भईयाजी प्रणाम 🌺🌺🙇🏻♀️ भईयाजी आपने संकल्प विकल्प का बहुत अच्छा अर्थ बताया।आश्चर्यजनक लगा और खुशी भी हुई। दर्शन का अर्थ भी बहुत अच्छा लगा। भईयाजी आपने एक ध्यान में सभी को आनंदस्वरुप देखने का जो अभ्यास बताया है, बहुत स्लो हूं पर उसी की कोशिश कर रही हूं। वही करूं न? ये जो continue हम बिना बोले मन में बड़बड़ करते है यही विकल्प है न?वो रुक जाए तो अच्छा हो।
40 din to usi dhyan ka abhyas kriye ..मन मे जो कुछ बोल रहे उसे मनोराज्य या विकल्पना कुछ भी कह सकते हैं उसे मिटाने के लिए स्वांस गिनने की आदत डालनी चाहिए
एक प्रश्न था की परमार्थ का ब्रह्म निर्गुण निराकार है तो निर्गुण निराकार से व्यवहार का सगुण साकार जगत केसे आया अगर कहे की बिज मे अंकुर के समान ब्रह्म मे यह गुण पेहले से है तो ब्रह्म निर्गुण केसे हो सकता है
निर्गुण निराकार ब्रह्म से सगुण साकार जगत ठीक वैसे ही अनुभूत होता है जैसे आकाश में नीलिमा ..नही होने पर भी दिखती है ..वास्तव में जगत उतपन्न नही होता सिर्फ प्रतीत होता है
Satya bat kahi
Hari
भईयाजी प्रणाम 🌺🌺🙇🏻♀️
भईयाजी आपने संकल्प विकल्प का बहुत अच्छा अर्थ बताया।आश्चर्यजनक लगा और खुशी भी हुई। दर्शन का अर्थ भी बहुत अच्छा लगा।
भईयाजी आपने एक ध्यान में सभी को आनंदस्वरुप देखने का जो अभ्यास बताया है, बहुत स्लो हूं पर उसी की कोशिश कर रही हूं। वही करूं न?
ये जो continue हम बिना बोले मन में बड़बड़ करते है यही विकल्प है न?वो रुक जाए तो अच्छा हो।
40 din to usi dhyan ka abhyas kriye ..मन मे जो कुछ बोल रहे उसे मनोराज्य या विकल्पना कुछ भी कह सकते हैं उसे मिटाने के लिए स्वांस गिनने की आदत डालनी चाहिए
जी भईयाजी
धन्यवाद🙏🏻🙏🏻
एक प्रश्न था की परमार्थ का ब्रह्म निर्गुण निराकार है तो निर्गुण निराकार से व्यवहार का सगुण साकार जगत केसे आया अगर कहे की बिज मे अंकुर के समान ब्रह्म मे यह गुण पेहले से है तो ब्रह्म निर्गुण केसे हो सकता है
निर्गुण निराकार ब्रह्म से सगुण साकार जगत ठीक वैसे ही अनुभूत होता है जैसे आकाश में नीलिमा ..नही होने पर भी दिखती है ..वास्तव में जगत उतपन्न नही होता सिर्फ प्रतीत होता है