Varaha | Varaha Avtar | Neel Varaha Avtaar | Shweta Varaha | Varaha Avtaar Katha | Varaha Roopam | 🌼

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  • Опубліковано 25 жов 2024
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    हेलो फ्रेंड्स 1 और नए वीडियो में आपका स्वागत है|
    दोस्तो वीडियो शुरू करने के पहले मैं आपको बता देता हूं कि कल्प क्या है
    कल्प का अर्थ समय से
    हर कल्प के अंत में महाप्रलय होती है, और फिर भगवान ब्रह्मा एक नई सृष्टि करते हैं|
    कल्प की गणना कुछ ऐसी होती है|
    हमारी पृथ्वी जिस सौर मंडल में आती है वह सौर मंडल आकाश गंगा का एक हिस्सा है|
    जिसे हम मिल्कीवे के नाम से जानते हैं|
    जब हमारी आकाश गंगा अपने से बड़े किसी आकाश गंगा के चक्कर लगाती है।
    इस समय को भगवान ब्रह्मा का 1दिन कहा जाता है।
    और यही समय ब्रह्म लोक की एक रात में लगता है|
    मतलब जब हमारी आकाश गंगा अपने से बड़े किसी आकाश गंगा के दो चक्कर लगाती है तो इसे ब्रह्मा जी का एक 1 दिन
    और 1 रात कहा जाता है|
    जब ब्रह्म लोक में रात होती है तो इसे प्रलय और जब दिन होता है तो इसे सृष्टि का सृजन होता है|
    सनातन धर्म के अनुसार 30 कल्प होते हैं|
    महत् कल्प, हिरण्यगर्भकल्प, ब्रह्मकल्प, पद्मकल्प, वाराहकल्प|
    भगवान आदि वराह के ये तीनो अवतार वाराहकल्प के में हुए हैं|
    नील वराह:
    पद्मकल्प के अंत में जब प्रलय का समय आया,
    उस समय पृथ्वी पर 16 समुंद्र हुआ करते थे,
    तो सूर्य का तपमान बहुत ज्यादा खराब होने के कारण,पृथ्वी की नदियाँ और समुंद्रो का सारा जल सुख गया|
    ये सारा जल वाष्प बनके पृथ्वी के वायु मंडल में जा कर स्थिर हो गया|
    और बाद में कई वर्ष तक ना रुकने वाली वर्षा इस पृथ्वी पर होती रही|
    और पृथ्वी जल में डब गई|
    तब भगवान ब्रह्मा ने भगवान श्री हरि विष्णु से प्रार्थना की|
    भगवान ब्रह्मा की प्रार्थना सूनके भगवान श्री हरि विष्णु ने नीलवराह का रूप धारण किया जो की जल और थल दोनों ही जगह
    निवास करने में समर्थ थे|
    भगवान नील वराह ने अपनी पत्नी नैनादेवी के साथ मिलकार वाराही सेना प्रकट की, और माता पृथ्वी के बहुत से भाग को जल से मुक्त किया|
    भगवान नील वराह ने अपने दांतों और पेरो के प्रहार से गैती और कुदाली की सहायता से इस पृथ्वी को रहने योग्य समतल किया|
    भगवान नीलवराह के परिश्रम से पृथ्वी पर वनों नदियों और काई तालाबों का निर्माण हुआ|
    भगवान नीलवराह के श्रम को यज्ञ की तरह मन कर देवताओ द्वार उनकी पूजा की गई|
    जिसके कारण भगवान नील वराह के इस स्वरूप को यज्ञ वराह के नाम से भी जाना जाता है|
    2. आदि वराह:
    वराह कल्प में ही भगवान श्री हरि का एक और अवतार होता है जैसे आदि वराह के नाम से जाना जाता है|
    ये वो समय था जब महर्षि कश्यप और देवी दिति के 2 पुत्र हुए हिरणाक्ष्य और हिरण कश्यप|
    हिरणाक्ष्य ने माता पृथ्वी को समुद्र में छुपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने आदि वराह रूप धारण किया
    और हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को समुद्र से बहार ले आये|
    आप और हम मुख्य रूप से भगवान के इसी वराह रूप के बार में जानते हैं|
    श्वेता वराह:
    द्रविड़ देश के राजा सुमति राज्य किया करते थे|
    वह अपना सारा राज्य अपने पुत्र विमति को देकर तीर्थ यात्रा के लिए चले गए, इसी दौरान तीर्थ यात्रा करते हुए उनकी मृत्यु हो जाती है|
    विमति अपने पिता की मृत्यु के वियोग में थे,
    उस समय किसी ने विमति को बताया कि आपके पिता की मृत्यु तीर्थ यात्रा करते समय समय हुआ है,
    इसका मतलब यह है कि आपके पिता की मृत्यु तीर्थो के करण हुई है|
    तब विमति अपने पिता की मृत्यु का बदला लेले के लिए तीर्थो को नष्ट करने हिमालय की बर्फीली पहाड़ी क्षेत्र में जाते हैं
    जहां उनका सामना श्वेता वराह से होता है , दोनो के मध्य युद्ध होता है, और विमति युद्ध में मारे जाते हैं|
    तो दोस्तो ये थी भगवान वराह के 3 अवतारों की पौराणिक कथा, आपको हमारा ये वीडियो कैसा लगेगा हमें कमेंट जरूर बताएं
    इस वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद|
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