भगवान की यह बात अमेरिका इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने नहीं सुना बल्कि भारत के ही लोगों ने सुना यह सब बकवास भरी बातें हैं भगवान को आज तक किसी ने देखा नहीं फिर भगवान कैसे बताएंगे
अबे मूर्ख आदमी रंगिया बाबा तुम इतनी मनगढ़ंत लम्बी लम्बी छोंड रहे हो,।जब पहले से ही चारों वर्णों को अलग अलग बता रहे हो , तो क्यों कह रहे हो कि इसके बाद चार वर्ण बने।
गुरुजी में एक चमार लड़का हूं मैं बचपन से मीट मछली नहीं खाया हूं और भगवान का बहुत पूजा करता हूं क्या आप अपने खानदान परिवार रिश्तेदार मैं किसी एक लड़की से शादी कर सकते हैं क्योंकि ऐसे आपके अनुसार मैं ब्राह्मण हो गया और आपकी सारी रिश्तेदारी भी तो ब्राह्मणी कहलाएंगे तो हम बहुत प्रबल इच्छा रखते हैं कि आप हमारा विवाह उनसे कर दो
✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया। ✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला। ✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे। कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है ✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य। यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था। राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे। ✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है ✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं। और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
गुरु देव प्रणाम। उससे पूर्व काल का इतिहास में पढ़ कर ये ज्ञान प्रतीत होता है कि उस समय आदि मानव काल पाषाण काल में तो एक ही माता पिता की सभी संताने थी। उनमें कोई भेद भाव नही था बाद में जब मानव मनुष्य बनाने के काबिल हुआ तो एक ही परिवार के लोगों को अलग अलग जातियों में किसने विभक्त किया। ये समझ से परे है।
राजपूत छठी नहीं 12 वीं शताब्दी का शब्द है । बारहवीं शताब्दी से पहले यह शब्द कहीं नहीं मिलता ना राजपूत नाम की कोई जाति थी । विभिन्न जातियों के लोग जैसे गुर्जर जाट अपने को राजपूत कहने लगे ।
✍🏻किसने अलग किया? ✍🏻100% सत्य यह है:- ✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया। ✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला। ✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे। कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है ✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य। यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था। राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे। ✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है ✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं। और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
AKALMAND BHAIYA. , YEAH BHI. THO BATAO KI VED PURAN KO BRAHMANO NE HI LIKHA HAI VAH BHI APNEY --APNEY SWARTH KE LIYE QYONKI VED , PURAAN ISHVAR NE THO KABHI LIKHA HI NAHI ❓
बिल्कुल गलत बोल रहा है ये बाभन का काम है सब वर्णों की सेवा करना ओ शुद्र नहीं श्रवण है उसका मतलब मेहनत से कमाना खाने वाला लोग तुम लोग फोकट में खाने लोग क्या पता दुष्टों
Iska matlab shudra ko seva bhavi hona chahiye lekin brahmano ne galat matalab bataya ki shudro ko brahman, kshatriya and vaishya logo ki gulami karni chayiye......samajseva and das vruti main bahot antar hai..... brahamano ne and baki varno ne unhe gulam banake unka shoshan karaya.....chut achut chalaya..... isiliye aaj ek mahan hindu dharma ki ye halat hai🤯🤯🤯😭😭🤬🤬
Ese ese logo ne hi tao bhram felakar jativaad failya thaa Or hum hinduyon ka batwara kiya thaa in char vargon men. Ese dusht logo ki vajha se jati vaad badha thaa.
वर्ण सामाजिक व्यवस्था है जैसे जो डॉक्टर मास्टर वकील इंजीनियर सलाहकार आईएएस आईपीएस बह ब्राह्मण पंडित है क्योंकि इनकी पहचान ज्ञान से हैं प्रधान जमीदार सांसद विधायक cm pm फौजी सब क्षत्रिय हैं माध्य वर्गी किसान बनिया व्यापारी उद्योगपति वश्य हैं आम व्यक्ति ,गरीब किसान अनपढ़,कम पड़ा लिखा,गरीब कमजोर या जिसका आर्थिक शारीरिक मानसिक विकाश न हुआ हो बो शुद्र है
✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया। ✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला। ✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे। कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है ✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य। यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था। राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे। ✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है ✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं। और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन(ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य)होता था ✅ चार नहीं!❌ ✍🏻चौथा वर्ण 'शुद्र' बाद में आर्थिक रुप से कमज़ोर जातियों व गरीब व्यक्तियों के लिए शुद्र वर्ण बना दिया। जो कि यह गलत है। अगर बना ही दिया था तो शुद्र उन्हें कहा जाना चाहिए जो मांस, मदिरा, चोर, डाकू, घुसखोर, स्त्रियों के प्रति गंदी सोच वालों को कहा जाना चाहिए ताकि उनमें सुधार आए। ✍🏻वर्ण व्यवस्था इस जन्म के कर्म के आधार पर था✅ पूर्व कर्म के आधार पर नहीं❌ यानि वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित है जन्म पर नहीं। ✍🏻हम यदुवंशी, यादव, श्रेष्ठ दादा श्रीकृष्ण जी के वंशज है व चंद्रवंशी क्षत्रिय कुल से है है ठाकुर, अहीर, राव साहब, ग्वाला/गोप.... हम यदुवंशियों की उप जाति है हम यादव वैदिक क्षत्रिय है⚔️🛕🇮🇳🚩 🇮🇳🛕⚔️जय यादव जय माधव⚔️🛕🚩
आप से ही भारत विश्व गुरु है
जी मेरे चरणों में आपका नमन है
Har har Mahadev 🚩🚩🚩
भगवान की यह बात अमेरिका इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने नहीं सुना बल्कि भारत के ही लोगों ने सुना यह सब बकवास भरी बातें हैं भगवान को आज तक किसी ने देखा नहीं फिर भगवान कैसे बताएंगे
पागल
Right
AndhaBhakti puraa khatam karo Bhai ,Lage ra Jo,u r right bro 😊
तुम्हारे जैसे बाबा कथा सुनाने लायक नहीं बेवकूफ हो तुम यार फालतू बात करते
Jai siya ram 🙏🙏❤❤
अबे मूर्ख आदमी रंगिया बाबा तुम इतनी मनगढ़ंत लम्बी लम्बी छोंड रहे हो,।जब पहले से ही चारों वर्णों को अलग अलग बता रहे हो , तो क्यों कह रहे हो कि इसके बाद चार वर्ण बने।
यही से ब्रहामणो का पाखंड शुरू होता है
Bilkul sahi baat
ऐसे पंडितों को अपने पैरों के नीचे रखता हूँ क्षत्रिय हूँ लेकिन जाति को नहीं मानता मैं
बहुत सही कहा भाई मैं आपकी भावनाओं को प्रणाम करता हूं
जय सियाराम राधे-राधे
Kahan par padai ki tune
😂
गुरुजी में एक चमार लड़का हूं मैं बचपन से मीट मछली नहीं खाया हूं और भगवान का बहुत पूजा करता हूं क्या आप अपने खानदान परिवार रिश्तेदार मैं किसी एक लड़की से शादी कर सकते हैं क्योंकि ऐसे आपके अनुसार मैं ब्राह्मण हो गया और आपकी सारी रिश्तेदारी भी तो ब्राह्मणी कहलाएंगे तो हम बहुत प्रबल इच्छा रखते हैं कि आप हमारा विवाह उनसे कर दो
😂
Jai shree RAM
इस व्यक्ति को सही पता नहीं है क्योंकि उसे समय शूद्र पढ़े लिखे ही नहीं थे उन्होंने अर्थ कैसे समझा यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है।
कोई शत्रु नहीं कोई ब्राह्मण नहीं कोई सुधार नहीं इंसान तो सब इंसान भगवान की देन हैसब इंसान है
✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है
इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं
राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया।
✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला।
✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे।
कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है
✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य।
यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था।
राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे।
✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है
✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
गुरु देव प्रणाम। उससे पूर्व काल का इतिहास में पढ़ कर ये ज्ञान प्रतीत होता है कि उस समय आदि मानव काल पाषाण काल में तो एक ही माता पिता की सभी संताने थी। उनमें कोई भेद भाव नही था बाद में जब मानव मनुष्य बनाने के काबिल हुआ तो एक ही परिवार के लोगों को अलग अलग जातियों में किसने विभक्त किया। ये समझ से परे है।
जय श्री राम
राजपूत छठी नहीं 12 वीं शताब्दी का शब्द है ।
बारहवीं शताब्दी से पहले यह शब्द कहीं नहीं मिलता ना राजपूत नाम की कोई जाति थी ।
विभिन्न जातियों के लोग जैसे गुर्जर जाट अपने को राजपूत कहने लगे ।
साला ये अपने मन से कुछ भी बोल रहा है । लगता है इसे भगवान के पास भेजना होगा फिर से ज्ञान लेने के लिए
Tera ththri aagi ke lge
Sahi kaha aapne 😂😂😂
Tumahre jaise log hi hum Sanatan logo jarurat hai gyan bhandar ji sirf aapke paas hi hai
Es ko chutiaa bhandar kaho ji,manusaya me vhed bhav kar taahe
Agar shudra ko bhagwan ke charno me rahna tha ya bhagwan ki sewa karna tha to shudra ko mandir me kyo nahi Jane Diya jata tha
To kuchh bhi nahin jaanta hai 😂😂😂
Tumhari ththri
Tu bohot janta hai ?
गुरुजी आपने चारों वर्णों को पहले ही बता दिया और फिर बाद में बोल रहे हैं कि ऐसे चारों वर्ण बने
🙏🙏❤❤
✍🏻किसने अलग किया?
✍🏻100% सत्य यह है:-
✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है
इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं
राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया।
✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला।
✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे।
कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है
✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य।
यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था।
राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे।
✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है
✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
वास्तविकता बताओ भड़कानें वाली बात को छोड़ो
Jay Sri ram
He phakhandi AndhaBhakt thoda itash v phad le
Rang
AKALMAND BHAIYA. , YEAH BHI. THO BATAO KI VED PURAN KO BRAHMANO NE HI LIKHA HAI VAH BHI APNEY --APNEY SWARTH KE LIYE QYONKI VED , PURAAN ISHVAR NE THO KABHI LIKHA HI NAHI ❓
Gagha giyan
बिल्कुल गलत बोल रहा है ये बाभन का काम है सब वर्णों की सेवा करना ओ शुद्र नहीं श्रवण है उसका मतलब मेहनत से कमाना खाने वाला लोग तुम लोग फोकट में खाने लोग क्या पता दुष्टों
Bhagabañ nahi maharishi bedabyasha bhagabañ Sri Krishna ka Nam lekar yebat kàha hai. Thanks.
Iska matlab shudra ko seva bhavi hona chahiye lekin brahmano ne galat matalab bataya ki shudro ko brahman, kshatriya and vaishya logo ki gulami karni chayiye......samajseva and das vruti main bahot antar hai..... brahamano ne and baki varno ne unhe gulam banake unka shoshan karaya.....chut achut chalaya..... isiliye aaj ek mahan hindu dharma ki ye halat hai🤯🤯🤯😭😭🤬🤬
Murkha ahes tu. पूर्वाग्रहदूषित
Shudra to use samay padha likha hi nahin tha fir usne kaise samjha
Aaj pandit o hai jiske karm thik hai
Kapolkalpit ,styata ko chhipaya ja raha hai
😂कुछ भी
Bhagwan ne kaha geeta may😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂⁹
Isi ki wajahh se samjah ganda ho raha hai
Sudro ka galat arth nikalraheho babaji ..sudra sarir ka sanchalan kartahe seba kartahe ..naki koi jati ya dharm ka..
Are bhai prabachan yane parabachan Kyun sunte ho khud ka bachan suno.khud Geeta padho aur khud ka suno.dusron ka bachan mat suno.
Kuchh bhi fek raha hai
Sab apne hisaab se matlab batate h...jiski jitni buddhhi...aise logo ko suno aur bewkuf Bano..
Dekho Arth ma anrath kase kar rahe hai
इस धूर्त को कुछ पता नहीं है ।
Ese ese logo ne hi tao bhram felakar jativaad failya thaa Or hum hinduyon ka batwara kiya thaa in char vargon men. Ese dusht logo ki vajha se jati vaad badha thaa.
Dhongi baba
बकवास
Tera bhagwan kaise paida hua tha
A us samay ke logo ke bewkoof banaya gya
Bakbash mat Karo baba ji
Kya bhat hain .....😂
Galat baat bolta hai
Are bhai Tum pagal Ho ya sabko pagal banaa rahe ho
Sab bakvas hai
Yahi karan tha mene chhod diya 😂
वर्ण सामाजिक व्यवस्था है
जैसे जो डॉक्टर मास्टर वकील इंजीनियर सलाहकार आईएएस आईपीएस बह ब्राह्मण पंडित है क्योंकि इनकी पहचान ज्ञान से हैं
प्रधान जमीदार सांसद विधायक cm pm फौजी सब क्षत्रिय हैं
माध्य वर्गी किसान बनिया व्यापारी उद्योगपति वश्य हैं
आम व्यक्ति ,गरीब किसान अनपढ़,कम पड़ा लिखा,गरीब कमजोर या जिसका आर्थिक शारीरिक मानसिक विकाश न हुआ हो बो शुद्र है
✍🏻राजपूत कोई जाति नहीं है एक संगठन है
इसमें कई वंश की जातियाँ शामिल हैं
राजा के पुत्रों को राजपूत कहा गया।
✍🏻राजपूत शब्द सर्वप्रथम इतिहास में 6ठी शताब्दी ईसवी आया। उसके पहले राजपूत शब्द कही पर नहीं मिलता। राजपूतों ने 6की शताब्दी ईसवी से 12वी सदी के बीच इतिहास में प्रमुख स्थान मिला।
✍🏻राजपूत शब्द को लेकर विद्वानों के कयी मत है:- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी थे उसके अनुसार राजपूत कुषाण, शक, और हुण के वंशज थे।
कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण है
✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन बताया गया है 1. ब्राह्मण, 2. क्षत्रिय, 3. वैश्य।
यह वर्ण व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित बताया गया है। और यज्ञोपवीत तीनों वर्णों का होता था।
राजा और उसकी सेना क्षत्रिय वर्ण का बताया गया है और राजा की फैमिली को वैश्य वर्ण का बताया गया है राजा की फैमिली कृषि का कार्य व शिल्प का कार्य करते थे।
✍🏻चौथा वर्ण शुद्र बाद में जोडा गया। शुद्रो को पढने- लिखने व पूजा- पाठ नहीं करने दिया जाता था और इन्हें यज्ञोपवीत नहीं करने दिया जाता था। शुद्रो का शोषण तीनों वर्ण के लोग करते थे। जो कि यह गलत है
✍🏻ठाकुर, अहीर, सिंह, राव साहब, ग्वाला/गोप..... कोई जाति नहीं उपाधि है यह उपाधि पहले यदुवंशी(यादव) लगाते थे अब बहोत कम यदुवंशी है जो ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
और बाद में रघुवंशी व अन्य वंश के लोग भी ठाकुर उपाधि लिखने लगे। ये सब अभी भी ठाकुर उपाधि लिखते हैं।
✍🏻प्राचीन सनातन संस्कृति में वर्ण तीन(ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य)होता था ✅ चार नहीं!❌
✍🏻चौथा वर्ण 'शुद्र' बाद में आर्थिक रुप से कमज़ोर जातियों व गरीब व्यक्तियों के लिए शुद्र वर्ण बना दिया। जो कि यह गलत है। अगर बना ही दिया था तो शुद्र उन्हें कहा जाना चाहिए जो मांस, मदिरा, चोर, डाकू, घुसखोर, स्त्रियों के प्रति गंदी सोच वालों को कहा जाना चाहिए ताकि उनमें सुधार आए।
✍🏻वर्ण व्यवस्था इस जन्म के कर्म के आधार पर था✅ पूर्व कर्म के आधार पर नहीं❌ यानि
वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित है जन्म पर नहीं।
✍🏻हम यदुवंशी, यादव, श्रेष्ठ दादा श्रीकृष्ण जी के वंशज है व चंद्रवंशी क्षत्रिय कुल से है है ठाकुर, अहीर, राव साहब, ग्वाला/गोप.... हम यदुवंशियों की उप जाति है हम यादव वैदिक क्षत्रिय है⚔️🛕🇮🇳🚩
🇮🇳🛕⚔️जय यादव जय माधव⚔️🛕🚩
गलतत बता रहे हो😂
आपने बहुत अच्छे तरीके से समझा है भाई,, हमारी तरफ से आपको बहुत बहुत धन्यवाद जय सियाराम