श्री भक्ति प्रकाश भाग [850]**वन्दा वैरागी.
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- Опубліковано 8 лют 2025
- Ram Bhakti @bhaktimeshakti2281
परम पूज्य डॉ श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से
((1549))
धुन :
ज्यौ राम नचाए त्यो नच्चों जी,
ज्यौ राम नचाए त्यो नच्चों जी।।
श्री भक्ति प्रकाश भाग [850]
वन्दा वैरागी
बहुत-बहुत धन्यवाद देवियों । पूज्य पाद स्वामी जी महाराज ने वन्दा वैरागी का प्रसंग लिया है । यही स्पष्ट हुआ ना साधक जनों जिसने अपने जीवन में सत्संग का आश्रय लिया, सिमरन का आश्रय लिया, सदाचारी जीवन का आश्रय लिया, परमेश्वर ने उसे वंदनीय बना दिया । लक्ष्मण दास नामक व्यक्ति बाद में माधो दास, वन्दा बैरागी नाम पड़ गया । वंदनीय बना दिया परमात्मा ने । अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन किया। छोटी-छोटी बातों में उलझा नहीं । छोटी-छोटी बातों को लेकर अपनी जिंदगी को बिगाड़ा नहीं । कभी *Depression में नहीं गया, कभी जीवन में क्रोध नहीं आया। अपने कर्तव्यों का पालन किया है ।परमेश्वर के सहारे जीवन व्यतीत किया है ।
सत्संग यही तो सिखाता है, सत्संग की मुख्य सीख यही है
“राम राम जपते जाओ अपना काम करते जाओ” स्वामी जी महाराज जी की शिक्षा ही यही है। अपना काम करते जाओ, कर्तव्य कर्म निभाते जाओ, ईमानदारी से, सदाचारी नहीं छोड़नी, सदाचरण नहीं छोड़ना । नहीं तो निंदनीय बन जाओगे । वंदनीय बनना चाहते हो तो जीवन सदाचारी होना चाहिए, तो परमात्मा आपको, आपके जीवन को वंदनीय, अनुकरणीय बना देगा।
कभी सोचना नहीं कि, इतना कुछ करने के बावजूद भी इसका अंत किस प्रकार का हुआ ? कैसे शाही सेना ने दिल्ली में उसे चिमटो के साथ नोचा है, उसके शरीर को किस प्रकार की यातनाएं दी है । मत सोचना कि कभी परमेश्वर ने इसके साथ न्याय नहीं किया । नहीं, परमेश्वर ने बिल्कुल न्याय किया है । आज इसीलिए स्वामी जी महाराज ने भक्त प्रकाश जैसे प्रसंग में वन्दा वैरागी का नाम लिया है । जगह-जगह पर स्वामी जी महाराज ने इसे साधु कहा है, इसे संत कहा है, शूरवीर तो था ही था, पर सिमरन ने और सुंदर जीवन ने इसे, स्वामी जी महाराज द्वारा इसे, साधु की एवं संत की उपाधि दिलवा दी । मत सोचिएगा स्वामी जी महाराज ने इसे अपनी तरफ से दिया होगा। यह संबोधन इससे परमात्मा की तरफ से मिला होगा तो स्वामी जी महाराज ने दिया
है ।
परमात्मा ने इसका साधुत्व स्वीकार किया, इसकी संताई को स्वीकार किया है । युद्ध करने वाला व्यक्ति है, राजपूत है, परमेश्वर ने किस मंच पर लाकर खड़ा कर दिया । उच्चतम मंच, संत का मंच, साधु का मंच, सर्वश्रेष्ठ डिग्री, जिंदगी की उच्चतम डिग्री प्राप्त कर ली लक्ष्मण दास ने ।
अपने गुरु से भी कहीं आगे निकल गए ।
गुरु गोविंद सिंह जी के साथ इनका संपर्क हुआ । बड़ी घनिष्ठता हो गई । दोनों ने मिलकर तो अनेक युद्ध किए हैं । जगह-जगह, जहां-जहां भी, युद्ध की जरूरत थी, लड़ाई की जरूरत थी, वहां वहां इन्होंने युद्ध किया । सफलताएं भी मिलीं। और फिर अपने ही लोगों में फूट के कारण, उनकी ईर्ष्या इत्यादि के कारण, वन्दा वैरागी पकड़े भी गए । तभी की बात है, साधक जनों गुरु गोविंद सिंह जी ने पूछा वन्दा तेरा गुरु कहां है ? सच्चे पातशाह इस वक्त तो वह बैकुंठ में होंगे । गुरु महाराज के मुख पर एक अद्भुत सी मुस्कान थी, व्यंगात्मक मुस्कान। सही मुस्कान नहीं थी ।
Sarcastic मुस्कान । वन्दा ने पूछा महाराज क्यों मुस्कुरा रहे हैं क्या बात है ?
यूं ही । नहीं महाराज कुछ मेरे से छुपा रहे हैं। आप सही सही बताइएगा क्या बात है ?
अरे वन्दा तेरा गुरु इस आश्रम से कहीं बाहर गया ही नहीं । उसे मरे हुए तो बहुत वर्ष हो गए । वह इसी आश्रम में है ।
कहां महाराज, कभी दिखाई तो नहीं दिए । मुझे तो ऐसा विदित नहीं है कि वह यहां है । अरे यही है । बेल के पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। कहा वह फल तोड़, इसे नीचे ला, काट। कांटा तो उसमें से एक कीड़ा निकला ।
गुरु गोविंद सिंह जी कहते हैं यही तेरा गुरु । पूछा महाराज क्या कह रहे हैं आप ।
मेरे गुरु महाराज का अपमान कर रहे हैं ।
अरे नहीं, ठीक कह रहा हूं । ऐसा क्यों हुआ इनके साथ ? इन्हीं से पूछ, गुरु गोविंद सिंह जी कहते हैं, इन्हीं से पूछ, ऐसी हालत क्यों हुई ?
पूछा गुरु महाराज इस दुर्गति को कैसे प्राप्त हुए । आप वन्दा के गुरु महाराज हो । मैंने आपसे नाम दान लिया हुआ है, आपकी ऐसी दुर्गति क्यों हुई, क्या हुआ है ?
कहा माधो दास, उस वक्त अभी वन्दा नहीं बना होगा, कहा माधो दास, इसी पेड़ के नीचे मेरी मृत्यु हुई । मृत्यु के वक्त मेरी दृष्टि इस बेल के फल पर चली गई ।
इस Season का फल नहीं खाया । तब से लेकर आज तक बार-बार मुझे परमात्मा यही योनि दे रहे हैं, कीड़े की योनि ।
रज्ज के फल खा । एक बार मरता हूं फिर परमात्मा मुझे फल में डाल देते हैं, फिर मरता हूं, फिर फल में डाल देते हैं ।
कैसी खतरनाक चीज है देवियों सज्जनों यह आसक्ति । स्वामी जी महाराज का उपकार देखो, जो हम सब से, आप सब से, हाथ जोड़कर विनती करते हैं, छोड़ो;
छोड़ो मामूली मामूली बातों को ।
तुच्छ बातों को । देखो क्या हश्र हुआ है इस गुरु का । जिसकी आसक्ति परमात्मा से टूट कर तो उस फल के प्रति आसक्त हुआ । तो परमात्मा ने अनेक योनिया इसी काम में ले व्यतीत कर दी । जितना मर्जी फल खा।
माधो दास इन गुरु महाराज से कहो मेरी सद्गति करवाएं । मेरा प्रारब्ध कुछ ऐसा ही लिखा होगा कि दुर्गति होगी, उसके बाद यह सदगुरु महाराज द्वारा तेरा कल्याण होगा । चाहते हो साधक जनों की अंत समय मुख से राम राम निकले, तो जिंदगी भर आपको राम राम जपना होगा । इस वक्त आप किसी एक चीज को लेकर ऐसे बैठ जाते हो, उसे ऐसे दिल पर लगा लेते हो, जैसे कि सब कुछ संसार का यही है । अगर इसी वक्त मृत्यु हो गई तो सोचो सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा ।
पार्थ जो अंत समय मेरा स्मरण करता हुआ देह को त्यागता है, निस्संदेह मुझे प्राप्त करता है । मानो अंत समय की सोच, अंत समय का जो दृश्य आपके सामने होता है, उसी दृश्य को आप प्राप्त होते हैं । जैसे एक Photographer की दुकान पर व्यक्ति फोटो खिंचवाने
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सतगुरु जी की महिमा बड़ी कोई विरला जाने भेद भारे भव को हरे और पाप के खेद
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