श्रीकालिकाष्टकम् | Kali Ashtakam with Lyrics | Madhvi Madhukar Jha
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- Опубліковано 18 жов 2022
- ॥ श्रीकालिकाष्टकम् ॥
ध्यानम् ।
गलद्रक्तमुण्डावलीकण्ठमाला
महोघोररावा सुदंष्ट्रा कराला ।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी
महाकालकामाकुला कालिकेयम् ॥ १ ॥
अर्थ - ये भगवती कालिका गले में रक्त टपकते हुए मुण्डसमूहों की माला पहने हुए हैं, ये अत्यन्त घोर शब्द कर रही हैं, इनकी दाढ़े हैं तथा स्वरूप भयानक है, ये वस्त्ररहित हैं, ये श्मशान में निवास करती हैं, इनके केश बिखरे हुए हैं और ये महाकाल के साथ कामलीला में निरत हैं।
भुजेवामयुग्मे शिरोऽसिं दधाना
वरं दक्षयुग्मेऽभयं वै तथैव ।
सुमध्याऽपि तुङ्गस्तना भारनम्रा
लसद्रक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या ॥ २ ॥
अर्थ - ये अपने दोनों बाएं हाथों में नरमुण्ड और खड्ग ली हुई हैं तथा अपने दोनों दाहिने हाथों में वर और अभयमुद्रा धारण किये हुई हैं। ये सुन्दर कटिप्रदेश वाली हैं, ये उन्नत स्तनों के भार से झुकी हुई सी हैं, इनके ओष्ठ द्वय का प्रान्त भाग रक्त से सुशोभित है और इनका मुख मण्डल मधुर मुस्कान से युक्त है।
शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी
लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची ।
शवाकारमञ्चाधिरूढा शिवाभिश्-
चतुर्दिक्षुशब्दायमानाऽभिरेजे ॥ ३ ॥
अर्थ - इनके दोनों कानों में दो शवरूपी आभूषण हैं, ये सुन्दर केशवाली हैं, शवों के हाथों से बनी सुशोभित करधनी ये पहने हुई हैं, शवरूपी मंच पर ये आसीन हैं और चारों दिशाओं में भयानक शब्द करती हुई सियारिनों से घिरी हुई सुशोभित हैं।
॥ अथ स्तुतिः ॥
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीन्
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूबुः ।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ १ ॥
अर्थ - ब्रह्मा आदि तीनों देवता आपके तीनों गुणों का आश्रय लेकर तथा आप भगवती काली की ही आराधना कर प्रधान हुए हैं। आपका स्वरूप आदि रहित है, देवताओं में अग्रगण्य है, प्रधान यज्ञस्वरुप है और विश्व का मूलभूत है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं
सुहृत्पोषिणीशत्रुसंहारणीयम् ।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ २ ॥
अर्थ - आपका यह स्वरुप सारे विश्व को मुग्ध करने वाला है, वाणी द्वारा स्तुति किये जाने योग्य है, यह सुहृदों का पालन करने वाला है, शत्रुओं का विनाशक है, वाणी का स्तम्भन करने वाला है और उच्चाटन करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली
मनोजांस्तु कामान् यथार्थं प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ३ ॥
अर्थ - ये स्वर्ग को देने वाली हैं और कल्पता के समान हैं। ये भक्तों के मन में उत्पन्न होने वाली कामनाओं को यथार्थ रूप में पूर्ण करती हैं और वे सदा के लिए कृतार्थ हो जाते हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्का
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ४ ॥
अर्थ - आप सुरापान से मत्त रहती हैं और अपने भक्तों पर सदा स्नेह रखती हैं। भक्तों के मनोहर तथा पवित्र हृदय में ही सदा आपका आविर्भाव होता है। जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमृत से आप भक्तों के अज्ञानरूपी पंक (कीचड़) को धो डालने वाली हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ५ ॥
अर्थ - आपका स्वरुप चिदानन्दघन, मन्द मन्द मुस्कान से संपन्न, शरत्कालीन करोड़ों चन्द्रमा के प्रभास समूह के प्रतिबिम्ब सदृश और मुनियों तथा कवियों के हृदय को प्रकाशित करने वाला है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते ।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा
कदाचिद् विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ६ ॥
अर्थ - आप प्रलयकारी घटाओं के समान कृष्णवर्णा हैं, आप कभी रक्तवर्णवाली तथा कभी
उज्जवल वर्ण वाली भी हैं। आप विचित्र आकृति वाली तथा योगमायास्वरुपिणी हैं। आप न
बाला, न वृद्धा और ना कामातुरा युवती ही हैं; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं
मया लोकमध्ये प्रकाशिकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ७ ॥
अर्थ - आपके ध्यान से पवित्र होकर चंचलतावश इस अत्यन्त गुप्त भाव को जो मैंने संसार में प्रकट कर दिया है, मेरे इस अपराध को आप क्षमा करें; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्-
तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ ८ ॥
अर्थ - यदि कोई मनुष्य ध्यानयुक्त होकर इसका पाठ करता है, तो वह सारे लोकों में महान हो जाता है। उसे अपने घर में आठों सिद्धियाँ प्राप्त रहती हैं और मरने पर मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है; आपके इस स्वरुप को देवता भी नहीं जानते।
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Song Credit:
Song: Sri Kalikashtakam
Lyrics: Adi Shankaracharya
Singer : Madhvi Madhukar Jha
Music Label: SubhNir Productions
Music Director: Nikhil Bisht, Rajkumar
मेरे अश्रु ही मां की वंदना है। माधवी जी , पूजा करते वक्त, मां , मेरी चेतना और आपकी स्वर होती है ।
अद्भुत..... अति सुंदर👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻...मधुर से भी मधुर👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मैं बहुत दिनो से आपकी आवाज में यह सुनना चाहती थी ,हृदय से धन्यवाद,बहुत सुंदर प्रस्तुति है।जय मां काली🙏
सुमधुर मनमोहक स्वर मां के स्वरूप का सही चित्रण हमे ईश्वर की अनुभूति का अहसास होता है🙏🙏
Diwali per itna Sundar Madhur awaaz mein Anupam uphar ke liye बार-बार pranam didi. Jai ma kalika
विधि सुबह-सुबह इतना सुंदर भजन सुनाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
Jai maa kali. He akhand bramand adhisawari tino Loko ki Malik meri maa jagdamba mai aapko pranam krta hu maa. Madhvi g bahut hi sundar Jo aapne maa ka itna acha stuti hame di. Maa jagdamba aap pe kripa kre. 🙏🙏🙏 Om kali🙏🙏.
दिव्य, अलौकिक , मधुर , भावपूर्ण 🙏
अति सुन्दर बहन क्या ध्यान मुद्रा स्वर है सुनकर मन ध्यानमय होने तगता है आपकी सदा जय हो बारांबार धन्यवाद
कलिष्टकम मां के स्वरूप का वर्णन । अदभुत दीदी । अश्रु निकलने लगते है और क्या कहे । मां 🙏
Jay maa kali 🙏
जय महाकाली ..
Om🎉 महा कालिका माता को कोटी कोटी प्रणाम दंडवत 🎉! ओम् नमः शिवाय 🎉दास को माफ करो प्रभू जी 🎉!
Love you madhviji
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
❤ thanks 🙏 ma'am
Om kali maa 😂❤❤😂
ॐ काली🙏🙏🙏🙏🕉🚩
Maa Kalika Bhavani Ji Ki Jai Jai .
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