हम अपने बचपन में रेडियो पर सुनते थे हेलो फैजाबाद कार्यक्रम आता था उसमें हमे लगा था कि अब सुनने को नहीं मिलेगा लेकिन आज बहुत बहुत खुशी हुई फिरसे सुनकर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
एक एक दृश्य जीवंत कर दिया इसे कहते हैं कविता जो आपको सीधे मेला में ही पहुंचा देती है ऐसा लगता है कि जैसे हम भी मेले में हैं और सबकुछ चलचित्र की भांति सामने हो रहा है और अंतिम बंध में जो परिवार के मुखिया की स्थिति दिखाई है बिल्कुल वास्तविक है एक दम सटीक अवलोकन😊
Wah gutam jee Kavita ka jariya Kya khoob prayagraj ka maila ki prastuti di hai aapna bhut sunder tarika sai bhartiya sanskrti ko bataya hai aapna 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌👌👌👌👌👌
यह कविता मै पहली बार 2001 में आल इंडिया रेडियो के लखनऊ केंद्र से प्रस्तुत होने वाले किसी कार्यक्रम सुना था शाम को शायद चौपाल में या किसी और कार्यक्रम के याद नहीं है, लेकिन रेडियो पर सुना था
हमे ये कविता अंशु मालवीय भईया ने सुनाया था, माघ मेले में जबतक ये कविता ना हो तब तक मेला अधूरा लगता है, हमे तो पूरा आता है अब हम भी इस कविता का पाठ करते हैं ❤❤
कैलाश गौतम जी की कालजयी कविता तकरीबन हरवर्ष मौनी अमावस्या पर सुनी जाती है।पूरा मेला आंखों के सामने जीवन्त हो जाता है।आदरणीय गौतम जी को शत शत नमन।
Kailash Gautam ji Nahi hain !
Mujhe aaj pata chala
यह कविता मैंने तीस साल पहले लखनऊ रेडियो पर सुनी थी, आज फिर सुनकर मन खुश हो गया।
Bilkul, maine bhi karib 25 saal pehle suna hoga, radio pe
Very nice 👍🏻👍🏻
I listened after thritypq
I'm sending after 30
A
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हम अपने बचपन में रेडियो पर सुनते थे हेलो फैजाबाद कार्यक्रम आता था उसमें हमे लगा था कि अब सुनने को नहीं मिलेगा लेकिन आज बहुत बहुत खुशी हुई फिरसे सुनकर 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Aree wahh
Mai bhi suna tha redio par
इससे अच्छी भोजपुरी कविता आज तक नही सुनी। मौज आ गई
Mai prayagraj se hu aj amausha ka mela ka din bhi h adbhut kavita 😘😘
Magh mela❤❤❤
बचपन में इसको हम लोग आकाशवाणी लखनऊ पर सुनते रहते थे बहुत आनंद आता था आज आज इसे पुनः सुनकर मन बहुत प्रसन्न हो गया और एक मधुर मुस्कान आई चेहरे पर 🙏🙏🙏
कौन कौन रील देखकर आया है।😊
मै
Ham
Ham
Hum aaeni ha bhaiya
Hum
हम अपने परिवार के साथ शाम को बैठ कर सुनते थे आज काफी दिन बाद सुनकर दिल खुश हो गया है😊😊
ई भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा
धरम में करम में सनल गाँव देखा
अगल में बगल में सगल गाँव देखा
अमवसा नहाये चलल गाँव देखा॥
एहू हाथे झोरा, ओहू हाथे झोरा
अ कान्ही पे बोरी, कपारे पे बोरा
अ कमरी में केहू, रजाई में केहू
अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू
अ आजी रंगावत हईं गोड़ देखा
हँसत हउवैं बब्बा तनी जोड़ देखा
घुँघुटवै से पूँछै पतोहिया कि अइया
गठरिया में अबका रखाई बतइहा
एहर हउवै लुग्गा ओहर हउवै पूड़ी
रमायन के लग्गे हौ मड़ुआ के ढूँढ़ी
ऊ चाउर अ चिउरा किनारे के ओरी
अ नयका चपलवा अचारे के ओरी
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
मचल हउवै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री-गुर्रा ओहर लोली-लोला
अ बिच्चे में हउवै सराफत से बोला
चपायल हौ केहू, दबायल हौ केहू
अ घंटन से उप्पर टंगायल हौ केहू
केहू हक्का-बक्का केहू लाल-पीयर
केहू फनफनात हउवै कीरा के नीयर
अ बप्पारे बप्पा, अ दइया रे दइया
तनी हमैं आगे बढ़ै देत्या भइया
मगर केहू दर से टसकले न टसकै
टसकले न टसकै, मसकले न मसकै
छिड़ल हौ हिताई नताई क चरचा
पढ़ाई लिखाई कमाई क चरचा
दरोगा क बदली करावत हौ केहू
अ लग्गी से पानी पियावत हौ केहू
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
जेहर देखा ओहरैं बढ़त हउवै मेला
अ सरगे क सीढ़ी चढ़त हउवै मेला
बड़ी हउवै साँसत न कहले कहाला
मूड़ैमूड़ सगरों न गिनले गिनाला
एही भीड़ में संत गिरहस्त देखा
सबै अपने अपने में हौ ब्यस्त देखा
अ टाई में केहू, टोपी में केहू
अ झूँसी में केहू, अलोपी में केहू
अखाड़न क संगत अ रंगत ई देखा
बिछल हौ हजारन क पंगत ई देखा
कहीं रासलीला कहीं परबचन हौ
कहीं गोष्ठी हौ कहीं पर भजन हौ
केहू बुढ़िया माई के कोरा उठावै
अ तिरबेनी मइया में गोता लगावै
कलपबास में घर क चिन्ता लगल हौ
कटल धान खरिहाने वइसै परल हौ
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
गुलब्बन क दुलहिन चलैं धीरे-धीरे
भरल नाव जइसे नदी तीरे-तीरे
सजल देह हौ जइसे गौने क डोली
हँसी हौ बताशा शहद हउवै बोली
अ देखैलीं ठोकर बचावैलीं धक्का
मनै मन छोहारा मनै मन मुनक्का
फुटेहरा नियर मुस्किया-मुस्किया के
ऊ देखेलीं मेला सिहा के चिहा के
सबै देवी देवता मनावत चलैंलीं
अ नरियर पे नरियर चढ़ावत चलैलीं
किनारे से देखैं इशारे से बोलैं
कहीं गांठ जोड़ैं कहीं गांठ खोलैं
बड़े मन से मन्दिर में दरसन करैलीं
अ दूधे से शिवजी क अरघा भरैलीं
चढ़ावैं चढ़ावा अ गोठैं शिवाला
छुवल चाहैं पिन्डी लटक नाहीं जाला
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
बहुत दिन पर चम्पा चमेली भेटइलीं
अ बचपन क दूनो सहेली भेंटइलीं
ई आपन सुनावैं ऊ आपन सुनावैं
दूनों आपन गहना गदेला गिनावैं
असों का बनवलू असों का गढ़वलू
तू जीजा क फोटो न अब तक पठवलू
न ई उन्हैं रोकैं न ऊ इन्हैं टोकैं
दूनौ अपने दुलहा क तारीफ झोकैं
हमैं अपनी सासू क पुतरी तू जान्या
अ हम्मैं ससुर जी क पगरी तू जान्या
शहरियों में पक्की देहतियो में पक्की
चलत हउवै टेम्पो चलत हउवै चक्की
मनैमन जरै अ गड़ै लगलीं दूनों
भयल तू-तू मैं-मैं लड़ै लगली दूनों
अ साधू छोड़ावैं सिपाही छोड़ावै
अ हलुवाई जइसे कराही छोड़ावैं
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
कलौता क माई क झोरा हेरायल
अ बुद्धू क बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया क माई टिकुलिया के जोहै
बिजुलिया क भाई बिजुलिया के जोहै
माचल हउवै मेला में सगरों ढुंढाई
चमेला क बाबू चमेला का माई
गुलबिया सभत्तर निहारत चलैले
मुरहुवा मुरहुवा पुकारत चलैले
अ छोटकी बिटिउवा क मारत चलैले
बिटिउवै पर गुस्सा उतारत चलैले
गोबरधन क सरहज किनारे भेंटइलीं
गोबरधन के संगे पउँड़ के नहइलीं
घरे चलता पाहुन दही-गुड़ खियाइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत
उहैं फेंक गठरी परइलैं गोबरधन
न फिर-फिर देखइलैं धरइलैं गोबरधन
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
केहू शाल सुइटर दुशाला मोलावै
केहू बस अटैची क ताला मोलावै
केहू चायदानी पियाला मोलावै
सोठउरा क केहू मसाला मोलावै
नुमाइस में जातैं बदल गइलीं भउजी
अ भइया से आगे निकल गइलीं भउजी
हिंडोला जब आयल मचल गइलीं भउजी
अ देखतै डरामा उछल गइलीं भउजी
अ भइया बेचारू जोड़त हउवैं खरचा
भुलइले न भूलै पकौड़ी क मरचा
बिहाने कचहरी कचहरी क चिन्ता
बहिनिया क गौना मसहरी क चिन्ता
फटल हउवै कुरता फटल हउवै जूता
खलित्ता में खाली केराया क बूता
तबौ पीछे-पीछे चलत जात हउवन
गदेरी में सुरती मलत जात हउवन
अमवसा क मेला अमवसा क मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा क मेला॥
💛🌺
😂😂😂
❤
❤
शानदार 🙏🙏
ग्रामीण भारत की सादगी और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत चित्रण!
नमन है कैलाश गौतम सर को🙏🙏
यह कविता मैने बचपन सुनी थी पर अभी तक याद थी आज फिर एक बार सुन कर बहुत खुशी हुई धन्यवाद भाईसाहब
Sahi kaht hau
अद्भुत है हमारी संगम नगरी,और अद्भुत है ये रचना, पूरा मेला चलचित्र की तरह सामने आ गया।
हमें रवीश कुमार जी ने सुनाया था। कैलाश जी की कविता। और आज़ आप के मुखारविंद से सुनकर बहुत आनन्द आया। बहुत बहुत धन्यवाद सर जी 👍👍
Kon ravish kumar
The great journalist@@HappySingh-te3xs
कैलाश जी ने ग्रामीणों के मेले देखते हुए उनके मनोदशा का बड़ा सटीक चित्रण प्रस्तुत किया है
बचपन में रेडियो के आकाशवाणी लखनऊ पे जब ये आता तो हम सभी सारा काम छोड़कर सुनने को भागते ,,,😊
Seen on fb short videos... couldn't stop a bit to search him😊
कौन कौन ऐसा है जिसने यह कविता रेडियो पर सुनी और फिर खोजते हुए yutube पर आया है ❤
एक एक दृश्य जीवंत कर दिया इसे कहते हैं कविता जो आपको सीधे मेला में ही पहुंचा देती है ऐसा लगता है कि जैसे हम भी मेले में हैं और सबकुछ चलचित्र की भांति सामने हो रहा है और अंतिम बंध में जो परिवार के मुखिया की स्थिति दिखाई है बिल्कुल वास्तविक है एक दम सटीक अवलोकन😊
बहुत शानदार बहुत दिनों बाद बहुत ढूंढने पर मिली ये कविता आज तक की सबसे सुंदर कविता
एकदम प्रयाग के मूल को कविता के माध्यम से लाकरके दर्शकों के सामने रखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,प्रयाग का निवासी ❤
Maine ye kavita 1992 me Sangam prayaraj me kavi sammelan me live suna tha .Aaj khoj liya ..kavi ka nam yaad nhi tha..Aaj sun kar maja aa gaya ❤🎉🎉
लाजवाब, एकदम सटीक चित्रण
भोजपुरी भाषा आप जैसे लोगों को पाकर धन्य हो गई। नमन है आपको
Bachpan me suna tha
..aawaj fir sun liya .... Ek ek sabd. Chun ke liya gya hai...❤
Bina mela dekhe pura drishy samne aa jata hai sun kr
Koun koun 2025 me sunne aya hai 😅
Kon 2024 me sun rha hi
Mai
Bahut Sunder, listen for the first time and going to visit in Jan 2025
मैं एक महीने के अंदर 5 वीं बार सुन रहा हूँ....... पहले भी सुन चूका हूं
बहुत सुंदर कवी जी❤🎉❤🎉🎉❤
Wah gutam jee Kavita ka jariya Kya khoob prayagraj ka maila ki prastuti di hai aapna bhut sunder tarika sai bhartiya sanskrti ko bataya hai aapna 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏👌👌👌👌👌👌👌👌👌
1 January 2025😂
सबसे अच्छा 😅😅😅 मनोरंजन 😊😊 5:21
शुद्ध गरीब किसान मजदूर और भारत के ग्रामीण क्षेत्र के झलक है इस कविता में । 🙏🙏🙏🙏🙏
अगर गांव के लोग दिल से देखे तो दिल भर जाएगा , वाह 👏👏
Ravish jee ke Bihan se yaha aaya hu...Bahut achha lga🌻
Pure vegiterian poetry,,,, So nice
It is very beautiful poem that presents the exact condition our Indian culture
इसकी लास्ट लाइन बेहद भावुक मार्मिक है
आंखों में आशु आ गया 😢😢
Bahot hi sunder kavita aur usse jayada sunder usko bolne ka tarka🎉
बहुत सुंदर कविता मेरे मैनेजर मनोज तिवारी सर ने मुझे पहली बार दिखाया था।
Ye Gana Main 16 Saal Pahle Radio Per Suna Tha Parantu Aaj Khojte Khojte Mil Gaya...
बहुत ही सुन्दर लाजवाब कविता हमारे बनारसी भाषा में ❤❤
यह कविता मै पहली बार 2001 में आल इंडिया रेडियो के लखनऊ केंद्र से प्रस्तुत होने वाले किसी कार्यक्रम सुना था शाम को शायद चौपाल में या किसी और कार्यक्रम के याद नहीं है, लेकिन रेडियो पर सुना था
1996 me suna tha maine .....salam hai aapko ... bilkul satya vachan hai aapke pure halat ko Banya kar diya
भोजपुरी के यह हीरे और हीरो क्यों दब के रह जाते हैं, क्या सुंदर ज़बान औ केतना नीक कविता ।
Ye avadhi hai na ki bhojpuri
@@EasyCraft7 ye banaras belt ki bhasa h . Jisme jaunpur,bihar sabhi bhasao ka prabhav h
दबे नहीं हैं मंच काव्य पर इनकी एक धमक थी स्वर्गीय कैलाश गौतम जी हम लोग इनको अलीगढ़ के नुमाइश में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में रातभर जागकर सुनते थे।
मेरे पापा को भी बहुत ही अच्छा लगता है, और उनको खुश देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है 😍😍😍😍👌👌👌👌👍👍👍
बहुत अच्छी कविता बहुत ही अच्छे कवि द्वारा
बात तो सही हम रेल देख कर आए हैं भोजपुरी में कविता सुनकर मैं बहुत ही प्रसन्न हूं जब से मैं सुनाऊं तो तीन नीचे मैं बहुत ही खुश हूं
Waah.... Kya khoob....aap ko aap ki lekhani ko pranaam
मैंने इसको F M FAIZABAD पर सुना था लगभग 14 साल पहले
वाह! क्या अद्भुत रचना है!😍🙏🏻
अंतिम भाग जो मुखिया की बात हैं।।
बहुत दर्द भर हैं।।
Maine Goutam ji ko live is Kavita ko gate şuna hai apne school ke Kavi sammelan me.Nice memory recall.
Ye kavita maine bacpan me suni thi aj mai pachpan ka ho gaya lekin es kavita ko sunne me utna hi Maja aaya👌
आज मेरे हिंदी के अध्यापक ने इस कविता के बारे में बताएं है ।
30 sal baad sunane ko mila, bahut sakun mila hai, radio par aata tha.
बहुत ही शानदार कविता, और सुनाने की शैली जबरदस्त।।।।
Haseen behad haseen. Bhasha mein koi banawat nahi. Ek dum aisa lagta hai watan ki mitti ki khushboo jhonka.
Bachpan me sunte the ......yaad taaza ho gyi
बहुत महीन अवलोकन है श्रीमान जी का❤
Wah , behtareen , lajwab 😆😆😆😆😆
बेहतरीन प्रस्तुति
कृपया और ऐसी कविताएं लाये
आज तीसरे बर्ष से मेला ड्यूटी कर रहे हैं सर.. आपकी कविता में पुरा मेला का रुप रेखा है
Soch rhe..... Chale jaye aaj😍😍😍❤️aaj bhi amavshya hai💗💗💗💗
Bxzzxxxlmmmmm m .mm mm
Maine yah Kavita bahut Suni Hai radio per
Bahut bahut dhanyavad.....?
Gautam ji...
Apko sunkar bahut acchaaaa Laga.....
Hm log bhikhari Thakur ji Ko na dekh paye ......
Kabhi apse milna hua to jiwan dhanya samjhunga......
Bahut Sara pyar aur aabhar.....
Apka subhchintak...
Vikash Raj Singh'shahi'
मेला दिनों का आता है एक बार आके चला जाता है 🥰🥰
is Kavita ka koi jawab hi nahin hai..bilkul real life story
मेरे को बहुत अच्छा लगता है यह कविता ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
बहुत बढ़िया, लोकभाषा की बात ही कुछ और है।
Love from Banaras ❤
Kya bat h..!!!🙏🙏🙏🙏🙏
Maine bhi aaj se 15 saal pahle aakashwadi lucknow pe suna tha
Wah-wah
What a description!
Jai bhim sir app ek gerat kavi hai
कितना लोग रविश कुमार के विडियो देखला के बाद आइल बा!!
Maza aa gya pura visualisation ho gya
शुद्ध भारतीय कविता।
जी हा
बचपन में मेले बौछार नाम की किताब लिये थे उसी में पढे थे❤
हमे ये कविता अंशु मालवीय भईया ने सुनाया था, माघ मेले में जबतक ये कविता ना हो तब तक मेला अधूरा लगता है, हमे तो पूरा आता है अब हम भी इस कविता का पाठ करते हैं ❤❤
Hii preeti
सुद भारतीय कवीत 🙏🙏
Very clear vision of village enviorment shows poetry like them.
बहुत सुन्दर कविता
गदौरी शब्द बहुत दिनो बाद सुना एवं गर्भवती महिला का किनारे से चलती नाव के साथ तुलना अनुपम था।
हमारी समृद्ध संस्कृति
कैलाश गौतम जी भोजपुरी साहित्य के स्तंभकारों की अग्रिम पंक्ति के कवि हैं
अवधी के कवि थे कैलाश गौतम
@@manishkumaryadav3315 ye chandauli ke rhne wale the Or waha bhojpuri hi boli jati hai
रेडियो का जमाना याद आ गया
दिल जीत लिया साहब
वास्तव में जीवंत दर्शन ।जय हो
जबरदस्त कल्पना कला कौशल का प्रदर्शन 😂😂😂
Last wali pankti 101% sahi bola aapane
वाह क्या बात है। बहुत ख़ूब। ❤️ 😊
कौन कौन 2025 के कुंभ में प्रयागराज आ रहा है ❤❤
बहुत ही सुन्दर रचना चित्रण👌👌
Kailash ji bachpan ka gaon yaad aa gaya ❤❤❤❤❤.
अदभुत 👏👏
बहुत ही अच्छा लगा 👍👍❤️😂😂😂😂
Waah mujhe apne daadi baba ki yaad aa gai...aankhen bheeg gayeen...
😢 hmm
Wahhhhh wahhhhh❤❤❤❤
अद्धभुत प्रस्तुति 🙏❤️
2021 me sun raha hu aur bahut achha lga
आपबीती सुन कर दिल गदगद हो गया..