पतंजली महाभा्ष्य ---- सुत्र है-- स्थाने अनंततम :..... (अपने स्थान से ही अनंतरूप है।) दुसरा सुत्र -- एकोडहं बहुस्याम, बहुस्यामेन एकोडहं । अन्य सुत्र है -- सर्वम खलु ईंदम ब्रह्म । और ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, ब्रह्मैव जीवों नापर: । ऐसा क्यों ? वेद ने बताया -प्राणों वै स ब्रह्म । --माने प्राण ही ब्रह्म है । अन्य सुत्र -- स्वयंजातो अग्नि ब्रह्म । माने प्राणाग्नि ब्रह्म है,सर्वरूप स्वयंजात है कैसे ? अणु का अणु से टकराने से ये पैदा होता रहता है । व्यष्टि और समष्टिगत सचराचर व्याप्त ये ब्रह्म माने सर्वश्रेष्ठ प्राणाग्नि अंतःकरण और बहिकरण से मन(इच्छाशक्ति),बुद्धि(आत्म व ज्ञानशक्ति),चित(चैतन्यशक्ति) और अहंकार (इन ईच्छा-ज्ञान-चैतन्य की अहमियत का गुण) सर्वत्र धारण किए हैं। एकात्मभाव, द्वीर्भाव, शुन्यभाव और अनंतभाव सभी में ये अपने सातत्यभाव से अनंत स्थानों में ही नहीं, अस्तित्व, वातावरण,सत्ता,वस्तु,व्यक्ति, पदार्थ व अणु, परमाणु में भी वही याप्त है। क्लोरीन,फ्लोरीन, ब्रोमिन,आयोडीन,मिथेन, अमोनिया -- ये वायु बहुप्रक्रियक है ,आश्रय अनेक प्रारुप बनाते रहते हैं। रेडैन,जेनोन,क्रिप्टोन नियोन,हिलीयम,आर्गन -- शुन्यावकाश पैदा करनेवाले हैं। जबकि आक्सिजन (प्राण) और हाइड्रोजन (अग्नि) मुख्यत इलेक्ट्रॉन पैदा करनेवाले हैं अर्थात सबमें रहते हुए सबका करता,भोक्ता,व्यवहार्यता होते हुए भी
प्रणाम आदरणीय... बहुत ही सरल सुंदर और सुरुचिपूर्ण संक्षिप्त व्याख्या... क्या आपके चैनल पर या आपकी जानकारी में नहीं अन्यत्र ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य की अक्षरसः व्याख्या उपलब्ध हो सकती है, कृपया मार्गदर्शन करें...🙏
बहुशः धन्यवादः महोदयः
🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
आप जब भी संस्कृत गंगा में आते हैं एक नया अध्याय एक नया जोश एक नयी उम्मीद लेकर आते हैं सर प्रणाम सर 🙏
❤️🙏राधावल्लभ श्रीहरिवंश स्पर्श प्रभु जी आपके चरणों में अनंत दंडवत्❤️🙏
Wha wha ‘em what an explain . Very nice.👍👍👍👍
पतंजली महाभा्ष्य ---- सुत्र है-- स्थाने अनंततम :..... (अपने स्थान से ही अनंतरूप है।) दुसरा सुत्र -- एकोडहं बहुस्याम, बहुस्यामेन एकोडहं । अन्य सुत्र है -- सर्वम खलु ईंदम ब्रह्म । और ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, ब्रह्मैव जीवों नापर: । ऐसा क्यों ? वेद ने बताया -प्राणों वै स ब्रह्म । --माने प्राण ही ब्रह्म है । अन्य सुत्र -- स्वयंजातो अग्नि ब्रह्म । माने प्राणाग्नि ब्रह्म है,सर्वरूप स्वयंजात है कैसे ? अणु का अणु से टकराने से ये पैदा होता रहता है । व्यष्टि और समष्टिगत सचराचर व्याप्त ये ब्रह्म माने सर्वश्रेष्ठ प्राणाग्नि अंतःकरण और बहिकरण से मन(इच्छाशक्ति),बुद्धि(आत्म व ज्ञानशक्ति),चित(चैतन्यशक्ति) और अहंकार (इन ईच्छा-ज्ञान-चैतन्य की अहमियत का गुण) सर्वत्र धारण किए हैं। एकात्मभाव, द्वीर्भाव, शुन्यभाव और अनंतभाव सभी में ये अपने सातत्यभाव से अनंत स्थानों में ही नहीं, अस्तित्व, वातावरण,सत्ता,वस्तु,व्यक्ति, पदार्थ व अणु, परमाणु में भी वही याप्त है। क्लोरीन,फ्लोरीन, ब्रोमिन,आयोडीन,मिथेन, अमोनिया -- ये वायु बहुप्रक्रियक है ,आश्रय अनेक प्रारुप बनाते रहते हैं। रेडैन,जेनोन,क्रिप्टोन नियोन,हिलीयम,आर्गन -- शुन्यावकाश पैदा करनेवाले हैं। जबकि आक्सिजन (प्राण) और हाइड्रोजन (अग्नि) मुख्यत इलेक्ट्रॉन पैदा करनेवाले हैं अर्थात सबमें रहते हुए सबका करता,भोक्ता,व्यवहार्यता होते हुए भी
Pranam guru ji
आप बहुत सरल ढंग से समझाते है मुझे आप से पढ़ कर आत्म संतुष्टि का अनुभव होता है
❤शोभनीय शिक्षणम्भोः
🕉 namaste namaste 🙏 ♥️
अभिनंदनम्
जै पयदल.
आदमी बचाओ, पैदल लाओ.
PAYDAL is asylum to the Nation.
Namh sansakritay guru ji
प्रणाम गुरुवर
Jai ho
सादर प्रणाम गुरु जी 🙏
प्रणाम आदरणीय...
बहुत ही सरल सुंदर और सुरुचिपूर्ण संक्षिप्त व्याख्या...
क्या आपके चैनल पर या आपकी जानकारी में नहीं अन्यत्र ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य की अक्षरसः व्याख्या उपलब्ध हो सकती है, कृपया मार्गदर्शन करें...🙏
Thanks guru ji 💕💕💕💕
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Txs sr
Good morning sir
इससे आगे का भाग कहाँ मिलेगा?
Pdf kaise milegi sir
Sarvagya sir please asistent professor ka course padha dijiye