┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈ श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई ॥ तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ ॥४॥ भावार्थ: [सीता जी बोलीं-] जिसने कानों के लिये अमृतरूप यह सुन्दर कथा कही, वह हे भाई ! प्रकट क्यों नहीं होता ? तब हनुमान जी पास चले गये। उन्हें देख कर सीता जी फिरकर (मुख फेरकर) बैठ गयीं; उनके मन में आश्चर्य हुआ ॥ ४॥ ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈
माताश्री प्रणाम चरण स्पर्श जय जय श्री सीताराम जय जय श्री राधेश्याम 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
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श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई ॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ ॥४॥
भावार्थ:
[सीता जी बोलीं-] जिसने कानों के लिये अमृतरूप यह सुन्दर कथा कही, वह हे भाई ! प्रकट क्यों नहीं होता ? तब हनुमान जी पास चले गये। उन्हें देख कर सीता जी फिरकर (मुख फेरकर) बैठ गयीं; उनके मन में आश्चर्य हुआ ॥ ४॥
┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈