नवरात्रि विशेष कवरेज देखिए : धुम्बड़ा पर्वत पर स्थित महाभारत कालीन सुभद्रा माता का प्राचीन मंदिर

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  • Опубліковано 25 жов 2024
  • नवरात्रि विशेष: धुम्बड़ा पर्वत पर स्थित महाभारत कालीन सुभद्रा माता का प्राचीन मंदिर
    जालौर ( 3 अक्टूबर 2024 )
    नमस्कार साथियों, नवरात्रि की शुभ शुरुआत के अवसर पर हम आपको जालौर के एक पवित्र और ऐतिहासिक स्थल की यात्रा पर ले चल रहे हैं। अगर आप जालौर के निवासी हैं या इस भूमि से जुड़े हुए हैं, तो यह जानकारी आपके लिए विशेष महत्व रखती है। आज हम आपको धुम्बड़ा पर्वत पर स्थित सुभद्रा माता के प्राचीन मंदिर की अनमोल यात्रा पर ले चलेंगे, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण भी एक महत्वपूर्ण स्थान है।
    धुम्बड़ा पर्वत और सुभद्रा माता का मंदिर
    जालौर जिले के भाद्राजून गांव के निकट धुम्बड़ा पर्वत पर स्थित यह प्राचीन मंदिर महाभारतकालीन घटनाओं से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर का प्रमुख ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व यह है कि यहीं पर सुभद्रा और अर्जुन का गंधर्व विवाह सम्पन्न हुआ था। किंवदंतियों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की सहमति से अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया और इस रमणीय स्थल पर विवाह सम्पन्न किया।
    मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
    महाभारत की कहानियों के अनुसार, जब अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें इस पहाड़ी पर रुकने का निर्देश दिया। यह स्थान द्वारिका से लगभग 500 योजन दूर था, जहां बलराम का प्रभाव नहीं पहुंच सकता था। तब इस क्षेत्र को ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि के रूप में जाना जाता था। अर्जुन और सुभद्रा का विवाह एक स्थानीय पुरोहित द्वारा सम्पन्न किया गया था। इस विवाह के उपलक्ष्य में अर्जुन ने पुरोहित को शंख भेंट किया, और सुभद्रा ने उन्हें अपनी नाक की बाली दी। इस घटना के बाद से यह स्थान 'शंखवाली' और 'सुभद्राअर्जुनपुरी' के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आगे चलकर भाद्राजून कहलाया।
    धार्मिक महत्व और आस्था का केंद्र
    सुभद्रा माता का यह मंदिर हर साल हजारों श्रद्धालुओं का केंद्र बनता है, विशेषकर चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों से श्रद्धालु यहां आकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सुभद्रा माता के दरबार में सच्चे मन से आता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
    यह स्थान भक्तों के लिए एक तीर्थस्थल के रूप में भी देखा जाता है, और यहां आने वाले भक्त न केवल धार्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी अनुभव करते हैं।
    धुम्बड़ा पर्वत और धुम्बड़गढ़ बाबा की कथा
    स्थानीय किंवदंती के अनुसार, बाबा धुम्बड़गढ़ देवी के परम भक्त थे। एक बार, जब वे हिंगलाज माता शक्तिपीठ के कुम्भ मेले में जा रहे थे, तो सुभद्रा माता ने वृद्धा का रूप धारण करके उनसे यात्रा में साथ चलने का अनुरोध किया। बाबा ने उन्हें कंधों पर बिठाया और माता के आशीर्वाद से वे चमत्कारिक रूप से हिंगलाज पहुंच गए। इस घटना के बाद से यह पर्वत 'धुम्बड़ा पर्वत' के नाम से जाना जाता है।
    नवरात्रि के गरबे और विशेष आयोजन
    नवरात्रि के दौरान यहां विशेष रूप से गरबे और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। भक्तगण भक्ति में लीन होकर मां की आराधना करते हैं। नवरात्रि के अवसर पर इस स्थल का वातावरण भक्तिमय हो जाता है, और यहां आने वाले सभी श्रद्धालु भक्ति और आनंद से ओतप्रोत होते हैं।
    मंदिर तक कैसे पहुंचे?
    धुम्बड़ा माता के मंदिर तक पहुंचने के लिए भाद्राजून से पक्की सड़क मार्ग उपलब्ध है, जो यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यात्रा को सुगम बनाता है। भाद्राजून जालौर जिले में स्थित एक प्रमुख गांव है, जहां से यह पवित्र स्थल कुछ ही दूरी पर स्थित है।
    अगर आप भी इस नवरात्रि के अवसर पर सुभद्रा माता के दर्शन करना चाहते हैं, तो यह एक सुनहरा अवसर है। यहां की ऐतिहासिक धरोहर और धार्मिक महत्व आपके जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देगा। नवरात्रि के इस पावन अवसर पर धुम्बड़ा पर्वत और सुभद्रा माता के दर्शन कीजिए और मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।
    Navratri Special: Ancient temple of Subhadra Mata from Mahabharata period situated on Dhumbara Mountain
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