Introduction to Brahmvidya Adhyayan | ब्रह्मविद्या अध्ययन का परिचय

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  • Опубліковано 29 вер 2024
  • ‘विद्ययाऽमृतमश्नुते’ विद्या वही है, जिससे अमृतत्व की प्राप्ति होती है। उसे ही ब्रह्मविद्या कहते हैं। स्वयं परब्रह्म पुरुषोत्तम नारायण द्वारा प्रदत्त इस ज्ञान का आर्ष दृष्टा ऋषियों ने दर्शन किया । इस ज्ञान का रक्षण एवं संवर्धन जिस परंपरा के द्वारा हो रहा है, वही है- सनातन वैदिक परंपरा। इस परंपरा की सारभूत विद्या है - ब्रह्मविद्या।
    यह ऐसा ज्ञान है कि, जो इसे प्राप्त करता है वह दुःख एवं चिंता-शोक के पर हो जाता है। वह ब्रह्मरूप हो जाता है और परब्रह्म की भक्ति का अधिकार प्राप्त करता है।
    ऐसे दिव्य ज्ञान को, सनातन धर्म की परंपरा को ‘ब्रह्मविद्या अध्ययन’ के द्वारा अत्यंत सरल भाषा में परन्तु गहराई से समझाने का उपक्रम है।
    ब्रह्मविद्या अध्ययन किसी एक विषय का अभ्यासक्राम नहीं है, यह तो अभ्यासक्रम की श्रृंखला है । इस पूर्ण अभ्यास क्रम को एक-एक वर्ष के स्वतंत्र अभ्यास क्रम के रूप में विभाजित किया है। जिसकी विशेषता यह है कि, आप किसी भी अभ्यासक्रम से प्रारम्भ कर सकते है।
    भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्वामिनारायण अक्षरधाम का सृजन करके ब्रह्मस्वरूप प्रमुखस्वामीजी महाराज ने सनातन धर्म की पताका समग्र विश्व के पटल पर फहराई है। स्वामिनारायण अक्षरधाम के भव्य संकुल में ही उन्होंने समग्र विश्व के ज्ञान पिपासुओं के लिए ‘BAPS स्वामिनारायण शोध संस्थान’ की स्थापना की है, जहाँ से सनातन वैदिक ज्ञान के उत्कर्ष के लिए अनेकविध प्रवृत्ति का संचालन होता है। प्रकट ब्रह्मस्वरूप महंतस्वामीजी महाराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से इस अभ्यासक्रम का प्रारम्भ BAPS स्वामिनारायण शोध संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा हुआ है।
    Registration link:
    research.baps....

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