Train ke peechhe kab tak simran daudegi | Nitin Kabir | Shayari Circle - Episode 8

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  • Опубліковано 15 жов 2024
  • Dive deep into the world of emotions and feelings with Nitin Kabir's poignant Shayari. In this episode, we explore the intricacies of love, betrayal, and the resilience of the human spirit. Let the words resonate with your heart and soul.
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    Lyrics:
    इक दिन का रोना ही कहाँ काम आता है
    लगभग तीन ख़ुराक में आराम आता है
    मैंने उस रस्ते से जाना छोड़ दिया
    इक बोर्ड पे कहीं लिक्खा उसका नाम आता है
    ******
    हम इक नाम को अंदर अंदर यूँ बिसराते हैं
    जैसे साधू जोगी बैठे ध्यान लगाते हैं
    दिल में तेरी याद का आलम क्या बतलाऊँ मैं
    इतनी भीड़ है कंधों से कंधे टकराते हैं
    ******
    बाहर उनसे निकला हूँ कई सालों में
    वो जो दो गड्ढे थे उसके गालों में
    मेहनत वाले खुल के कब रो पाते हैं
    आँख का पानी है हाथों के छालों में
    ******
    इश्क़ में ख़ुद को मैं हर बार गँवा देता था
    आदतन फिर भी नया सट्टा लगा‌ देता था
    मैंने बैठा दिया सय्याद में डर भागने का
    वो जो सोता था मैं ज़ंजीर हिला देता था
    ******
    जितनी हमें उमीद थी उतना यहाँ नहीं
    यानी हमारी प्यास का दरिया यहाँ नहीं
    कल फिर से भूल बैठा था औक़ात अपनी मैं
    मैं बैठने को था कि वो बोला यहाँ नहीं
    ******
    आने लगा था तंग मैं राह-ए-तवील से
    सो इश्क़ में पलट गया तेरी सबील से
    ये कौन मेरे हाल पे खाने लगा तरस
    काई छुड़ा रहा है बदन की फ़सील से
    क्या क्या सज़ा है हिज्र में मुझको नहीं पता
    मैं पूछ के बताऊँगा अपने वकील से
    ******
    देख के मुझको उधर से फ़ौरन दौड़ेगी
    दुगुनी तेज़ी से फिर धड़कन दौड़ेगी
    ऐ नए दौर के आशिक़ हाथ बढ़ा भी दे
    ट्रेन के पीछे कब तक सिमरन दौड़ेगी
    ******
    दोस्त हो सकता हूँ पर यार नहीं हो सकता
    इश्क़ में तेरे गिरफ़्तार नहीं हो सकता
    मान बैठा हूँ मैं तो हार तेरी आँखों से
    मुझ से दरिया ये कभी पार नहीं हो सकता
    जो भी बाज़ार में आके मेरी क़ीमत पूछे
    वो कभी मेरा ख़रीदार नहीं हो सकता
    नहीं पानी मुझे मंज़िल तुझे हैरत क्यूँ है
    कोई रस्ते का तलबगार नहीं हो सकता
    मुझसे सौदा भी नितिन मेरी वफ़ादारी का
    फिर कभी देखूँगा इस बार नहीं हो सकता
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    अपनी इक रात का मैं फिर से ख़सारा करके
    दूर से लौटा हूँ जन्नत का नज़ारा करके
    यार उठती है यहीं से तो हवस की आदत
    सो कभी देखना मत इश्क़ दोबारा करके
    फिर मयस्सर नहीं होता है किनारा भी उन्हें
    मैं चला जाता हूँ जिस जिस से किनारा करके
    टूटने वाली शै तो टूट के ही रहती है
    क्या ही करता मैं उसे आँख का तारा करके
    कारख़ाना ही लगा लूँगा नमक का मैं यहाँ
    रोज़ आया करो तुम झीलों को खारा करके
    ******
    दिल से हँसने वाले वो रक़्सिंदा लोग
    कितने कम मिलते हैं अब तो ज़िंदा लोग
    सोना लम्हा लम्हा आग में तपता है
    मेहनतकश होते हैं सब ताबिंदा लोग
    उनको बोलो ग़लती सबसे होती है
    वो कोने में बैठे हैं शर्मिंदा लोग
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    #shayari #Poetistic #ShayariCircle #love #poetry

КОМЕНТАРІ • 2

  • @poetnitish
    @poetnitish 11 місяців тому +1

    शानदार प्रस्तुति। मुझे भी बुलाइये।

  • @sanjayprajapatiwriter
    @sanjayprajapatiwriter 11 місяців тому

    Sir is platform pr kaise join kare apani poetry sunane k liye