ईश्वर संबंधित पहली वीडियो Part 1 Does god exist | तर्क से जाने ईश्वर है या नहीं | आचार्य योगेश भारद्वाज | Arya Prachar Sabha | ua-cam.com/video/uanoYqi4ZfM/v-deo.html
जब ईश्वर सर्ब्यापक है तो संसार में एक से अधिक धर्म सिध्दान्त विचार मत नहीं होने चाहिए भारत में तो ईश्वरों की खान रही हैं फिर भी हम धर्म मजहब जाति से बाहर नहीं निकल पा रहे हमारा वास्तविक ज्ञान मानव कल्याण से सरोकार रखना होना चाहिए जो बहुत हद तक विज्ञान ने सम्भव किया हमें उनका शुक्रिया करना चाहिए जिन्होनेअपने जीवन की आहुति देकर विज्ञान के लिए रास्ता साफ किया।
भाई! धर्म वही है जो धारण करने योग्य है और इसका ज्ञान वेदों में ही मिलता है जो विज्ञान ही है अतः वेदों की ओर लौटो। ईश्वर सर्वव्यापी है इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने सबको अपने अधीन रखा है ,सबको कर्म की स्वतन्त्रता दिया है इसका अनुचित लाभ उठा कर पाखण्डियों ने अपने मनगढ़ंत धर्म बना आर्यावर्त को गर्त में धकेलने का काम किया है। अतः सावधान! सत्य की ओर लौटो । पुनः विश्वगुरु भारत का निर्माण करो।
@@प्रदीपकुमार-ड7ष *भाईसाहब जिसको आप सर्वव्यापी ईश्वर बोल रहे हो तो आपको मैं बतादु की इस समस्त ब्रह्मांड मे निराकार जैसी कोई चीज संभव नहीं है चाहे वो ईश्वर हो या कोई अल्लाह या गॉड या इन सबका ईश्वर हो.*
@@DarkShadow-gc5ut बन्धु! आप को ज्ञात होना चाहिए कि आकाश तत्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, जो निराकार है , फिर परमतत्व परमेश्वर की सर्वव्यापकता में संदेह क्यों ?
@@प्रदीपकुमार-ड7ष *तो फिर आकाश तत्व तो अलग चीज हो गई ना उसका ईश्वर से क्या लेना देना...आपको ये ज्ञात होना चाहिए की निराकार जैसी कोई चीज अस्तित्व में नही हो सकती...निराकार मतलब जिसका कोई आकार ना हो...आकार नही तो अस्तित्व कैसे संभव है...और अस्तित्व नहीं तो फिर वो अनादि, अनंत, सर्वशक्तिमान, कैसे हो सकता है...आप लोग अपने किए दावों का खंडन कर रहे हो ना...थोड़ा मान्यताओं से बाहर आइए और फैक्ट पर बात कीजिए...वेद कोई त्रिकालबाधित सत्य नही है वरना नास्तिक लोग खंडन कर क्यों रहे होते और जिसका समय समय पर खंडन होता रहा हो उसको सत्य मानना मूर्खता होगी.*
इन्दु॑: पुना॒नो अति॑ गाहते॒ मृधो॒ विश्वा॑नि कृ॒ण्वन्त्सु॒पथा॑नि॒ यज्य॑वे । गाः कृ॑ण्वा॒नो नि॒र्णिजं॑ हर्य॒तः क॒विरत्यो॒ न क्रीळ॒न्परि॒ वार॑मर्षति ॥ ऋगवेद मंडल 9, सूक्त 86, मंत्र 26। पदार्थान्वयभाषाः -(यज्यवे) यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये परमात्मा (विश्वानि सुपथानि) सब रास्तों को (कृण्वन्) सुगम करता हुआ (मृधः) उनके विघ्नों को (अतिगाहते) मर्द्दन करता है और (पुनानः) उनको पवित्र करता हुआ और (हर्य्यतः) वह कान्तिमय परमात्मा (कविः) सर्वज्ञ (अत्यो न) विद्युत् के समान (क्रीळन्) कीड़ा करता हुआ (वारं) वरणीय पुरुष को (पर्य्यर्षति) प्राप्त होता है ॥२६॥ अ॒स॒श्चत॑: श॒तधा॑रा अभि॒श्रियो॒ हरिं॑ नव॒न्तेऽव॒ ता उ॑द॒न्युव॑: । क्षिपो॑ मृजन्ति॒ परि॒ गोभि॒रावृ॑तं तृ॒तीये॑ पृ॒ष्ठे अधि॑ रोच॒ने दि॒वः ॥ ऋगवेद मंडल 9 सूक्त 86 मंत्र 27 पदार्थान्वयभाषाः -(उदन्युवः) प्रेम की (ताः) वे (शतधाराः) सैकड़ों धारायें (असश्चतः) जो नानारूपों में (अभिश्रियः) स्थिति को लाभ कर रही हैं, वे (हरिं) परमात्मा को (अवनवन्ते) प्राप्त होती हैं। (गोभिरावृतं) प्रकाशपुञ्ज परमात्मा को (क्षिपः) बुद्धिवृत्तियें (मृजन्ति) विषय करती हैं। जो परमात्मा (दिवस्तृतीये पृष्ठे) द्युलोक के तीसरे पृष्ट पर विराजमान है और (रोचने) प्रकाशस्वरूप है। उसको बुद्धिवृत्तियें प्रकाशित करती हैं |॥२७॥ जब ईश्वर सर्वव्यापी है तो विद्युत की तरह क्रीड़ा करता हुआ बरणीय पुरुषों को क्यों प्राप्त होता है और क्यों ध्युलोक के तीसरे पृष्ट पर विराजमान है और यदि विराजमान है तो फिर साकार है निराकार होकर विराजमान कैसे हो सकता है। और विराजमान होने से सिद्ध होता है की परमात्मा एक देशीय किसी विशेष स्थान पर रहने वाला है। कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। धन्यवाद
ईश्वर संबंधित पहली वीडियो Part 1
Does god exist | तर्क से जाने ईश्वर है या नहीं | आचार्य योगेश भारद्वाज | Arya Prachar Sabha |
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ॐ नमः शिवाय।।
🙏👍
Bahut Barhiya guruji🙏🏻🙏🏻🙏🏻🔱🔱
He ishwar sabko sadbuddhi de. 🕉
अद्भुत व्याख्यान 🙏🙏
Aum.Back to Vedas for establishing peace in God's creation.
बहुत अच्छी तरह से आप तर्क के आधार पर सिद्ध करते हैं, हार्दिक शुभकामनाएं
*काहे का तर्क यार...और कहां सिद्ध हुआ ईश्वर बताओ?*
🎉❤absolutely right sir 🙏🙏
Bahut badhiya
ऊं नमस्ते आचार्य श्री
Namaste swami ji 🙏
जब ईश्वर सर्ब्यापक है तो संसार में एक से अधिक धर्म सिध्दान्त विचार मत नहीं होने चाहिए भारत में तो ईश्वरों की खान रही हैं फिर भी हम धर्म मजहब जाति से बाहर नहीं निकल पा रहे हमारा वास्तविक ज्ञान मानव कल्याण से सरोकार रखना होना चाहिए जो बहुत हद तक विज्ञान ने सम्भव किया हमें उनका शुक्रिया करना चाहिए जिन्होनेअपने जीवन की आहुति देकर विज्ञान के लिए रास्ता साफ किया।
Right science apna kam krta hi bas pr logo ko har jgh dhrm karam Lana hi aur sbko ladna hi khud Mahan banana hi ye dhrm hota hi logo ke hisb se
भाई! धर्म वही है जो धारण करने योग्य है और इसका ज्ञान वेदों में ही मिलता है जो विज्ञान ही है अतः वेदों की ओर लौटो। ईश्वर सर्वव्यापी है इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने सबको अपने अधीन रखा है ,सबको कर्म की स्वतन्त्रता दिया है इसका अनुचित लाभ उठा कर पाखण्डियों ने अपने मनगढ़ंत धर्म बना आर्यावर्त को गर्त में धकेलने का काम किया है। अतः सावधान! सत्य की ओर लौटो । पुनः विश्वगुरु भारत का निर्माण करो।
@@प्रदीपकुमार-ड7ष
*भाईसाहब जिसको आप सर्वव्यापी ईश्वर बोल रहे हो तो आपको मैं बतादु की इस समस्त ब्रह्मांड मे निराकार जैसी कोई चीज संभव नहीं है चाहे वो ईश्वर हो या कोई अल्लाह या गॉड या इन सबका ईश्वर हो.*
@@DarkShadow-gc5ut बन्धु! आप को ज्ञात होना चाहिए कि आकाश तत्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, जो निराकार है , फिर परमतत्व परमेश्वर की सर्वव्यापकता में संदेह क्यों ?
@@प्रदीपकुमार-ड7ष
*तो फिर आकाश तत्व तो अलग चीज हो गई ना उसका ईश्वर से क्या लेना देना...आपको ये ज्ञात होना चाहिए की निराकार जैसी कोई चीज अस्तित्व में नही हो सकती...निराकार मतलब जिसका कोई आकार ना हो...आकार नही तो अस्तित्व कैसे संभव है...और अस्तित्व नहीं तो फिर वो अनादि, अनंत, सर्वशक्तिमान, कैसे हो सकता है...आप लोग अपने किए दावों का खंडन कर रहे हो ना...थोड़ा मान्यताओं से बाहर आइए और फैक्ट पर बात कीजिए...वेद कोई त्रिकालबाधित सत्य नही है वरना नास्तिक लोग खंडन कर क्यों रहे होते और जिसका समय समय पर खंडन होता रहा हो उसको सत्य मानना मूर्खता होगी.*
कृपा कर क्षमा करें। मेरी समझ में ------------१-(सजीव=जड़ या वनस्पतियां+ चेतन या जन्तु) २-(निर्जीव)
🚩🙏
🙏🙏
Om
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
,,जड,,से,ही,जीवन,है,
इन्दु॑: पुना॒नो अति॑ गाहते॒ मृधो॒ विश्वा॑नि कृ॒ण्वन्त्सु॒पथा॑नि॒ यज्य॑वे । गाः कृ॑ण्वा॒नो नि॒र्णिजं॑ हर्य॒तः क॒विरत्यो॒ न क्रीळ॒न्परि॒ वार॑मर्षति ॥ ऋगवेद मंडल 9, सूक्त 86, मंत्र 26।
पदार्थान्वयभाषाः -(यज्यवे) यज्ञ करनेवाले यजमानों के लिये परमात्मा (विश्वानि सुपथानि) सब रास्तों को (कृण्वन्) सुगम करता हुआ (मृधः) उनके विघ्नों को (अतिगाहते) मर्द्दन करता है और (पुनानः) उनको पवित्र करता हुआ और (हर्य्यतः) वह कान्तिमय परमात्मा (कविः) सर्वज्ञ (अत्यो न) विद्युत् के समान (क्रीळन्) कीड़ा करता हुआ (वारं) वरणीय पुरुष को (पर्य्यर्षति) प्राप्त होता है ॥२६॥
अ॒स॒श्चत॑: श॒तधा॑रा अभि॒श्रियो॒ हरिं॑ नव॒न्तेऽव॒ ता उ॑द॒न्युव॑: । क्षिपो॑ मृजन्ति॒ परि॒ गोभि॒रावृ॑तं तृ॒तीये॑ पृ॒ष्ठे अधि॑ रोच॒ने दि॒वः ॥ ऋगवेद मंडल 9 सूक्त 86 मंत्र 27
पदार्थान्वयभाषाः -(उदन्युवः) प्रेम की (ताः) वे (शतधाराः) सैकड़ों धारायें (असश्चतः) जो नानारूपों में (अभिश्रियः) स्थिति को लाभ कर रही हैं, वे (हरिं) परमात्मा को (अवनवन्ते) प्राप्त होती हैं। (गोभिरावृतं) प्रकाशपुञ्ज परमात्मा को (क्षिपः) बुद्धिवृत्तियें (मृजन्ति) विषय करती हैं। जो परमात्मा (दिवस्तृतीये पृष्ठे) द्युलोक के तीसरे पृष्ट पर विराजमान है और (रोचने) प्रकाशस्वरूप है। उसको बुद्धिवृत्तियें प्रकाशित करती हैं |॥२७॥
जब ईश्वर सर्वव्यापी है तो विद्युत की तरह क्रीड़ा करता हुआ बरणीय पुरुषों को क्यों प्राप्त होता है
और क्यों ध्युलोक के तीसरे पृष्ट पर विराजमान है और यदि विराजमान है तो फिर साकार है निराकार होकर विराजमान कैसे हो सकता है। और विराजमान होने से सिद्ध होता है की परमात्मा एक देशीय किसी विशेष स्थान पर रहने वाला है।
कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। धन्यवाद