☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने। ..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है, पर से भिन्न है आत्मा .. अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। .. आदि -आदि बोलकर, वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।.. पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं। *** सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें, बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है। शुद्धआत्मा..आ..हा..हा.. आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
आपकी भाषा से ही समझ आता है आपके गुरू किस स्तर के होंगे।ज्ञान धन को लूटने वाले जिनकी भाषा समिति का ही ठिकाना न हो ऐसे ढोंगी बाबाओं से बचो। सत्य बात को समझ कर आत्म हित में लगो। जय जिनेंद्र
Wo aaye hi the digamber parampara ko khatm karne ke liye wo to maahan upkaar hai charitra chakravarti shanti sagar ji maha muni raaj ka jinhone digamber parampara ko jeevant rakha
☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने। ..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है, पर से भिन्न है आत्मा .. अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। .. आदि -आदि बोलकर, वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।.. पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं। *** सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें, बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है। शुद्धआत्मा..आ..हा..हा.. आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने। ..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है, पर से भिन्न है आत्मा .. अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। .. आदि -आदि बोलकर, वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।.. पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं। *** सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें, बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है। शुद्धआत्मा..आ..हा..हा.. आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
*श्रद्धा का लुटेरा ही सबसे बड़ा लुटेरा है।* *चतुर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि श्रद्धा को लूटे बिना किसी को पूरा नहीं लूटा जा सकता । श्रद्धा लूटने के लिए बहुत-कुछ करना होता है । अज्ञानी होते हुए भी ज्ञान का, अत्यागी होते हुए भी त्याग का, सब-कुछ रख कर भी कुछ न रखने का, सब-कुछ करते हुए भी कुछ न करने का प्रदर्शन करना पड़ता है ; क्योंकि इनके बिना किसी की भी श्रद्धा को लूटना संभव नहीं है । धर्म के नाम पर ढोंग के प्रचलन का मूल केन्द्र-बिन्दु यही है ।*
Sandesh ji ne adhyatm ka sandesh dene wale param upakaari shree sad guru dev ke prati jo rahasy khole weh prashansniy haie
🎉j Kahan guru
Shri Kahan Gurudev no Jai Ho Jai Ho 🙏🙏🙏
🙏JaiJinendra 🙏Aabhar 🙏
Apka khub khub Dhanyavad 🙏👌👌👍
Gurudev ji ki jai ho 🙏🏻
Suparb .. KAHAN GURU NO JAYHO ...JAYSHREE SHAH
Jay jinshashn
Kanji swami urf mithya drishti.
Bht gjb sandesh👌👌👌
Very nice 👌
बहुत व्यवस्थित प्रस्तुति
ua-cam.com/video/fCHINW9cnoE/v-deo.html&si=dCtiPnrgMHiWtO1b 🫣
Suno kanjaiysto 🫵
☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने।
..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है,
पर से भिन्न है आत्मा ..
अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। ..
आदि -आदि बोलकर,
वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।..
पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल
चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले
बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं।
***
सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें,
बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है।
शुद्धआत्मा..आ..हा..हा..
आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई
भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
व्यवस्थित झूठी प्रस्तुति😂😂
Shastri ji palitana se jain sangitkar nileshbhai hu
हॉस्पिटल में मरा था
आपकी भाषा से ही समझ आता है आपके गुरू किस स्तर के होंगे।ज्ञान धन को लूटने वाले जिनकी भाषा समिति का ही ठिकाना न हो ऐसे ढोंगी बाबाओं से बचो। सत्य बात को समझ कर आत्म हित में लगो। जय जिनेंद्र
Superb
💯💯💯
परमोपकारी युग पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी को कोटि कोटि वंदन।
👍👍
Kanji swami pahale swetamber the fir Digamber hi gaye or Digamber pratima to banate Hai par Digamber Santo ko nahi mante kya bat hai
Wo aaye hi the digamber parampara ko khatm karne ke liye wo to maahan upkaar hai charitra chakravarti shanti sagar ji maha muni raaj ka jinhone digamber parampara ko jeevant rakha
Itna padhna likhna ka baad bhi santhara nahi liya ..apni mritya ko bhi nahi bata paye ... Guruji kuch toh reh gaya
कोई अणुव्रत..??
कोई महा व्रत...??
☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने।
..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है,
पर से भिन्न है आत्मा ..
अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। ..
आदि -आदि बोलकर,
वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।..
पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल
चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले
बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं।
***
सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें,
बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है।
शुद्धआत्मा..आ..हा..हा..
आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई
भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
बेटा कभी मुनियों के वीडियो बनाओ ये मन से बनाई फालतू बाते मत बनाओ इस व्यक्ति ने ही मुनियों की निंदा की
☝️कार, AC, रसोईया, नौकर-चाकर, अंग्रेजी दवाइयां, अस्पताल..कुछ का भी त्याग नहीं किया था श्री कानजी भाई ने।
..आ..हा..हा..परम आनंद ज्ञान स्वरूपी भगवान आत्मा ...तू तो भूला हुआ भगवान आत्मा है, स्वयं भगवान है.. शुद्ध द्रव्य है,
पर से भिन्न है आत्मा ..
अनंतकाल से बाह्य दिगंबर स्वरुप धारण कर तुझे क्या मिला..अब तो चेत। ..
आदि -आदि बोलकर,
वे चेलों को मोक्ष के हवा-हवाई सपन बाग दिखाकर, अपनी शाही सुख-सुविधा पूर्ण चर्या को स्वीकार्यता प्रदान करवाने के लिये वे, जो भी तात्कालीन दिगंबर आचार्य- उपाध्याय- साधु परमेष्ठि थे, उनके बाह्य संयम स्वरूप के बारे में नई- नई परिभाषाएं गढ़कर, उनके प्रति लोगों के मन में अरुचि/ द्वेष पैदा करने में, भ्रमित करने में, वे अति सफल रहे।..
पर कैसी बिडंबना है कि ज्ञानस्वभावी आत्मा पर से भिन्न है, आत्मा परम आनंद स्रोत है.. कहने वाले कानजी भाई इसी अचेतन-पर का इलाज कराने अस्पताल
चले गये और वहीं से देह त्याग कर दिये। फिर भी उनके चेले
बेशर्मी से इसे समाधि बताकर छल करते हैं।
***
सेठियों को लगता रहा कि सोनगढ़िये बनकर उन्हें,
बिना दिगंबर साधु बने, मोक्ष का शार्ट कट मिल गया है।
शुद्धआत्मा..आ..हा..हा..
आनंद स्वरूपी आत्मा का नाम लेकर मोक्ष में सीट बुक हो गई है। ऐसा झांसा देकर, मुमुक्षु पंडित नोट छापने में लगे हैं। आजतक कोई
भी मुमुक्षु किताबी जमा खर्च से आगे बढ़ा हो तो अवश्य विचार करना। ..गजब धूर्तता है।.. दिगंबर जैन समाज में सबसे बड़ा विभाजन करने में कानजी भाई सफल रहे।🧐
*श्रद्धा का लुटेरा ही सबसे बड़ा लुटेरा है।*
*चतुर लुटेरा यह अच्छी तरह जानता है कि श्रद्धा को लूटे बिना किसी को पूरा नहीं लूटा जा सकता । श्रद्धा लूटने के लिए बहुत-कुछ करना होता है । अज्ञानी होते हुए भी ज्ञान का, अत्यागी होते हुए भी त्याग का, सब-कुछ रख कर भी कुछ न रखने का, सब-कुछ करते हुए भी कुछ न करने का प्रदर्शन करना पड़ता है ; क्योंकि इनके बिना किसी की भी श्रद्धा को लूटना संभव नहीं है । धर्म के नाम पर ढोंग के प्रचलन का मूल केन्द्र-बिन्दु यही है ।*
Yeh bechara bhi majboor he
Phele guruji shwetambar pant ke the naa
हाँजी
👍👍
👍👍
समाधि हुई थी?? मैने सुना है hospital me death hui thi
bhai itna bada aatam gyani tha to hospital me to marna hi tha 😄😂
@@jainism6893सुधा औरंगजेब का चेला है शायद तू भी
Ye kanjaist hai
जसलोक अस्पताल, मुंबई में अंतिम सांस ली थी।
@@archanagodha5428 shravak mante kaha ho tirthankar bana diye h ab to Surya kirti ji yaad h kon h
Bekar ki baate bata rahe ho