(नवरात्रि पर्व पर विशेष)**रामायणी साधना सत्संग**पहली बैठक भाग २

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  • Опубліковано 4 жов 2024
  • Ram Bhakti ‪@bhaktimeshakti2281‬
    परम पूज्य डाक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
    ((1443))
    (नवरात्रि पर्व पर विशेष)
    रामायणी साधना सत्संग
    पहली बैठक भाग २
    जाप साधक जनों स्वामीजी महाराज ने चक्कर लगाने वाला नहीं रखा। हम तो used to हैं । साधक जनों कि बातें भी करते जाते हैं और जाप भी करते रहते हैं । इधर उधर देखते भी रहते हैं और जाप भी करते हैं । कैसा जाप है यह ? छूट तो दी हुई है गुरूजनों ने पर जो लाभ मिलना चाहिए वह लाभ नहीं कर पाते । इस साधना सत्संग में जाप बैठ कर उन्होंने करने को कहा है । मानो आँख बंद करके जाप कीजिएगा और कान बंद करके भी जाप कीजिएगा । करके देखना भक्त जनों । न आँख खुले, न कान खुले । ऐसी स्थिति में जाप करके तो देखिएगा कि कैसा लगता है । यदि अभी तक नहीं किया तो इस बार करके देखना । कान तो बंद होते नहीं न, इन कानों को भी बंद करना है । अभ्यास कीजिएगा । कुछ भी सुनाई नहीं देता । मन जाप में होगा तो कान कुछ नहीं सुन सकेंगे । मन जिस इंद्रिय के साथ होती है, वही इंद्रिय सक्रिय होती है । आप मन जाप पर लगा कर रखेंगे तो जो कुछ भी हो रहा है वह सुनाई नहीं देगा । इस बारी आँख बंद करके व कान बंद करके जाप कीजिएगा ।
    भोजन संबंधित भी कुछ बातें हैं । जैसे पिछले सत्संगों में महिलाओं को सब्ज़ी काटनी पड़ती थी, चपाती बनानी पड़ती थी । न सब्ज़ी काटने की आवश्यकता है, न रोटी बनाने की आवश्यकता है, न आटा गूँधने की आवश्यकता है, न सलाद काटने की आवश्यकता है । एक की आवश्यकता है, वह है जाप करना । सब कुछ आपको किया कराया मिलेगा । परोसने के लिए भी वैसे नहीं बैठेंगे । जैसे चाय लेते थे, दलिया लेते थे वैसे नहीं बैठेंगे । पहली मंज़िल की महिलाएँ उनको सब कुछ चाय से लेकर भोजन तक वहीं मिलेगा । और उनको महिलाएँ ही बाँटेगी । चाय ले, भोजन लें, नाश्ता लें, अपनी थाली ले कर बिस्तर पर बैठ जाएँ । श्री रामशरण की किसी जगह पर नहीं बैठना । परमात्मा की किसी भी चीज़ खराब करने का हमें हक़ नहीं है । थाली अपने आगे रखी है अन्नपते कीजिए और किसी के इंतजार करने कि आवश्यकता नहीं है । कि कमरे के और लोग आए हैं कि नहीं । परमेश्वर का धन्यवाद कीजिएगा और उठ जाइएगा ।उठ कर अपने बर्तन इत्यादि साफ़ कीजिएगा और कुल्ला इत्यादि कीजिएगा । यह सब करके जाप आरम्भ कर दीजिएगा। नीचे पुरुषों को और जो महिलाएँ नीचे ही होंगी उनको भोजन परोसना नीचे ही होगा और पुरुष ही वहाँ परोसेंगे । जो गंगा निवास में ठहरे हुए है, वे इधर ही पुरुषों के तीन कमरे हैं वहाँ भोजन इत्यादि कर लें । दरी भी बिछाई जा सकती है । किन्तु अपना नैपकिन या तौलिया लाना पड़ेगा । श्रीरामशरणम् की दरियों पर नहीं । सीखने वाली बातें हैं । यह न सोचिएगा कि इससे क्या होता है, पाँव भी तो हम रखते हैं, ठीक बात है, मैं मानता हूँ, मैं तो कहता हूं कि परमात्मा के घर में तो पाँव भी फूँक फूँक के रखने चाहिए । हमें अधिकार ही नहीं है परमात्मा की चीज़ें बरबाद करने का । परमात्मा का घर है, आप अपना नैपकिन लेकर आइएगा, तो बरामदे में आपके लिए दरी बिछा दी जाएगी तो वहीं आप बैठिएगा ।
    सब साधक बहुत अनुशासन में रहेंगे । आपके कमरों में सत्संग के नियम लिख के लगा दिए गए हैं । हर कक्ष में बहुत नए साधक भी हैं, तो किसी कि ड्यूटी लगा दी सकती है कि कोई पढ़ कर सुना दे ताकि कोई यह न कहे कि हमें पता ही नहीं था । पढ़ कर उल्लंघन नहीं करना ।
    एक विशेष प्रार्थना करता हूँ देवियों और सज्जनों । स्वामीजी महाराज ने 1:30 घण्टे का मौन रखा है । आप सब से निवेदन है, आप सबके श्रीचरणों में मस्तक रखके निवेदन करता हूँ, कुछ पा कर जाना चाहते हो तो मात्र 1:30 घण्टे का मौन नहीं बल्कि अभी से मौन धारण कर लीजिएगा । सत्संग की समाप्ति तक मौन रहिएगा । जाप करिएगा । ऐसा नहीं कह रहा कि बिल्कुल नहीं बोलना पर अनावश्यक नहीं बोलना । राम से बढ़कर बोलना और क्या है, इससे बेहतर बोलना और क्या है ? यहां रहकर भी सुअवसर का लाभ नहीं लेता तो बदक़िस्मती ही कही जाएगी न ।
    अभी से साधना में हैं हम । हर नियम का पालन करना है जो स्वामीजी महाराज ने बनाया है । प्रेम पूर्वक रहिएगा । किसी को किसी चीज़ की आवश्यकता हो, यहाँ के प्रबन्धकों से सम्पर्क कर सकते हैं । मज़े से बैठिएगा । जहाँ भी आपको बैठने के लिए जगह मिले, मज़े से रामायण जी का पाठ कीजिएगा । दिखावा न करिएगा । छोड़िएगा इस आदत को । परमात्मा को दिखा कर करिए । संसार को दिखा कर करेंगे तो वह दिखावा है । पर उसे दिखा कर करेगें तो - देख तेरे नाम का आराधन कर कहा हूँ । तू देख रहा है न कि नहीं देख रहा है ? इंसान के पीछे घूमने से कुछ नहीं बनता । परमात्मा के पीछे घूमिएगा । देख तेरा नाम जप रहा हूँ, तेरा नाम मैं जप रही हूँ । तू देख रहा है कि नहीं । यह दिखावा नहीं माना जाता । यह तो भीतर की बात है । परमेश्वर को दिखा कर कहा जाता है, तो उसे भक्ति कहा जाता है, इंसान को दिखा कर कहा जाता है तो उसे प्रदर्शन कहा जाता है।
    गुरूजनों से आशीर्वाद लेते हैं, परमात्मा हर कार्य के शुभारम्भ में आपसे मंगल आशीष लेते हैं। हमने नाम भेजा था आपने स्वीकार कर लिया है । अब जिस काम के लिए परमात्मा बुलाया है, वह काम हमारे से करवा । हमारे वश की बात होती, आप तो भलि भाँति जानते हो हम घर बैठे भी सब कुछ कर सकते थे, स्पष्ट है आपके श्रीचरणों का आश्रय लिए बिना यह नहीं सम्भव हो सकता । इसीलिए तो श्रीचरणों में बुलाया है महाराजाधिराज । वरना यह सब कुछ घर में भी हो सकता था । रामायण पढ़ रहे हैं लोग, पहले भी पढ़ रहे थे, अब भी पढ़ रहे हैं फिर हमें क्यों बुलाया गया है महाराज । क्यों हमें दलिया खिलाया जाएगा, घर पर कुछ अच्छा खाने को मिल जाता, स्पष्ट है कुछ कारण तो अवश्य होगा । इसका लाभ लीजिएगा।

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