0:52 आलाप 1:46 शिव शिव कल्याण करी, जप जप जिय नाम शिव हर हरत दुख सबै, रट रट पुरहर नाम । जप करत सुरगन, महादेव, महादेव शिव करत कल्याण, रट धरो नाम शिव ॥ 2:36 ये मुरलीयार तार दे, सुर समिंदर सो लय तार दे ॥ पार न पायो साच है, शोक पिया सो अब तार दे ॥ 5:40 थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥ अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥ {The eyes became motionless at the sight of Sri Rama's loveliness; the eyelids too forgot to fall. Due to excess of love her body-consciousness began to fail; it looked as if a Cakora bird were gazing at the autumnal moon} ~ रामचरितमानस (Ramcharitmanas) 10:45 रामपद-पदुम-पराग परी। ऋषितिय तुरत त्यागि पाहन-तनु छबिमय देह धरी॥1॥ प्रबल पाप पति-साप दुसह दव दारुन जरनि जरी। कृपासुधा सिँचि बिबुध-बेलि ज्यौं फिरि सुख-फरनि फरी॥2॥ निगम-अगम मूरति महेस-मति-जुबति बराय बरी। सोइ मूरति भइ जानि नयनपथ इकटकतें न टरी॥3॥ बरनति हृदय सरुप, सील गुन प्रेम-प्रमोद-भरी। तुलसिदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी?॥4॥ {ऋषिपत्नी अहल्या के सिर पर जैसे ही भगवान् राम के चरण-कमलों का पराग पड़ा, वैसे ही उसने पत्थर का शरीर त्याग कर अति छविमय शरीर धारण कर लिया॥1॥ अपने प्रबल पाप के कारण पति के शापरूप दुःसह अग्नि के कठोर ताप से जलती हुई कल्पलता मानो कृपा रूप अमृतसे सींची जाकर पुनः सुख रूप फलों सम्पन्न हो गयी॥2॥ वेदों के लिये भी अगम जिस मूर्ति को भगवान् शंकर की बुद्धिरूपा युवती ने अन्य भगवन्मूर्तियों को त्यागकर वरण किया है, उसीको नेत्रपथ में आयी हुई देख वह (अहल्या) एकटक होकर उससे विचलित न हुई॥3॥ वह प्रेम और आनन्द से भरकर मन-ही-मन उनके रूप, शील और गुणों का बखान करने लगी। तुलसीदास कहते हैं, इसी प्रकार प्रभु ने किस दीन की दीनता नहीं हरी॥4॥} ~ गीतावली (Gitavali) 17:24 हिरना समझ बूझ बन चरना|| एक बन चरना, दूजे बन चरना, तीजे बन पग नहिं धरना || तीजे बनमें पांच पारधी, उनके नजर नहिं पडना || पांच हिरना, पचीस हिरनी, उन में एक चतुर ना || तोये मार तेरो मास बिकावे, तेरे खालका करेंगे बिछोना कहे कबीराजी सुनो भाई साधो, गुरू के चरण चित धरना || 23:18 आज निज घट फाग मचइहौ ध्यान चरनन में लगइहौ 27:13 मिलता जाइजो री अभिमानी 30:28 भोला मन जाने अमर मेरी काया धन रे जोबन सपने सी माया, बादल की सी छाया Source: Gita Press Gorakhpur & Website devoted to Pandit Kumar Gandharva ( kumarji.com )
How I missed hearing this distinguished musicians is not known to me. Excellant classical music. Salutations to Sri Kumar Gandharva, a jewel in the state of Karnataka.
Kanada Bahar at 10:45. Very rare! Only other rendition on youtube I can point to is one by Kumarji himself. Indeed a treat to hear this from Kalapini Ji. Thanks for sharing!
10:45 रामपद-पदुम-पराग परी। ऋषितिय तुरत त्यागि पाहन-तनु छबिमय देह धरी॥1॥ प्रबल पाप पति-साप दुसह दव दारुन जरनि जरी। कृपासुधा सिँचि बिबुध-बेलि ज्यौं फिरि सुख-फरनि फरी॥2॥ निगम-अगम मूरति महेस-मति-जुबति बराय बरी। सोइ मूरति भइ जानि नयनपथ इकटकतें न टरी॥3॥ बरनति हृदय सरुप, सील गुन प्रेम-प्रमोद-भरी। तुलसिदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी?॥4॥ {ऋषिपत्नी अहल्या के सिर पर जैसे ही भगवान् राम के चरण-कमलों का पराग पड़ा, वैसे ही उसने पत्थर का शरीर त्याग कर अति छविमय शरीर धारण कर लिया॥1॥ अपने प्रबल पाप के कारण पति के शापरूप दुःसह अग्नि के कठोर ताप से जलती हुई कल्पलता मानो कृपा रूप अमृतसे सींची जाकर पुनः सुख रूप फलों सम्पन्न हो गयी॥2॥ वेदों के लिये भी अगम जिस मूर्ति को भगवान् शंकर की बुद्धिरूपा युवती ने अन्य भगवन्मूर्तियों को त्यागकर वरण किया है, उसीको नेत्रपथ में आयी हुई देख वह (अहल्या) एकटक होकर उससे विचलित न हुई॥3॥ वह प्रेम और आनन्द से भरकर मन-ही-मन उनके रूप, शील और गुणों का बखान करने लगी। तुलसीदास कहते हैं, इसी प्रकार प्रभु ने किस दीन की दीनता नहीं हरी॥4॥} ~ गीतावली (Book by Tulsidas)
5:40 थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥ अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥ {The eyes became motionless at the sight of Sri Rama's loveliness; the eyelids too forgot to fall. Due to excess of love her body-consciousness began to fail; it looked as if a Cakora bird were gazing at the autumnal moon} ~ रामचरितमानस (Ramcharitmanas)
It's sometimes mind boggling how insensitive some good musicians can be. Here Kalapini should have let her mother sing much more. Vasundhara ji is just so surila, when you have such a gem next to you, you should just let them sing, but no, she had to come in to say I also sing. Sad and ironical at the same time.
Reminds us of Kumar Gandharva aprominent Artist noʻtto be forgotten easily.
0:52 आलाप
1:46 शिव शिव कल्याण करी, जप जप जिय नाम शिव
हर हरत दुख सबै, रट रट पुरहर नाम ।
जप करत सुरगन, महादेव, महादेव
शिव करत कल्याण, रट धरो नाम शिव ॥
2:36 ये मुरलीयार तार दे, सुर समिंदर सो लय तार दे ॥
पार न पायो साच है, शोक पिया सो अब तार दे ॥
5:40 थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥
अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥
{The eyes became motionless at the sight of Sri Rama's loveliness; the eyelids too forgot to fall.
Due to excess of love her body-consciousness began to fail; it looked as if a Cakora bird were gazing at the autumnal moon}
~ रामचरितमानस (Ramcharitmanas)
10:45 रामपद-पदुम-पराग परी।
ऋषितिय तुरत त्यागि पाहन-तनु छबिमय देह धरी॥1॥
प्रबल पाप पति-साप दुसह दव दारुन जरनि जरी।
कृपासुधा सिँचि बिबुध-बेलि ज्यौं फिरि सुख-फरनि फरी॥2॥
निगम-अगम मूरति महेस-मति-जुबति बराय बरी।
सोइ मूरति भइ जानि नयनपथ इकटकतें न टरी॥3॥
बरनति हृदय सरुप, सील गुन प्रेम-प्रमोद-भरी।
तुलसिदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी?॥4॥
{ऋषिपत्नी अहल्या के सिर पर जैसे ही भगवान् राम के चरण-कमलों का पराग पड़ा, वैसे ही उसने पत्थर का शरीर त्याग कर अति छविमय शरीर धारण कर लिया॥1॥
अपने प्रबल पाप के कारण पति के शापरूप दुःसह अग्नि के कठोर ताप से जलती हुई कल्पलता मानो कृपा रूप अमृतसे सींची जाकर पुनः सुख रूप फलों सम्पन्न हो गयी॥2॥
वेदों के लिये भी अगम जिस मूर्ति को भगवान् शंकर की बुद्धिरूपा युवती ने अन्य भगवन्मूर्तियों को त्यागकर वरण किया है, उसीको नेत्रपथ में आयी हुई देख वह (अहल्या) एकटक होकर उससे विचलित न हुई॥3॥
वह प्रेम और आनन्द से भरकर मन-ही-मन उनके रूप, शील और गुणों का बखान करने लगी। तुलसीदास कहते हैं, इसी प्रकार प्रभु ने किस दीन की दीनता नहीं हरी॥4॥}
~ गीतावली (Gitavali)
17:24 हिरना समझ बूझ बन चरना||
एक बन चरना, दूजे बन चरना, तीजे बन पग नहिं धरना ||
तीजे बनमें पांच पारधी, उनके नजर नहिं पडना ||
पांच हिरना, पचीस हिरनी, उन में एक चतुर ना ||
तोये मार तेरो मास बिकावे, तेरे खालका करेंगे बिछोना
कहे कबीराजी सुनो भाई साधो, गुरू के चरण चित धरना ||
23:18 आज निज घट फाग मचइहौ
ध्यान चरनन में लगइहौ
27:13 मिलता जाइजो री अभिमानी
30:28 भोला मन जाने अमर मेरी काया
धन रे जोबन सपने सी माया, बादल की सी छाया
Source: Gita Press Gorakhpur & Website devoted to Pandit Kumar Gandharva ( kumarji.com )
वसुंधरा ताई, कलापिनी ताई शुद्ध आनंद.
प्रणाम
How I missed hearing this distinguished musicians is not known to me. Excellant classical music. Salutations to Sri Kumar Gandharva, a jewel in the state of Karnataka.
ये अद्भुत विदुषी युगल है, नमन है, और ये असली भारत है, इनके गाये पद असली भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
Certainly a giant leaves his footprints behind. Kumarji is still marked.....
So humble and pure melody in the true Kumar Gandharva tradition. Thank you.
Why is no one listening to these gems? In this day and times we needto listen to this more. Brings calmness to the mind.
Verry sweet performance bahan ji
So Rare !! Thanks for posting
Soul stirring melody indeed! 🙏🙏
Achchha hai. Regards
अद्भुद!! 🙏🏽🙏🏽🙏🏽
Kanada Bahar at 10:45. Very rare! Only other rendition on youtube I can point to is one by Kumarji himself. Indeed a treat to hear this from Kalapini Ji. Thanks for sharing!
10:45 रामपद-पदुम-पराग परी।
ऋषितिय तुरत त्यागि पाहन-तनु छबिमय देह धरी॥1॥
प्रबल पाप पति-साप दुसह दव दारुन जरनि जरी।
कृपासुधा सिँचि बिबुध-बेलि ज्यौं फिरि सुख-फरनि फरी॥2॥
निगम-अगम मूरति महेस-मति-जुबति बराय बरी।
सोइ मूरति भइ जानि नयनपथ इकटकतें न टरी॥3॥
बरनति हृदय सरुप, सील गुन प्रेम-प्रमोद-भरी।
तुलसिदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी?॥4॥
{ऋषिपत्नी अहल्या के सिर पर जैसे ही भगवान् राम के चरण-कमलों का पराग पड़ा, वैसे ही उसने पत्थर का शरीर त्याग कर अति छविमय शरीर धारण कर लिया॥1॥
अपने प्रबल पाप के कारण पति के शापरूप दुःसह अग्नि के कठोर ताप से जलती हुई कल्पलता मानो कृपा रूप अमृतसे सींची जाकर पुनः सुख रूप फलों सम्पन्न हो गयी॥2॥
वेदों के लिये भी अगम जिस मूर्ति को भगवान् शंकर की बुद्धिरूपा युवती ने अन्य भगवन्मूर्तियों को त्यागकर वरण किया है, उसीको नेत्रपथ में आयी हुई देख वह (अहल्या) एकटक होकर उससे विचलित न हुई॥3॥
वह प्रेम और आनन्द से भरकर मन-ही-मन उनके रूप, शील और गुणों का बखान करने लगी। तुलसीदास कहते हैं, इसी प्रकार प्रभु ने किस दीन की दीनता नहीं हरी॥4॥}
~ गीतावली (Book by Tulsidas)
Great....
My humble regards always
Divine Power in Singing
Gujub
Respected Cĺassical Singer
खुपच सुंदर छान कवन आहे
Absolutely soul enthralling melody.
6:05 Sita Swayamvar ka varnan - wish I could hear the full version. Where can I find the full recording of this program?
5:40 थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥
अधिक सनेहँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥
{The eyes became motionless at the sight of Sri Rama's loveliness; the eyelids too forgot to fall.
Due to excess of love her body-consciousness began to fail; it looked as if a Cakora bird were gazing at the autumnal moon}
~ रामचरितमानस (Ramcharitmanas)
ua-cam.com/video/rtRV33Cg3r0/v-deo.html
This is Pandit Kumar Gandharva's album 'Tulsidas - Ek Darshan'
It's sometimes mind boggling how insensitive some good musicians can be. Here Kalapini should have let her mother sing much more. Vasundhara ji is just so surila, when you have such a gem next to you, you should just let them sing, but no, she had to come in to say I also sing. Sad and ironical at the same time.