Class 8.41। कर्म बन्ध विज्ञान-तीर्थंकर पद तीनों लोक में सबसे विशिष्ट ख्याति को प्राप्त है सूत्र 11
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- Опубліковано 4 жов 2024
- Class 8.41 summary
यश: कीर्ति नाम कर्म के प्रकरण में हमने जाना
जहाँ यश: कीर्ति गुणों की ख्याति करता है,
अवगुणों को गुण बना देता है
वहाँ अयश: कीर्ति दोष ख्यापित करता है
गुण को दोष में बदल देता है
अयश: कीर्ति के उदय में
दोषों का उद्भावन होता है,
वे प्रकट होते और फैलते हैं,
हम कितनी भी सफाई दें,
कितना भी अपनी सत्यता का बखान करें
लोग हमारा विश्वास करते ही नहीं
यश:कीर्ति से हमारा टेढ़ापन भी सीधा लगता है
और अयश: से हमारी क्षमा, सरलता, सीधापन भी
दूसरों को बेकार सा लगता है
ख्याति तो दोनों के उदय में होती है
महत्वपूर्ण है कि उसका कारण गुण हैं या दोष
इसलिए paper में नाम आना जरूरी नहीं
जरुरी है कि नाम आया क्यों?
अंत में आता है - तीर्थंकर नाम कर्म
इसे तीर्थकर भी कहते है
तीर्थ कर मतलब
तीर्थ को करने वाले
धर्म तीर्थ के प्रवर्तक
या उसके संचालक,
उसके नेता
यह विशेष पुण्य तीर्थकर नाम कर्म देता है
तीर्थंकर मात्र चौबीस ही हुए हैं।
तीसरे काल के अन्त से लेकर
एक कोड़ा-कोड़ी सागर के चतुर्थ काल में
जन्मे असंख्यात लोगों में
केवल चौबीस
जिन्होंने इस अवसर्पिणी काल में
इस कर्म के उदय में दुनिया को कुछ दिया,
धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया,
प्रभावना की,
जिनका तीर्थ चला
मोक्ष तो अनन्तों जीव गए हैं
पर ये चौबीस ही विशिष्ट पुण्य पुरुष हैं
जिनके जाने के बाद आज तक भी इनका नाम चल रहा है
इन्हें ही विशेष रूप से नमन होता है,
इनकी स्तुति करके ही कोई धर्म कार्य होता है
यह तीर्थकर नाम कर्म की ही छाप है
एक बार मोहर लग गई तो लग गई
इनके नाम मात्र से हमारे पाप का नाश होता है,
और हमारे अन्दर पुण्य पैदा होता है
साधु-संत भी प्रतिदिन कई बार इनका नाम स्मरण करते हैं
अपने षटड् आवश्यक में
सबसे पहले कुछ दण्डक पाठ, चौबीस तीर्थंकर स्तुति पाठ अवश्य पढ़ते हैं
प्रतिदिन-रात के 28 कृतिकर्म में न्यूनतम 28 बार नमस्कार करते ही हैं
हमने सीखा - महत्ता जान कर नाम लेने में विशेष भाव आता है
मात्र ऊपर से पढ़ने में नहीं
इसलिए भाव आना चाहिए
कि हम बहुत बड़े महापुरुष,पुण्यात्मा का नाम ले रहे हैं
इन्हें श्लाका पुरूष बोलते हैं।
श्लाका मतलब अच्छी-अच्छी चीजें,
जिन्हें बिलकुल अलग निकाल कर रख दें।
जैसे विशिष्ट-विशिष्ट सलाईयाँ गिन कर अलग कर दी जाती हैं,
जैसे हम हीरे के नगों में, कुछ विशिष्ट नग अलग रख देते हैं।
ऐसे ही अनंतों में, गिनती के ये चौबीस हैं।
तीर्थंकर नाम कर्म से जीव
तीन लोक में ख्याति प्राप्त करता है।
ये समवशरण रुपी वैभव - आर्हन्तय लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं
और पंचकल्याणक की पूजा को प्राप्त होते हैं
तीर्थंकर तीनों लोकों में क्षोभ पैदा करते हैं!
क्षोभ मतलब सबको क्षुब्ध कर देना।
क्षुब्ध मतलब disturb, तहलका मचा देना, अर्थात्
चाहे कोई कितना भी important काम कर रहा हो
इनका जन्म हुआ तो सब छोड़ कर
इन्हीं की ओर भागता है
इन्हीं को देखता है, सुनता है
इनका गुणगान करता है
इनके आने पर
सारे देवता- भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, कल्पवासी,
चक्रवर्ती, बड़े-बड़े राजा सब हिल जाते हैं
सब इनके चरणों में नतमस्तक रहते हैं।
तीर्थंकर नाम कर्म का पुण्य सबसे विशिष्ट होता है
जो सिर्फ इन्हीं के पास होता है।
इनसे थोड़ा छोटा पद गणधर पद है
हमने गणधर पद की विशिष्टता जानी
ये महान ऋद्धिधारी पुरुष, तीर्थंकर के प्रमुख शिष्य होते हैं,
भगवान की वाणी को सुनने की क्षमता रखते है।
इनमें सब चीजें शुभ-शुभ होती हैं
लेकिन तीर्थंकर नाम कर्म की तरह गणधर नाम का कोई नाम कर्म नहीं होता।
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अर्हं योग प्रणेता पूज्य गुरूवर श्री प्रणम्यसागरजी महाराज की जय जय जय 🙏💖🙏💖🙏💖
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