बहुत सुंदर विश्लेषण भारतीय और पाश्चात्य वायलिन का। आपके बताने पर ही हम भी जाने। पाश्चात्य अभिरुचि वाला व्यक्ति " मेरा जूता है जापानी" की धुन से खुश होता है , न मीड़, न गमक। किंतु हिंदुस्तानी संगीत प्रेमी को वायलिन के इनीशियल और इंटरवल म्यूजिक के वायलिन पीसेज़ बहुत पसंद हैं " एक प्यार का नगमा" गाने में। लिरिक नहीं म्यूजिक ने इस गीत को लोकप्रिय बनाया, मैं मानता हूं। राधे राधे।
बहुत ही अच्छी तरह से आपने समझाया है असगर भाई 🌹। मैं तो आपका बहुत बड़ा प्रशंसक हूं 🌹 बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आप को। आप इसी तरह से संगीत का प्रचार प्रसार करते रहें। ज्ञान बांटते रहें 🙏 विजय शंकर मिश्र दिल्ली
Loved it so much.. excellently explained through lec.dem as needed for listeners.ये सच है कि वायलिन एक विदेशी साज़ है मगर हिंदुस्तानी मौसीक़ी ने इस साज़ को सच्चे मन से गोद ले कर एक मां की तरह राग रागनियों के दूध में सरगम की मिठास मिला कर इसे पिलाया है और परवरिश की है।आज हिंदुस्तानी संगीत वायलिन के बिना अधूरा है। बहुत मुबारक।
AAFREEN2 भाई जान,पहले तो वायलिन और सरोद एक अन्धा साज़ है एक तो इसको रास्ता दिखाना वो भी क्लासिकल स्वरों यानी अंग्रेज की हिन्दी मे नमस्कार ठीक से सीखना मुश्किल है कहा इस वेस्टन साज़ इंडियन क्लासिकल में गायकी अंग बजाना बहुत मेहनत कल्पना हो बल्कि उस्तादों की भरपूर दुआओं का कमाल है पियानो में खड़े हार्ड नोट्स लगते हैं क्लासीकल इसी लिए तानपुरा महत्चपूर्ण है उसमें स्वयंसम्भू नाद निककते है वेस्टन में नहीं वो जूता पहनकर खड़े होकर गाते हैं या कुर्सी पर बैठकर बजाते हैं हम इबादत के जूते उतार कर बैठकर बजाते है इन दोनों शैलियों को जिस सिद्दत से मेहनत से आपने प्रस्तुत किया लाजवाब है काबिले तारीफ है बहुत2 मुबारक
बहुत अच्छी मिसाल देकर आपने Indian N Western Vadan men Refference को
बताया आपने Waaahhh 👍👍🎻🎻
बहुत सुंदर विश्लेषण भारतीय और पाश्चात्य वायलिन का। आपके बताने पर ही हम भी जाने।
पाश्चात्य अभिरुचि वाला व्यक्ति " मेरा जूता है जापानी" की धुन से खुश होता है , न मीड़, न गमक। किंतु हिंदुस्तानी संगीत प्रेमी को वायलिन के इनीशियल और इंटरवल म्यूजिक के वायलिन पीसेज़ बहुत पसंद हैं " एक प्यार का नगमा" गाने में। लिरिक नहीं म्यूजिक ने इस गीत को लोकप्रिय बनाया, मैं मानता हूं।
राधे राधे।
बहुत ही अच्छी तरह से आपने समझाया है असगर भाई 🌹। मैं तो आपका बहुत बड़ा प्रशंसक हूं 🌹 बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आप को। आप इसी तरह से संगीत का प्रचार प्रसार करते रहें। ज्ञान बांटते रहें 🙏 विजय शंकर मिश्र दिल्ली
Waah Ustad ji ..kitni achhi tarah se samjhaya..kya baat hai..
बहुत सुंदर विश्लेषण भारतीय और पाश्चात्य वायलिन का। आपके बताने पर ही हम भी जाने।
यदि
Loved it so much.. excellently explained through lec.dem as needed for listeners.ये सच है कि वायलिन एक विदेशी साज़ है मगर हिंदुस्तानी मौसीक़ी ने इस साज़ को सच्चे मन से गोद ले कर एक मां की तरह राग रागनियों के दूध में सरगम की मिठास मिला कर इसे पिलाया है और परवरिश की है।आज हिंदुस्तानी संगीत वायलिन के बिना अधूरा है। बहुत मुबारक।
As a beginner I am blessed to listen this, thanks respected gentlemens
Explained Deeply n Nicely. Thank You Ustadji
Wah, bahut acchi tarah se samjhaya hai 👏👏
Wah kiya baat hi mhashallha
Waaahhh Ustaad ji Lajwaab 👏👏🎻👏
Excellent🙏🙏🙏👍
AAFREEN2 भाई जान,पहले तो वायलिन और सरोद
एक अन्धा साज़ है एक तो इसको रास्ता दिखाना वो भी क्लासिकल स्वरों यानी अंग्रेज की हिन्दी मे नमस्कार
ठीक से सीखना मुश्किल है कहा इस वेस्टन साज़ इंडियन क्लासिकल में गायकी अंग बजाना बहुत मेहनत कल्पना हो बल्कि उस्तादों की भरपूर दुआओं
का कमाल है पियानो में खड़े हार्ड नोट्स लगते हैं
क्लासीकल इसी लिए तानपुरा महत्चपूर्ण है उसमें
स्वयंसम्भू नाद निककते है वेस्टन में नहीं
वो जूता पहनकर खड़े होकर गाते हैं या कुर्सी पर बैठकर बजाते हैं हम इबादत के जूते उतार कर बैठकर बजाते है इन दोनों शैलियों को जिस सिद्दत से मेहनत से आपने प्रस्तुत किया लाजवाब है काबिले तारीफ है
बहुत2 मुबारक