात्मा ने क्या कहा है ।
    अतएव जाना चाहा तो उन्होंने रोका ।
    देवर्षि कुछ भी हो, हमारी चर्चा तो वहां हुई है ना । हां हुई है । तो फिर जो भगवान ने आदेश दिया है, मेहरबानी करके हमें
    बताओ । दोनों को बताया ।
    दोनों को बता कर, जो इमली के पेड़ के नीचे बैठा हुआ था, तनिक ऊपर झांककर देखा तो अनगिनत पत्ते । मानो अनंत वर्षों के बाद दर्शन होंगे । अतएव निराश, हताश होकर तो साधना, उपासना छोड़ कर तो चल
    पड़ा ।
    दूसरा जो था पीपल के पेड़ के नीचे बैठा हुआ, वह उतावला नहीं था । यह सुनकर कि इतने वर्षों के बाद परमात्मा ने कहा है, इतने वर्षों के बाद दर्शन होंगे, इस बात का अपार हर्ष है उसे । कम से कम परमात्मा ने यह तो कहा है की मुझे दर्शन होंगे‌ । खुशी के मारे, आनंद के मारे, भावविभोर होकर, आनंद विभोर होकर उसने नाचना शुरू कर दिया ।
    देवर्षि नारद इस नृत्य को देख रहे हैं । इस दृश्य को देख रहे हैं, निहार रहे हैं। मानो उनके अंदर भी, जैसे उसके अंदर प्रेम उमड़ा है, देवर्षि नारद के अंदर भी प्रेम का सागर उमड़ रहा होगा । यह भक्त अपने शरीर की सुध बुध भूल गया है । इधर गिरता है, उधर गिरता है । आंख से आंसू । वाह परमात्मा, वाह । तूने कमाल कर दी ।
    Date निश्चित कर दी । इतने वर्षों के बाद आप मिलोगे । मुझे निहाल हो रहा है । देवर्षि नारद ने अभी आंख बंद ही करी थी तो खोली । थोड़ी देर के बाद देखा तो भगवान श्री सामने खड़े हैं । देवर्षि ने प्रणाम किया । चरण छुए । कहा महाराज आपने तो कहा था, इतने वर्षों के बाद दर्शन दूंगा । आप अभी प्रकट हो गए हैं ।
    भगवान ने कहा -
    देवियों सज्जनों, देवर्षि उस वक्त की उपासना की शैली में और अब की उपासना की शैली में जमीन आसमान का अंतर है । भाव शून्य उपासना कर रहा था यह । अब इतनी ही देर की भाव सहित उपासना की है। प्रेम पूर्वक हृदय से उपासना करी है । देखो इस की क्या हालत है । इसे यह भी पता नहीं कि मैं इसके सामने खड़ा हूं । इतना मस्त हो गया हुआ है, इतना भाव में खो गया हुआ है। इसे अपने शरीर की सुध बुध नहीं, इसे मेरी सुध बुध नहीं, कि मैं इसके सामने इस वक्त खड़ा हूं, देखूं मैं दर्शन करूं ।
    जिसके दर्शनों के लिए इतना कुछ किया है, इतने वर्षों तक तपस्या की है, उसके दर्शन करने को यह तैयार नहीं । यह मेरे प्रेम में इतना खोया हुआ है । अतएव मैं रह ना सका। अतएव मैं उसी वक्त बैकुंठ छोड़कर इसके पास तत्काल आ गया, इसके प्रेम को देखकर ।
    भगवान श्री बात ही कर रहे थे तो देवर्षि नारद ने भी प्रेम विभोर होकर नाचना शुरू कर दिया । अब दो व्यक्ति नाच रहे हैं ।
    भक्त भी नाच रहा है, और देवर्षि नारद भी नाच रहे हैं । इनको देखकर तो भगवान ने भी नाचना शुरू कर दिया । तीनों ही नाच रहे हैं । मानो एक दूसरे का हाथ पकड़कर तो नाच रहे है । सोचो, कैसी अद्भुत शांति मिली होगी भक्त को, कैसी अद्भुत शांति मिली होगी देवर्षि नारद को, कि भगवान श्री दोनों के हाथ पकड़कर तो उनके साथ नाच रहे हैं। यह किसकी महिमा है ? भाव प्रधानता की महिमा है, प्रेम की महिमा है ।
    यह मार्ग हमारा देवियों सज्जनों भाव शून्यता का नहीं है । भाव शून्यता अर्थात जलाना और भाव सहित उपासना करना अर्थात रो-रोकर गिड़गिड़ा कर परमात्मा को पुकारते रहना ।
    हृदय से प्रेम निकले, मानो परमात्मा के साथ अनन्य प्रेम शब्द प्रयोग करते हैं । अनन्य प्रेम मानो परमात्मा के अतिरिक्त और किसी के साथ प्रीति नहीं है।

КОМЕНТАРІ • 3

  • @anuvij6861
    @anuvij6861 3 години тому

    Ram Ram ji 🙏

  • @princessmanasvi15
    @princessmanasvi15 4 години тому

    राम राम जी

  • @Narinderkashyap1
    @Narinderkashyap1 4 години тому

    गुरु जी को करिए वन्दना भाव से बारम्बार नाम सुनौका से किया जिस ने भव से पार