Bhakti me Shakti
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*श्री भक्ति प्रकाश भाग (828)**मन का प्रबोधन**भाग-४*@bhaktimeshakti2281
Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
परम पूज्य डॉक्टर विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1526))
*श्री भक्ति प्रकाश भाग (828)*
*मन का प्रबोधन*
*भाग-४*
एक साधक ने अपनी पीड़ा गुरु महाराज से व्यक्त की है । कहा वत्स मेरे मित्र हैं, एक अमुक स्थान पर । उनके पास जाओ । उनकी दिनचर्या देखना । हो सकता है तुम्हें कोई मार्ग मिल जाए, तुम्हें कोई रास्ता दिखाई दे जाए । यह साधक चला गया है । जाकर क्या देखता है वह मित्र कोई साधु नहीं है । एक सामान्य व्यक्ति है । एक सराय में चौकीदार । मानो सिर मुंडवाया नहीं है, वस्त्र बदले नहीं है, बाल बढ़ाए हुए नहीं है, साधुता का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता, लेकिन देखने से यह साधक है, अतएव दृष्टि एक साधक की है । झट से देखा बहुत सरल है । किसी प्रकार का कोई घमंड इत्यादि नहीं है । बहुत विनम्र है। प्रभावित हुआ ।
आज दिनचर्या देखी है। जितने भी सारे बर्तन हैं, उन्हें इकट्ठा किया । रात को सोने से पहले उन सारे बर्तनों को एक-एक करके मांजता
है । वह भी सो गए । साधक भी सो गया । सुबह उनके साथ ही लगभग जग गया है, क्यों ? दिनचर्या देखनी थी ।
क्या देखता है जिन बर्तनों को रात को मांजा था, उन्हीं बर्तनों को सुबह फिर धो रहा है । एक दिन व्यतीत हुआ, दो दिन व्यतीत हुए, तीन दिन व्यतीत हुए । देखा कि इनका routine यही है । इनकी दिनचर्या में किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है ‌। अतएव बहुत निराश होकर यह व्यक्ति, इन के अंदर कोई ज्ञान का चिन्ह नहीं, कोई भक्ति का चिन्ह नहीं, इनसे मैं क्या सीखूंगा, क्या देखूंगा । अतएव बहुत निराश साधक वापस लौटा है ।
जाकर गुरु महाराज को प्रणाम करता है । कहा महाराज किसके पास मुझे भेज दिया । दिन में ऐसा करते हैं । सुबह उठकर ऐसा करते हैं । बस इसके अतिरिक्त कोई उनकी दूसरी दिनचर्या, मैंने कोई उन्हें जाप करते नहीं देखा । ध्यान में बैठे नहीं देखा । उन्हें स्वाध्याय करते नहीं देखा । अपना नाक मुंह सिकोड़ते नहीं देखा । मैंने ऐसा कुछ करते नहीं देखा उनको । आपने कैसे आदमी के पास मुझे भेज दिया ।
कहा बेटा तूने देखा जरूर है, लेकिन तूने समझा नहीं है । गुरुओं की सीधी साधी बाते, संतों की सीधी साधी बातें, तूने देखा जरूर
है, लेकिन समझा नहीं है । आप समझाइए महाराज, वह क्या समझाना चाहते थे ?
कहते हैं बेटा - वह समझाने चाहते हैं हर साधक को रोज रात को अपना यह पात्र रोज साफ करना चाहिए । मन रूपी पात्र इसे रोज मांजना चाहिए । मांज कर साफ करके रखे । रात्रि को जो इस पर धूल पड़ती है, पड़ती है ना, उसे सुबह उठकर तो फिर धो डाले । यह मन जितना साफ रहेगा,
वत्स उतनी शांति मिलेगी ।
रोगी मन ही भटकता है । रोगी व्यक्ति ही अपने रोग की चर्चा करेगा । जो स्वस्थ है उसे क्या चर्चा करनी है । दुखी ही चर्चा करेगा ।
जो सुखी है, वह क्या चर्चा करेगा । उसे कोई चर्चा का विषय ही नहीं है । जो रोगी है वह अपने रोग की चर्चा करेगा, पीड़ा की चर्चा करेगा, अपने इलाज की चर्चा करेगा । उस अस्पताल गया, यह चर्चा करेगा । वह चर्चा करेगा । इसी को भटकना कहा जाता है । जो रोगी नहीं है, निरोग है जो, स्वस्थ है, सुखी है, वह किस बात की चर्चा करेगा ?
दुखी व्यक्ति है तो अपने दुख की चर्चा करेगा, अपनी समस्या का समाधान
चाहेगा । कहां जाए इत्यादि इत्यादि ।
इसे भटकना कहा जाता है । जिसका मन साधक जनो निरोग हो गया है, जिसका मन स्वस्थ हो गया है, पवित्र हो गया है, वह भटकता नहीं है । पवित्र, निरोग, शुद्ध यह सारे के सारे शब्द जो मन के लिए प्रयोग किए जाते हैं । इनका अभिप्राय साधक जनों इतना ही है, यह मन परमात्मा के साथ जुड़ चुका हुआ है । इसके अतिरिक्त इस संसार में कोई दूसरा साधन दिखाई नहीं देता, इसके पवित्रीकरण का ।
इसे संसार से हटाना चाहते हो तो एक ही साधन है, इसे परमात्मा के साथ आपको लगाना होगा ।
“बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
बुल्ला शाह एक अनपढ़ महान संत क्या कहता है
“ओ बुल्लेया रब दा की पावना ऐ
एत्थो पुटना ते एत्थे लावना ऐ”
यहां से उखाड़िएगा उसे, संसार से उखाड़िएगा और उसे परमात्मा के साथ जोड़ दीजिएगा । बस इतना ही कार्य करने वाला है । सुनने में बहुत आसान है । जीवन भी बीत जाए देवियो सज्जनो तो भी महंगे नहीं है । जिसने मन पर जीत कर ली, उसने संसार जीत लिया । वह सम्राटों का सम्राट बन गया । जिसका मन पर नियंत्रण नहीं है, वह दासों का दास होगा । अमीर होते हुए भी वह कंगाल होगा । बहुत सुखी आपको दिखाई देता हुआ भी वह अंदर से दुखी ही होगा ।
इसे बकरा भी कहा जाता है बकरा । एक ही आवाज निकालता है-मैं मैं मैं ।
साधक जनो मन में, और मैं मैं में कोई अंतर नहीं है । मन में और माया में कोई अंतर नहीं है । यह सारे के सारे खेल इस खिलाड़ी मन के हैं । स्वामी जी महाराज ऐसा कहते हैं, यह सारे के सारे खेल, दुख सुख, जो कुछ भी जीवन में आता है, यह सब इस मन के खेल है । आपको परमात्मा से जोड़ता है, या परमात्मा से विमुख करता है । यह सब मन का खेल है । आपको हर्षित करता है, या आपको प्रसन्न करता है, या आपको दुखी करता है, शोकित करता है । यह सब मन के खेल है और कुछ नहीं । जो कुछ इसे प्रिय लगता है वह सुखदाई है, जो कुछ इसे अप्रिय लगता है, वह दुखदाई है । सब खेल इसी के हैं ।
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आज बड़े दिन की हार्दिक बधाई मंगलकामनाए एवंं शुभकामनाएंपरम @bhaktimeshakti2281
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