ईश्वर ने प्रकृति जगत का निर्माण किया । वो अपने क्रम से चल रहा है। हम सभी जीव व उद्भिज इसी प्रकृति के क्रम से बनते और इसी में मिल जाते हैं। कोई पूर्व या पुनर जन्म नहीं होता। हां, अलग अलग समय में अलग अलग परिस्थितियों में भावनाओ की , विचारों की पुनरावृत्ति होती है।
किसी मांसाहारी ने बकरा काट कर खा लिया, तो फिर क्या उस बकरे के पूर्व जन्म का फल है? या उस मांस खानेवाले की इंद्रिय भोग की लालसा? और संयोग से वही बकरा कटा।
अपने वक्तव्य को थोड़ा मधुर बनायें, बुद्ध जैसे महापुरुष को ऐसे बोलना ठीक नहीं है ऐसे कथन समाज में भाईचारे को हानि पहुंचाने वाले हैं। पिछले उनतीस वर्षो से मैं विपश्यना ध्यान से जुड़ा हुआ हूं, उससे पहले आर्य समाज में था मैंने दोनों को अच्छी तरह जाना है। अतः अपने कथन पर पुनः विचार करें।
सुप्रभातम् शुभकामनाएं ओ३म् । आयुष्मान भव । कृण्वनतो विश्वार्यम । जय आर्यव्रत । धन्यवाद: ।
Namaste Acharya ji
गुरुदेव महाराज आपको साष्टांग दंडवत
Bahut achha bataya Acharya ji
सत्य सनातन वैदिक धर्म संस्कृति और सभ्यता की जय
अति उत्तम सार्थक व्याख्या करते हुए विषय को समझाया गया है।सादर नमन आचार्य जी।
🙏
Aacharya ji parnam om shanti om
ओम् नमस्ते अचार्य जीं जय आर्यावर्त
नमस्ते आचार्य जी🙏
Ram
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
सादर नमस्ते आचार्य जी
Pranam
Acharya ji namskar bahut sundar
Suuuuuuuper 🙏🙏🙏🙏🙏
आप का भी बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी
Pranaam guruji 🙏🙏🙏🙏
ओ३म्
ईश्वर ने प्रकृति जगत का निर्माण किया । वो अपने क्रम से चल रहा है। हम सभी जीव व उद्भिज इसी प्रकृति के क्रम से बनते और इसी में मिल जाते हैं। कोई पूर्व या पुनर जन्म नहीं होता। हां, अलग अलग समय में अलग अलग परिस्थितियों में भावनाओ की , विचारों की पुनरावृत्ति होती है।
सादर प्रणाम आचार्य जी
विवेक धैर्य आस्था विश्वास अनुसरण सत्य सनातन धर्म राष्ट्र सर्वप्रथम सर्वोपरि मानते हुए जय हो 🚩🕉️🌞🙏🙏🅿️🎧🎤🎙️ आवाज सही नहीं है
आचार्य जी नमस्ते
सत्यार्थ प्रकाश 9वऐ सम्मुलाश में ईश्वर साक्षी नहीं है ऐसा वाक्य आया है ईश्वर तो सबका साक्षी है कृपया समाधान किजिए
किसी मांसाहारी ने बकरा काट कर खा लिया, तो फिर क्या उस बकरे के पूर्व जन्म का फल है? या उस मांस खानेवाले की इंद्रिय भोग की लालसा? और संयोग से वही बकरा कटा।
अपने वक्तव्य को थोड़ा मधुर बनायें, बुद्ध जैसे महापुरुष को ऐसे बोलना ठीक नहीं है ऐसे कथन समाज में भाईचारे को हानि पहुंचाने वाले हैं। पिछले उनतीस वर्षो से मैं विपश्यना ध्यान से जुड़ा हुआ हूं, उससे पहले आर्य समाज में था मैंने दोनों को अच्छी तरह जाना है। अतः अपने कथन पर पुनः विचार करें।
नमस्ते आचार्य जी।
🙏🙏
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏