तीलू रौतेली की वीरगाथा | Teelu Rauteli -Laxmibai of Garhwal | Teelu Rauteli Yojna

Поділитися
Вставка
  • Опубліковано 29 вер 2024
  • Teelu Rauteli was a Garhwali Rajput warrior and folk heroine who was born in village Gurrad Talla, Chaundkot, Pauri Garhwal district of Uttarakhand, India during the seventeenth century. She is credited with fighting seven wars between the ages of fifteen and twenty.
    तीलू रौतेली, गढ़वाल, उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 22 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली एक वीरांगना है।
    तीलू रौतेली पुरुष्कार, या फिर तीलू रौतेली पेंशन योजना, इस नाम की योजनाएं उत्तराखंड में आपने खूब सुनी होंगी, हो सकता है आप भी इन योजनाओं का लाभ ले रहे हों, तो कौन थी तीलू रौतेली, क्या थी उनकी वीर गाथा और क्यों उन्हें गढ़वाल सहित उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई कहा जाता है ।
    तीलू रौतेली या तिलोत्तमा देवी, गढ़वाल उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में, रणभूमि में कूद पड़ी थीं और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन कत्यूरी राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी। 22 साल की उम्र में उन्होने 13 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर ली थी और अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई। तीलू रौतेली आज एक वीरांगना के रूप में उत्तराखंड वासियों द्वारा याद की जाती हैं। तीलू रौतेली भारत की रानी लक्ष्‍मीबाई, चांद बीबी, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल के समान ही देश विदेश में आज ख्‍याति प्राप्‍त हैं।
    तीलू रौतेली का गांव पौड़ी जिले के चौंदकोट परगना के अंतर्गत आता है। उनका जन्म 08 अगस्त साल1661 में हुआ था उनके पिता का नाम भूपसिंह उर्फ़ गोरला रावत था, जो गढ़वाल नरेश राज्य के प्रमुख सभासदों में से थे। गढ़वाल के इतिहास मे वह गंगू गोरला रावत नाम से जाने जाते हैं, भूप सिंह के घर जन्मी तीलू रौतेली एक गढ़वाली राजपूत योद्धा और लोक नायिका थीं। गांव में आज भी उनका पैतृक मकान मौजूद है। यह मकान 17वीं शताब्दी में बना बताया जाता है। तीलू रौतेली के वंशज कुछ वर्षों पूर्व तक यहां रहा करते थे, लेकिन अब यह भवन वीरान होने से खंडहर हो रहा है। प्रदेश सरकार ने गांव में वीरांगना तीलू रौतेली की प्रतिमा तो स्थापित की है, लेकिन उनके पैतृक भवन की आज तक किसी ने सुध नहीं ली है।
    15 साल की उम्र में तीलू रौतेली की सगाई इडा गाँव के सिपाही नेगी भुप्पा सिंह के पुत्र भवानी नेगी के साथ हुई। गढ़वाल मे सिपाही नेगी जाति सुर्यवंशी राजपूत है जो हिमाचल प्रदेश से आकर गढ़वाल मे बसे हैं। इन्ही दिनों गढ़वाल में कन्त्यूरों के लगातार हमले हो रहे थे, और इन हमलों में कन्त्यूरों के खिलाफ लड़ते-लड़ते तीलू के पिता ने युद्ध भूमि प्राण न्यौछावर कर दिये। इनके प्रतिशोध में तीलू के मंगेतर और दोनों भाइयों (भगतू और पत्वा ) ने भी युद्धभूमि में अपना बलिदान दे दिया।
    कुछ ही दिनों में कांडा गाँव में कौथीग (मेला) लगा और बालिका तीलू इन सभी घटनाओं से अंजान अपनी मां से कौथीग में जाने की जिद करने लगी, माँ ने रोते हुये ताना मारा. "तीलू तू कैसी है, रे! तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती। तेरे पिता का प्रतिशोध कौन लेगा रे! जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले। ले सकती है क्या? फिर खेलना कौथीग!"
    तीलू के बाल्य मन को ये बातें चुभ गई और उसने कौथीग जाने का ध्यान तो छोड़ ही दिया बल्कि प्रतिशोध की धुन पकड़ ली। उसने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना बनानी आरंभ कर दी और पुरानी बिखरी हुई सेना को भी एकत्र करना भी शुरू कर दिया। प्रतिशोध की ज्वाला ने तीलू को घायल सिंहनी बना दिया था, शास्त्रों से लैस सैनिकों तथा "बिंदुली" नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर युद्धभूमि के लिए प्रस्थान किया।
    सबसे पहले तीलू रौतेली ने खैरागढ़ जो वर्तमान में कालागढ़ के समीप है उस जगह को कन्त्यूरों से मुक्त करवाया था, उसके बाद उमटागढ़ी पर धावा बोला, फिर वह अपने सैन्य दल के साथ "सल्ड महादेव" पंहुची और उसे भी शत्रु सेना के चंगुल से मुक्त कराया। चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित कर देने के बाद तीलू अपने सैन्य दल के साथ देघाट वापस आयी. कालिंका खाल में तीलू का शत्रु से घमासान संग्राम हुआ, सराईखेत में कन्त्यूरों को परास्त करके तीलू ने अपने पिता के बलिदान का बदला ले लिया, इसी जगह पर तीलू की घोड़ी "बिंदुली" भी शत्रु दल के वारों से घायल होकर तीलू का साथ छोड़ गई।
    शत्रु को पराजय का स्वाद चखाने के बाद जब तीलू रौतेली लौट रही थी तो जल स्रोत देखकर उसका मन कुछ देर विश्राम करने को हुआ, कांडा गाँव के ठीक नीचे पूर्वी नयार नदी में पानी पीते समय उन्होंने अपनी तलवार नीचे रख दी और जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुकी, उधर छुपे पराजय से अपमानित रामू रजवार नामक एक कन्त्यूरी सैनिक ने तीलू की तलवार उठाकर उस पर हमला कर दिया। निहत्थी तीलू पर पीछे से छुपकर किया गया यह वार प्राणान्तक साबित हुआ। 15 मई 1683 को वह वीरगति को प्राप्त हो गईं, कहा जाता है कि तीलू ने मरने से पहले अपनी कटार के वार से उस शत्रु सैनिक को यमलोक भेज दिया था।
    गौरतलब है कि आज ही के दिन 8 अगस्त को हर साल उत्तराखंड सरकार प्रदेश की महिलाओं का सम्मान करती है, प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड की वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती पर वर्ष 2006 से महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं और किशोरियों के लिये तीलू रौतेली पुरस्कार की शुरूआत की थी तब से आज तक हर साल यह कार्यक्रम धूम धाम से मनाया जा ता है। दोस्तों वीडियो अच्छी लगे तो लाइक करें और ऐसी ही इन्फोर्मटिव जानकारी के लिए हमारा चैनेल सब्सक्राइब जरुर करें।
    --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
    #uttarakhandnews
    #teelurauteli
    #breakingnews

КОМЕНТАРІ • 9