Class 8.30। कर्म बन्ध विज्ञान - शरीर निर्माण की प्रक्रिया को समझें सूत्र 11
Вставка
- Опубліковано 6 чер 2024
- Class 8.30 summary
हमने जाना कि आत्मा के प्रदेशों के साथ
कर्म परमाणु-समूह बंधा हुआ होने के कारण
तैजस और कार्मण शरीर हैं
इनमें अलग से अंग-उपांग नहीं होते
इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीव के भी अंगोंपांग नहीं होते
उत्पत्ति के समय, गर्भस्थ जीव में हमें
एक मांस के टुकड़े के समान शरीर में
धीरे-धीरे अंग-उपांग अंकुरित होते हुए
क्रम-क्रम से देखने को मिलते हैं
अंगोपांग नामकर्म का उदय तो प्रारम्भ में हो जाता है
लेकिन अलग-अलग गति के जीवों में इनकी रचना
अलग-अलग समय में बाद में होती है
जैसे तिर्यंचों में कम और मनुष्यों में ज्यादा समय लगता है
निर्माण नामकर्म इन अंग-उपांगों का यथास्थान यानि
सही स्थान पर और सही आकार, सही अनुपात में निर्माण करता है
जैसे नाक की जगह पर ही नाक लगे
नाक और आँख के बीच की दूरी सही हो
आँख मस्तक पर न लगे
या आँख पूरे मुँह के बराबर न हो जाए आदि
बंधन नामकर्म चीजों को बांधते हुए शरीर की रचना को आगे बढ़ाता चला जाता है
जैसे building बनाते समय
ईंट, सीमेंट आदि से दीवार खड़ी करना, छत आदि डालना तो निर्माण का कार्य है
लेकिन बांधने के लिए छत पर लोहे का जाल, ईंटों के बीच में सीमेंट आदि डालना बंधन है
संघात नामकर्म मानों ऊपर बंधी हुई चीजों पर plaster कर देता है
जैसे plaster construction को छिद्र रहित बनाता है,
cement, ईंट आदि खराब नहीं होने देता
वैसे ही संघात अन्दर के material को बाहर नहीं आने देता
बंधन, संघात, निर्माण नामकर्म के कारण ही
शरीर के अन्दर की तमाम flow रूप चीजें
अपने ही area में रहती हैं
बाहर नहीं निकलतीं
संघात के उदय न होने पर हम कुछ नहीं कर सकते
जैसे शरीर में चोट लगने पर खून निकलना बन्द ही नहीं होता
हमने जाना कि इन कर्मों के कारण जीवों के शरीर आदि automatic बनते रहते हैं
हमें चिन्तन करना चाहिए कि किस तरह शरीर बन जाता है?
हमारे कुछ किये बिना, कैसे सब चीजें automatically चलती रहती हैं।
यदि ये विचार हमारे अन्दर नहीं आता तो
ये हमारे अज्ञान के कारण होता है
अज्ञान ही हमें मिथ्यात्व की ओर ले जाता है
और हम दूसरी मान्यताएँ बना लेते हैं कि यह तो ईश्वर की देन है
जबकि यह ईश्वर की नहीं, कर्म की देन है
चूँकि कर्म भी अदृश्य हैं और ईश्वर भी अदृश्य है
हम अदृश्य चीजें को ईश्वर पर डाल देते हैं
कर्मों के स्वरूप जानकार हमें ये सब आश्चर्य नहीं लगेगा
सही ज्ञान आने से हम इनको ईश्वर प्रदत्त चीजें न मानकर, कर्म जनित मानेंगे
और अगर हम कर्मों को नहीं जानेंगे तो हमारे अन्दर अज्ञान बढ़ता रहेगा
दुनिया में जो अनेकों जीव जैसे वृक्ष, चींटियाँ, कीड़े-मकोड़े आदि
अलग-अलग स्थानों पर जन्म-मरण करते हैं
उनके शरीर बनते-मिटते हैं,
मरण उपरान्त वे दूसरी जगह शरीर बना लेता है
ये सब भगवान नहीं करता
भगवान को इसका क्या प्रयोजन?
हमें लगता है कि प्रकृति को भगवान ने बनाया है,
इसमें हर जीव का एक दूसरे से जीवन चल रहा है
लेकिन यह हमारा अज्ञान है
बहुत से छोटे-मोटे जीव होते हैं जिनका कोई उपयोग, कोई उद्देश्य ही नहीं है
वे सिर्फ जीते हैं और मर जाते हैं
वस्तुतः सब जीव अपने-अपने कर्म के फल से,
अपने-अपने कर्म के उदय से अपना-अपना कार्य करते हैं
हमें इस अध्याय को केवल पढ़ना या रटना नहीं चाहिए
बल्कि विश्वास करना चाहिए कि
जो कुछ भी है, वह कर्म के फल से है
इससे हमारा धर्म और ज्ञान भी सधेगा
Tattwarthsutra Website: ttv.arham.yoga/
अर्हं योग प्रणेता पूज्य गुरूवर श्री प्रणम्यसागरजी महाराज की जय जय जय 🙏💖🙏💖🙏💖
नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु गुरु देव डूंगरपुर राजस्थान से नमोऽस्तु भगवन त्रिकाल त्रिविध नमोऽस्तु महाराज जी 🙏🙏🙏
Namostu guruver bhagwan. Jai ho shree 108 pranamya sagar ji maharaj
णमौस्तू गूरुवर, कोटिश: नमन्
Namostu Guruvar🙏🙏🙏
Namostu gurudew shat shat bar naman
Namostu gurudev 🙏🙏🙏
Namostu gurudev
Jai jinender ji 🙏
🙏🙏🙏
Nomostu gurudev.
Answer 2 nirman naam karm
चालू कब होने वाला है
Namostu gurudev🙏🙏🙏