गुरूओं की कुर्बानियां
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- Опубліковано 6 лис 2024
- शहीदी सप्ताह / महीना
कुरबानी की ऐसी मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं मिले जिसके अनुसार पंजाब के लोग दिसम्बर माह की कड़कडाती ठंड में ऐक सप्ताह ज़मीन पर सोते थे क्योंकि माता गुजरी ने दिसम्बर 1705 की रातें दोनों छोटे साहिबजादों के साथ नवाब वजीर खां के सरहिन्द के किले में ठंडा बुर्ज में गुजारी थीं तथा 8 दिनों में ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार शहीद हो गया था।
दिसंबर 1705 में सिखों और मुगल अधिकारियों में समझौते के अनुसार 5 या 6 दिसंबर 1705 की रात श्री गुरु गोबिंद सिंह द्वारा आनंदपुर साहिब छोड़ना व मुग़ल सेना कमांडर ने सिखों को बिना जानमाल नुकसान निकासी पर सहमति बनी थी। 6 दिसंबर 1705 की सुबह गुरु जी सिरसा नदी के किनारे पहुंचे और सुबह की धार्मिक सभा के लिए एक संक्षिप्त पड़ाव का फैसला किया। परन्तु जल्द ही धार्मिक आधार पर अराजकता फैल गई और सिखों व मुगलों के बीच युद्ध शुरू हो गया। उसी समय सिरसा नदी में बाढ़ और उफान आ गया.
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बल को दो भागों में विभाजित कर दिया। ऐक बल के हिस्से को दुश्मन के खिलाफ लड़ना था व दूसरे हिस्से को नदी पार करने का आदेश दिया गया था। गुरु जी
के पीछे सिखों का एक छोटा सा दल था,
वे अपने घोड़ों पर सवार होकर हाथों
में तलवारें लेकर उफनती नदी की
धारा में चले गए। गुरु अपने चार
पुत्रों और 50 अनुयायियों और घर
की महिलाओं के साथ दूसरे किनारे
पर पहुँचे। कई सिख नदी पार
करते हुए मर गये तथा अफरा-तफरी
में गुरु के दो छोटे पुत्र अपनी दादी
सहित अलग हो गए। जहां आज
गुरूद्वारा श्री विछोड़ा साहिब जी है.
लापता लोगों की तलाश करने का
समय नहीं था क्योंकि मुगल सेना
करीब थी। गुरु जी ने अपने दो
बड़े पुत्रों और 40 सिखों के साथ
चमकौर की ओर प्रस्थान किया।
चमकौर की जंग शुरू हुई और
दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब
जी के बड़े साहिबजादे श्री अजीत
सिंह जी उम्र महज 17 वर्ष और
छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह
जी उम्र महज 14 वर्ष अपने 11
अन्य साथियों सहित मजहब
और मुल्क की रक्षा के लिए
वीरगति को प्राप्त हुए।
माता साहिब कौर कुछ सिखों के
साथ दिल्ली पहुंचीं, जबकि उनकी
वृद्ध माता जी अपने दो छोटे पोतों
को गंगू नाम का ऐक धोखेबाज नौकर अपने
मोरिंडा गांव ले गया. गंगू द्वारा माता
गुजरी कौर जी और दोनों छोटे
साहिबजादे का कीमती सामान
व गहने सामान चोरी करने के
उपरांत मुखबरी कर मोरिंडा के
चौधरी गनी खान और मनी खान
के हाथों गिरफ्तार करवा दिया.
माता गुजरी कौर जी और दोनों
छोटे साहिबजादों को सरहिंद
पहुँचाया गया और वहाँ ठंडा बुर्ज
में नजरबंद किया गया. छोटे
साहिबजादों को नवाब वजीर खान
की अदालत में पेश किया गया और
उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए
लालच दिया गया। मना करने पर
साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र
महज 8 वर्ष और साहिबजादा
फतेह सिंह उम्र महज 6 वर्षको तमाम
जुल्मों उपरांत जिंदा दीवार में चुनकर
बाद में गला रेत कर शहीद किया गया
और यह खबर सुनते ही माता गुजरी
कौर जी ने अपने प्राण त्याग दिए।