कौन क्या सोचेगा या मानेगा, इसपर जीव का नियंत्रण नहीं. यदि यह संभव हीं होता तो मुक्ति या अध्यात्म की क्या आवश्यकता होती? मुक्ति या मन पर नियंत्रण अथवा अध्यात्म में सफलता के लिए हीं तो जीव इतना प्रयास करता है.केवल प्रवचन से यह नहीं होता चाहे सौ वर्ष भी बीत जाए.यह साधारण जीव कभी मान हीं नहीं सकता कि पद, प्रतिष्ठा, स्वास्थ्य, धन इत्यादि सभी व्यर्थ है, चाहे जितना भी प्रयास किया जाए, जब तक कि उसे व्यवहारिक रूप से उस सत्य का अनुभव नही हो जाता. दूसरी बात यह है कि यदि जीव यह मानकर बैठ जाए कि सभी व्यर्थ है तो उसका जीवन यापन कैसे होगा? फिर तो उसके अस्तित्व पर हीं संकट आ जाएगा. वेद में हो सकता है कि यह लिखा हो कि जीव हीं समस्या का मूल कारण है परंतु यह तो नहीं समझा जा सका है कि वह समस्या उसके सक्रियता के कारण है या फिर निष्क्रियता के. कुछ धूर्त लोग अपने कर्तव्यों से भागने के लिए वेदों का दुरूपयोग करते हैं और उसे गलत अर्थ में लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. जीवों द्वारा कामना किया जाना सहज, प्राकृतिक एवं स्वभाविक प्रक्रिया है जिसे प्रवचन द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता और न हीं ऐसा करना सुलभ है. जो ऐसा कहते हैं कि केवल जानने व मानने से संतुष्टि मिल जाएगी, समझना चाहिए कि उन्हें वास्तविक अनुभव नही और निश्चित हीं वो अज्ञानी है.
Thanks guru ji main Canada main rah tii Hun Aap ki batoh SE mujie both acha SE samj aai ha yog key barey main main Aap ko thanks karna chati Hun🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🥀🌺🥀🥀🌺🌺🥀🥀🌺
महोदय यकीन है कि आप संतुष्ट हैं। लेकिन सामान्य व्यक्ति के समक्ष आकर्षित कर रहे और प्राप्त करने योग्य भौतिक संसाधनों का पहाड़ व समुद्र है। मन को समझाने का उपाय बडा कठिन है। कहना उनके लिए आसान है जो किसी भी तरह से मुक्त है।
🙏🙏🙏🙏ज्योत से ज्योत जगाते चलो ज्ञान और प्रेम की गंगा बहाते चलो सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय धन्यवाद प्रभु 🚩🚩🚩🚩🚩🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
Very nice Pravachan Very Happy
कौन क्या सोचेगा या मानेगा, इसपर जीव का नियंत्रण नहीं. यदि यह संभव हीं होता तो मुक्ति या अध्यात्म की क्या आवश्यकता होती? मुक्ति या मन पर नियंत्रण अथवा अध्यात्म में सफलता के लिए हीं तो जीव इतना प्रयास करता है.केवल प्रवचन से यह नहीं होता चाहे सौ वर्ष भी बीत जाए.यह साधारण जीव कभी मान हीं नहीं सकता कि पद, प्रतिष्ठा, स्वास्थ्य, धन इत्यादि सभी व्यर्थ है, चाहे जितना भी प्रयास किया जाए, जब तक कि उसे व्यवहारिक रूप से उस सत्य का अनुभव नही हो जाता. दूसरी बात यह है कि यदि जीव यह मानकर बैठ जाए कि सभी व्यर्थ है तो उसका जीवन यापन कैसे होगा? फिर तो उसके अस्तित्व पर हीं संकट आ जाएगा. वेद में हो सकता है कि यह लिखा हो कि जीव हीं समस्या का मूल कारण है परंतु यह तो नहीं समझा जा सका है कि वह समस्या उसके सक्रियता के कारण है या फिर निष्क्रियता के. कुछ धूर्त लोग अपने कर्तव्यों से भागने के लिए वेदों का दुरूपयोग करते हैं और उसे गलत अर्थ में लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. जीवों द्वारा कामना किया जाना सहज, प्राकृतिक एवं स्वभाविक प्रक्रिया है जिसे प्रवचन द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता और न हीं ऐसा करना सुलभ है. जो ऐसा कहते हैं कि केवल जानने व मानने से संतुष्टि मिल जाएगी, समझना चाहिए कि उन्हें वास्तविक अनुभव नही और निश्चित हीं वो अज्ञानी है.
Yes yes yes
Thanks guru ji main Canada main rah tii Hun Aap ki batoh SE mujie both acha SE samj aai ha yog key barey main main Aap ko thanks karna chati Hun🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🥀🌺🥀🥀🌺🌺🥀🥀🌺
नमस्कार गरूदेव कोटी कोटी प्रणाम.
धन्यवाद। कोटि कोटि प्रणाम
।🙏🙏🙏
महोदय यकीन है कि आप संतुष्ट हैं। लेकिन सामान्य व्यक्ति के समक्ष आकर्षित कर रहे और प्राप्त करने योग्य भौतिक संसाधनों का पहाड़ व समुद्र है। मन को समझाने का उपाय बडा कठिन है। कहना उनके लिए आसान है जो किसी भी तरह से मुक्त है।
🙏🙏🙏🌹
Dhanyawad
Think like adhyatm is understanding
Thanks. Sir. Jaigurudev
🙏🙏
❤❤
🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏 ji.
Thanks 🌹🙏
Amazing......feel hua kuch hi alag
🙏🙏🙏
🙏🏽
Sir mai bipasana kiya 10 din ka 3time .mujhe shrif pahela bar ek sarir se bahar jane ka anuvab huya tha Kay Lakin bad may kuch nahi huya.
🙏🫡🫡🫡🫡🫡🫡
JCB ka sound distred kar raha hi😢