विजयबहादुर सिंह जी भारतीय मेधा और प्रज्ञा के आचार्य हैं। जितनी गहनता से आचार्य ने प्रसाद और कामायनी को समझाया है, वह दुर्लभ है। वंदन है इस तरह के श्रद्धेय आचार्य को।
बहुत महान विमर्श।कामायनी कुव्याख्या की शिकार हुई।भारत के चित्त की और चेतना की व्याख्या है यह कृति। विजय बहादुर सिंह हमारी हिंदी जाति के अवचेतना के श्रेष्ठ प्रवक्ता और आचार्य है।यह व्यख्यान मैं हिंदी के प्रत्येक अध्यापकों से सुनने का प्रस्ताव करता हूँ।
बहुत ज्ञानवर्धक चर्चा रही। चर्चा के आरम्भ में गाँधी जी का कथन कि उन्हें अँगरेज़ों से नहीं अँगरेज़ियत से नफ़रत है, गम्भीरतापूर्वक विचारणीय है। आज तो हर क्षेत्र में अँगरेज़ियत ही हावी है। सॅर की व्याख्या मौलिक है।
प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह कामायनी की व्याख्या को भावुक व्याख्या की ओर ले गए हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो यह अवसरवादी व्याख्या है। जिस चेतना को प्रोफेसर जी भारतीय चेतना कह रहे हैं वास्तव में वह ब्राह्मणवादी चेतना है जो अभिजात्य की अभिव्यक्ति है। लोक का ज्ञान होना और उसका रचना में प्रयोग होना दोनों बातों में अंतर है। 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में / पीयूष-स्रोत-सी बहा करो /जीवन के सुंदर समतल में' 'नारी केवल श्रद्धा हो' केवल श्रद्धा ही क्यों? 'नग पगतल में' नारी 'पगतल' में ही क्यों रहेगी।
Oral lecture on such serious topics becomes boring with somany irrelevant examples .we require to the point discussion on the topic. With the help of well prepared written notes. As we teach in class room. Pl.dont take other wise
इस चर्चा से कामायनी को नए आलोक में समझने का अवसर मिला । दोनों आचार्यों को नमन और साधुवाद ।
दोनों विद्वानों को सादर प्रणाम। बहुत ही सुन्दर विमर्श।
AAP dono ki baatchit kamayani ki samiksha bahut bahut sarahniy hai.🙏🙏🙏🙏🙏
विजयबहादुर सिंह जी भारतीय मेधा और प्रज्ञा के आचार्य हैं। जितनी गहनता से आचार्य ने प्रसाद और कामायनी को समझाया है, वह दुर्लभ है। वंदन है इस तरह के श्रद्धेय आचार्य को।
'कामायनी' के इस बहुत ही महत्त्वपूर्ण विश्लेषण के लिए आदरणीय विजयबहादुर सिंह जी को साधुवाद।
कामायनी पर विमर्श से स्रोता बहुत समृद्ध हुए।उसे समझने की नयी दृष्टि मिली।
बहुत ही सारगर्भित और महत्वपूर्ण चर्चा। कामायनी के प्रति दृष्टि को नया विस्तार मिला। आप दोनों विद्वजनों को मेरा नमस्कार है।
बहुत सारगर्भित एवं नवीन दृष्टि से किया गया आकलन।
बहुत महान विमर्श।कामायनी कुव्याख्या की शिकार हुई।भारत के चित्त की और चेतना की व्याख्या है यह कृति। विजय बहादुर सिंह हमारी हिंदी जाति के अवचेतना के श्रेष्ठ प्रवक्ता और आचार्य है।यह व्यख्यान मैं हिंदी के प्रत्येक अध्यापकों से सुनने का प्रस्ताव करता हूँ।
बहुत सुन्दर। दोनों विद्वानों को सादर प्रणाम🎉
कामायनी पर बहुत सुंदर विश्लेषण सबसे अलग विमर्श
मेरी दृष्टि में भी प्रसाद ही प्रथम राष्ट्र कवि हैं।❤❤
बहुत ज्ञानवर्धक चर्चा रही। चर्चा के आरम्भ में गाँधी जी का कथन कि उन्हें अँगरेज़ों से नहीं अँगरेज़ियत से नफ़रत है, गम्भीरतापूर्वक विचारणीय है। आज तो हर क्षेत्र में अँगरेज़ियत ही हावी है। सॅर की व्याख्या मौलिक है।
अंग्रेजियत और कोलोनियल हैंग ओवर दिख ही जाता है।
बहुत धन्यवाद सिंह सर जी👏👏
बहुत कुछ जानने और सीखने को मिला। एक नए दृष्टिकोण और साहित्य के बहुत से पहलु खोलने के लिए धन्यवाद ✨
कामायनी को समझने के लिए सुंदर विमर्श
अद्भुत चर्चा, बहुत बहुत साधुवाद !
Kamayani , aansoo by jayashankar prasaad ji , is kept in my possessions since my childhood..
बहुत ही सुंदर विश्लेषण I
kamayani ko is tarah se dekhana ....adwitya hai..... bahut sundar sir
प्रसाद का नाट्य सृजन बिल्कुल नया आरंभ था।
Dhnebad
कामायनी के स्त्री पक्ष को बहुत अच्छे से उठाया।
बहुत उपयोगी विमर्श।
कामायनी मानवीय सभ्यता का मार्गदर्शन
बहुत ही ज्ञानवर्धक 👌
🙏🙏🙏👍👍
प्रसाद के काव्य का मूल स्वर वेदांत है।
राधा ❤❤❤
अच्छा विमर्श।
विजय ❤❤❤❤
👍❤️👍
❤❤❤
प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह कामायनी की व्याख्या को भावुक व्याख्या की ओर ले गए हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो यह अवसरवादी व्याख्या है। जिस चेतना को प्रोफेसर जी भारतीय चेतना कह रहे हैं वास्तव में वह ब्राह्मणवादी चेतना है जो अभिजात्य की अभिव्यक्ति है। लोक का ज्ञान होना और उसका रचना में प्रयोग होना दोनों बातों में अंतर है। 'नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में / पीयूष-स्रोत-सी बहा करो /जीवन के सुंदर समतल में'
'नारी केवल श्रद्धा हो' केवल श्रद्धा ही क्यों?
'नग पगतल में' नारी 'पगतल' में ही क्यों रहेगी।
गांधी कह रहे हैं मुझे अंग्रेजियत से नफरत है एकदम सफेद झूठ है । खुद तो लंगोटी पहना लेकिन अंग्रेजियत को ही बढ़ावा दिया ।
Oral lecture on such serious topics becomes boring with somany irrelevant examples .we require to the point discussion on the topic. With the help of well prepared written notes. As we teach in class room. Pl.dont take other wise
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