दोनों कलाकारों की ओर से गोपियों और कृष्ण के प्रेम पर सुन्दर प्रस्तुती | सीता जी लक्ष्मी का अवतार नहीं हैं | उनके लिए मानस बतलाती है कि - उपजहिं जासु अंस गुनखानी |अगनित उमा रमा ब्रम्हानी || लक्ष्मी जी के लिए लिखा है कि - बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही |कहिय उमा सम किमि बैदेही || लक्ष्मी जी तो खारे समुद्र से निकली थीं, कर्कश पीठ वाले कछुए को आधार बनाया गया था | रस्सी महान विषधर वासुकी नाग की और मथानी अति कठोर मन्दराचल की बनाई गई थी | लेकिन - जौ छबि सुधा पयोनिधि होई | परम रूपमय कच्छपु सोई || सोभा रजु मंदर सिंगारू |मथै पानि पंकज निज मारू || अर्थात, यदि छवि रूपी अमृत का समुद्र हो, परमरूप मय कच्छप हो, शोभा रूप रस्सी हो, श्रंगार रस पर्वत हो और उस छवि रूप समुद्र को स्वयं कामदेव अपने करकमलों से मथे | एहि बिधि उपजै लच्छि जब, सुन्दरता सुख मूल | तदपि सकोच समेत कबि, कहहिं सीय समतूल || अर्थात, इस प्रकार का संयोग होने से जब सुन्दरता और सुख की मूल लक्ष्मी उत्पन्न हो, तब भी कवि लोग उसे बहुत संकोच के साथ सीता जी के समान कहेंगे |
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दोनों कलाकारों की ओर से गोपियों और कृष्ण के प्रेम पर सुन्दर प्रस्तुती |
सीता जी लक्ष्मी का अवतार नहीं हैं | उनके लिए मानस बतलाती है कि -
उपजहिं जासु अंस गुनखानी |अगनित उमा रमा ब्रम्हानी ||
लक्ष्मी जी के लिए लिखा है कि -
बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही |कहिय उमा सम किमि बैदेही ||
लक्ष्मी जी तो खारे समुद्र से निकली थीं, कर्कश पीठ वाले कछुए को आधार बनाया गया था | रस्सी महान विषधर वासुकी नाग की और मथानी अति कठोर मन्दराचल की बनाई गई थी | लेकिन -
जौ छबि सुधा पयोनिधि होई | परम रूपमय कच्छपु सोई ||
सोभा रजु मंदर सिंगारू |मथै पानि पंकज निज मारू ||
अर्थात, यदि छवि रूपी अमृत का समुद्र हो, परमरूप मय कच्छप हो, शोभा रूप रस्सी हो, श्रंगार रस पर्वत हो और उस छवि रूप समुद्र को स्वयं कामदेव अपने करकमलों से मथे |
एहि बिधि उपजै लच्छि जब, सुन्दरता सुख मूल |
तदपि सकोच समेत कबि, कहहिं सीय समतूल ||
अर्थात, इस प्रकार का संयोग होने से जब सुन्दरता और सुख की मूल लक्ष्मी उत्पन्न हो, तब भी कवि लोग उसे बहुत संकोच के साथ सीता जी के समान कहेंगे |