अग्निकर्म - आयुर्वेद की एक अद्भूत चिकित्सा पद्धति । वैद्य मेहूल आचार्य - संस्कृति आर्य गुरुकुलम्‌

Поділитися
Вставка
  • Опубліковано 21 гру 2021
  • अग्निकर्म की सामान्य विधि (Procedure of Agnikarma)
    अग्निकर्म को तीन चरणों में सम्पन्न करवाया जाता है।
    (1) पूर्व कर्म (2) प्रधान कर्म (3) पश्चात कर्म
    पूर्वकर्म के अन्तर्गत अग्निकर्म के योग्यायोग्य का विचार कर अग्रोपहरणीय पूर्वक रुग्ण को अग्निकर्म के लिये तैयार किया जाता है। अग्रोपहरणीय के अन्तर्गत अग्निकर्म में प्रयुक्त होने वाले विविध यन्त्र, शलाका, जाम्बवौष्ठ, पिचु, प्लोत, सूत्र, शर, पिप्पली, अजाशकृत् एवं इतरलौह से बने हुये दहनोपकरण, घृत, तैल, वसा, मज्जा, मधु, मधुच्छिष्ट आदि के संग्रहण के साथ ही साथ विविध तर्पण द्रव्यों यथा लाजामण्ड, दुग्ध, शोधन द्रव्यों त्रिफलाकषाय व निम्बक्वाथ आदि अन्य आलेपन व आच्छादन द्रव्यों यथा मधुयष्टि, कदली, घृतकुमारी, जाती (चमेली) तथा अन्य औषधियों जैसे जात्यादि तैल व घृत, चन्दनादि, चन्दनबलादि तैल, शतधौतघृत, मधुच्छिष्टादि घृत आदि उपयोगी औषधियों, शीतल जल, विविध पात्र, आज्ञाकारी परिचारक आदि की व्यवस्था करनी चाहिये।
    (1) पूर्वकर्म - (1. संभार द्रव्य संग्रहण, 2. रक्त तप्त शलाका, 3. स्थान निर्धारण)
    इसके उपरान्त रोगी को आश्वासन पूर्वक मानसिक रुप से तैयार कर लिखित सहमति (Written Consent) लेते हुये अग्निकर्म की तैयारी करनी चाहिये। आवश्यक स्नेहन, स्वेदन कर अग्निकर्म प्रारम्भ करने से पूर्व रोगी को मलमूत्रोत्सर्ग करवाकर शीतवीर्य, लघु, पिच्छिल अन्न का भोजन करवाना चाहिये। जिससे रोगी की प्राण शक्ति व ऊष्मा के प्रति सहनशक्ति बलवती हो जाती है।
    “सर्वव्याधिष्वृतुषु च पिच्छिलमन्नं भुक्तवतः कर्म कुर्वीत अश्मरी भगन्दरार्थोमुखरोगेषु अभुक्तवतः॥” (सु. सू. 12/5)
    आचार्य सुश्रुत ने अन्न को बाह्य प्राण माना है, जिससे आभ्यान्तर प्राणों को शक्ति मिलती है। इस प्रकार शीतवीर्य, लघु, पिच्छिल, अन्न का भोजन अग्निकर्म से उत्पन्न क्षोभ को सहन करने के लिये आवश्यक होता है।
    (2) प्रधान कर्म - अग्निकर्म करते समय रोगी को प्रकाश युक्त स्थान पर पूर्वाभिमुख आसन पर अवस्थित कर विश्वस्त परिचारकों द्वारा भली प्रकार यन्त्रित कर योग्य आसन पर आसीन हो जाने के पश्चात् रोग के स्थान की लम्बाई, चौडाई, मोटाई, गहराई आदि का पूर्ण निरीक्षण कर लेना चाहिये। रोगी व रोग के बलाबल एवं मर्म आदि स्थानों का भी विचार कर लेना चाहिये।
    “रोगस्य संस्थानमेक्ष्य सम्यक् नरस्य मर्माणि बलाबलं च। व्याधिं तथर्तुंचसमीक्ष्य सम्यक् ततो व्यवस्ये भिषग्निकर्म॥" (सु. सू. 12/11)
    इस तरह सभी प्रकार के आश्वस्त होने पर योग्य दहनोपकरण को प्रदीप्त अंगारों/गेस बर्नर पर रक्त वर्ण का होने तक गर्म करके व्याधित प्रदेश में सम्यक दग्ध व्रण बनाना चाहिये।
    (3) पश्चात् कर्म:
    'सम्यग्दग्धे मधुसर्पिभ्यम्भियङ्गः' (सु. सू. 12/13)
    अग्निकर्म से उत्पन्न हुये व्रण के संधान एवं रोपण हेतु मधु एवं घृत का आलेप करना चाहिये।
    घृतकुमारी के गूदे का प्रलेप करके हरिद्रा का अवचूर्णन करना चाहिये, इससे दाहकता एवं वेदना का शमन होता है। जात्यादि तैल, मधुयष्ट्यादि घृत का रोपणार्थ प्रयोग उत्तम होता है।
    अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:-
    +916352483012
    www.sanskrutigurukulam.com​​​
    Facebook पेज लिंक:-
    / mehulsanskruti
    Instagram लिंक:-
    / sanskruti_arya_gurukulam
    हमारे यू ट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करे:
    / @acharyamehulbhai
    वक्ता:-
    डॉ. मेहुलभाई आचार्य
    दर्शनाचार्य, Ph.D. (आयुर्वेद तथा दर्शन शास्त्र)
    संचालक: संस्कृति आर्य गुरुकुलम्‌, राजकोट
    विडियो अच्छा लगे तो लाईक, कमेंट और शेर करना न भुले।
    #Ayurveda​​​ #Gurukul #Bharat #Indian School #Vedic School #Sanskriti Arya Gurukulam #Alternative School #Bharatiya School #Bhakti Yoga School #Learning in India #Ved #Shashtra #Upanishad #Traditional School #Traditional Education #Bharatiya Education #Education in India #Alternative Education System #Mehul Acharya
    SANSKRUTI ARYA GURUKULAM
    "संस्कृति संवर्धन संस्थान" 1970 से भारतीय संस्कृति के आधारभूत ग्रंथों का संरक्षण और संवर्धन करनेवाली संस्था है। "संस्कृति आर्य गुरुकुलम्‌" वैदिक आश्रम प्रणाली के अनुसार शिक्षा प्रदान करने वाला एक गुरुकुल है।
    यहां बच्चों के समग्र विकास के साथ-साथ भारतीय संस्कार, संस्कृतियों और परंपराओं को भी सिखाया जाता है। यहां लोगों के लिए आयुर्वेद, पंचगव्य, पंचकोश विकास, गर्भ संस्कार और भ्रूणविज्ञान, आदर्श माता-पिता, संस्कृत भाषा की कक्षाओं आदि के लिए कई संस्कृति संवर्धन के सेमिनार और पाठ्यक्रम करते हैं।
    यहां बच्चों के अध्ययन और सभी कार्यक्रम मुफ्त या स्वैच्छिक अनुदान के साथ आयोजित किए जाते है ।
  • Наука та технологія

КОМЕНТАРІ • 11

  • @drchiranjikumardixit4459
    @drchiranjikumardixit4459 16 днів тому

    बहुत उपयोगी

  • @sunilkumar-mw9zg
    @sunilkumar-mw9zg 2 роки тому

    आचार्य जी नमस्ते 🙏🙏
    जय गौं माता की 🙏🙏

  • @arvind1631
    @arvind1631 2 роки тому

    धन्यवाद आचार्य जी

  • @kiranmodi5135
    @kiranmodi5135 2 роки тому

    🙏

  • @aartisinghal7552
    @aartisinghal7552 2 роки тому +1

    Guruji isko north me taale lagaana bhi khte ha mere dadaji ye krte the.

  • @shailendrasingh2806
    @shailendrasingh2806 2 роки тому

    गुरुजी प्रणाम

  • @dravinashsongirkar2509
    @dravinashsongirkar2509 8 місяців тому

    सर मैने आयुर्वेद मे पढाई की है। मै ये करसकता हुँ , आपका शिबीर कब है। मुझे अटेंण्ड करना है। किसे कॉन्टँक करना चाहिए। उनका नंबर मिल सकता है क्या।

  • @drnarayanpolawar5493
    @drnarayanpolawar5493 Рік тому

    गुरुजी अग्निकर्म /विध्याकर्म शिकणा चाहते है हमे क्या करना होगा 🙏🙏

  • @ankushdhiman1047
    @ankushdhiman1047 Рік тому

    Acharya g course details

  • @milanpatel9860
    @milanpatel9860 2 роки тому

    Mane karva ya he

  • @sptarget1736
    @sptarget1736 2 роки тому

    🙏