No language for me to express my gratitude for enlightening us in such a lucid way..I express my ultimate regard to Professor Jha and I shall owe him for the rest of my life..🙏🙏🙏🙏
How can a man know so much? To have a full understanding of both eastern and western philosophy in its totality is a testament to Mr. Sinha’s breadth of intellectual rigor. This is awe inspiring.
Acharya Pranam, the story of an existentialist french women is a story of not only courage and honour but of a being in the world who is condemned to be free.
(१)ब्रह्म को क्यों ऐसे जगत के रचने की इच्छा होती हैं, जिसमे दुःख ही दुःख हैं और फिर स्वयं ही उस से मुक्ति पाने के लिए श्रुति स्मृति द्वारा उपदेश दिलवाता हैं (२) यदि यह कहा जाये की जगत और उसके अंतर्गत सुख दुःख सब मिथ्या और भ्रम रुप ही हैं, केवल एक ज्ञान स्वरुप ब्रह्म ही सत्य हैं तो ब्रह्म ने इस भ्रम को क्यों फैलाया और निर्भ्रांत ब्रह्म में भ्रम कैसा? (३) अविद्या से ब्रह्म जगत की रचना करता हैं और अविद्या ब्रह्म से अभिन्न हैं फिर अविद्या और जगत से छुटकारा कैसे संभव हो सकता हैं? (४) ब्रह्म की शक्ति रुप अविद्या से जगत की उत्पत्ति हैं, इसलिए विद्या अर्थात ज्ञान द्वारा ही इससे मुक्ति हो सकती हैं, किन्तु अविद्या के अंतर्गत होने के कारण सारे साधन श्रुति और स्मृति भी अविद्या रुप ही होंगे विद्या और ज्ञान ब्रह्म से बाहर कहाँ से लाया जा सकता हैं (५) सर्वज्ञ ज्ञानस्वरुप ब्रह्म की शक्ति माया अर्थात अविद्या नहीं होनी चाहिए प्रत्युत निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान होना चाहिए (६) और यदि उसमे संसार के रचने की इच्छा भी हो तो वह निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान के साथ हो न की माया और अविद्या के साथ (७) मदारी पैसा कमाने अथवा अपने से बड़े आदमियों को खुश करने के प्रयोजन से शोबदे और तमाशे दिखलाता है आप्तकाम ब्रह्म को इस मायाजाल के फैलाने में प्रयोजन क्या है? (८) यदि अपनी महिमा और प्रभुता दिखलाने लिए, तो यह किसको दिखलाना? जब की एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं (९) यदि अपनी प्रभुता और महिमा दिखलाने के लिए जीवों को उत्पन्न करता है तो इस प्रकार की महिमा और प्रभुता दिखलाने की अभिलाषा होना ही महिमा और प्रभुता के अभाव को सिद्ध करता है (१०) यदि बिना किसी अपने विशेष प्रयोजन के ब्रह्म द्वारा संसार की रचना केवल जीवों के कल्याण अर्थात भोग और अपवर्ग के लिए स्वाभाविक मानी जाये तो यह सांख्य और योग का ही सिद्धांत आगया
PARNAM. Babba SAHIB JI KOTI KOTI ONE DAY. SOME EVOLUTE GONA HAPPEN WHICH GONA SHARE SANATAN DHARMA. IN REAL ASTRAL TRAVEL A JEEV. IN COMMUNION WITH COSMOS REASON IS TRANSLATION AND ACTUAL TRAVEL ARE DIFFERENT PARNAM BABBA SAHIB JI THANKS IN FOLDED HANDS
No language for me to express my gratitude for enlightening us in such a lucid way..I express my ultimate regard to Professor Jha and I shall owe him for the rest of my life..🙏🙏🙏🙏
How can a man know so much? To have a full understanding of both eastern and western philosophy in its totality is a testament to Mr. Sinha’s breadth of intellectual rigor.
This is awe inspiring.
Acharya Pranam, the story of an existentialist french women is a story of not only courage and honour but of a being in the world who is condemned to be free.
Guruji
I love you 🥰🥰
I love you so so much
Sometimes I feel like you are my everything
To see you give me so much bliss
(१)ब्रह्म को क्यों ऐसे जगत के रचने की इच्छा होती हैं, जिसमे दुःख ही दुःख हैं और फिर स्वयं ही उस से मुक्ति पाने के लिए श्रुति स्मृति द्वारा उपदेश दिलवाता हैं
(२) यदि यह कहा जाये की जगत और उसके अंतर्गत सुख दुःख सब मिथ्या और भ्रम रुप ही हैं, केवल एक ज्ञान स्वरुप ब्रह्म ही सत्य हैं तो ब्रह्म ने इस भ्रम को क्यों फैलाया और निर्भ्रांत ब्रह्म में भ्रम कैसा?
(३) अविद्या से ब्रह्म जगत की रचना करता हैं और अविद्या ब्रह्म से अभिन्न हैं फिर अविद्या और जगत से छुटकारा कैसे संभव हो सकता हैं?
(४) ब्रह्म की शक्ति रुप अविद्या से जगत की उत्पत्ति हैं, इसलिए विद्या अर्थात ज्ञान द्वारा ही इससे मुक्ति हो सकती हैं, किन्तु अविद्या के अंतर्गत होने के कारण सारे साधन श्रुति और स्मृति भी अविद्या रुप ही होंगे विद्या और ज्ञान ब्रह्म से बाहर कहाँ से लाया जा सकता हैं
(५) सर्वज्ञ ज्ञानस्वरुप ब्रह्म की शक्ति माया अर्थात अविद्या नहीं होनी चाहिए
प्रत्युत निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान होना चाहिए
(६) और यदि उसमे संसार के रचने की इच्छा भी हो तो वह निर्भ्रांत विद्या और सत्य ज्ञान के साथ हो न की माया और अविद्या के साथ
(७) मदारी पैसा कमाने अथवा अपने से बड़े आदमियों को खुश करने के प्रयोजन से शोबदे और तमाशे दिखलाता है आप्तकाम ब्रह्म को इस मायाजाल के फैलाने में प्रयोजन क्या है?
(८) यदि अपनी महिमा और प्रभुता दिखलाने लिए, तो यह किसको दिखलाना? जब की एक ब्रह्म के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं
(९) यदि अपनी प्रभुता और महिमा दिखलाने के लिए जीवों को उत्पन्न करता है तो इस प्रकार की महिमा और प्रभुता दिखलाने की अभिलाषा होना ही महिमा और प्रभुता के अभाव को सिद्ध करता है
(१०) यदि बिना किसी अपने विशेष प्रयोजन के ब्रह्म द्वारा संसार की रचना केवल जीवों के कल्याण अर्थात भोग और अपवर्ग के लिए स्वाभाविक मानी जाये तो यह सांख्य और योग का ही सिद्धांत आगया
Nav Varsh ki dheron Shubh kaamnayein Guruji aur Vikasji 👃👃
Aap hamesha hamre dilo me jinda rahenge sir aapke jaisa guru sayad hi kabhi ho🥹
🌹👏✝️☪️🔯🕉️🛐👏🌹
ब्रह्म सत् चित् आनन्दम् 🌹🌹🌹
I have no words to say about u 🙏🏾🙏🏾
हार्दिक आभार
नव वर्ष की शुभकामनाएं।
Tomorrow is my exam and I am listening to Guruji for understanding JP Sartre as it's part of syllabus
Sat sta naman guruji ❤❤❤
Happy New year guruji and entire team of Quest
👏 can't express in words
❤️🙏
Great person ! Naman !
excellent guruji
❤❤❤❤Gurudev
Happy new year Sir
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
❤🎉
👍✌
💯
Sir how to contact you?
🙏🙏🙏🙏🙏
PARNAM. Babba SAHIB JI
KOTI KOTI
ONE DAY. SOME EVOLUTE GONA HAPPEN
WHICH GONA SHARE SANATAN DHARMA. IN REAL ASTRAL TRAVEL
A JEEV. IN COMMUNION WITH COSMOS
REASON IS TRANSLATION AND ACTUAL TRAVEL ARE DIFFERENT
PARNAM BABBA SAHIB JI
THANKS IN FOLDED HANDS
🙏🌹
🥀🙏🙏🙏🥀
🌹👏✝️☪️🔯🕉️🛐👏🌹
ब्रह्म सत् चित् आनन्दम् 🌹🌹🌹
🙏🙏🙏🙏
Happy new year sir
🙏🙏🙏🙏🙏❤️