मानव जीवन का उद्देश्य क्या है !! सुरती बंधन में कैसे आई?सत्संग नितिन दास जी महाराज के मुखारविंद से🙏

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  • Опубліковано 6 вер 2024

КОМЕНТАРІ • 22

  • @tajpalmehra8653
    @tajpalmehra8653 Місяць тому +3

    Sahib bandgi

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому +1

    नाम से प्रेम अति कठीन

  • @Moolgyansatsangkabirsahab
    @Moolgyansatsangkabirsahab Місяць тому +3

    Saheb kabir sat sat naman

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому +1

    मानव जीवन का उद्देश्य केवल नाम भक्ति

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      BHAI YE TANTER MANTER AAP HI JAAPO HME JO KARNA HAI ACHE SE PTA HAI ,AAP APNE JO AKSER HAI UNKO RETA MARO

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому +1

    सब कुछ मिल जायेगा लेकिन प्रभु की अनुकंपा नही मिलेगी।

  • @kabir5410
    @kabir5410 Місяць тому +1

    मानव जीवन का उद्देश्य दुख व बंधनों से छुटकारा सदा के लिए

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

    बड़ा मूल्यवान है मानव तन। यह केवल अमृत भरने के लिए बना है। शरीर एक बर्तन है

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      रागु गउड़ी पूरबी बावन अखरी कबीर जीउ की
      ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥
      बावन अछर लोक त्रै सभु कछु इन ही माहि ॥ ए अखर खिरि जाहिगे ओइ अखर इन महि नाहि ॥१॥
      पद्अर्थ: बावन = 52, बावन। अखरी = अक्षरों वाली। बावन अखरी = बावन अक्षरों वाली वाणी। अक्षर = अक्षर। लोक त्रै = तीन लोकों में, सारे जगत में (वरते जा रहे हैं)। सभु कछु = (जगत का) सारा वरतारा। इन ही माहि = इन (बावन अक्षरों) में ही। ए अखर = ये बावन अक्षर (जिस से जगत का वरतारा निभ रहा है)। खिरि जाहिगे = नाश हो जाएंगे। ओइ अखर = वह अक्षर (जो ‘अनुभव’ अवस्था बयान कर सकें, जो परमात्मा के मिलाप की अवस्था बता सकें)।1।
      अर्थ: बावन अक्षर (भाव, लिपियों के अक्षर) सारे जगत में (प्रयोग किए जा रहे हैं), जगत का सारा कामकाज इन (लिपियों के) अक्षरों से चल रहा है। पर ये अक्षर नाश हो जाएंगे (भाव, जैसे जगत नाशवान है, जगत में बरती जाने वाली हरेक चीज भी नाशवान है, और बोलियों, भाषाओं में बरते जाने वाले अक्षर भी नाशवान हैं)। अकाल-पुरख से मिलाप जिस शकल में अनुभव होता है, उसके बयान करने के लिए कोई अक्षर ऐसे नहीं हैं जो इन अक्षरों में आ सकें।1।
      भाव: जगत के मेल मिलाप के बरतारे को तो अक्षरों के माध्यम से बयान किया जा सकता है, पर अकाल पुरख का मिलाप वर्णन से परे है।
      Ye samj nhi aata kya aapko

  • @user-og9wg3jc3y
    @user-og9wg3jc3y Місяць тому

    रंभ दूत

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      JAIL VALO KE CHELLE KYA HAI PTA HAI AAPKO KON SA GYAN HAI

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

    जो काम मृत्यु करती है शरीर से चेतना को अलग करना। वही काम आत्मज्ञान में घटता

    • @Vijay_pal_Singh734
      @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

      प्रभू का हर समय धन्यवाद करो उसने हमें अपनी शक्ल में बनाकर भेजा है। अपनी शक्ल देखोगे तभी पता चलेगा कि मैं कौन हूं

    • @Vijay_pal_Singh734
      @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

      कबीर हम सबसे बुरे हम से बुरा ना कोई जो ऐसा कर जान ही मित्र हमारा सोय

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      Aap logo ko kya aatmgyan ka pta kya aatma ka mantro tantro se alg hai ye sab 3 lok ka masala de dea aapko om shom satkabir satkabira

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

    नाम से कैसे प्रेम करोगे बिना प्रभू की अनुकंपा के

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      Aap vale parbhu ko pehle to jail se bhar krwao aap logo ke mukh se ye baate achi nhi lgti

  • @Vijay_pal_Singh734
    @Vijay_pal_Singh734 Місяць тому

    जो आपको समझा रहे हैं वे भी भक्ति के विषय में कुछ नहीं जानते। कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से प्रेम करता हो तो उसे कैसे समझाओगे। बताएं जरा।

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      Hm samj rhe hai jo samjna hai aap apne vale manter gyaniyo ko samjao तंत्र मंत्र सब झूठ है, मत भरमो जग कोय । सार शब्द जाने बिना, कागा हँस ना होय ।। naa tum logo ko ye samj aata manmana manter jis ka ko mahtev nhi hai japaye ja rhi ho

    • @Moolgyankabirsahab
      @Moolgyankabirsahab  Місяць тому

      रागु गउड़ी पूरबी बावन अखरी कबीर जीउ की
      ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥
      बावन अछर लोक त्रै सभु कछु इन ही माहि ॥ ए अखर खिरि जाहिगे ओइ अखर इन महि नाहि ॥१॥
      पद्अर्थ: बावन = 52, बावन। अखरी = अक्षरों वाली। बावन अखरी = बावन अक्षरों वाली वाणी। अक्षर = अक्षर। लोक त्रै = तीन लोकों में, सारे जगत में (वरते जा रहे हैं)। सभु कछु = (जगत का) सारा वरतारा। इन ही माहि = इन (बावन अक्षरों) में ही। ए अखर = ये बावन अक्षर (जिस से जगत का वरतारा निभ रहा है)। खिरि जाहिगे = नाश हो जाएंगे। ओइ अखर = वह अक्षर (जो ‘अनुभव’ अवस्था बयान कर सकें, जो परमात्मा के मिलाप की अवस्था बता सकें)।1।
      अर्थ: बावन अक्षर (भाव, लिपियों के अक्षर) सारे जगत में (प्रयोग किए जा रहे हैं), जगत का सारा कामकाज इन (लिपियों के) अक्षरों से चल रहा है। पर ये अक्षर नाश हो जाएंगे (भाव, जैसे जगत नाशवान है, जगत में बरती जाने वाली हरेक चीज भी नाशवान है, और बोलियों, भाषाओं में बरते जाने वाले अक्षर भी नाशवान हैं)। अकाल-पुरख से मिलाप जिस शकल में अनुभव होता है, उसके बयान करने के लिए कोई अक्षर ऐसे नहीं हैं जो इन अक्षरों में आ सकें।1।
      भाव: जगत के मेल मिलाप के बरतारे को तो अक्षरों के माध्यम से बयान किया जा सकता है, पर अकाल पुरख का मिलाप वर्णन से परे है। naa tumko ye samj aata apne marji se jo aap ne dekh liya vhi shi or to sare bewkuf lagte hai ,Hed hoti hai pakhnd ki bhi