अशुभ कर्मों की निर्जरा परमात्मा की भक्ति से होती है। युवाचार्य श्रीमहेंन्द्र ऋषिजी म.सा.चैन्नेई 17/9
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- Опубліковано 10 жов 2024
- सामूहिक आराधना से अनंत कर्मों की निर्जरा होती है: युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी महाराज
एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में पुच्छिस्सुणं संपुट की सातवीं गाथा का जाप
17 सितंबर चैन्नेई। अशुभ कर्मों की निर्जरा परमात्मा की भक्ति से होती है, और सामूहिक भक्ति से कर्मों का सामूहिक क्षय संभव है। मंगलवार को एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी के पावन सान्निध्य में पुच्छिस्सुणं संपुट की सातवीं गाथा का जाप संपन्न हुआ।इस विशेष अवसर पर गाथा की महिमा का विस्तृत वर्णन करते हुए इसके आध्यात्मिक महत्व को समझाते हुए
समझाया कि इसमें परमात्मा को सर्वोच्च गुणवत्ता और आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने उसी धर्म और सिद्धांत की परंपरा को आगे बढ़ाया, जो सभी तीर्थंकरों ने स्थापित की थी। यह धर्म और सिद्धांत आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के मार्ग की दिशा में प्रेरित करता है।
उन्होंने बताया कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ तत्व आत्मा ही है, और आत्मा के अस्तित्व से ही हमारे जीवन में संवेदनाएं और संवाद संभव हैं।
युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने तीर्थंकरों के उपदेशों और जीवन शैली का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन से हजारों और लाखों आत्मा ओं का उद्धार हुआ। भगवान महावीर के जीवन से प्रेरणा लेकर लोगों ने आत्मबोध प्राप्त किया और उनके जीवन में शुद्धि एवं मुक्ति का मार्ग खुला। आत्मबोध का यह संदेश तीर्थंकरों ने दिया, जिससे व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्यों को पहचान सके और मुक्ति की दिशा में अग्रसर हो सके।
तीर्थंकर केवल धार्मिक नेता नहीं थे, बल्कि वे उस परंपरा के मार्गदर्शक थे, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष की दिशा में सभी को अग्रसर करती है। उनकी उपस्थिति से साधक स्वयं को सुरक्षित और प्रेरित महसूस करते थे।
युवाचार्यश्री ने कहा कि जब परमात्मा हमारे मार्गदर्शक होते हैं, तो हमें किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे हमारे लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में होते हैं।
जब एक साथ मिलकर परमात्मा की भक्ति की जाती है, तो उसमें विशेष सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा साधकों को एकता और आत्मशुद्धि की दिशा में प्रेरित करती है। सामूहिक भक्ति से न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामूहिक रूप से भी कर्मनिर्जरा होती है, अर्थात कर्मों का क्षय होता है। अशुभ कर्मों की निर्जरा परमात्मा की भक्ति से होती है, और सामूहिक भक्ति से कर्मों का सामूहिक क्षय संभव होता है।
युवाचार्यश्री ने साधना के महत्व पर प्रकाश डालते हूए कहा कि साधना का वास्तविक अर्थ है किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से विचलित न होना। उन्होंने परमात्मा की साधना की महिमा बताते हुए कहा कि परमात्मा ने उन सभी को साधना के पथ पर अग्रसर किया, जो वास्तव में आगे बढ़ने की इच्छा रखते थे। ऐसी साधना जीवन में आनंद और मंगल का संचार करती है।
युवाचार्यश्री अपने प्रवचन में यह भी संदेश दिया कि सामूहिक आराधना जीवन में मंगल और शांति प्रदान करती है। जब हम सभी एक साथ मिलकर परमात्मा की उपासना करते हैं, तो अनंत अशुभ कर्मों की निर्जरा होती है। इस प्रकार की आराधना न केवल व्यक्तिगत जीवन को शुद्ध करती है, बल्कि सामूहिक रूप से भी साधकों को शुद्धि और मोक्ष की दिशा में प्रेरित करती है ओर जीवन में मंगल को प्रदान करने वाली है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ तमिलनाडु चैन्नेई
प्रवक्ता सुनिल चपलोत
9414730514