महाभारत का सबसे खतरनाक सेनापति द्रोणाचार्य Dronacharya as Senapati

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  • Опубліковано 27 сер 2024
  • जब दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से सेनापति बनने के लिए प्रार्थना की तो द्रोणाचार्य ने कहा- राजन! मैं छहों अगों सहित वेद, मनु जी का कहा हुआ अर्थशास्‍त्र, भगवान शंकर की दी हुई बाण-विधा और अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र भी जानता हूँ। विजय की अभिलाषा रखने वाले तुम लोगों ने मुझमें जो-जो गुण बताये हैं, उन सबको प्राप्‍त करने की इच्‍छा से मैं पाण्‍डवों के साथ युद्ध करूँगा। राजन! मैं द्रुपदकुमार धृष्‍टद्युम्‍न को युद्धस्‍थल में किसी प्रकार भी नहीं मारूँगा; क्‍योंकि वह पुरुषप्रवर धृष्‍टद्युम्‍न मेरे ही वध के लिये उत्‍पन्‍न हुआ है। मैं समस्‍त सोमकों का संहार करते हुए पाण्‍डव-सेनाओं के साथ युद्ध करूँगा; परंतु पाण्‍डव लोग युद्ध में प्रसन्‍नतापूर्वक मेरा सामना नहीं करेंगे। संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार आचार्य द्रोण की अनुमति मिल जाने पर आपके पुत्र दुर्योधन ने उन्‍हें शास्‍त्रीय विधि के अनुसार सेनापति के पद पर अभिषिक्‍त किया। तदनन्‍तर जैसे पूर्वकाल में इन्‍द्र आदि देवताओं ने स्कन्द को सेनापति के पद पर अभिषिक्‍त किया था, उसी प्रकार दुर्योधन आदि राजाओं ने भी द्रोणाचार्य का अभिषेक किया।उस समय वाद्यों के घोष तथा शंखों की गम्‍भीर ध्‍वनि के साथ द्रोणाचार्य के सेनापति बना लिये जाने पर सब लोगों के हृदय में महान हर्ष प्रकट हुआ। पुण्‍याहवाचन, स्‍वस्तिवाचन, सूत, मागध और वन्‍दीजनों के स्‍तोत्र, गीत तथा श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों के जय-जयकार के शब्‍द से एवं नाचने वाली स्त्रियों के नृत्‍य से दोणाचार्य का विधिवत सत्‍कार करके कौरवों ने यह मान लिया कि अब पाण्‍डव पराजित हो गये। राजन! महारथी द्रोणाचार्य सेनापति का पद पाकर अपनी सेना की व्‍यूह-रचना करके आपके पुत्रों को साथ ले युद्ध के लिये उत्‍सुक हो आगे बढ़े।
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