आज के समाज में वर्ण व्यवस्था का असली मतलब बहुत कम लोग समझते हैं, बहुत सराहनीय प्रयास है । कुछ तो इतने मूर्ख हैं कि चार किताब पढ़कर कहते हैं कि ब्राह्मणों को सिर्फ पूजा पाठ और ज्योतिष में ही अपना करियर बनाना चाहिए और रेफरेंस वर्ण व्यवस्था का देते हैं जबकि यह नहीं समझते कि पठन पाठन का कार्य भी समाज में ब्राह्मण का ही है। मेरे विचार में धर्म ग्रंथों को समझने के लिए एक ब्रॉड mindset की अत्यधिक आवश्यकता है संकीर्ण मानसिकता से तो लोग सुंदरकांड का ही गलत मतलब निकाल लेते हैं। ऐसे ही अच्छा कंटेंट बनाते रहिए... सीताराम जी ऐसे कंटेंट को खूब वायरल करें
जी हां, सही बात है 💯 । ब्राह्मण को वर्णाश्रम के अनुसार ही कर्म करने चाहिए शिक्षा दीक्षा ये उसके कार्य हैं लेकिन इसके अपवाद भी हैं जैसे अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य, भगवान् परशुराम इत्यादि । अतः स्वकर्म अनुसार ब्राह्मण बाध्य नहीं किसी विशेष कार्य के लिए । वर्तमान कलियुग में तो हर क्षेत्र में संघर्ष करके देश को औन्नत्य पथ पर ले जा सकते हैं । आपका अनंत आभार 🌼🙏🏻 ☺️
29:14 exactly 💯 bhai. Jo brahman sarkari Naukri mein unhe kuchh " "मूर्ख शिरोमणि" अधम ब्राह्मण कहते है, aur tark dete hain ki naukri karna toh bahut galat baat hai Brahmano ke liye..😅 *Note : मैंने मूर्ख शिरोमणि शब्द रामभद्राचार्य जी के संदर्भ में नहीं बल्कि मेरे एक जानकार के संदर्भ उपयोग किया है, लोग गलत ना समझें। उनके बारे में टिप्पणी करने के लिए मैं qualified नहीं हूं।
ब्राह्मण वर्षों से नौकरी करते आ रहे हैं । पहले के युग में भी राजा के एक ब्राह्मण दल होता था जो राजाओं को मार्गदर्शन देता था अतः आज के युग में भी ब्राह्मणों को नौकरी करने में कोई दोष नहीं है और मुख्य वार्ता जो ऐसी बात कर रहे क्या वे उनके वर्णाश्रम का पालन कर रहे हैं ? ब्राह्मणों को ज्ञान देना सरल है लेकिन ब्राह्मणत्व का जीवन जीना कठिन है । इसलिए ऐसे दुष्टों से सभी बचकर रहें । रामभद्राचार्य जी के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं है😅🥲 उनकी विद्वत्ता शास्त्रमर्दन के लिए ही है । आपका धन्यवाद सहयोग के लिए 🙏🏻❤️💯🌼☺️
बिल्कुल सत्य है 🙏🙏
आभार 🙏🏻🌼
❤❤
☺️❤️🪷
आज के समाज में वर्ण व्यवस्था का असली मतलब बहुत कम लोग समझते हैं, बहुत सराहनीय प्रयास है । कुछ तो इतने मूर्ख हैं कि चार किताब पढ़कर कहते हैं कि ब्राह्मणों को सिर्फ पूजा पाठ और ज्योतिष में ही अपना करियर बनाना चाहिए और रेफरेंस वर्ण व्यवस्था का देते हैं जबकि यह नहीं समझते कि पठन पाठन का कार्य भी समाज में ब्राह्मण का ही है।
मेरे विचार में धर्म ग्रंथों को समझने के लिए एक ब्रॉड mindset की अत्यधिक आवश्यकता है संकीर्ण मानसिकता से तो लोग सुंदरकांड का ही गलत मतलब निकाल लेते हैं।
ऐसे ही अच्छा कंटेंट बनाते रहिए...
सीताराम जी ऐसे कंटेंट को खूब वायरल करें
जी हां, सही बात है 💯 । ब्राह्मण को वर्णाश्रम के अनुसार ही कर्म करने चाहिए शिक्षा दीक्षा ये उसके कार्य हैं लेकिन इसके अपवाद भी हैं जैसे अश्वत्थामा, द्रोणाचार्य, भगवान् परशुराम इत्यादि । अतः स्वकर्म अनुसार ब्राह्मण बाध्य नहीं किसी विशेष कार्य के लिए । वर्तमान कलियुग में तो हर क्षेत्र में संघर्ष करके देश को औन्नत्य पथ पर ले जा सकते हैं । आपका अनंत आभार 🌼🙏🏻 ☺️
29:14 exactly 💯 bhai. Jo brahman sarkari Naukri mein unhe kuchh " "मूर्ख शिरोमणि" अधम ब्राह्मण कहते है, aur tark dete hain ki naukri karna toh bahut galat baat hai Brahmano ke liye..😅
*Note : मैंने मूर्ख शिरोमणि शब्द रामभद्राचार्य जी के संदर्भ में नहीं बल्कि मेरे एक जानकार के संदर्भ उपयोग किया है, लोग गलत ना समझें। उनके बारे में टिप्पणी करने के लिए मैं qualified नहीं हूं।
ब्राह्मण वर्षों से नौकरी करते आ रहे हैं । पहले के युग में भी राजा के एक ब्राह्मण दल होता था जो राजाओं को मार्गदर्शन देता था अतः आज के युग में भी ब्राह्मणों को नौकरी करने में कोई दोष नहीं है और मुख्य वार्ता जो ऐसी बात कर रहे क्या वे उनके वर्णाश्रम का पालन कर रहे हैं ?
ब्राह्मणों को ज्ञान देना सरल है लेकिन ब्राह्मणत्व का जीवन जीना कठिन है । इसलिए ऐसे दुष्टों से सभी बचकर रहें ।
रामभद्राचार्य जी के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं है😅🥲
उनकी विद्वत्ता शास्त्रमर्दन के लिए ही है ।
आपका धन्यवाद सहयोग के लिए 🙏🏻❤️💯🌼☺️
सही बात है भाई
❤️🌼☺️🪷
सही बात बोलना सबको बुरा लगता है भाई तुम लगे रहो शेषमंगल कामना
आभार 🌼☺️