Sangat Ep72 | Sanjeev on his Life, Literature, Casteism, Uday Prakash & Rajendra Yadav |Anjum Sharma
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- Опубліковано 3 жов 2024
- हिंदी साहित्य-संस्कृति-संसार के व्यक्तित्वों के वीडियो साक्षात्कार से जुड़ी सीरीज़ ‘संगत’ के 72वें एपिसोड में मिलिए सुपरिचित साहित्यकार संजीव से। कथाकार संजीव का जन्म 6 जुलाई 1947 को सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। 38 वर्षों तक एक रासायनिक प्रयोगशाला में कार्यरत रहे। सात वर्षों तक ‘हंस’ समेत कई पत्रिकाओं का संपादन और स्तंभ -लेखन किया। लगभग दो वर्षों तक महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा और अन्य विश्वविद्यालयों में अतिथि लेखक रहे।
संजीव का अनुभव-संसार विविधताओं से भरा हुआ है। साक्षी हैं उनकी प्राय: दो सौ कहानियाँ और ‘अहेर’, ‘सर्कस’, ‘सावधान! नीचे आग है’, ‘धार’, ‘पाँव तले की दूब’, ‘जंगल जहाँ शुरू होता है’, ‘सूत्रधार’, ‘आकाश चंपा’, ‘रह गईं दिशाएँ इसी पार’, ‘फाँस’, ‘रानी की सराय’, ‘मुझे पहचानो’ आदि उपन्यास। नवीनतम कृतियाँ हैं छत्रपति शाहू जी पर केंद्रित उपन्यास ‘प्रत्यंचा’, पुरबी के अनन्य गायक महेन्द्र मिश्र पर केंद्रित उपन्यास ‘पुरबी बयार’ और ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’। कुछ कृतियों पर फिल्में बनी हैं, कुछ की उन्होंने पटकथाएँ लिखी हैं।
उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘कथाक्रम सम्मान’, ‘इन्दु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान’, ‘पहल कथा सम्मान’, ‘सुधा कथा सम्मान’, ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ समेत अनेक सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं।
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संजीव सर को पहली बार सुना एक घंटे में कितना कुछ सिखा गये । धन्यवाद संजीव सर!।
और
धन्यवाद हिन्दवी
'सूत्रधार' का मुरीद हूं। आप स्वस्थ रहें। अच्छी बातचीत है। सवाल अच्छे रहे।
संजीव जी बहुत वर्ष पहले पहल की एक गोष्ठी में गांधीनगर गुजरात आए थे।औमा शर्मा ने आमन्त्रित किया था।तब इतने उदाश नहीं थे। राहुल सांकृत्यायन भी एक पड़ाव पर ऐसे ही जिन्दगी से निराश हो गए थे।बड़े लेखक अक्सर ऐसी हताशा से गुजरते हैं।जब उनको लगता है कि समाज उन्हें वो सम्मान या महत्व नहीं दे रहा जैसा अपेक्षित है। संजीव जी ये भारतीय समाज है। जहां गम्भीर कार्य का असली मुल्यांकन बाद में होता है।आप कबीर को देखें मंटो को देखें। ज़िन्दगी कितनी गरीबी में बीती की इस्मत चुग़ताई को लिखना पड़ा मंटो पाकिस्तान जाकर दिवालिया हो गया। शब्द अलग हो सकते हैं।भाव यही था।आप का लेखन तो समृद्ध है। संजीव जी आप के लेखन में भी जीवटता है।
बचपन से बुढ़ापे तक जिसने संघर्ष झेला है और अभी भी कह रहा है कि अच्छा इलाज पैसे के कमी के कारण नहीं हो सका या हो रहा है। वैसे संघर्षशील पुरुष को सादर प्रणाम। ऐसी स्थिति में थोड़ी आत्ममुग्धता आ ही जाती है जब आप अपने बल पर ही सब करते हो, साहित्यिक क्षेत्र नामवर सिंह जैसे आलोचक से भिड़ कर नाम कमाना, इतने वृहत रूप से लिखना, कम बड़ी बात नहीं। आपको पुनः प्रणाम 🙏
संजीव सर आप स्वास्थ्य रहें और खुशहाल रहें...❤️✍️🙏🙇
पढूंगा मैं..❤️
Bahut hi behtarin sahitya ke khajane ka Anmol Ratan❤
संजीव जी का संघर्ष सुनकर मन विचलित हो गया। उनकी जिजीविषा को सलाम।
साहित्यकार को दुख को लाद नहीं लेना चाहिए
संघर्षों की राह पर चलते-चलते थक कर विश्राम करते एक रचनाकार से आप कितने स्नेह और सम्मान से प्रश्न पूछ रहे हैं, आप पर प्यार आ रहा है अन्यथा आपके तूणीर में तो सदैव बहुत पैने तीर रहते ही हैं। शरशैया पर लेटे भीष्म से ज्यों पार्थ मुखातिब हो।
संघर्षों में पले-बढ़े अपने प्रिय कथाकार को सुनना ज़िंदगी को करीब से कान लगा कर सुनने का एहसास दे रहा है।
संजीव जी स्वस्थ रहें , खुश रहें और लिखते रहें। सुन्दर संवाद ।😊😊
बहुत कुछ मिला है आपको, मान प्रतिष्ठा पाठकों का स्नेह.
श्री संजीव जी का यह कथन मार्मिक है कि,'मैं गरीब घर का लड़का न होता,तो मुझे भी बहुत कुछ मिलता।'ईश्वर से प्रार्थना है कि अगले जन्म में इन्हें बिरला या अंबानी परिवार के लड़के के रूप में पैदा करेॅ।
😂😂😂😂
साहित्य जगत में फैले हुए दुराग्रह,एक समर्थ लेखक को अकेला करके उसके आत्म बल को घटा देते हैं ,यह हिंदी साहित्य का अशोभनीय चेहरा है।
जैसे हजारी प्रसाद द्विवेदी और कबीर एक दूसरे के पर्याय हैं वैसे ही संजीव जी और भिखारी ठाकुर एक दूसरे के पर्याय हैं। एकमात्र ‘सूत्रधार’ ही संजीव जी को अमर करने के लिए पर्याप्त है।
अंजुम जी आप ने हमें ५० पुरुष और २२ महिला रचनाकारों से मिलवाया । चित्रा मुद्गल गीतांजलि श्री सुधा अरोड़ा in sabse क्यों नहीं मिलवाते? अब आप कहोगे लेखक का जेंडर नहीं होता वो बस लेखक होता है। Not fair
एक लेखक क्रिएटिव आदमी जब ये कहता है कि पैसे के अभाव या ग़रीबी के कारण बच्चे को पढ़ा नहीं पाया या इलाज नहीं करा पा रहा हूँ तो दिल फटता है । हमारा समाज संवेदनहीन है --
कमलेश्वर जी ने जलती हुई नदी में नामवर सिंह के पक्षपात को खुलकर रेखांकित किया है। जाति की सीमा से कहीं न कही नामवर जी बंध जाते थे।
Sangat me sanjeev ki bate sunkar bahut dukh hua lekin kya kiya jay jeevan ki yahi sachai hai aisa jeevan jeena jeevan ke pacha me hai
बहुत सुंदर।
That's called a good quality content
Thanks ashok
बेहतरीन
संजीव जी की उदासी ने मुझे भी उदास कर दिया।
अंत भला तो सब भला सुखद रहा आपको सुनना
🙏🙏🙏धन्यवाद
आपने हमें५० l पुरुष और२२ महिला रचनाकारों से मिलवाया? चित्रा मुद्गल गीतांजलि श्री सुधा अरोड़ा इन सबसे साक्षत्कार कीजिए। Not fair
संजीव पाठकों के कथाकार हैं दुराग्रही आलोचकों के नहीं।
दोस्तों ने जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाई
गालिब ने सही ही कहा है " बढ़ते बढ़ते दर्द दवा हो जाता है। "
उदय प्रकाश उदय प्रकाश हैं और संजीव संजीव।
ए
प्रेमचंद प्रेमचंद हैं और निर्मल निर्मल
He seems to have some problem. Neither able to sit straight nor to say anything clearly. He is speaking incoherently. It appears that this interview has been an ordeal for him. In such a situation, why was there a need to trouble him ?
A few things that could be heard seemed very ordinary. It is sad to see so much anguish, hatred and arrogance filled in the heart of a well-known writer.
Are there no dignified personalities left in Hindi now?
लता मंगेशकर जी कहती थीं कि वे अपने गीत नहीं सुनतीं और संजीव कहते हैं कि वो अपनी ही रचनाएं पढ़ते हैं। लता जी अपने से विरक्त थीं और संजीव जी अपने से आसक्त और आत्ममुग्ध।
Premchand aur manto se khud ko bada thahrana ghalat hai. Main ne mujhe pahchano padha balki sanjive ji ko phone bhi lagaya. Mera sultanpur se gahra sambandh hai. Isliye bhi. Nahin maloom tha woh aswasth rahte hain . Novel mujhe bahut pasand aya lekin mahsoos hua ki sati pratha kafi pahle khatam ho chuki hai. Roop kunwar ek apwad thi. Beshak qissa goi parakashta par hai.
Nashist Ye Bani Rahe,
Yahi Hamaan-Hamin Rahe,
Abhi To Main....
Incidenty my date of birth is 5th July 1947.
c
ये इन्फिरीऑरिटी काम्प्लेक्स ग्रस्त व्यक्ति हैं।
Theek hai thoda over tha but jisne castism ghela ho. Ye woh hi samjh sakta hai.
और आप superiority कॉम्प्लेक्स से ग्रस्त हैं