Your discourse explains in simple words of a common man that we are all spiritual souls having a human body experience for some time on earth. We are eternal immortal part of the supreme divine soul parmatma.
मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥1॥ मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥2॥ मैं न प्राण चेतना हूं‚ न ही ह्यशरीर को चलाने वालीहृ पञ्च वायु हूं मैं न ह्यशरीर का निर्माण करने वालीहृ सात धातुएं हूं‚ और न ही ह्यशरीर केहृ पाँच कोश मैं न वाणी हूं‚ न हाथ हूं‚ न पैर‚ न ही विसर्जन की इंद्रियां हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः न धर्मो न चार्थोन कामो न मोक्षः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥ न मुझे किसी से वैर है‚ न किसी से प्रेम‚ न मुझे लोभ है‚ न मोह न मुझे अभिमान है‚ न ईष्र्या मैं धर्म‚ धन‚ लालसा एवं मोह से परे हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥4॥ मैं पुण्य‚ पाप‚ सुख और दुख से विलग हूं न मैं मंत्र हूं‚ न तीर्थ‚ न ज्ञान‚ न ही यज्ञ न मैं भोजन हूं‚ न ही भोगने योग्य हूं‚ और न ही भोक्ता हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥ न मुझे मृत्यु का डर है‚ न जाति का भय मेरा न कोई पिता है‚ न माता‚ न ही मैं कभी जन्मा था मेरा न कोई भाई है‚ न मित्र‚ न गुरु‚ न शिष्य मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् न चासंगत नैव मुक्तिर्न मेयः चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥6॥ मै निर्विकल्प हूं‚ निराकार हूं मैं विचार विमुक्त हूं‚ और सर्व इंद्रियों से पृथक हूं न मैं कल्पनीय हूं‚ न आसक्ति हूं‚ न ही मुक्ति हूं मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं। ∼ आदि शंकराचार्य
I have not come across a clearer or better explanation than this, worth listening over and over again! Endless Gratitude 💖💖💖…. Your knowledge shines through your peaceful smile 😊
Beyond par excellence The methodology unique , appreciable. " मै कोन हूं? आदि काल से यह प्रश्न एक पहेली बना हुआ है, The sources of knowledge चार्वाक, बौद्ध, जैन,सांख्य योग,पूर्व मीमांसा,उत्तर मीमांसा, न्याय वेसेसीक्,वेदांत, विशिष्टता द्वैत वाद,सूफीज्म,ओशो,और बहुत सी branch of knowledge इस पहेली को सुलझाते रहे हैं और अपनी अपनी आस्था से संतुष्ट होते रहे हैं।विज्ञान पर बहुत भरोसा है लोगों का 1882 में German physician Paul ने BBB (blood brain Barrier) की खोज की neuron privacy में रहते हैं और ब्लड बैरियर की वजह से privacy leak nhi होती।लेकिन बाद के प्रयोगों से पता चला कि circumventricular organs ie pititury gland medience eminence OVLT area of postrema pineal gland etc BBB को break कर देते हैं । ह्रदय हर information के लिए अपडेट रहता है। कुछ साधकों का मत है कि मै पंच भूत (मिट्टी, जल, वायु, अग्नि आकाश का बना एक पुतला हूं इसमें जब आत्मा व नफस (lower self/ego) प्रविष्ट कर दी जाती तब " इंसान" कहलाता हूं यही हूं ( मै)। अस्तित्व सिर्फ ईश्वर का है और इस के अतरिक्त किसी का नहीं। पुतले से " मन" उत्पन्न होता है और नफस से सब तरह की " बुराइयां" उत्पन्न होती हैं। मन व नफस यह संसार के दास हैं । मै साछी तौ हूं परन्तु जब मेरा नियंत्रण मन व नफस पर नहीं होता तब मै और आत्मा दुखी हो जाते हैं। हे परमात्मा समस्त जन का भला करना ⚡🌐🪐
Sir एक और अति दुर्लभ ज्ञान जो आप सहजता से ही समझा देते है। आपको कोटि कोटि प्रणाम। वस्तुतः समस्त जगत ही शिवमय है और समस्त वस्तु में ही शिव तत्व का वास है। sir एक छोटा सा प्रश्न है। जब ये समस्त विश्व ही ज्ञेय है इसका अर्थ हुआ कि चैतन्य सभी ज्ञेय में है। चेतन की बात तो स्पष्ट है, पर मुझे लगता है कि जड़ में भी शिव तत्व होना चाहिए क्योंकि वो भी तो ज्ञेय है। अर्थात जड़ व चेतन सब मे चैतन्य शिव स्थित है। कृपया मार्गदर्शन करें।
pleasure and sorrow dont go with us bt d contentment of touching d self and experience d self must go with us bcz it can onlybe experience in turiya state which is d state of oneness mrans d experience and d one who is experience is not two bt its one actually and d experience is in heighest dimension by heighest body
World needs truth strong life lessons knowledge reach global all healing all Diseases Get well soon forgiveness universe gifts nature gifts myself silence thankyou thankyou thankyou
Gratitude sir ji. Too good . You are awesome. I don't have words for you. The way you explaine is ultimate. Lots of gratitude. I m newly connected with you
यह बात सही है कि मै वर्तमान हूं। क्योंकि मै कोई जब सोचता है तब मै अपने आप को अनुभव नहीं कर सकता वो विचार का शाक्षी बनकर रह जाता है। वर्तमान में रहने प्रयत्न स्वयं की अनुभति कराता है इसलिए मै की अनुभूति और वर्तमान में रहना दोनों एक ही है। स्वयं की अनुभूति में समय और स्थान का पता नहीं रहता इसलिए " मै हूं " वर्तमान है।
@@sarojbharati2887 कुछ प्राप्त कर लेने की इच्छा मन की मांग है। मन सदा जो है उससे ज्यादा की मांग करता रहता है। पूर्ण होने के बजाए खालीपन की अनुभूति बहेतर रहेगी क्योंकि मन को कोई भी पूर्णता में आेर पूर्णता की जरूरत लगेगी जब कि खालीपन की अनुभूति के बाद अोर खाली होने की जरूरत नहीं लगेगी । अन्यो के अनुभव की बात खुद के लिए सिर्फ मन तक सीमित जानकारी है जब कि हमारे द्वारा की गई हमारे अस्तित्व की अनुभूति सच्चा आत्मज्ञान है। आत्मज्ञान जैसे सुने हुए शब्दों के बजाए सिर्फ अपने होने पन का एहसास ही काफ़ी है।
@@sarojbharati2887 ईश्वर की शरण में सदा के लिए बस जाना खाली हो जाने की और पवित्रता की सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है। इसके सिवा कोई ओर उपाय ज्यादा असरदार नहीं है क्योंकि मन को टिकने के लिए कोई आधार के बिना नहीं चलता । ईश्वर ही सबसे पवित्र आधार है । बाकी के सभी अनुभव रस हीन मालूम होगे।
Main kaun hun? Mera swaroop kyaa hai? Answer:Mein ek anadi abinasi swatantrata chaityna satta Atma hun. Mein Atma pavitra swaroop, shant swaroop, prem swaroop, anand swaroop, sukh swaroop, gyaan swaroop aur shakti swaroop hun. Pavitrata ka Sagar, Shanti ka Sagar, Prem ka Sagar, Anand ka Sagar, Sukh ka Sagar, Gyaan ka Sagar aur Shakti ka Sagar nirakar Patit Pavan Parampita Paramaatma Shiv Babaka santaan hun
Sir me dyan ki prectis kartatha par aaj mene aapke shath me time our spes se pare he ye mehsush kiya , par aapka siv tatva kese me he kuch kuch shamaj aya par jo aapne bodhik me ki bat ki ki jo skti Swarup he ushko shmaj nhi paya
Hari om. very beautifully explained.wish you make a video on how to reflect on the teachings to see ourself as the Chaitanya. The idea that iam the nameless formless subject,n all else is an object including the body/mind/ego.let this relativity go on.what have we got to do with it.as Sri Ramana's teachings say with the rise of the " I " a world rises outside us n we wrongly identify with the body as me.something's we say is outside n something's are inside, but there's no such limitation as Chaitanya. Chaitanya has no mind,so there are no thoughts no actions because it is formless n has no limitations.the Sat, n chit aspects are recognisable. I exist, n i know I exist.this is never forgotten.all other knowledge may be forgotten but not this.it's so beautiful to dwell on this subject. Thank you. Om Namah Shivaya.
Aapne jo question likha hai us per bat nhi ker rhe ho balki usake charo taraf ghuma rhe ho es sansar ki bato me. Kya aapko eska jabab pata hai ? Ya nhi ? Aap mujhe rshankar448@gmail.com. per contract ker sakte hai....
Naman muze sab kuch samaz aa raha hai mai ye astitv our ye anubhav magar abhi tak mai last sentence tak nahi pahunch pa rahi hu jagananand tak ye sab ek hi hai ye sab janevala ek hai har sharir us anubhav karane ki usaka instrument hai ye sab samaz aa raha hai magar last step abhi bhi nahi ghat rahi kripaya margadarshan kare
Sir ji एक request हे योगी लोग स्व इच्छा से शरीर का त्याग करते हे और बाकी लोगोको किसीं कारण शरीर छोडना पडता हे इसके उपर विडिओ बनाइये this is request thank you
Sirji mujhe ek baat ka antar samjhna hai ki aatma ek hi hai ya aatmayen .jo anant hai shantiswarup hai aandswarup hai vahi aatma hai yani aatma parmatma ek hi hai ya inka koi bhed hai kripya spasht margdarshan krne ki kripa kare dhanyavad
Really so nice and simple explanation. But Sir, do something for the persons like us, who are interested in WHO AM I? guided meditation. First time I have found something so clear and simple answers of my questions. Thanx a lot Sir, my you tube GURUJI. Have a nice day. Let me teach, how to meditate in practical, please Sir.
If you are really interested to know who are you? Then search for Samarth Sadguru Shree Ram Lal ji Siyag on you tube and do siddhayoga of Gurudev Siyag because Samarth guru is must if you want self realisation
Your discourse explains in simple words of a common man that we are all spiritual souls having a human body experience for some time on earth. We are eternal immortal part of the supreme divine soul parmatma.
Ati sundar prabhu ati sundar😍
Hare krishna ❤❤❤
❤️🙏
Millions of thanks giving us such Amezing knowledge Guruji ❤🙏💐
💐 🙏 🙏 🙏 💐 प्रणाम sir ji
बहुत सुंदर व्यख्या, सादर प्रणाम धन्यवाद
सर आप को सुनना सुखद लगता है सर आप को हमें सुनना हमारे जीवन का सबसे बहुत बहुत बड़ा भाग्यशाली हु
Hariom Tatsat namah Shivay
🙏😇🙏adbhut
Pranaam paramaatma
Many many thanks Yogesh Ji
मार्गदर्शन के लिए आपको बहुत धन्यवाद गुरु जी
Best knowladge
Bahut bahut dhanyabad 🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏app ke anant rupe ko mera koti koti pranam
Muje apaka meditation bahut pasand hai
Om Namah Shivay 🙏
🙏🌷💖 Real Jogi
❤️🙏 thanks
मनोबुद्धय्हंकार चित्तानि नाहं
श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे
न च व्योमभूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥1॥
मैं न तो मन हूं‚ न बुद्धि‚ न अहांकार‚ न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं‚ न जीभ‚ न नासिका‚ न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं‚ न धरती‚ न अग्नि‚ न ही वायु हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
न च प्राणसंज्ञो न वै पंचवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पंचकोशः
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥2॥
मैं न प्राण चेतना हूं‚ न ही ह्यशरीर को चलाने वालीहृ पञ्च वायु हूं
मैं न ह्यशरीर का निर्माण करने वालीहृ सात धातुएं हूं‚ और न ही ह्यशरीर केहृ पाँच कोश
मैं न वाणी हूं‚ न हाथ हूं‚ न पैर‚ न ही विसर्जन की इंद्रियां हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः
न धर्मो न चार्थोन कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥3॥
न मुझे किसी से वैर है‚ न किसी से प्रेम‚ न मुझे लोभ है‚ न मोह
न मुझे अभिमान है‚ न ईष्र्या
मैं धर्म‚ धन‚ लालसा एवं मोह से परे हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥4॥
मैं पुण्य‚ पाप‚ सुख और दुख से विलग हूं
न मैं मंत्र हूं‚ न तीर्थ‚ न ज्ञान‚ न ही यज्ञ
न मैं भोजन हूं‚ न ही भोगने योग्य हूं‚ और न ही भोक्ता हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥5॥
न मुझे मृत्यु का डर है‚ न जाति का भय
मेरा न कोई पिता है‚ न माता‚ न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है‚ न मित्र‚ न गुरु‚ न शिष्य
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
न चासंगत नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम ॥6॥
मै निर्विकल्प हूं‚ निराकार हूं
मैं विचार विमुक्त हूं‚ और सर्व इंद्रियों से पृथक हूं
न मैं कल्पनीय हूं‚ न आसक्ति हूं‚ न ही मुक्ति हूं
मैं तो मात्र शुद्ध चेतना हूं‚ अनादि‚ अनंत हूं‚ अमर हूं।
∼ आदि शंकराचार्य
I have not come across a clearer or better explanation than this, worth listening over and over again! Endless Gratitude 💖💖💖…. Your knowledge shines through your peaceful smile 😊
Beyond par excellence
The methodology unique , appreciable.
" मै कोन हूं? आदि काल से यह प्रश्न एक पहेली बना हुआ है, The sources of knowledge चार्वाक, बौद्ध, जैन,सांख्य योग,पूर्व मीमांसा,उत्तर मीमांसा, न्याय वेसेसीक्,वेदांत, विशिष्टता द्वैत वाद,सूफीज्म,ओशो,और बहुत सी branch of knowledge इस पहेली को सुलझाते रहे हैं और अपनी अपनी आस्था से संतुष्ट होते रहे हैं।विज्ञान पर बहुत भरोसा है लोगों का 1882 में German physician Paul ने BBB (blood brain Barrier) की खोज की neuron privacy में रहते हैं और ब्लड बैरियर की वजह से privacy leak nhi होती।लेकिन बाद के प्रयोगों से पता चला कि circumventricular organs ie pititury gland medience eminence OVLT area of postrema pineal gland etc BBB को break कर देते हैं । ह्रदय हर information के लिए अपडेट रहता है।
कुछ साधकों का मत है कि मै पंच भूत (मिट्टी, जल, वायु, अग्नि आकाश का बना एक पुतला हूं इसमें जब आत्मा व नफस (lower self/ego) प्रविष्ट कर दी जाती तब " इंसान" कहलाता हूं यही हूं ( मै)। अस्तित्व सिर्फ ईश्वर का है और इस के अतरिक्त किसी का नहीं।
पुतले से " मन" उत्पन्न होता है और नफस से सब तरह की " बुराइयां" उत्पन्न होती हैं। मन व नफस यह संसार के दास हैं । मै साछी तौ हूं परन्तु जब मेरा नियंत्रण मन व नफस पर नहीं होता तब मै और आत्मा दुखी हो जाते हैं।
हे परमात्मा समस्त जन का भला करना ⚡🌐🪐
Sir एक और अति दुर्लभ ज्ञान जो आप सहजता से ही समझा देते है। आपको कोटि कोटि प्रणाम। वस्तुतः समस्त जगत ही शिवमय है और समस्त वस्तु में ही शिव तत्व का वास है। sir एक छोटा सा प्रश्न है। जब ये समस्त विश्व ही ज्ञेय है इसका अर्थ हुआ कि चैतन्य सभी ज्ञेय में है। चेतन की बात तो स्पष्ट है, पर मुझे लगता है कि जड़ में भी शिव तत्व होना चाहिए क्योंकि वो भी तो ज्ञेय है। अर्थात जड़ व चेतन सब मे चैतन्य शिव स्थित है। कृपया मार्गदर्शन करें।
Aise hi aur video chahiye😊😊
Thank you , for this video, I am close to it
शत-शत नमन
These videos are worth listening again and again . Each time, one discovers new Gems, deeper understanding and clarity. Thank you 🙏
🙏🙏🙏🙏 धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏
Saty vchan om nmo bhagwate vasudevay
Nice explanation thank you
Perfect आत्म चिंतन sir ji धन्यवाद ओम नमः शिवाय
Sitaram
ॐ प्रभु।
सत सत प्रणाम आत्मबोधि आत्मन,,
💐
pleasure and sorrow dont go with us bt d contentment of touching d self and experience d self must go with us bcz it can onlybe experience in turiya state which is d state of oneness mrans d experience and d one who is experience is not two bt its one actually and d experience is in heighest dimension by heighest body
Nice vichar
🙏
waah prabhu🕉🛐💐
Thanks
कोटि-कोटि नमन सहस्त्र वंदन शत् शत् प्रणाम गुरु देव
Chaitanya flowers of joy on ur lotus feet chaitanya
So great
Sat chit Anand😌🙏👍
Amazing sirji❤
Thank you very much
🙏🙏🙏🙏💐
🙏🙏🙏🙏🙏
Very nice vichar
Thanks Chaitanya sir. Ji for imp. Vdo.
Thank you v much . V happy to about I
🕉🌷🌷शत शत नमन 🙏🙏🌷🌷
World needs truth strong life lessons knowledge reach global all healing all Diseases Get well soon forgiveness universe gifts nature gifts myself silence thankyou thankyou thankyou
Pranam Chaitanya ji
🌸🌸🌸❤️
Sir aapke shath dyan me gotalagate he to pura anubhav hota he. Hamarari chetna aapke anubhav ko apne andar mehsush hota he
Wow aapki samajaneka tarika gajab Hai ho
Thank you master
Gratitude sir ji.
Too good . You are awesome. I don't have words for you. The way you explaine is ultimate.
Lots of gratitude.
I m newly connected with you
🙏🏿🙏🏿🙏🏿
जब मैं शास्वत हूं स्वयं के अनुभव से आनंदित हूं तो फिर मैंने जन्म लिया ही क्यों? कृपया बताएं।🙏🙏
Very nice, Simple and direct
Om Chaitanyam Namah 🙏
Apnka Danya vad karne ke liye me khali mehsush karta hu
Thanks- - -
🙏
Great 🙏🙏🙏🙏🙏
Adesh
Mahadev
Thank you
Sirji Amazing experience 🙏🙏🌷🌷
Excellent ! 🙏
Ultimate discourse chaitanya ji. Thanks alot
Beautifuly explain 🙏
🌺🕉🌺🌈🚩🙏🌹
👏👏
Excellent 🙏🙏🙏
मुक्ति का नाम लेकर, फिर बंधन में ले गए
यह बात सही है कि मै वर्तमान हूं। क्योंकि मै कोई जब सोचता है तब मै अपने आप को अनुभव नहीं कर सकता वो विचार का शाक्षी बनकर रह जाता है। वर्तमान में रहने प्रयत्न स्वयं की अनुभति कराता है इसलिए मै की अनुभूति और वर्तमान में रहना दोनों एक ही है। स्वयं की अनुभूति में समय और स्थान का पता नहीं रहता इसलिए " मै हूं " वर्तमान है।
St.saheb.g.kae.o.hm.hae
आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिये मार्गदर्शन करे| धन्यवाद सर
@@sarojbharati2887 कुछ प्राप्त कर लेने की इच्छा मन की मांग है। मन सदा जो है उससे ज्यादा की मांग करता रहता है। पूर्ण होने के बजाए खालीपन की अनुभूति बहेतर रहेगी क्योंकि मन को कोई भी पूर्णता में आेर पूर्णता की जरूरत लगेगी जब कि खालीपन की अनुभूति के बाद अोर खाली होने की जरूरत नहीं लगेगी । अन्यो के अनुभव की बात खुद के लिए सिर्फ मन तक सीमित जानकारी है जब कि हमारे द्वारा की गई हमारे अस्तित्व की अनुभूति सच्चा आत्मज्ञान है। आत्मज्ञान जैसे सुने हुए शब्दों के बजाए सिर्फ अपने होने पन का एहसास ही काफ़ी है।
@@sarojbharati2887 ईश्वर की शरण में सदा के लिए बस जाना खाली हो जाने की और पवित्रता की सर्व श्रेष्ठ अनुभूति है। इसके सिवा कोई ओर उपाय ज्यादा असरदार नहीं है क्योंकि मन को टिकने के लिए कोई आधार के बिना नहीं चलता । ईश्वर ही सबसे पवित्र आधार है । बाकी के सभी अनुभव रस हीन मालूम होगे।
Pune Maharashtra niranjana soni sabhiko Aum Chaitanya mahaprabhu
🌸🌸🌸🙏
Good spiritual video pl provide more
Aum..........
🙏🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🙏
🔔
0 🙏🏻
Very much clarity Who I Am? Pranam Guruji
Nice sir.
सकृच्छ्रवणमात्रेण ब्रह्मज्ञानं यतो भवेत् । ब्रह्मज्ञानावलीमाला सर्वेषां मोक्षसिद्धये ॥ १॥ असङ्गोऽहमसङ्गोऽहमसङ्गोऽहं पुनः पुनः । सच्चिदानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ २॥ नित्यशुद्धविमुक्तोऽहं निराकारोऽहमव्ययः । भूमानन्दस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ३॥ नित्योऽहं निरवद्योऽहं निराकारोऽहमुच्यते । परमानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ४॥ शुद्धचैतन्यरूपोऽहमात्मारामोऽहमेव च । अखण्डानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ५॥ प्रत्यक्चैतन्यरूपोऽहं शान्तोऽहं प्रकृतेः परः । शाश्वतानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ६॥ तत्त्वातीतः परात्माहं मध्यातीतः परः शिवः । मायातीतः परंज्योतिरहमेवाहमव्ययः ॥ ७॥ नानारूपव्यतीतोऽहं चिदाकारोऽहमच्युतः । सुखरूपस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ८॥ मायातत्कार्यदेहादि मम नास्त्येव सर्वदा । स्वप्रकाशैकरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ९॥ गुणत्रयव्यतीतोऽहं ब्रह्मादीनां च साक्ष्यहम् । अनन्तानन्तरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ १०॥ अन्तर्यामिस्वरूपोऽहं कूटस्थः सर्वगोऽस्म्यहम् । परमात्मस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ ११॥ निष्कलोऽहं निष्क्रियोऽहं सर्वात्माद्यः सनातनः । अपरोक्षस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ १२॥ द्वन्द्वादिसाक्षिरूपोऽहमचलोऽहं सनातनः । सर्वसाक्षिस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ १३॥ प्रज्ञानघन एवाहं विज्ञानघन एव च । अकर्ताहमभोक्ताहमहमेवाहमव्ययः ॥ १४॥ निराधारस्वरूपोऽहं सर्वाधारोऽहमेव च । आप्तकामस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः ॥ १५॥ तापत्रयविनिर्मुक्तो देहत्रयविलक्षणः । अवस्थात्रयसाक्ष्यस्मि चाहमेवाहमव्ययः ॥ १६॥ दृग्दृश्यौ द्वौ पदार्थौ स्तः परस्परविलक्षणौ । दृग्ब्रह्म दृश्यं मायेति सर्ववेदान्तडिण्डिमः ॥ १७॥ अहं साक्षीति यो विद्याद्विविच्यैवं पुनः पुनः । स एव मुक्तः सो विद्वानिति वेदान्तडिण्डिमः ॥ १८॥ घटकुड्यादिकं सर्वं मृत्तिकामात्रमेव च । तद्वद्ब्रह्म जगत्सर्वमिति वेदान्तडिण्डिमः ॥ १९॥ ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः । अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः ॥ २०॥ अन्तर्ज्योतिर्बहिर्ज्योतिः प्रत्यग्ज्योतिः परात्परः । ज्योतिर्ज्योतिः स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः शिवोऽस्म्यहम् ॥ २१॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ ब्रह्मज्ञानावलीमाला सम्पूर्णा ॥
Namaste guru g.
Bahut kuchh sikha aapse
खु
Sukh. dukh. Ye sab mere man ka swabhaw hai.. Mera nahi.. Om chaitanya.
मैं आपके प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहता हूं ये सौभाग्य किस तरह से प्राप्त होगा --
I am not based in India but We will meet🙏
Main kaun hun? Mera swaroop kyaa hai? Answer:Mein ek anadi abinasi swatantrata chaityna satta Atma hun. Mein Atma pavitra swaroop, shant swaroop, prem swaroop, anand swaroop, sukh swaroop, gyaan swaroop aur shakti swaroop hun. Pavitrata ka Sagar, Shanti ka Sagar, Prem ka Sagar, Anand ka Sagar, Sukh ka Sagar, Gyaan ka Sagar aur Shakti ka Sagar nirakar Patit Pavan Parampita Paramaatma Shiv Babaka santaan hun
Sir me dyan ki prectis kartatha par aaj mene aapke shath me time our spes se pare he ye mehsush kiya , par aapka siv tatva kese me he kuch kuch shamaj aya par jo aapne bodhik me ki bat ki ki jo skti Swarup he ushko shmaj nhi paya
Thank you . I have no words to express my fee. I really v glad to know. In v simple why?
Who I am.
Thank you sir . I really need you guide line. 🙏🙏
Hari om. very beautifully explained.wish you make a video on how to reflect on the teachings to see ourself as the Chaitanya. The idea that iam the nameless formless subject,n all else is an object including the body/mind/ego.let this relativity go on.what have we got to do with it.as Sri Ramana's teachings say with the rise of the " I " a world rises outside us n we wrongly identify with the body as me.something's we say is outside n something's are inside, but there's no such limitation as Chaitanya. Chaitanya has no mind,so there are no thoughts no actions because it is formless n has no limitations.the Sat, n chit aspects are recognisable. I exist, n i know I exist.this is never forgotten.all other knowledge may be forgotten but not this.it's so beautiful to dwell on this subject.
Thank you.
Om Namah Shivaya.
Aapke Chehre per Jo atmik Muskan Hai vah bahut hi Khubsurat hai . Aisa lagta hai aap Chehre Se Nahin Atma se Hans rahe hain.
I AM THAT?............. I AM.
Aapne jo question likha hai us per bat nhi ker rhe ho balki usake charo taraf ghuma rhe ho es sansar ki bato me. Kya aapko eska jabab pata hai ? Ya nhi ? Aap mujhe rshankar448@gmail.com. per contract ker sakte hai....
Naman muze sab kuch samaz aa raha hai mai ye astitv our ye anubhav magar abhi tak mai last sentence tak nahi pahunch pa rahi hu jagananand tak ye sab ek hi hai ye sab janevala ek hai har sharir us anubhav karane ki usaka instrument hai ye sab samaz aa raha hai magar last step abhi bhi nahi ghat rahi kripaya margadarshan kare
Sir ji एक request हे योगी लोग स्व इच्छा से शरीर का त्याग करते हे और बाकी लोगोको किसीं कारण शरीर छोडना पडता हे इसके उपर विडिओ बनाइये this is request thank you
सर मैं कौन हूँ इसपर कोई मेडिटेशन है क्या?
Did you receive your ans. If yes also, give me the answer. I am also interested in who am I, Guided meditation. Have a nice life.
Sirji mujhe ek baat ka antar samjhna hai ki aatma ek hi hai ya aatmayen .jo anant hai shantiswarup hai aandswarup hai vahi aatma hai yani aatma parmatma ek hi hai ya inka koi bhed hai kripya spasht margdarshan krne ki kripa kare dhanyavad
Really so nice and simple explanation. But Sir, do something for the persons like us, who are interested in WHO AM I? guided meditation. First time I have found something so clear and simple answers of my questions. Thanx a lot Sir, my you tube GURUJI. Have a nice day. Let me teach, how to meditate in practical, please Sir.
ua-cam.com/video/eecPZGuhnY4/v-deo.html
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