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Shree Ram Sharnam
भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है
Shree Ram Sharnam
भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है-स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है। दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (828)**मन का प्रबोधन**भाग-४*@bhaktimeshakti2281
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1526))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (828)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-४*
एक साधक ने अपनी पीड़ा गुरु महाराज से व्यक्त की है । कहा वत्स मेरे मित्र हैं, एक अमुक स्थान पर । उनके पास जाओ । उनकी दिनचर्या देखना । हो सकता है तुम्हें कोई मार्ग मिल जाए, तुम्हें कोई रास्ता दिखाई दे जाए । यह साधक चला गया है । जाकर क्या देखता है वह मित्र कोई साधु नहीं है । एक सामान्य व्यक्ति है । एक सराय में चौकीदार । मानो सिर मुंडवाया नहीं है, वस्त्र बदले नहीं है, बाल बढ़ाए हुए नहीं है, साधुता का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता, लेकिन देखने से यह साधक है, अतएव दृष्टि एक साधक की है । झट से देखा बहुत सरल है । किसी प्रकार का कोई घमंड इत्यादि नहीं है । बहुत विनम्र है। प्रभावित हुआ ।
आज दिनचर्या देखी है। जितने भी सारे बर्तन हैं, उन्हें इकट्ठा किया । रात को सोने से पहले उन सारे बर्तनों को एक-एक करके मांजता
है । वह भी सो गए । साधक भी सो गया । सुबह उनके साथ ही लगभग जग गया है, क्यों ? दिनचर्या देखनी थी ।
क्या देखता है जिन बर्तनों को रात को मांजा था, उन्हीं बर्तनों को सुबह फिर धो रहा है । एक दिन व्यतीत हुआ, दो दिन व्यतीत हुए, तीन दिन व्यतीत हुए । देखा कि इनका routine यही है । इनकी दिनचर्या में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है । अतएव बहुत निराश होकर यह व्यक्ति, इन के अंदर कोई ज्ञान का चिन्ह नहीं, कोई भक्ति का चिन्ह नहीं, इनसे मैं क्या सीखूंगा, क्या देखूंगा । अतएव बहुत निराश साधक वापस लौटा है ।
जाकर गुरु महाराज को प्रणाम करता है । कहा महाराज किसके पास मुझे भेज दिया । दिन में ऐसा करते हैं । सुबह उठकर ऐसा करते हैं । बस इसके अतिरिक्त कोई उनकी दूसरी दिनचर्या, मैंने कोई उन्हें जाप करते नहीं देखा । ध्यान में बैठे नहीं देखा । उन्हें स्वाध्याय करते नहीं देखा । अपना नाक मुंह सिकोड़ते नहीं देखा । मैंने ऐसा कुछ करते नहीं देखा उनको । आपने कैसे आदमी के पास मुझे भेज दिया ।
कहा बेटा तूने देखा जरूर है, लेकिन तूने समझा नहीं है । गुरुओं की सीधी साधी बाते, संतों की सीधी साधी बातें, तूने देखा जरूर
है, लेकिन समझा नहीं है । आप समझाइए महाराज, वह क्या समझाना चाहते थे ?
कहते हैं बेटा - वह समझाने चाहते हैं हर साधक को रोज रात को अपना यह पात्र रोज साफ करना चाहिए । मन रूपी पात्र इसे रोज मांजना चाहिए । मांज कर साफ करके रखे । रात्रि को जो इस पर धूल पड़ती है, पड़ती है ना, उसे सुबह उठकर तो फिर धो डाले । यह मन जितना साफ रहेगा,
वत्स उतनी शांति मिलेगी ।
रोगी मन ही भटकता है । रोगी व्यक्ति ही अपने रोग की चर्चा करेगा । जो स्वस्थ है उसे क्या चर्चा करनी है । दुखी ही चर्चा करेगा ।
जो सुखी है, वह क्या चर्चा करेगा । उसे कोई चर्चा का विषय ही नहीं है । जो रोगी है वह अपने रोग की चर्चा करेगा, पीड़ा की चर्चा करेगा, अपने इलाज की चर्चा करेगा । उस अस्पताल गया, यह चर्चा करेगा । वह चर्चा करेगा । इसी को भटकना कहा जाता है । जो रोगी नहीं है, निरोग है जो, स्वस्थ है, सुखी है, वह किस बात की चर्चा करेगा ?
दुखी व्यक्ति है तो अपने दुख की चर्चा करेगा, अपनी समस्या का समाधान
चाहेगा । कहां जाए इत्यादि इत्यादि ।
इसे भटकना कहा जाता है । जिसका मन साधक जनो निरोग हो गया है, जिसका मन स्वस्थ हो गया है, पवित्र हो गया है, वह भटकता नहीं है । पवित्र, निरोग, शुद्ध यह सारे के सारे शब्द जो मन के लिए प्रयोग किए जाते हैं । इनका अभिप्राय साधक जनों इतना ही है, यह मन परमात्मा के साथ जुड़ चुका हुआ है । इसके अतिरिक्त इस संसार में कोई दूसरा साधन दिखाई नहीं देता, इसके पवित्रीकरण का ।
इसे संसार से हटाना चाहते हो तो एक ही साधन है, इसे परमात्मा के साथ आपको लगाना होगा ।
“बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
बुल्ला शाह एक अनपढ़ महान संत क्या कहता है
“ओ बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
यहां से उखाड़िएगा उसे, संसार से उखाड़िएगा और उसे परमात्मा के साथ जोड़ दीजिएगा । बस इतना ही कार्य करने वाला है । सुनने में बहुत आसान है । जीवन भी बीत जाए देवियो सज्जनो तो भी महंगे नहीं है । जिसने मन पर जीत कर ली, उसने संसार जीत लिया । वह सम्राटों का सम्राट बन गया । जिसका मन पर नियंत्रण नहीं है, वह दासों का दास होगा । अमीर होते हुए भी वह कंगाल होगा । बहुत सुखी आपको दिखाई देता हुआ भी वह अंदर से दुखी ही होगा ।
इसे बकरा भी कहा जाता है बकरा । एक ही आवाज निकालता है-मैं मैं मैं ।
साधक जनो मन में, और मैं मैं में कोई अंतर नहीं है । मन में और माया में कोई अंतर नहीं है । यह सारे के सारे खेल इस खिलाड़ी मन के हैं । स्वामी जी महाराज ऐसा कहते हैं, यह सारे के सारे खेल, दुख सुख, जो कुछ भी जीवन में आता है, यह सब इस मन के खेल है । आपको परमात्मा से जोड़ता है, या परमात्मा से विमुख करता है । यह सब मन का खेल है । आपको हर्षित करता है, या आपको प्रसन्न करता है, या आपको दुखी करता है, शोकित करता है । यह सब मन के खेल है और कुछ नहीं । जो कुछ इसे प्रिय लगता है वह सुखदाई है, जो कुछ इसे अप्रिय लगता है, वह दुखदाई है । सब खेल इसी के हैं ।
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1526))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (828)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-४*
एक साधक ने अपनी पीड़ा गुरु महाराज से व्यक्त की है । कहा वत्स मेरे मित्र हैं, एक अमुक स्थान पर । उनके पास जाओ । उनकी दिनचर्या देखना । हो सकता है तुम्हें कोई मार्ग मिल जाए, तुम्हें कोई रास्ता दिखाई दे जाए । यह साधक चला गया है । जाकर क्या देखता है वह मित्र कोई साधु नहीं है । एक सामान्य व्यक्ति है । एक सराय में चौकीदार । मानो सिर मुंडवाया नहीं है, वस्त्र बदले नहीं है, बाल बढ़ाए हुए नहीं है, साधुता का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता, लेकिन देखने से यह साधक है, अतएव दृष्टि एक साधक की है । झट से देखा बहुत सरल है । किसी प्रकार का कोई घमंड इत्यादि नहीं है । बहुत विनम्र है। प्रभावित हुआ ।
आज दिनचर्या देखी है। जितने भी सारे बर्तन हैं, उन्हें इकट्ठा किया । रात को सोने से पहले उन सारे बर्तनों को एक-एक करके मांजता
है । वह भी सो गए । साधक भी सो गया । सुबह उनके साथ ही लगभग जग गया है, क्यों ? दिनचर्या देखनी थी ।
क्या देखता है जिन बर्तनों को रात को मांजा था, उन्हीं बर्तनों को सुबह फिर धो रहा है । एक दिन व्यतीत हुआ, दो दिन व्यतीत हुए, तीन दिन व्यतीत हुए । देखा कि इनका routine यही है । इनकी दिनचर्या में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है । अतएव बहुत निराश होकर यह व्यक्ति, इन के अंदर कोई ज्ञान का चिन्ह नहीं, कोई भक्ति का चिन्ह नहीं, इनसे मैं क्या सीखूंगा, क्या देखूंगा । अतएव बहुत निराश साधक वापस लौटा है ।
जाकर गुरु महाराज को प्रणाम करता है । कहा महाराज किसके पास मुझे भेज दिया । दिन में ऐसा करते हैं । सुबह उठकर ऐसा करते हैं । बस इसके अतिरिक्त कोई उनकी दूसरी दिनचर्या, मैंने कोई उन्हें जाप करते नहीं देखा । ध्यान में बैठे नहीं देखा । उन्हें स्वाध्याय करते नहीं देखा । अपना नाक मुंह सिकोड़ते नहीं देखा । मैंने ऐसा कुछ करते नहीं देखा उनको । आपने कैसे आदमी के पास मुझे भेज दिया ।
कहा बेटा तूने देखा जरूर है, लेकिन तूने समझा नहीं है । गुरुओं की सीधी साधी बाते, संतों की सीधी साधी बातें, तूने देखा जरूर
है, लेकिन समझा नहीं है । आप समझाइए महाराज, वह क्या समझाना चाहते थे ?
कहते हैं बेटा - वह समझाने चाहते हैं हर साधक को रोज रात को अपना यह पात्र रोज साफ करना चाहिए । मन रूपी पात्र इसे रोज मांजना चाहिए । मांज कर साफ करके रखे । रात्रि को जो इस पर धूल पड़ती है, पड़ती है ना, उसे सुबह उठकर तो फिर धो डाले । यह मन जितना साफ रहेगा,
वत्स उतनी शांति मिलेगी ।
रोगी मन ही भटकता है । रोगी व्यक्ति ही अपने रोग की चर्चा करेगा । जो स्वस्थ है उसे क्या चर्चा करनी है । दुखी ही चर्चा करेगा ।
जो सुखी है, वह क्या चर्चा करेगा । उसे कोई चर्चा का विषय ही नहीं है । जो रोगी है वह अपने रोग की चर्चा करेगा, पीड़ा की चर्चा करेगा, अपने इलाज की चर्चा करेगा । उस अस्पताल गया, यह चर्चा करेगा । वह चर्चा करेगा । इसी को भटकना कहा जाता है । जो रोगी नहीं है, निरोग है जो, स्वस्थ है, सुखी है, वह किस बात की चर्चा करेगा ?
दुखी व्यक्ति है तो अपने दुख की चर्चा करेगा, अपनी समस्या का समाधान
चाहेगा । कहां जाए इत्यादि इत्यादि ।
इसे भटकना कहा जाता है । जिसका मन साधक जनो निरोग हो गया है, जिसका मन स्वस्थ हो गया है, पवित्र हो गया है, वह भटकता नहीं है । पवित्र, निरोग, शुद्ध यह सारे के सारे शब्द जो मन के लिए प्रयोग किए जाते हैं । इनका अभिप्राय साधक जनों इतना ही है, यह मन परमात्मा के साथ जुड़ चुका हुआ है । इसके अतिरिक्त इस संसार में कोई दूसरा साधन दिखाई नहीं देता, इसके पवित्रीकरण का ।
इसे संसार से हटाना चाहते हो तो एक ही साधन है, इसे परमात्मा के साथ आपको लगाना होगा ।
“बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
बुल्ला शाह एक अनपढ़ महान संत क्या कहता है
“ओ बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
यहां से उखाड़िएगा उसे, संसार से उखाड़िएगा और उसे परमात्मा के साथ जोड़ दीजिएगा । बस इतना ही कार्य करने वाला है । सुनने में बहुत आसान है । जीवन भी बीत जाए देवियो सज्जनो तो भी महंगे नहीं है । जिसने मन पर जीत कर ली, उसने संसार जीत लिया । वह सम्राटों का सम्राट बन गया । जिसका मन पर नियंत्रण नहीं है, वह दासों का दास होगा । अमीर होते हुए भी वह कंगाल होगा । बहुत सुखी आपको दिखाई देता हुआ भी वह अंदर से दुखी ही होगा ।
इसे बकरा भी कहा जाता है बकरा । एक ही आवाज निकालता है-मैं मैं मैं ।
साधक जनो मन में, और मैं मैं में कोई अंतर नहीं है । मन में और माया में कोई अंतर नहीं है । यह सारे के सारे खेल इस खिलाड़ी मन के हैं । स्वामी जी महाराज ऐसा कहते हैं, यह सारे के सारे खेल, दुख सुख, जो कुछ भी जीवन में आता है, यह सब इस मन के खेल है । आपको परमात्मा से जोड़ता है, या परमात्मा से विमुख करता है । यह सब मन का खेल है । आपको हर्षित करता है, या आपको प्रसन्न करता है, या आपको दुखी करता है, शोकित करता है । यह सब मन के खेल है और कुछ नहीं । जो कुछ इसे प्रिय लगता है वह सुखदाई है, जो कुछ इसे अप्रिय लगता है, वह दुखदाई है । सब खेल इसी के हैं ।
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (827)**मन का प्रबोधन**भाग-३*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1525)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (827)* *मन का प्रबोधन* *भाग-३* बहुत-बहुत धन्यवाद है प्रभु । एक निवेदन है साधक जनों, कल शाम इंदौर से दिल्ली साधना सत्संग में काफी नाम कटे हैं, अतएव आप सबसे निवेदन है, जो अभी तक साधना सत्संग हरिद्वार नहीं गए, या जिन्हें गए हुए बहुत देर हो गई है, या जिनके नाम दूसरे सत्संग में स्...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (826)**मन का प्रबोधन**भाग-२* @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1524)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (826)* *मन का प्रबोधन* *भाग-२* एक संत आज सत्संग में रुमाल लेकर गए हैं, और सभी से पूछते हैं; ऐसे करके बच्चो बताओ यह क्या है ? सभी ने कहा गुरु महाराज रुमाल है । किस काम आता है ? सभी ने बताया इस काम के लिए आता है, मु साफ करना हो, हाथ साफ करने हो, पसीना आ गया है, उसे साफ करना हो,...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (825)**मन का प्रबोधन**भाग-१*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1523)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (825)* *मन का प्रबोधन* *भाग-१* धुन : रम जा, रम जा, रम जा मनवा रम जा अपने राम में, रम जा, रम जा, रम जा मनवा रम जा अपने राम में ।। *पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने आज साधक जनो मन के प्रबोधन का प्रसंग समाप्त कर लिया है । मन को साधक जनो कोई बकरा कहता है, कोई घोड़ा कहता है, कोई दर्प...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (824)**ईर्ष्या एवं अभिमान**भाग- ८*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1522)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (824)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग- ८* आज साधकजनो एक अंतिम प्रयास उस महिला ने किया है । आजकल polyclinics है, multispeciality clinics हैं, कई लोगों को उसके रोग का पता है । बेचारी जगह जगह भटक रही है । लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ । आज ऐसे क्लीनिक में गई है डॉक्टरों का एक pan...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (823)**ईर्ष्या एवं अभिमान**भाग- ७*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1521)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (823)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग- ७* *जिन समस्याओं के लिए हम इधर उधर भटकते फिरते हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर, कभी किसी फकीर के पास, कभी किसी दरगाह पर, कभी किसी संत के पास, कभी किसी संत के पास, कभी दिल्ली तो कभी वृंदावन, कभी ऋषिकेश तो कभी हरिद्वार, कभी बालाजी । जहां-जहां ...
*नव वर्ष नूतन वर्ष की हार्दिक बधाई मंगलकामनाए एवं शुभकामनाएं*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 *नव वर्ष नूतन वर्ष की हार्दिक बधाई मंगलकामनाए एवं शुभकामनाएं* परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से नूतन वर्ष का शुभारंभ होता है । आप सब को बहुत बहुत बधाई देता हूं । शुभ एवं मंगलकामनाएं | आप सब यहां पधारे हैं । मैं आप सब के दर्शन करके कृतार्थ हुआ । परमेश्वर आपके दर्शनों का कितना पुण्य मुझे देता है, यह उसकी महती कृपा है मेरे ऊपर | बहुत दया करते हैं ...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (822)**ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग-६* @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1520)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (822)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग-६* कल की चर्चा, वह महिला, वह रोहिणी, जिसका मु खराब हो गया हुआ था, अपने भाई के कहने से उसने सिमरन एवं सेवा का सहारा लिया है । गुरु महाराज एक आश्रम बना रहे हैं । उसे वहां कहा है आने के लिए । तन से, मन से, धन से, इस स्थान की सेवा कर । उस बच्ची ने ऐसा...
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (821)**ईर्ष्या एवं अभिमान**भाग - ५*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1519)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (821)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग - ५* सुना, बेटा आया है । माता पिता ने इतने वर्षों के बाद, सारे के सारे परिवार के सदस्य मिलने के लिए गए हैं, देखने के लिए गए हैं । इतने वर्षों के बाद बेटा कितना बड़ा हो गया है । यह भिक्षुक life, यह सन्यासी life, कैसी होगी । क्या उसने बाल बढ़ाए हुए ...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (820)**ईर्ष्या एवं अभिमान**भाग - ४*@bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1518)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (820)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *भाग - ४* कल साधक जनों इस वक्त काठमांडू में श्री राम शरणम् का उद्घाटन था । सुबह 5:00 बजे उन्होंने हवन का शुभारंभ कर दिया था । सब कुछ उन्होंने अपनी विधि के अनुसार किया । 11 पंडित बुलाए हुए थे । सामान्यतया और स्थानों पर एक ही पंडित होते हैं । इन्होंने 11...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (819)**ईर्ष्या एवं अभिमान**संत ज्ञानेश्वर* @bhaktimeshakti2281
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Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1517)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (819)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *संत ज्ञानेश्वर* संत दयालु हुए हैं, कृपालु हुए हैं, जो अभिमान पर चोट मारे । वह सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता । वह आपका परम हितकारी होगा । तभी वह आपके अभिमान पर चोट मारकर तो आपके अंदर का अभिमान बाहर निकालने की चेष्टा करेगा । संत ज्ञानेश्वर आज ऐसे ही दयाल...
श्री स्वामी जी महाराज जी नाम की महिमा अपरम्पार बताते हैं। @bhaktimeshakti2281
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श्री स्वामी जी महाराज जी नाम की महिमा अपरम्पार बताते हैं। (1) 2- नाम जपना और नाम की महिमा को समझना दो अलग बातें हैं । 3- नाम की कमाई को केवल संचित ही नहीं करना , इससे सद्गुण अपनाने हैं और दुर्गुण त्यागने हैं। 4- कलियुग किस प्रकार से संतों पर अपना प्रभाव डालता है । संतों का अपमान कलियुग की ही करनी है ।। 🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏 Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (818)**ईर्ष्या एवं अभिमान**सिद्ध चांगदेव**भाग-२*@bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (817)**ईर्ष्या एवं अभिमान**सिद्ध चांगदेव**भाग-१*@bhaktimeshakti2281
Переглядів 357День тому
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 परम पूज्य डॉ विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से ((1515)) *श्री भक्ति प्रकाश भाग (817)* *ईर्ष्या एवं अभिमान* *सिद्ध चांगदेव* *भाग-१* ईर्ष्या के अंतर्गत सिद्ध चांगदेव की एवं संत ज्ञानेश्वर की चर्चा चल रही थी । सिद्धियों का प्रदर्शन करने के लिए, संत ज्ञानेश्वर को नीचा दिखाने के लिए, चांगदेव जी प्रयासरत हैं । ईर्ष्या क्या करती है, यह कल आप जी से अर्ज की थी । ईर्...
आज बड़े दिन की हार्दिक बधाई मंगलकामनाए एवंं शुभकामनाएंपरम @bhaktimeshakti2281
Переглядів 1,5 тис.День тому
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281 आज बड़े दिन की हार्दिक बधाई मंगलकामनाए एवंं शुभकामनाएं परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से कोटिशय प्रणाम है देवियो सज्जनो । आप सब के श्री चरणों में असंख्य बार चरण वंदना । बहुत बड़ा दिन है आज । सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं, शुभकामनाएं मंगलकामनाएं । पिछले रविवार की चर्चा को और आगे जारी रखते हैं । गीता जी के संदेश, अमर संदेश की चर्चा चल रही...
श्री भक्ति प्रकाश भाग (816)वचन के साधन (वाणी की महत्ता)**भाग-९*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (816)वचन के साधन (वाणी की महत्ता) भाग-९*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (815)**वचन के साधन (वाणी की महत्ता)**भाग-८*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (815) वचन के साधन (वाणी की महत्ता) भाग-८*@bhaktimeshakti2281
प्रवचन : गुरुकृपा पूर्णरूप से किन्हें मिल सकती है?* @bhaktimeshakti2281
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प्रवचन : गुरुकृपा पूर्णरूप से किन्हें मिल सकती है?* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (814)**वचन के साधन (वाणी की महत्ता)**भाग-७*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (814) वचन के साधन (वाणी की महत्ता) भाग-७*@bhaktimeshakti2281
प्रभु का विस्मरण ही सबसे बड़ी विपत्ति**(सि्मरन की तीन श्रेणियों की भी चर्चा )@bhaktimeshakti2281
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प्रभु का विस्मरण ही सबसे बड़ी विपत्ति (सि्मरन की तीन श्रेणियों की भी चर्चा )@bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (813)**वचन के साधन (पिशुनता एवं ईर्ष्या)**भाग ६*@bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (813) वचन के साधन (पिशुनता एवं ईर्ष्या) भाग ६*@bhaktimeshakti2281
*प्रवचन : कोई भी विपत्ति परमात्मा से बड़ी नहीं !*@bhaktimeshakti2281
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*प्रवचन : कोई भी विपत्ति परमात्मा से बड़ी नहीं !*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग(812)वचन के साधन वाणी की महत्ता)पिशुनता एवं ईर्ष्याभाग-५@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग(812)वचन के साधन वाणी की महत्ता)पिशुनता एवं ईर्ष्याभाग-५@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (811)**वचन के साधन (वाणी की महत्ता)**भाग ४*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (811) वचन के साधन (वाणी की महत्ता) भाग ४*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (810)**वचन के साधन (वाणी की महत्ता)**भाग-३*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (810) वचन के साधन (वाणी की महत्ता) भाग-३*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (809)* *वचन के साधन**भाग-२* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (809)* *वचन के साधन भाग-२* @bhaktimeshakti2281
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (808)* *वचन के साधन**भाग-१* @bhaktimeshakti2281
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (808)* *वचन के साधन भाग-१* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (807)**ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।**भाग- १२* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (807) ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री। भाग- १२* @bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (806)**ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।**भाग- ११*@bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (806) ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री। भाग- ११*@bhaktimeshakti2281
श्री भक्ति प्रकाश भाग (805)**ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री।**भाग- १०* @bhaktimeshakti2281
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श्री भक्ति प्रकाश भाग (805) ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्री। भाग- १०* @bhaktimeshakti2281
Ram ram ji 🙏
Jai Jai ram ji jai guru dev ji
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji❤
I can help crying .Maa ki kripa bana Rahe .Sadguru ki kripa sab par bani rahe❤
Jay guru dev
Namo Namo GURU JIII 🙏🏻
RAM RAM KHAIE SADHA SUKEHE RAHE RAM RAM RAM KHAIE SADHA SUKEHE RAHE RAM RAM RAM KHAIE SADHA SUKEHE RAHE RAM JAI SHRI 🙏🏻 SITARAM JI KI 🙏🏻
जय जय राम जी 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ramramji❤❤❤
Ram Ram ji 🙏
Ram ram ji
Ram Ram ji 🙏
Wah
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🎉🎉🎉 Jai Sri Gurudev 🎉🎉🎉
Ram Ram ji 🙏
Jai gurudev ji Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
कोटि कोटि नमन मेरे गुरुदेव जी🙏🙏 राम राम जी🙏🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ❤❤
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram Ji🙏
Ram Ram ji 🙏
जय जय राम
Ram Ram ji 🙏
Jay guru dev
Ram Ram ji 🙏
राम राम जी सबको जय गुरुदेव
Ram Ram ji 🙏
Jai Jai Ram
Ram Ram ji 🙏
Jay guru dev
Ram Ram ji 🙏
Jai Jai Gurudev Ji 🙏 🌷
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ❤
Ram Ram ji 🙏
Jai Shree Ram 🙏 Jai Guruji Maharaj 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏 sbko Ram Ram 🙏
Ram Ram ji 🙏
Jai Shri Ram ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram ram🙏 maharaj ji
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji
Jay guru dev
Ram Ram ji 🙏
राम
Ram Ram ji 🙏
❤Ram Ram ji
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Jaigurudavjiramramji❤❤❤
Ram Ram ji 🙏
Jai gurudev Jai jai gurudev ji 🙏🙏
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
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Ram Ram ji 🙏
Koti koti barnmaskar gurudev bhagwan
Ram Ram ji 🙏
राम राम जी🙏🙏
Ram Ram ji 🙏
कोटि कोटि नमन मेरे गुरुदेव जी🙏🙏 राम राम जी🙏🙏
Ram Ram ji 🙏
Jai jai gurudev ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Jai jai gurudev ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Jai Shri Ram Sab Ko Ram Ram Ji Vpo Tibber Gsp Pb Ravi
Ram Ram ji 🙏
Ram ram ji 🙏
Ram Ram ji 🙏
Jai ho gurudev ji ram ram
Ram Ram ji 🙏
Namo namah shree Gurudev tumko namo namah, namo namah shree maharaj ji aap ko namo namah 🙏🙏
Ram Ram ji 🙏
Jay guru dev
Ram Ram ji 🙏
Ram Ram Param Guru Jai Jai Ram
Ram Ram ji 🙏
पूरे वर्ष नवंबर मास की प्रतिक्षा रहती है क्युंकि जालंधर में करुणामयी माँ के दर्शन होते हैँ.
Ram Ram ji 🙏