Dada Guru Ektisa [Lyrical] | इकतीसा दादा गुरुदेव का | संकट मोचक इकतीसा | Prachi Jain Official
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- Опубліковано 11 лют 2025
- इकतीसा दादा गुरुदेव का | Ektisa Dada Gurudev ka [Lyrical] | संकट मोचक इकतीसा नई धुन में in 4K | Prachi Jain Official
Song/Bhajan : Ektisa Dada Gurudev ka
Singer : Prachi Jain
Video Editor : Meru Graphics and Digital Studio
L I K E ☆ S H A R E ☆ C O M M E N T S ☆
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Dada Gurudev Ektisa Lyrics
दासानुदासा इव सर्व देवा, यदीय पादाब्जतले लुठंति।
मरूस्थली-कल्पतरु-सजीयात्, युग प्रधानो श्री जिनदत्तसूरि:।।
दादा गुरुदेव इक्कतिसा
श्री गुरुदेव दयाल को, मन में ध्यान लगाए ।
अष्टसिद्धि नवनिधि मिले, मनवांछित फल पाए।।
श्री गुरु चरण शरण में आयो, देख दरश मन अति सुख पायो ।
दत्त नाम दुःख भंजन हारा, बिजली पात्र तले धरनारा ।।१।।
उपशम रस का कंद कहावे, जो सुमिरे फल निश्चय पावे ।
दत्त संपत्ति दातार दयालु, निज भक्तन के हैं प्रतिपालु ।।२।।
बावन वीर किए वश भारी, तुम साहिब जग में जयकारी ।
जोगणी चौंसठ वश कर लीनी, विद्या पोथी प्रकट कीनी ।।३।।
पांच पीर साधे बल कारी, पंच नदी पंजाब मजारी ।
अंधो की आंखें तुम खोली, गूंगों को दे दीनी बोली ।।४।।
गुरु वल्लभ के पाठ विराजो, सूरिन में सूरज सम साज़ो ।
जग में नाम तुम्हारो कहिए, परतिख सुर तरु सम सुख लहिये ।।५।।
इष्ट देव मेरे गुरुदेवा, गुणी जन मुनि जन करते सेवा ।
तुम सम और देव नहीं कोई, जो मेरे हित कारक होई ।।६।।
तुम हो सुर तरु वाँछित दाता, मैं निशदिन तुम्हरे गुण गाता ।
पार ब्रह्म गुरु हो परमेश्वर, अलख निरंजन तुम जगदीश्वर ।।७।।
तुम गुरु नाम सदा सुख दाता, जपत पाप कोटि कट जाता ।
कृपा तुम्हारी जिन पर होई, दुःख कष्ट नहीं पावे सोई ।।८।।
अभय दान दाता सुखकारी, परमातम पूरण ब्रह्मचारी ।
महा शक्ति बल बुद्धि विधाता, मैं नित उठ गुरु तुम्हें मनाता ।।९।।
तुम्हारी महिमा है अति भारी, टूटी नाव नई कर डारी ।
देश देश में थंभ तुम्हारा, संग सकल के हो रखवाला ।।१०।।
सर्व सिद्धि निधि मंगल दाता, देवपरी सब शीश नमाता ।
सोमवार पूनम सुखकारी, गुरु दर्शन आवे नर नारी ।।११।।
गुरु छलने को किया विचारा, श्राविका रूप जोगणी धारा ।
कीली उज्जयनी मझधारा, गुरु गुण अगणित किया विचारा ।।१२।।
हो प्रसन्न दीने वरदाना, सात जो पसरे महि दरम्याना ।
युग प्रधान पद जनहित कारा,अंबड मान चूर्ण कर डारा ।।१३।।
माता अंबिका प्रकट भवानी, मंत्र कलाधारी गुरु ज्ञानी ।
मुग़ल पूत को तुरत जिलाया, लाखों जन को जैन बनाया ।।१४।।
दिल्ली में पतशाह बुलावे, गुरु अहिंसा ध्वज फहरावे ।
भादो चौदस स्वर्ग सिधारे, सेवक जन के संकट टारे ।।१५।।
पूजे दिल्ली में जो ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे ।
ऐसे दादा साहब मेरे, हम चाकर चरणन के चेरे ।।१६।।
निशदिन भैरु गोरे काले, हाजिर हुकुम खड़े रखवाले ।
कुशल करण लीनो अवतारा, सतगुरु मेरे सानिध कारा ।।१७।।
डूबती जहाज भक्त की तारी, पंखी रूप धर्यो हितकारी ।
संग अचंभा मन में लावे, गुरु तब शुभ व्याख्यान सुनावे ।।१८।।
गुरु वाणी सुन सब हरखावे, गुरु भव तारण तरण कहावे ।
समय सुंदर की पंच नदी में, फट गई जहाज नई की छिण में ।।१९।।
अब है सदगुरु मेरी बारी, मुझे सम पतित ना और भिखारी ।
श्री जिन चंद्र सूरी महाराजा, चौरासी गच्छ के सिर ताजा ।।२०।।
अकबर को अभक्ष्य छुड़ायो, अमावस को चांद उगायो ।
भट्टारक पद नाम धरावे, जय जय जय जय गुणी जन गावे ।।२१।।
लक्ष्मी लीला करती आवे, भूखा भोजन आन खिलावे ।
प्यासे भक्त को नीर पिलावे, जल धर उण वेला ले आवे ।।२२।।
अमृत जैसा जल बरसावे, कभी काल नहीं पड़ने पावे ।
अन धन से भरपूर बनावे, पुत्र-पौत्र बहू संपत्ति पावे ।।२३।।
चामर युगल ढुले सुखकारी, छत्र किरणिया शोभा भारी ।
राजा राणा शीश नमावे, देव परी सब ही गुण गावे ।।२४।।
पूरब पश्चिम दक्षिण तांईं, उत्तर सर्व दिशा के माहीं ।
ज्योति जागती सदा तुम्हारी, कल्पतरु सतगुरु गण धारी ।।२५।।
श्री विजय इंद्र सूरीश्वर राजे, छड़ी दार सेवक संघ साजे ।
जो यह गुरु इकतीसा गावे, सुंदर लक्ष्मी लीला पावे ।।२६।।
जो यह पाठ करे चित लाई, सतगुरु उनके सदा सहाई ।
वार एक सौ आठ जो गावे, राजदंड बंधन कट जावे ।।२७।।
संवत आठ दोय हज्जारा, आसो तेरस शुक्करवारा ।
शुभ मुहूर्त वर सिंह लग्न में, पूरण कीनो बैठ मगन में ।।२८।।
सतगुरु का स्मरण करे, धरे सदा जो ध्यान ।
प्रातः उठी पहिले पढ़े, होय कोटी कल्याण ।।२९।।
सुनो रतन चिंतामणि, सतगुरु देव महान ।
वंदन श्री गोपाल का, लीजे विनय विधान ।।३०।।
चरण शरण में मैं रहूं, रखियो मेरा ध्यान |
भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान ||३१।।
भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान |
भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान ||