जैन संकट मोचन विनती Sankat mochan vinti

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  • Опубліковано 25 сер 2024
  • कविश्री वृन्दावनदास
    हे दीनबंधु श्रीपति करुणानिधानजी |
    यह मेरी विथा क्यों न हरो बेर क्या लगी ||
    मालिक हो दो जहान के जिनराज आपही |
    एबो-हुनर हमारा कुछ तुमसे छिपा नहीं ||
    बेजान में गुनाह मुझसे बन गया सही |
    ककरी के चोर को कटार मारिये नहीं ||
    हे दीनबंधु श्रीपति करुणानिधानजी |
    यह मेरी विथा क्यों न हरो बेर क्या लगी ||१||

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