श्रीमद भागवतम 2.4.3-4: श्री चैतन्य महाप्रभु ने आत्म-साक्षात्कार को आसान और आनंदमय बना दिया है

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  • Опубліковано 19 січ 2023
  • SB 2.4.3-4: Sri Caitanya Mahaprabhu has made self-realization easy as well as blissful
    14/01/2023 at Sridham Mayapur
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    इस आध्यात्मिक श्रीमद्भागवत प्रवचन में श्रील जयपताका स्वामी महाराज बताते हैं:
    यह महत्वपूर्ण श्लोक है कि कैसे परीक्षित महाराज ने धर्म, अर्थ, काम का त्याग करके भगवान श्रीकृष्ण पर अपना ध्यान केंद्रित किया। आध्यात्म के विषय में सुनने वाले, कर्म-कांड करने वालो से हजार गुना श्रेष्ठ हैं। जो भगवान् कृष्ण के बारे में सुनते हैं वे उनसे हजार गुना श्रेष्ठ हैं। ऐसे हजार लोगों में से कोई एक भगवान श्रीकृष्ण पर ध्यान केंद्रित कर पाता है l
    चैतन्य महाप्रभु की पद्धति का पालन करके श्रीकृष्ण को सरलता से समझा जा सकता है। यदि भक्तियोग का पालन व हरे कृष्ण महामंत्र का जप किया जाए, तो फिर चैतन्य महाप्रभु की कृपा से कृष्ण सरलता से प्राप्त हो सकते हैं l
    आज लोचनदास ठाकुर का आविर्भाव दिवस है। लोचनदास ठाकुर उस समय प्रकट हुए जब चैतन्य महाप्रभु नीलांचल में थे। लोचनदास ठाकुर ने 'चैतन्य मंगल' नामक ग्रंथ की रचना की तथा कुछ भजन लिखे। उन्होंने कहा कि चैतन्य महाप्रभु सभी अवतारों के स्त्रोत्र हैं व महाप्रभु की पद्धति आनंदपूर्ण है l
    श्रील प्रभुपाद का इस श्लोक के संदर्भ कथन है कि "हमारे कर्मों के फल पहले से लिखे है। अमीर व गरीब होना शरीर के कर्म के कारण है। आर्थिक अवस्था के लिए अत्यधिक परिश्रम करना ठीक नहीं है। हमें निर्धारित आनंद प्राप्त होगा। हमें कृष्ण भावनाभावित बनने का प्रयास करना चाहिए।"
    परीक्षित महाराज को जब अपने श्राप के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने राज्य, पत्नी, संतान आदि सभी सुखों का त्याग किया l कर्म-कांड करने वालो ने उनसे कहा कि सात दिनों में कुछ नहीं हो सकता। फिर उन्होंने अपना ध्यान कृष्ण पर केंद्रित किया।
    माधवेंद्रपुरी अपनी प्रार्थना में लिखते हैं कि किसी भी परिस्थिति में वह भगवान् की सेवा करना चाहते हैं l यही उनका जीवन उद्देश्य है l
    परीक्षित महाराज को ज्ञात था कि उनके पास सात दिन है। गंगा, जमुना के किनारे उन्होंने पूरा मन भगवान व श्रीमद्‌भागवतम् पर केंद्रित किया। हमे पता नहीं कि हम कब तक जीवित रहेंगे। चैतन्य महाप्रभु ने अमृत तुल्य विधि दी है। हम आशा करते हैं कि सभी उपस्थित भक्त इससे लाभान्वित होंगे। श्रीकृष्ण व चैतन्य महाप्रभु की लीला का अध्ययन करेंगे। इस प्रकार हम श्रीकृष्ण को केंद्र बनाकर जीवन यापन कर सकते हैं।
    (सारांश सुप्रिया जाम्बवती देवी दासी और कांचनवर्ण गौरांगी देवी दासी द्वारा)
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