वेद मे मूर्ति पूजा है या नहीं?डॉ ज्वलंत कुमार शास्त्री के खोजपूर्ण वक्तव्य को सुनें ओर सत्य को जानें

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  • Опубліковано 1 лют 2025

КОМЕНТАРІ •

  • @yagyabhushansharma1008
    @yagyabhushansharma1008 8 днів тому +2

    आचार्य ज्वलंत शास्त्री जी,आपको सादर प्रणाम करते हुए निवेदन करना है कि आप जैसे विद्वान भी आज बहुत दुर्लभ है।यद्यपि आर्य समाज से जुड़े विद्वानों का आज भी अभाव नहीं है परंतु वैदिक इतिहास के पंडितों तथा विशुद्ध आर्ष विचारों के प्रचार में आपका योगदान भी कम नहीं है। ईश्वर आपको चिरायु करें।

  • @pbalinki
    @pbalinki 9 днів тому +1

    Dear Mission Aryavart, Thanks for hosting Dr Jwalant Kumar Shastri's illuminating speech on idol worship. Admiringly, SC Panda

  • @sikhamohanty8533
    @sikhamohanty8533 10 днів тому +2

    Excellent analysis by respected Sastriji. Many many thanks 🙏

  • @sjagai4873
    @sjagai4873 8 днів тому +1

    Acharya ji ke kotik kotik naman, Arya samaaj ki aur sab vidvanon ke jai, jai kaar aum namaste

  • @mukundmishra45
    @mukundmishra45 8 днів тому +2

    नमस्कार.!आप पुरैना चनपटिया प.चम्पारण आयेहैं.आपका विद्वतापूर्ण व्याख्यान तब सुनने का सौभाग्य मिला था .

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 7 днів тому +1

    परमात्मा को जानने के अनेक मार्ग हो सकते है ओर जो अपनी ही समझ अपनी ही रुचि अपनी ही समझ को सर्वोपरि मानते है वो दंभ का ही एक अंग है परमात्मा के जगत में प्रेम से किया गया हरेक कर्म परमात्मा के लिए है ओर जो भी ऐसा नहीं ऐसा नहीं वो सिर्फ दंभ है निराकार ही आकार है आकार को आकार चाहिए बस प्रेम चाहिए न कि दंभ चाहिए

  • @Rajeshkumar-tv2of
    @Rajeshkumar-tv2of 10 днів тому +1

    बहुत सुन्दर। आचार्य जी को सादर प्रणाम।

  • @SumanRana-v6k
    @SumanRana-v6k 9 днів тому +1

    Dev dayanand ji amar rhe 🙏

  • @SumanRana-v6k
    @SumanRana-v6k 9 днів тому

    Ati sundar prastuti.Sadar namaste guru ji🕉🙏

  • @MOHIT.आर्यवीर
    @MOHIT.आर्यवीर 8 днів тому

    बहुत ही उत्कृष्ठ उद्बोधन

  • @kuldeepkumarsrivastava4623
    @kuldeepkumarsrivastava4623 11 днів тому +4

    मूर्ति पूजा:-
    मूर्ति की वास्तविकता को जानते हुये व्यवहार में इसका उपयोग करते हुये भी सिर्फ मतभेद और लडाई पैदा करने के लिये शेष दुनिया को मुशरिक (मूर्ति पूजक)कहते है और मूर्ति की पूजा (स्वीकार्यता) का विरोध करते है।
    मूर्ति पूजा क्या है?
    विचार निराकार है और कर्म साकार ।अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये एक ,दो या त्रि आयामी (one,two or three diamentional) अंकन ही मूर्ति है। अव्यक्त को व्यक्त करते ही अव्यक्त आकार पा जाता है और यही मूर्ति का प्रारंभ है ।इस प्रकार विषय वस्तु को समझने की स्वीकार्यता ही मूर्ति पूजा है।इस मूर्तिमान जगत में इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।कोई लिपि( script) ध्वनि को आकर देना है, जैसे "अ" की ध्वनि के लिये अल्फा , अलिफ, A आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है ये चिन्ह उस ध्वनि की मूर्ति माने प्रतीक है। किसी भी लिपि का प्रयोग करना मूर्ति पूजा करना और इसे स्वीकार करना है। ध्वनि की सबसे छोटी इकाई मूर्तिपूजा का कोई विकल्प नहीं है क्योकि किसी भाषा की लिपि, चित्र, ड्राइंग, सोशल मीडिया में फोटो वीडियो आदि सब उपयोग कर रहे है।यह सब मूर्ति/ चित्र की स्वीकार्यता माने पूजा है।सब मूर्ति पूजक है पर शेष दुनिया को काफिर कह कर मारने के लिये ये नौटंकी है।
    सादर विचारार्थ

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 7 днів тому

    वेद ही परमात्मा का सरुप है परंतु वेद त्रिगुणात्मक सरुप है ब्रह्म ज्ञानि गुरु ही वेद को जान ओर ज्ञान की समझ दे सकता है

  • @dkpathak2117
    @dkpathak2117 10 днів тому

    ओ३म् 🙏
    Best Speech 👏🏼

  • @subhashtiwari474
    @subhashtiwari474 10 днів тому +1

    गुरुजी आपको चार साल पहले मिला था अमेठी में पं यज्ञ नारायण उपाध्याय जी के यहां। सादर प्रणाम आपको ।

  • @GajendraSingh-eq4tz
    @GajendraSingh-eq4tz 10 днів тому +1

    आचार्य जी सादर प्रणाम आपके वचनों को सुनकर युगपुरुष महर्षि दयानंद जी की क्या ताजा हो गई मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं बताओ आपके दर्शन किस प्रकार होंगे आपका संदेश देने का ढंग है उसके लिए मैं आपका बार बार अभिनंदन करता हूं

  • @vinitaryadhiman401
    @vinitaryadhiman401 11 днів тому +1

    आचार्य जी को कोटि कोटि नमन।

  • @MahendraSingh-h3w
    @MahendraSingh-h3w 10 днів тому

    जय गुरुदेव सत चित आनंद ओ3म

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 7 днів тому

    बेटा और बेटी को प्रणय संबंध के सिलेबस नहीं सिखाए जाते ऐसे ही परम की प्यास ही परम से मिलाती है बस प्रेम की वो आग चाहिए और तो अब आडंबर है मार्ग है सीढ़ी है जरूरी है बस परम से मिलने की प्यास चाहिए

  • @Singeshwar-i5f
    @Singeshwar-i5f 11 днів тому

    Acharya ji ko koti koti naman

  • @NAWEENKUMAR68
    @NAWEENKUMAR68 10 днів тому

    आदरणीय महोदय जी
    यदि आप के समक्ष किसी व्यक्ति को प्रस्तुत किया जाय और आपसे उसका वर्ण निर्धारण करने को कहा जाय। इसी प्रकार अन्यों से यह प्रक्रिया अपनाई जाय। ईमानदारी पूर्वक ऐसा करके व्यवहार में जो निष्कर्ष निकले, उसे साझा करें।

  • @kamalgupta636
    @kamalgupta636 11 днів тому

    प्रणाम 🎉

  • @DevendraSingh-i4p
    @DevendraSingh-i4p 10 днів тому +1

    Satyarth prakash sachhi pustek hea 100/

  • @AbdullahAdam-k2g
    @AbdullahAdam-k2g 10 днів тому

    AP ki prabachan Sahi hai

    • @kuldeepkumarsrivastava4623
      @kuldeepkumarsrivastava4623 9 днів тому

      @@AbdullahAdam-k2g
      मूर्ति पूजा:-
      मूर्ति की वास्तविकता को जानते हुये व्यवहार में इसका उपयोग करते हुये भी सिर्फ मतभेद और लडाई पैदा करने के लिये शेष दुनिया को मुशरिक (मूर्ति पूजक)कहते है और मूर्ति की पूजा (स्वीकार्यता) का विरोध करते है।
      मूर्ति पूजा क्या है?
      विचार निराकार है और कर्म साकार ।अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये एक ,दो या त्रि आयामी (one,two or three diamentional) अंकन ही मूर्ति है। अव्यक्त को व्यक्त करते ही अव्यक्त आकार पा जाता है और यही मूर्ति का प्रारंभ है ।इस प्रकार विषय वस्तु को समझने की स्वीकार्यता ही मूर्ति पूजा है।इस मूर्तिमान जगत में इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।कोई लिपि( script) ध्वनि को आकर देना है, जैसे "अ" की ध्वनि के लिये अल्फा , अलिफ, A आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है ये चिन्ह उस ध्वनि की मूर्ति माने प्रतीक है। किसी भी लिपि का प्रयोग करना मूर्ति पूजा करना और इसे स्वीकार करना है। ध्वनि की सबसे छोटी इकाई मूर्तिपूजा का कोई विकल्प नहीं है क्योकि किसी भाषा की लिपि, चित्र, ड्राइंग, सोशल मीडिया में फोटो वीडियो आदि सब उपयोग कर रहे है।यह सब मूर्ति/ चित्र की स्वीकार्यता माने पूजा है।सब मूर्ति पूजक है पर शेष दुनिया को काफिर कह कर मारने के लिये ये नौटंकी है।
      सादर विचारार्थ

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 10 днів тому +8

    वेद त्रिगुणात्मक है जैसे भाव ऐसी समझ मूर्ति की पूजा उस परम परमात्मा से प्रेम करने का तरीका है निराकार से प्रेम नहीं होता आकार को आकार चाहिए निराकार के लिए सीढ़ी मार्ग जरूरी है मंजिल पर पहुंचने लिए ओर आने बाली पीढ़ी को ज्ञान के लिए

    • @sastriji9547
      @sastriji9547 9 днів тому

      Direct kyun nahi kr sakte
      Or duniya ke log krte hai
      Aapko kya dikkat hai 😀😀😀😀

    • @DharmeshAgrawal-i7i
      @DharmeshAgrawal-i7i 9 днів тому +1

      @sastriji9547 डायरेक्ट आप जैसे ज्ञानि जन ही कर सकते है सामान्य जन को कुछ आधार चाहिए

    • @VivekKumar-pj8xg
      @VivekKumar-pj8xg 9 днів тому +1

      Sandya Or yagya koro Tabhi prem hoga murti se nahi

    • @DharmeshAgrawal-i7i
      @DharmeshAgrawal-i7i 9 днів тому

      प्रेम को प्रकट करने के तरीके भिन्न हो सकते है भाव सबके एक सत्य सबका एक विचार सबके अनेक है

    • @Abhinav-_000_
      @Abhinav-_000_ 7 днів тому +1

      Ishwar koi roop hi nahi hota hai toh aap kisko Ishwar samajh ke pujoge??

  • @krishnakumararya1120
    @krishnakumararya1120 11 днів тому +1

    🧘🌞॥ ओ३म् ॥🌞🧘
    श्रद्धेय डॉ ज्वलंत शास्त्री जी को सादर नमस्ते 🙏🏻
    🌹💐🌻🌹
    कृष्ण कुमार आर्य
    चेतगंज वाराणसी

    • @kuldeepkumarsrivastava4623
      @kuldeepkumarsrivastava4623 11 днів тому

      मूर्ति पूजा:-
      मूर्ति की वास्तविकता को जानते हुये व्यवहार में इसका उपयोग करते हुये भी सिर्फ मतभेद और लडाई पैदा करने के लिये शेष दुनिया को मुशरिक (मूर्ति पूजक)कहते है और मूर्ति की पूजा (स्वीकार्यता) का विरोध करते है।
      मूर्ति पूजा क्या है?
      विचार निराकार है और कर्म साकार ।अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये एक ,दो या त्रि आयामी (one,two or three diamentional) अंकन ही मूर्ति है। अव्यक्त को व्यक्त करते ही अव्यक्त आकार पा जाता है और यही मूर्ति का प्रारंभ है ।इस प्रकार विषय वस्तु को समझने की स्वीकार्यता ही मूर्ति पूजा है।इस मूर्तिमान जगत में इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।कोई लिपि( script) ध्वनि को आकर देना है, जैसे "अ" की ध्वनि के लिये अल्फा , अलिफ, A आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है ये चिन्ह उस ध्वनि की मूर्ति माने प्रतीक है। किसी भी लिपि का प्रयोग करना मूर्ति पूजा करना और इसे स्वीकार करना है। ध्वनि की सबसे छोटी इकाई मूर्तिपूजा का कोई विकल्प नहीं है क्योकि किसी भाषा की लिपि, चित्र, ड्राइंग, सोशल मीडिया में फोटो वीडियो आदि सब उपयोग कर रहे है।यह सब मूर्ति/ चित्र की स्वीकार्यता माने पूजा है।सब मूर्ति पूजक है पर शेष दुनिया को काफिर कह कर मारने के लिये ये नौटंकी है।
      सादर विचारार्थ

  • @althea_is_smokin_hot
    @althea_is_smokin_hot 9 днів тому

    Sir,idol worship is the best way to worship God.
    Or fall back to empty box or candles.

  • @ramachandra8999
    @ramachandra8999 9 днів тому

    😢❤Addi SATA Yuga re Pura vagaban guru Pooja Bina ayu kayunasi hebnahi or here chests kale Madhya anyanya Pooja lapass hogayi lordz R ch s devanam

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 7 днів тому

    आग में कैसे भी गिरे आग तो जला देती चाहे मंत्र चाहे पाठ चाहे मूर्ति चाहे जैसे जाय आग जला ही देती है वो नहीं देखती यह गिला है यह सुखा है यह नास्तिक है यह आस्तिक है आग होनी चाहिए

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 10 днів тому

    भगवान को पाना हो तो प्रेम चाहिए न ग्रन्थ चाहिए न माला चाहिए बस प्रेम चाहिए प्रेम चाहिए न ध्यान चाहिए और न मान चाहिए।भगवान को गर पाना है तो प्रेम चाहिए

    • @kuldeepkumarsrivastava4623
      @kuldeepkumarsrivastava4623 10 днів тому

      मूर्ति पूजा:-
      मूर्ति की वास्तविकता को जानते हुये व्यवहार में इसका उपयोग करते हुये भी सिर्फ मतभेद और लडाई पैदा करने के लिये शेष दुनिया को मुशरिक (मूर्ति पूजक)कहते है और मूर्ति की पूजा (स्वीकार्यता) का विरोध करते है।
      मूर्ति पूजा क्या है?
      विचार निराकार है और कर्म साकार ।अव्यक्त को व्यक्त करने के लिये एक ,दो या त्रि आयामी (one,two or three diamentional) अंकन ही मूर्ति है। अव्यक्त को व्यक्त करते ही अव्यक्त आकार पा जाता है और यही मूर्ति का प्रारंभ है ।इस प्रकार विषय वस्तु को समझने की स्वीकार्यता ही मूर्ति पूजा है।इस मूर्तिमान जगत में इसका अन्य कोई विकल्प नहीं है।कोई लिपि( script) ध्वनि को आकर देना है, जैसे "अ" की ध्वनि के लिये अल्फा , अलिफ, A आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाता है ये चिन्ह उस ध्वनि की मूर्ति माने प्रतीक है। किसी भी लिपि का प्रयोग करना मूर्ति पूजा करना और इसे स्वीकार करना है। ध्वनि की सबसे छोटी इकाई मूर्तिपूजा का कोई विकल्प नहीं है क्योकि किसी भाषा की लिपि, चित्र, ड्राइंग, सोशल मीडिया में फोटो वीडियो आदि सब उपयोग कर रहे है।यह सब मूर्ति/ चित्र की स्वीकार्यता माने पूजा है।सब मूर्ति पूजक है पर शेष दुनिया को काफिर कह कर मारने के लिये ये नौटंकी है।
      सादर विचारार्थ

    • @DharmeshAgrawal-i7i
      @DharmeshAgrawal-i7i 9 днів тому

      100 परसेंट सत्य विचार है आपके धन्यवाद

  • @ghanshyamsoni3459
    @ghanshyamsoni3459 9 днів тому

    निर्गुण सर्गुण नहि कछु भेदा।उभय बीच जिमि वारि बिभेदा। मूर्ति पूजा धर्म विरोधी है हम स्वामीजी की जयंती क्यों मनाते हैं उनकी पूजा क्यों करते हैं।। परमात्मा निराकार है यह सत्य है, लेकिन सृष्टि करने के लिए निराकार ही साकार रूप धारण करता है।फिर उसकी पूजा क्यों नहीं करना चाहिए। जयसियाराम

  • @jaybhavani8416
    @jaybhavani8416 10 днів тому

    🧘
    We expect truthful scientific research oriented informative videos on
    Video - The Spirit of God....
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    word first used in the gantha
    Yogvasistha
    *
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    word used in veds
    ( Is the Kundalini Shakti ? )
    *
    Granth -
    Spand shastra
    Pratya bhinya hruday
    :
    :
    🚩
    Towards the Truth .

  • @RamdayalSingh-w8s
    @RamdayalSingh-w8s 9 днів тому

    नाम रूपमयी प्रकृति ही परमात्मा की मूर्ति है ! निराकार की ही अभिव्यक्ति है साकार ! साकार के बिना निराकार का ज्ञान नहीं होता ! साकार रूप के बिना निराकार स्वरूप का परिचय नहीं प्राप्त होता क्योंकि न तस्य प्रतिमा अस्ति अर्थात् निराकार अप्रतिम है और साकार का अधिष्ठान निराकार ही है !
    जय सनातन !!
    जय सनातन !

  • @DharmeshAgrawal-i7i
    @DharmeshAgrawal-i7i 10 днів тому

    बिना प्रेम रीझे नहीं वो नतबर नंद किशोर

  • @r.kagency9296
    @r.kagency9296 7 днів тому

    Bebkoof

  • @jaminidas8357
    @jaminidas8357 11 днів тому +3

    Ary Chacha unhi Baghwadutt g na ussi Granth ma Varna ko Janmana mana h wo bhi to batao. Aadhi adhuri jankari bata rhe ho.😂😂😂😂

    • @Namaste-up9tg
      @Namaste-up9tg 10 днів тому

      Kaha mana dikha

    • @SandeepYadav-gx3nj
      @SandeepYadav-gx3nj 10 днів тому

      भाई वेद में जन्म के आधार पर vrna का कोई उल्लेख ही नहीं है.. यहां तक rigved में शुद्र शब्द भी मात्र एक बार आया है 10 वे मंडल में..जो खुद वामपंथी इतिहाकार और सेकुलर इतिहासकार एक क्षेपक मानते है..दूसरी बात वेद कही भी किसी varn के साथ भेदभाव का एक भी मंत्र नहीं है..अंग्रेज इतिहासकारों ने एक मात्र एक मंत्र को पकड़ कर इस तरह की बात फैलाई, कमाल की बात है उस मंत्र में भी भेदभाव का जिक्र नहीं है..दुष्ट पण्डो ने अपराध ये किया कि बाकी vrno को वेद पढ़ने से मना किया तो इसमें दोष उन कपटी पण्डो या ब्राह्मणों का है वेद का नहीं.. वे तो वेद के सबसे बड़े अपराधी है खुद कभी वेद पढ़े नहीं और दूसरों को भी नहीं पढ़ने दिया..