त्रिपाठी जी जाति उसी ने बनाई है जो जातिवाद का फायदा ले रहा है इसमें इतना रिसर्च की कोई आवश्यकता नहीं और वही है जो जातिवाद कायम रखना चाहते हैं उसमें आप भी आते हो
Charles Darwin explained theory of evolution in his prominent book Origin of Species which reveals that we the civilized people of today were like wild animals.Cronologically we have become civilized people.Thanks??
मनुस्मृति पर भी प्रकाश डालिए त्रिपाठी जी जिसने भारत में मूल निवासी लोगों को वर्ण और जाति में बांटकर ऊंच-नीच की गहरी खाई खो दी थीं लोगों को अछूत बनाया था उन्हें पशुओं जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर किया था उनसे शिक्षा का ,संपत्ति का ,व्यापार का अधिकार छीन लिया गया था ।इस पर भी कुछ प्रकाश डालिए
त्रिपाठी जी मैं जाटव जाती से हु ,आंबेडकर,बुद्ध से प्रेरित हूं,अगर अच्छाई और भी महापुरुष में है भले ही वो मेरी विचारधारा से मेल नहीं करता हो लेकिन अगर बात तार्किक करके समझने में सफल है तो उसे मानने से मुझे कोई गुरेज नहीं है। आपकी बात से सहमत हूँ । शायद भारत के इतिहास में से नया विश्लेषण है।हो सकता है कि और भी इतिहासकार है जिनका ध्यान इस तरफ जाए । मिशनरी आंबेडकर वादी कभी ब्राह्मण के खिलाफ नहीं रहता बल्कि ब्राह्मणवाद(अर्थात शोषणवाद ) के खिलाफ रहता है । आज कुछ आपसे हट के सीखा । सवाल कुछ और भी है,जबाव फिर कभी मांगेगे आपसे । मुझे वो लोग बहुत पसंद है जो लॉजिकली बात करते है चाहे वो किसी भी समाज से हो । जो डिबेट में प्रमुखता से अपने विचार और तथ्य रखे ,न कि झगड़े पर उतारू हो जाए ।
@@RSM--- पता है आप लोग उन्हीं लोगों के चेले सपेरे बनोगे जो लोग अपनी जात-पात छोड़-छाड़ करके ब्राह्मणों की तरफ भाग खड़े हुए अंबेडकर मंगेशकर कानितकर जवाली कर बनकर के जो लोग ब्राह्मणवाद और जाति पार्टी का बढ़ावा दे रहे हैं तुम लोग उनकी तो पूजा करोगे ही और इसीलिए जाति के कारण परेशान रहते हो
बहुत अच्छा त्रिपाठी साहब लेकिन वर्ण व्यवस्था के आधार पर ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से अपने आप को सर्वोच्च स्थापित करने और बाकी सब को नीचे स्थापित करने का क्या औचित्य है और शूद्रों को शिक्षा से दूर रखने का क्या तात्पर्य है कृपया इसको स्पष्ट करने का प्रयास करें
मेरे भाई, सिरोही से पांव तक आदमी पूर्ण है, तो राष्ट्रपूर्ण है, मुख यानी मेंदू, जोज्ञानी हो, बlहु यानी बलवान, पेट यानी व्यापार वह , वेश्य, जो सब कार्यकर्ता वह शुद्ध, यह गलत वाक्य नहीं है, आज भी प्राध्यापक , सैनिक व्यापारी, नौकरशाही कहतेहैंl औरतों औरsir se paon Tak ek hi khoon firta hail हमारा सब का मूल एक ही है l संपत्ति के लिए सगे भाई भाई झगड़ा हैंloml
हम बटकर कटते रहे और सदियों गुलाम रहे इसका मूल कारण जाति प्रथा रहा। भारत विश्व गुरु बनने की राह पर हैं और इसमें सबसे बड़ी चुनौती,हिंदुओ को जाति प्रथा में बटे रहना जिसे समाप्त करने का समय आ गया है।सबका साथ सबका विकास और सबको न्याय मिलना चाहिए।
आप गोल गोल बातें बहुत घुमा रहे हो जातियों के उपर पर ये क्यों नहीं बताते हैं कि सभी जातियों में ब्राह्मण हीं सबसे श्रेष्ठ क्यों है उससे सब जातियाँ नीच क्यों है
Beta Brahmano se nafrat ye koi nyi baat nhi hai Tere se phle mulle, usse phle Buddha, usse phle sikandar aadi sbhi krte the aur aaj bhi krte hai Pr itne saal k nafrat k baad bhi kya ukhad liya tum sbne
तुम अपने आप को नीच क्यों मानते हो.....हम सब बराबर है....ब्राह्मणों को उच्च सभी जातियों ने माना है..उसका कारण यह है कि हम घर के दैनिक कार्यो में सबसे ऊंचा कार्य ईश्वर की पूजा करना. और पिता द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को ज्ञान और सिख देना है....यही कार्य ब्राह्मण करता था इसलिए श्रेष्ठ कहलाया 🙏🙏
जाती व्यवस्था बंद होनी चाहिए जाती प्रमाण पत्र बनना बंद होना चाहिए , जाती केवल भारतीय होना चाहिए , लेकिन वो लोग जो जाती व्यवस्था से सब से ज्यादा लाभ ले रहे हैं वो ही जाती व्यवस्था का रोना रट हैं। अगर आप को यह व्यवस्था बंद करनी है तो सबसे पहले अपने जाती प्रमाण पत्र जला दो और सरकार से कहो की जाती प्रमाण पत्र बनाना बंद करो हम सुब एक हैं और आर्थिक आधार पर मदद करो , ऐसे ही लोग देश से जाती व्यवस्था को ख़तम नहीं हो रहे।
आपकी बात ठीक हैं लेकिन क्या इससे जाति देखकर जो भेदभाव होता हैं वो बंद हो पाएगा, अपने घर पर अपनी खाट पर बैठा पाओगे अपनी गिलास में पानी पिलाओगे, अपनी थाली में खाना खिलाओगे, अपने बच्चो की शादियां करोगे, अगर ये सब कुछ कर सको तभी जातिवाद खत्म माना जाएगा।
@@kamleshbamaniya9073 Yes bithate bhi hain of use kahte hain ki khud apne aap matke se pani nikal kar pi lo or mujhe bhi pila do , Gande hathon se brahmin bhi pani dega to nahi piyunga or safai se kisi bhi Jati or dharm ka aadmi Pani dega to piyunga or use bhi pilayunga.
१०% आरक्षण जो कुछ जाती विशेष को दिया गया है वो आर्थिक स्थिति के आधार पर है परंतु सिर्फ एक जाती विशेष के लोगों के लिए ही हैं ये जाती विशेष के लिए न होकर सब लोगों के लिए होना चाहिए आर्थिक स्थिति के आधार पर।
जातियां उसी ने बनाई हैं जो अपने को सबसे उच्च समझता है।जो अपने को सबसे उच्च समझता है वही जातियों को बनाए रखना भी चाहता है।चार वर्णों को बनाने वाले के चेलों ने जातियों को बनाया है।श्लोक 1/88 में क्या लिखा है।मनू स्मृति अध्याय/श्लोक 2/31व 2/135 व,4/80 ,व 8/380 व8/417 व 8/272 व 10/125 में क्या लिखा है। जब से अम्बेडकर वाद बढ़ा है जाति पांति कम हुई है।ति्रपाठी जी शूद्रों को समझाने की, वेबकूव बनाने की जरूरत नहीं है।वह इतिहास भी जानते हैं, मनू स्मृति भी पढ़ते हैं,सम्विधान भी पढ़ते हैं।
Tu to bevkuf hai jati is dharti ne banai hai .par teri buddi hi bhrast hai janwar main kisney banai jati?dharti ne banai.vahan koi brahamman gaya tha kya?
मनुस्मृति के विरोधी लोग पहले आपस मे शादी संबंध क्यों नहीं शुरू करते हैं। पासवान करते हैं मुसहर में शादी ? रविदास डोम में करें शादी, धोबी पासी में, मेहतर तांती से अपनी बेटियों की शादी क्यों नहीं शुरू कर रहे ? अपनी जाति में शादी करना जातिवादिता नहीं है। इसलिए क्योंकि यह एक सामाजिक व्यवस्था है और इसे समाज के हर जाति समुदाय की स्वीकार्यता हासिल है। यदि प्रेम विवाह को छोड़ दें तो हर समुदाय के शादी योग्य लड़की के पिता की यही इच्छा होती है कि अपनी बेटी की शादी अपने समुदाय में ही करे और उसी हिसाब से योग्य वर की तलाश होती है। और ये हर जाति के लोग कर ही रहे हैं तो इसके लिए जातीय जनगणना की क्या आवश्यकता है ???????? बनना सबको अमीर है, निशाना केवल सवर्ण है।
ये देश 1000साल इसलिए गुलाम रहा कि यहां कायरो नपुसंक जाहिलो का झुण्ड था। कुछ देशभक्त योद्धाओं को छोड़कर। जाति पूरी दुनिया में है जाहिलो को लगता है सिर्फ भारत में है। देश सड़ा सविधान से चल रहा है और बोल रहा है मनुस्मृति बैन कर दो। खतना करवा चुके हो क्या।
विश्व लेवल के दार्शनिक ने लिखा है भारत की गुलामी का कारण वर्ण व्यवस्था और विज्ञान का तिरस्कार वर्ल्ड अवस्था में ब्राह्मण सर्वोच्च रहा और आज भीसरोज है डॉ अंबेडकर साहब 32 डिग्री लेकर आते हैं भारत में अछूत ही रहजाते हैं आज भी जातियां ही सर्वोच्च है जिस जाति में पैदा हो गया उसकी जाती हो गई कितना अच्छा कम करें लेकिन यदि छोटी जात का है दलित जाट का है तो दलित ही रह जाता है
त्रिपाठी जी, आप के अनुसार भारत भूमि मानव विहीन थी, सभी बाहर से आए। क्या यह बात तार्किक आधार पर सही है।मुलुक या सिन्धु सभ्यता में जाति व्यवस्था नहीं थी। जातियों की उत्पत्ति जैसा आप ने बताया, तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती ।
सभी जाति के लोग बाहर से नहीं आए हैं। पहले का कोयामुरी द्वीप, जम्बूद्वीप, गोंडवाना लैंड कहे जाने वाला भुभाग के लोग एक ही कुल के थे जो पशुता जीवन से धीरे धीरे विकास करते मानव कोई काम करना सीखें, जो जिस काम को अधिक बेहतर करना जानते थे उसे उन्हीं धंधा से सम्बंधित नाम से पुकारते थे, लेकिन आपस में किसी प्रकार की ऊंच-नीच की भेदभाव नहीं रखते थे। खासकर आज के जिस एसटी एससी और ओबीसी।हर जाति, परीवार में छुट-पुट झगड़ा और कोई न कोई बदमाश किस्म के लोग रहते ही हैं सो उस समय भी रहे होंगे, लेकिन विदेशीयों के भारत में आने के बाद इस ऊंच-नीच जाति धर्म-कर्म को किसी विशेष प्रयोजन से चरम पर पहुंचाया गया है और उसे बनाए रखने के लिए अभी भी कई कोशिशें जारी है।आज हम इस जाति व्यवस्था को झुठलाने के लिए लाखों तर्क दें कोई नहीं मानेगा। क्योंकि आजाद भारत में इन सबको बराबर करने की बात कही गई है तो फिर उसे क्यों नहीं माना जा रहा है।
त्रिपाठी जी मेरा मानना है कि पंडितो ने ही जाति और धर्म बनाए कियो कि शासन करने के लिए ये सत्य है कि कायस्थ और पंडित दिमाग मै तेज होते थे भारत पहले धर्म बनाए फिर भी काम नही बना फिर जातियो मै बाटा फिर भी उनका काम न बना फिर कुल गोत्र बाटे तब धर्म और जातीयो फूट पैदा हो गई और पंडितो का काम बन गया
इस पर दो शोध हैं। एक शोध के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई है और पूरी दुनिया में लोग अफ्रीका से फैले हैं। दूसरे सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति उत्तरी ध्रुव के आस पास हुई है, क्योंकि धरती सबसे पहले वहीं जीवन के उत्पन्न होने के योग्य ठंडी हुई थी।
जब सब बाहर से आये तो भारत वाले मूल निवासी कौन थे कहा गये,यहां पर लाखों वर्ष से लोग रह रहें है क्यो की सबसे ज्यादा मनुष्यो के जीवन के अनुकूलित वातावरण भारत में ही है, केवल तुर्क,मुग़ल,और पश्चिमी देशो के लोग आये
गुरु जी आपके पूरा वीडियो का सारांश ये समझ आ रहा है कि भारत खंड पे रहने वाला कोई भी मूल निवासी नहीं है यानि सब बाहर से आया है। तो फिर भारत खंड पे क्या मानवजाति नहीं शुरू हुआ ये सब दूसरे द्वीप से आए है ये कहा तक तार्किक है! कृपया इस शंका का समाधान दे।
इसमें भाषा का सामंजस्य कैसे बना होगा जब सभी जातियाँ बाहर से आयीं तो हर जाति की भाषा भिन्न होनी चाहिए मगर ऐसा दिखता नहीं तमिलनाडु केरल उड़ीसा और कर्नाटक आदि की सभी जातियों की भाषा लगभग समान है इसी तरह उत्तर भारत में सभी जातियों की भाषा बोली समान है अतः आप की थ्योरी सही नहीं है मनुस्मृति में जातियों का उल्लेख किया गया है और उनके कार्यों का भी उल्लेख है दंड सम्मान की व्यवस्था जातियों के आधार पर है
@@thelogicalindian99 सर , सबसे पहले आपको नमस्कार | मै आपके मंसा पर संदेह नही कर रहा हूँ लेकिन फिर भी जितने भी धारमिक पुसतक है सभी मे जातियौ के बारे मे लिखा गया है सभी गरंथो मे लगभग जातियो का विशलेषण एक जैसा ही है कुछ जातियो कौ काफी बरीयता दी गयी महान बताया गया बही दूसरी तरफ कुछ समुदायौ जातियो को नीच अछूत कह कर अपमानित किया गया , अधिकारो से बंचित कर दिया गया जिससे उनकी दसा दयनीय हो गयी है || फिर भी आपका बिशलेषण अच्छा लगा || बहुत बहुत धनयबाद ||
@@thelogicalindian99 Sir aaj chahe jitna chhipana chahe log lekin ab o chhip nhi payega .. jati kisne banaya kisne fayda uthaya kaun sataya gaya kaun sataya o sabko achhe se pata hai apko bhi ... Aap se achha koi nhi jaan sakta .
हिस्ट्री को ऐसे देखे कि इंसान को जानवर की तरह रहने पर मजबुर किया उस पर न चलने पर उनके द्ववारा दंडित किस प्रकार से किया कौन से लोग हैं जो शिक्षा से सम्पत्ति से दूर रखा ऐ इंसान भारत किस तरफ से आया इस पर ध्यान दें
वाह सर आपने तो बहुत अच्छी कल्पना गढ़ी है ।आपके अनुसार भारत भूमि में कोई पैदा ही नहीं हुआ, आपके अनुसार सभी जातियां बाहर से आईं हैं। यहाँ कोई मूल निवासी था या नहीं इस पर भी प्रकाश डालने की कृपा करें सर
योगी आदित्यनाथ महन्त जातियों के बिषय में विषेश जानकारी कर लीजिए तत्पश्चात योगी जी जातिवाद खत्म करने का प्रयास कीजिए हिन्दू मुस्लिम न बांटिए,अपना दिमाग ठीक कर लीजिए।
जैसे जिसका धंधा समय रहते उनकी जाती बन गई जिसने सिलाई काम किया वो दर्जी बन गए जिसने लुहारी काम किया वो लुहार बन गए जिसने सोनी काम किया वो सोनी बन गए जिसने लोगों का रक्षक का काम किया वो क्षत्रिय बन गए जिसने सुतारी काम किया वो मिस्त्री बन गए जिसने मकान बनाने का काम किया वो कड़ियां बन गए ये सब तो धंधा आधारित बने पहले सब आर्य कहलाते थे जिनका ज्रिक महाभारत में मिलता है वहां आर्य पुत्र से संबोधन से मिलता है.
तिरपाल जी इतिहास के किताब मे भी आपके कुछ बातो का जिक्र था जिसमे कि,सी जाती को बाहर से आया हुआ बताया गया था बच्चे पढ़े 4 महिने फिर जाति विरोध करने पर इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया।
समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हर कर्म जरूरी था,जिसने जो कर्म किए उनके कर्म के आधार पर पुकारे जाने लगे,फिर वह एक पहचान बन गई और उसी पहचान के आधार पर उनके वंशज जाने जानें लगे। और मेरे भाईयो यही है जाति का गुना गणित। मात्र राजनीतिक लाभ के लिए लोग जातियों का राग अलाप रहे हैं।
अच्छी जानकरी ।। पर एक सवाल मन मे उत्तपन्न हो रहा है के ये जो इतने सारे देवी देवता हुवे है इनको इंसानो ने हि बनाया है, हमारे जीवन मे भगवान का कोई रोल नही है, क्योकि पैदा मा बाप् ने किया , जीवन भर हम अपनी मेहनत् करके पेट भरते हैँ, तो भगवान का तो कोई रोल नही दिखता। थोड़ा इसपे भी प्रकाश डालें।
भाई सब हुए है हमारे जीवन में उनका ही रोल है। आप सिर्फ भौतिक जीवन को देख पा रहे हैं। ये धरती करोड़ों साल से है इसपर बहुत कुछ घट चुका है। एक बार वेद पुराण गीता रामायण जरूर पढ़े आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा। कभी आध्यात्मिक साधू संतों से मिलो। झूठ है तो सत्य होगा पुण्य है तो पाप होगा भक्त है तो भगवान भी होगा।
Bhakt bhagwan kuchh nahi hai kewal hero worship hai.adhinayak wadi drishtikon hai.dharm ka relation raj niti se hi hota hai.rajnniti ke bina dharm ko ahinsak dharm kahate hai .rajniti ke raste par chal kar adarsh ki kalpana nahi ki ja sakati hai .buddh aur jain ke alawa duniya me koi ahinsak nahi hai matalab raj niti ka sahara liya.rajnniti me exploitation hai to dharm bhi exploitation se free nahi ho sakata.
@sukkhuram7818 भक्त भगवान जबसे सृष्टि बनी तबसे है। इसका प्रमाण हमारे ऋषि मुनि साधू संत योगी महंत आज भी दे रहे हैं। आपका विश्वास भगवान बुद्ध या महावीर जी में अच्छी बात।। अगर दुनिया में कोई वस्तु है तो बनाने वाला भी है सभी जीव प्राणी मनुष्य को बनाने वाला ईश्वर भी। और पूरी दुनिया अपने अपने तरीके से मानती है। आपके मानने ना मानने से कोई फर्क नहीं पड़ता। आज के घटिया दोगले नेताओ की राजनीति से धर्म को मत जोड़ो। धर्म संस्कृति अध्यात्म विश्वास दया दान तप त्याग ही ईश्वर से जोड़ता है
@@santoshsuman8875 ईश्वर ने जिसको बनाया वो ईश्वर को बना दे ये असम्भव है। लोग भीख मांगने के लिए मिट्टी को अपना ही आकार दे दिया जो कुछ कर नहीं सकता उसके आगे बैठ भीख मांगते हैं तो ईश्वर क्या करे? ईश्वर दर्शक बन देखता है कर्मों का लेखा-जोखा रखता है। समयानुसार फल देता है। एक झोली फूल पड़े हैं एक झोली में कांटे रे, कोई कारण होगा, अरे कोई कारण होगा। ओ३म्
आपकी विश्लेशण शैली बहुत बढ़िया है,आपकी कुछ बातें मानने लायक है परन्तु कुछ बातों से लगता है कि बड़े चतुराई से यह नकारने का एक प्रयास है कि जातियां ब्राह्मणों द्वारा नहीं बनाई गयी मेंरा मानना है कि जिस तरह डा भीमराव अंबेडकर अकेले पचास ग्रेजुएट से अधिक विद्ववता रखते थे और संविधान समिति के लगभग सभी सदस्यों द्वारा बहाने बाजी करने के बाद पूरी जिम्मेदारी बाबा साहब ने अकेले उठाई और संविधान लिखा, ठीक उसी प्रकार मनुस्मृति लिखने वाला व्यक्ति उस दौर का बहुत ही चतुर व्यक्ति रहा होगा और अपने लोगों का हित संरक्षण निरंतर बना रहे , दूरदर्शी व्यक्ति रहा होगा , दूसरी बात कि जो जितने बाद में आया अपने से पहले वालों को अपने से इंफिरियर माना यह तर्क पूर्ण सही नहीं हो सकता क्योंकि ब्राह्मणों के बाद मुगल आए परन्तु फिर भी ब्राह्मण से नीचे सभी माने जाते हैं
सनातन में वर्ण का उल्लेख मिलता है जातियो अस्तित्व बहुत बाद का है l भारत के पूर्व से कोई मानव समाज/समूह का अस्तित्व तो रहा होगा क्या यह जरूरी है कि भारत का हर निवासी बाहर से ही आया हो ? अतः इसमें व्यापक चर्चा हो सकती है आज के वैज्ञानिक युग में बहुत से साधन हैं जिसमें स्थान और मूल प्रजाति का निर्णय हो सकता है ll
😊 सबसे पहले हम लोग इ.स. और उसके पिछे दो - तीन हजार साल तक ही , इतिहास का अध्ययन और खोज करने मे धन्यता मान रहे है ! 😂 सनातन जांबूद्वीप भारतवर्ष की विश्वात्मक संस्कृती , कई युगोंसे - मतलब लाखो - करोडो वर्षोसे - आदर्श भेदहीन नीती का आचरण करते चला आ रहा है ! 💐👍 प्रत्येक ८००० वर्षोके बाद प्रलय आ जाता है ! बहुत सारा उसमे बह जाता है ! तो फिरसे सबकुछ नऐसे शूरु हो जाता है ! वेद - उपनिषद , पुराणसाहित्य , फिरसे बनाना पडता है ! सनातन पौराणिक साहित्य मे -- कहिभी -- ' जाती ' का उल्लेख नही आता ! सिर्फ ' वर्ण ' का उल्लेख है और उसका अर्थ सिर्फ और सिर्फ -- ' व्यवसाय - प्रोफेशन ' के बारेमे है ! ' मनुस्मृती ' का इंग्लिश भाषांतर ' मॅक्समुल्लर ' ने किया था , जो बहुत ही ' विकृत ' मानसिकता से प्रेरित था ! उसने -- ' वर्ण ' का अर्थ - ' कास्ट ' ( जात ) बताया और वो - ग्रंथ मा .डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने जलाकर - ' निषेध ' व्यक्त किया था ! 👍
जो लोग भारत मैं आ कर ब्राह्मण बने वो आक्रमण करके नहीं आये. ये लोग भारत की सत्ता और शिक्षा के इर्द गिर्द रहें. कई पीढ़ीयों बाद भारत मैं पकड़ बन जाने के बाद सारा खेल शुरू हुआ.
सर जी आपने अपना अनुभव बहुत ही अच्छा बताया लेकिन हिंदू राष्ट्र के लिए इन जातियों को एकजुट कैसे किया जाए क्योंकि बाल्मीकि समाज, चमार समाज आदीवासी समाज अपने आप को हिन्दू नहीं समझते क्योंकि इनको हिंदू मंदिरो मे नहीं जाने देते इसके लिए भी जरूरी सोचे धन्यवाद लेखराम शर्मा चन्डीगढ
इस चैनल का नाम द लॉजिकल इंडिया है, व्याख्यान में कोई लॉजिक नहीं है आपने संविधान का व्याख्यान वैसे ही कर रहे है जैसे सब ब्राह्मण विद्वान ढोल, गंवार, शूद्र पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी का व्याख्या करते है । तर्क कहां लगा पाओगे गपोड़ने के अलावा।
Easy bharat may bhaut janni pada huya ha koi sambdhian ke duhai data ha or malli khud kha Rahy sharkar ke sari subdhya Free Kom padhi honay per parmosan per parmosan sambdhian may Aartik Aadhar per hona jurrari ha
दोस्तों, 2000 साल पहले जातियाँ नही थी। भारत बौद्ध राष्ट्र था।ब्राह्मणों ने सम्यक समाज को 6743 जातियों में बांटा और आज बहुजन एक जुट होरहे हैं तो वही लोग धमकी देरहे हैं कि बटोगे तो कटोगे?जातियॉं जबतक रहेगी तबतक जातिवाद भी रहेगा?मूलनिवासी राष्ट्रवाद ज़िंदाबाद।
भगवान बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 में हुआ बुद्ध पूर्व काल में वर्ण व्यवस्था थी लेकिन शूद्रों को जातियों में नहीं बाटा गया था। इसलीए सम्राट अशोक के जमाने में भी जातियों का उल्लेख नहीं मिलता तथागत बुद्ध के 750 वर्ष बाद पैदा हुए सुमति भार्गव (मनु) ने मनुस्मृति की रचना की तब से ही शूद्रों को विभिन्ना 6243 असमान जातियों में विभाजित किया गया। क्योंकि इनकी सांख्य ऊपर के वर्णो से अधिक थी जो आगे चलकर उनके लिए खतरा साबित हो सकती थी जतिया ऐसे बानी
लगभग जातियों की निर्मिति इसी तरीके से हुई होगी ऐसा मैं भी सोच रहा था अच्छा हुआ आपने जस्टिफाई कर दिया। पहले माइग्रेशन करके आए होंगे फिर बाद में इन्वेंशन करके, यह मेरा मानना है।कबीले ही विभिन्न जातियों में बंटते गए। ब्राह्मणों का दोष तो था कि इसे धार्मिक रूप देकर दृढ़ कर दिया और मनु स्मृति जैसी आचार संहिता लिखकर बदनामी मोल ले ली।
सर जाट आर्यो की जाती getae है जिन्होंने सिर्फ उपजाऊ जमीनों पर कब्जा रखा,steppe के मैदानों से चलने के बाद पाकिस्तान और उत्तर भारत मे जाटो को उपजाऊ जमीन और भरपूर पानी मिला तो यही बस गए आगे जाने की जरूरत नही पड़ी
बिल्कुल सही दिशा में आगे सोचे हो सर, आपने बिल्कुल सही कहा,मैं भी पहले से ऐसा ही सोचा करता रहा हूं,और यही वजह है कि इसी एरिया के कुछ देशों में ही सबसे ज्यादा आबादी है बाकी दुनिया से, और इसीलिए कहा जाता है कि भारत में हर कुछ किलोमीटर में बोली ,भाषा और पहनावा बदल जाता है,इस विषय पर सोचने के लिए बहुत व्यापक रूप से कई हजार साल पहले से सोचना पड़ता है,इस पर बहुत बड़े व्यापक रूप से रिसर्च होना चाहिए...
लेकिन अब जातिवाद में केसे बदलाव किया जाए कि अब सब एक समान समझने लगे इसके उपर भी वीडियो बनाओ या फिर सिर्फ ब्राह्मणों की वकालत करने के लिए वीडियो बनाया है
अधिकांश यूट्यूब चैनल टीवी चैनल पर धर्म और जाति की राजनीति सेप्रभावित होकर तरह तरह की बातेंकी जाती है और अलग अलग जाति धर्म के लोगों को एक दूसरे के सामने दृढ़ता से खड़ा करने का प्रयास किया जाता है इससे समस्या खत्म नहीं होती है जैसे कोयल को घिसने पर काला ही होता है वैसे ही यह समस्याएं भी बढ़ते ही नजर आती है मेरा ऐसा मानना है कि यदि स्कूल शिक्षा से लेकर महाविद्यालय शिक्षा तक सबको निशुल्क कर दिया तो आने वाले लगभग बीस वर्षों में जाति आधारित समस्या स्वयं ही समाप्त हो सकती है
जो हजारों वर्षों से ग में लिख लिखकर गलियां दे रहे थे नीचा दिखा रहे थे उसकी तुलना में आजादी के बाद शिक्षा का अधिकार मिलने पर है मानवी आधार पर भेदभाव का विरोध करना वह भी गाली देना लग रहा है आपको ! अब दूसरी बात यह है कि सम्राट अशोक के समय के शिलालेख मैं जातियों का उल्लेख नहीं है तो संभवत बुद्धिस्ट कलचर के बाद ही जातियों एवं वर्ण का उदय हुआ है और धर्म एवं जातियों की बात धार्मिक ग्रंथों में प्रमाणिता लिखित रूप में मिलती है और आप विभिन्न प्रजातियांके रूप में लोगों के बाहर से भारत में आने की थ्योरी बताने का प्रयास कर रहे हैं जो जातियां जंगल में है वनवासी है आदिवासी है उन्हें सबसे पहले आना और उसके बाद बाकी लोगों का आना बता रहे हैं जो संघर्ष के कारण ज्यादा विकसित हुए हैं परंतु अलग अलग जगह से अलग अलग समय में आने वाले लोगों के शारीरिक लक्षण जिसमें शरीर की बनावट संस्कृत लक्षण जिसमें भाषा बोली ईश्वर के प्रतिमान्यताएं खान पान रहन सहन आते हैं इस प्रकार की कोई विषमता है पद के आने वाली प्रजातियों से स्पष्ट भिन्नता देखनी चाहिए थी वह नहीं दिखती है इन बातों का विशेष उल्लेख मानव भूगोल एवं प्रजातियां का विभिन्न विभागों में निवास एवं आवश्यकता के अनुरूप पलायन एवं अनुकूलता के अनुसार स्थाई निवास बनाना उनका उल्लेख मिलता है
त्रिपाठी जी की लॉजिकल बात सही प्रतीत होती है। क्योंकि worlds latest DNA थ्योरी के अनुसार हम सब अफ्रीका से आए थे, उनकी प्रजाति आज भी उसी जंगली स्वरुप में अंडमान निकोबार में मौजूद हैं।
सरकार आने के बाद राखीगढ़ी में मिले कंकाल की dna की मान्यता को बदल दिया गया है इतिहास वही लिखता है जिसका शासन होता है।आज इनकी सरकार है तो इन्होंने इतिहास बदल दिया है समझना होगा।
@shaileshdwivedi7171 जी बिलकुल। क़ल ही तो लखनऊ वाले एडवोकेट पंकज त्रिपाठी जी ने ( लॉजिकल पर ) बताया है कि सबके पूर्वज अफ्रीका से आए थे, अंडमान में अपने पुरखे आज भी उसी रूप में जरावा द्वीप पर उपलब्ध है। कभी जाकर मिलिए 😁😁😁
आपके प्रस्तुत विचार से पहली बार जातियों का वैज्ञानिक चित्रण है ओर आपने बहुत मेहनत व दिमाग से समझाया है। कुछ लोग राजनीति व फायदे मे जातियों का उपयोग करते हैं ऐसे लोग आपके शोध पर प्रश्न खड़ा करेगे परन्तु आप निरन्तर एक एक जाति के विशेष पहचान से दुनिया में कहा से उठे उसे जोडिए
वकील साहब आप ये बताए भारत में किसी भौगोलिक कारण से जाति बनी लेकिन जातियों में भेद भाव किस जाति के कारण बना जब दूसरे देश में जातियां है ही नहीं तो जाति भारत मे कैसे बनी।
@@mgp_play1M भेदभाव करोगे तो भेदभाव होगा खुद अपनी जाति से परेशान रहते हो और दूसरों को परेशान करते हो सत्य को स्वीकार कर लो और सृष्टि के समस्त प्राणियों की जातियां और उपजातियां का स्वयं वर्गीकरण और ज्ञान प्राप्त करके परमानंद को प्राप्त करो
@@mgp_play1M भारत में जाति बनाने के लिए प्राचीन काल में मनु महाराज ने फैक्ट्री लगाई थी इस फैक्ट्री में जातियां बनाई जाती थी इसके अलावा शीशे को गला करके गैर जातियों के कान में भरने का काम किया जाता था
@@thelogicalindian99 जातियां तो पशुओं, जानवरों में होती है जो आदमी दूर से देख पहचान जाता है वह गाय या भैंस बकरी है और जानवर एक दूसरे जानवर या पशु को प्रजनन नहीं करा सकता लेकिन मनुष्य जाति एक होती है जो दूर या पास देखने से पता नहीं चलता कि किस जाति का है हमे ऐसा लगता है इस जाति कुप्रथा को जागरूप समाज बदलना नहीं चाहता है।
@@thelogicalindian99 और एक तरफ कहते की ब्रह्मा ने सबको बनाया हिंदू धर्म चार वर्ण कर दिया जब सब भगवान की संतान है एक भगवान की संतान को एक सामान होना चाहिए सच्चाई तो पहले जो समाज जागरूप था वही बता सकता है ।
जातियों का मूल आधार ब्राह्मण ही है क्योंकि मनुस्मृति ब्राह्मण ने ही लिखी है वह किताब नहीं है वह एक उनका संविधान है और अपने लोगों के हित के बारे में सब कुछ है
त्रिपाठी जी आपने जो भौगोलिक आधार पर जो रिसर्च किया है वह इस तरह काल्पनिक है जिस तरह से रामायण और महाभारत काल्पनिक है इससे पहले के अवशेष भी बहुत हैं रिसर्च करने के इसमें संघीय व्यवस्था थी उन्हें रिसर्च ओं के आधार के ऊपर यह सारे क्रियाकलाप हुआ है आपका रिसर्च काल्पनिक है धन्यवाद
वैदिक ब्राह्मणी धर्म के लेखक श्रीकांत पाठक कहते है निग्रेटो के बाद यहाँ पर आद्य निषाद ही रहते है विश्व विद्द्यालय अयोध्या जी की पढ़ो किताब ये ध्यान से नाग निषाद की गाथा गाऊँ सुन ले भैया ध्यान से स्वर्ग से सुन्दर देश हमारा जम्बूदीप इसे कहते है राजा ( धम्म ) असोक के शिलालेख से आओ मिलकर पढ़ते है रामग्राम के निषाद ( नाग ) कोलियों ( जामुनीय ) ने नाम दिया था शान से नाग निषाद की गाथा गाऊँ सुन ले भैया ध्यान से भीम जोहार। बुद्ध वन्दामि
@@shaileshdwivedi7171 अच्छा होता अगर आधुनिक परिस्थितियों के ज्ञान से लोगों को अवगत कराते? महापंडित राहुल सांकृत्यायन ३६ भाषाओं के ज्ञाता थे और बहुत बड़े घुमक्कड़/ यायावर थे। आर्यों के कबीलों के भारत में आगमन के प्रमाण र्ऋगवेद में भी है।
@@kirtikumarpal9193 आपका साहित्य ज्ञान प्रसंशनीय है परंतु सांकृत्यायन ज़ी के ऐतिहासिक अन्वेषण काल्पनिक प्रमाणित हो रहे हैं। 36 भाषाओं के ज्ञान का सीधा अर्थ यह है कि भाषा के विकास के पहले का उनका ज्ञान कपोल कल्पित था
जो जातियां विदेश से आती हैं वह जातियां अपनी प्राचीन देश की पूजा सदैव मुसलमान और ईसाइयों की तरह करती ही रहती हैं परंतु सनातन धर्म में इस प्रकार की कोई परंपरा और मान्यता प्राप्त नहीं होती है इससे यह प्रमाणित होता है की की प्राचीन आर्य जाति कहीं किसी विदेश से इस देश में नहीं आई
त्रिपाठी जी आपने सभी बिन्दुओं को गहराई से अध्ययन किया है और अपना मंतव्य भी दिया है । लेकिन जातिव्यवस्था में समाज या प्रांत का विकास संभव है क्या ? अगर नही है तो जाती व्यवस्था समाप्त करने पर अपना मंतव्य देना चाहिए ।
ये ब्राह्मण देवता है tri ved के ज्ञाता है, अब क्या ही बोले in मुख पुत्रों के बारे मै, इनका पाखंड फैलाना अभी भी चालू है, बाकी यहां के मुल निवासी समाधान रहे.
जातियों में बांटने वाला कोई भी नही था जिसको जो कार्यक्षेत्र, रहन - सहन,, खान -पान पसंद आता रहा,,,,, वही उसका,,,, समूह बनता गया होगा अलग अलग कार्य,, रहन-सहन के तरीके,, खान-पान के तरीकों ने,, अलग अलग वर्ण व्यवस्था को जन्म दिया होगा।। आपका विश्लेषण सटीक है
🙏सर आपकी....... धन्यवाद सर मै बोलयू जैसे जितने लोग वीडियोदेखा सुना मेरे बगल के 3 चाचा 2 चाची लोग उतना समय तक तों मान सही बात है फिर बाद मे वही बात शुरू हो गईं
@@ramawatarbharti1880 सत्य कभी मिटेगा नहीं बहस करने से जाती बदलेगी नहीं बाप बदलना कोई हंसी खेल नहीं आज छुपाओगे 50 साल बाद डीएनए टेस्ट करके सब बता दिया जाएगा
7:20*सुप्रभात 🌄 मित्रों सादर नमस्कार 🙏🙏 त्रिपाठी जी आप का विश्लेषण बढ़िया है जात ना पूछे पता न पूछे ना पूछे तेरा धर्मा पूछे तेरा कर्मा! कर्म से ही जातियां होती हैं और कर्म के अनुसार ही जातियों को बना दिया गया इंसान को जो कार्य करने में सक्षम विशेषज्ञ हो जाता था दूसरे मानों आदमी उसको उसी कार्य से मिलते हुवे हिन्दी भाषा शब्दों से पुकारने लगे थे लेकिन अब समय बदल गया है सत्यार्थ प्रकाश में भी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी यही समझाया है बहुत बहुत धन्यवाद 🎉
बहुत ही बढीया, कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था, फीर भेदभाव क्यो, ब्राम्हा के मुख से पैदा हुये ब्राह्मण बाहू से क्षत्रीय जांघ से वैश्य पग से शुद्र , पुत्र श्रेष्ठ पुत्री कनिष्ठ कहे गरुड पुराण ये कैसा न्याय, पहले वैदीक धर्म फीर आर्य धर्म अब हिंदू धर्म और अब सनातन धर्म की मांग हो रही, जय हो धन्यवाद
लाखों लोगों के बीच में एक दिन एक ब्राह्मण आया उसने अलग अलग लाइन लगवाया और हर लाइन के लोगों से बोला कि तुम लोगों की फला जाति है और सारे लोगों ने ब्राह्मण की बात स्वीकार किया और ब्राह्मण को सम्मानित भी किया ।।वही आज तक सब मान रहे हैं
Pankaj Kumar Tripathi Ji, aap ka yah research bhi bahut hi sarahniey hai,aap 50% safal hain ki jaatiyan kaisey bani hongi,haan Manusmriti jis ney likha hoga us par bhi gahan research kijiey,kyun ki Manusmriti hi janamna jaatibayawastha ki root hai.
Logical baat karni hai to aise sochiye. Dharti bani Bandar se insaan bana Insaan ne ghar, gaanv, samaj banaya. Samaj ko chalane ke liye shareer ki takat ke hisaab se kaam banaye. Is sab ke dauraan wo prakriti ko poojta tha. Fir prakriti ko moorti roop me poojna shuru kiya. Fir dhire dhire jaanwaron ko paalna aur kheti shuru ki. Is sabke baad jo log adhyatmik gyaan aur vigyaan khoj rahe the unhone alag alag principal / discoveries/ aavishkaar diye. Wo sab gyaan ke basis par bharatvarsh bana. Kisi naa kisi mahapurush ne ved puraan ityaadi ki rachna ki. Shayad adhyatmik gyaan mila hoga. Usse varna vyavastha ko naam mila. Aisa nahi ki varna pehle nahi the. Yadi aadimanv me se koi achha sgikaari tha to chahe uska pita kheti me raha ho par santaan shikari bani. Par ek formal naam kaafi samay baad aaya. Jo log varna vyavastha ko galat bataate hain wo europe ka itihaas bhi padhe. Vahan bhi kaam ke hisaab se varna the. Kaun kis kaabil hai wo kaam karta tha. Surely agar chinese ya south american natives ka itihaas study kiya jaega to wahan bhi aisa kuchh milega. Ek baat aur samjhne ki hai. Hamare ved puraan 4 varna vyavastha bataate hain. Agar dhyaan se soche to puraane se leke naye tak sab profession in chaar varnon me classify kiye jaa sakte hain. To jisne bhi aise naam aur vyavastha di usne bhi bahut soch samjh ke di. Aur agar sanatan me jaat paat khatm karni hai to naam ke aage ya to sanatani likh lijiye ya bharti. Jaati ek ho jaegi. Kaam apni kaabiliyat / zarurat / ichhaa ke hisaab se karte rahiye.
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
एक बात तो सच है कि बृाह्मण अपने आप को सही साबित करने के लिए बहुत कोशिश करता है सब कहानी सुनाने के बाद ओ अपने को निर्दोष साबित करता है परन्तु तब तक तो ठीक था पर अब क्या
मनुष्य ने समाज की जरूरत के जो कार्य /पेशा आरम्भ किया उनके आने वाली संतनो ने भी उसे अपनी छमता के अनुसार सीखा और अपने भरण पोषण के लिये पिढ़ी दर पिढ़ी अपना लिया जिसक कार्य का नमकरण समाज द्वारा ही हुआ और कार्य के आधार पर जाति का सृजन हो गया. यह भी स्पष्ट है की जब मनुष्य काबिलाई से समाज,राज्य का निर्माण हुआ कार्य के हिसाब से जाति का निर्माण हो गया
सर आज पहली बार अद्वितीय जानकारी मिली है अद्भुत परंतु मेरा एकप्रश्न है अफगानिस्तान की साइड से जो भारत में लोग आते थे वह नीचे क्यों नहींजाते थे ऊपर तो रूस की साइड में ज्यादा ठंड बताई है आपने मगर नीचे भी तो भारत के जैसा ही लग रहा है साउथ अफ्रीका गाबोन केन्या सोमालिया इस साइड में भी तो भारत जैसा ही लग रहा है मैप में प्लीज सर मेरी इस शंका कासमाधान करें धन्यवाद
Krishi bharat me shuru hone k wajah se Jo log yaha aaye unko khnana peena milne laga Jis wajah se wo aage nahi Gaye. Sadiyon se log yaha se wajah aate jate Rahe hain, ye silsila continuous hai.
प्रोफेसर सहाब आप के लेक्चर मे छल दिखाई देते हैं आपने कहा पहले आया. मनुष्य कोपी करते हैं. देखा देखी . आपने कहा मैं मनुस्मृति पढा हैं और जाति मे दो ही जाति दिखाई दिया. और वो जहा था वोही रहगया. मनुस्मृति मे कितना छल कपट था वो नहीं बताया.
त्रिपाठी जी आपकी खोज अधूरी है।जब कबीले आए तब यहां भारत खाली स्थान था क्या, यदि खाली था तो क्यों था जबकि यहां भरपूर हरियाली थी।यदि 13:04 ख़ाली नहीं था तो यहां कौन जातियां थीं या नहीं थी।मिश्र में सभ्यता आ चुकी थी तो क्या भूखे मरने लगा गये थे जो उनको भागना पड़ा। मनुस्मृति ही इसका उत्तर है। समय के साथ सक्षम लोगों ने इसको विकृत कर दिया और आगे भी इसमें बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आपकी परिकल्पना अधूरी है। समाज में ऊंचा नीचा हमेशा रहा है और रहेगा, आधार चाहे कोई भी हो।
त्रिपाठी जी हमें लगता है आपको कोई यूट्यूब का वीडियो बनाना नहीं आता क्योंकि आप पूरी वीडियो में खाली नफरत की बात कर रहे हैं समझदार लोग समझ रहे हैं आप नफरत वादी है नफरत वाली आप श्रवण है आप छोटी जातियों का मन कर रहे हो
बहुत बढ़िया रिसर्च है आपकी सब इतिहास से ढूंढ कर निकालते हैं पर आपने भूलोल से निकाला बहुत सही विश्लेषण किया अब मै वर्ण से क्षत्रिय हूं हमारे कुलदेवता महाराजा अजमीढ़ जी है जो महाराज दशरथ व भगवान श्री राम के समकालीन है हस्तिनापुर मे इनका शासन था जिसको इन्होंने हरियाणा, राजस्थान मुख्य तक बढ़ाया पर यहा से ही अजमीढ़ जी ने विश्वकर्मा जी से स्वर्ण कला का ज्ञान लेकर कला की जो आगे जाकर सुनार जाति बनी तो मै आपकी इस बात से बिल्कुल सहमत हूं कि जो जिस कार्य को करता था तो अपने बच्चों का विवाह उसी कार्य के करने वालो से करता था
जब तक लोग आए या आ रहे हैं तब तक जाति भी आए हैं. यहां अलग से कोई जाति नहीं बना पाया है. हाँ वर्ण में उनके आचार व्यावहार, कर्तब्यों से किया गया होगा. यह भी बात सही है कि लोग अधिक की संख्या में भारत में ही क्यों आए. यह खोज हो सकता है. इसलिए त्रिपाठी सर का बात सही लगता है कि लोग भोजन पानी के लिए यहां आए होंगे. 😊
जिन महानुभावों को यह लगता है कि ब्राम्हणों ने अपने को श्रेष्ठ बना लिया और शुद्धों को निम्न बना दिया उनसे निवेदन है कि जन्म लेना किसी ब्राह्मण के हाथ नहीं है। अपने आप को शुद्र मान कर आप लोग जन्म देने वाले परमात्मा का अपमान न करें।
एक विशेष और विशिष्ट दृष्टिकोण! प्रशंसनीय प्रयास! भारत भूमि पर पश्चिम के रास्ते लोगों के निरंतर आने पर ही विशेष बल दिया जाना एक पहलू हो सकता है, परंतु यहाँ भी तो मानव - जाति का एवोलूशन कालक्रम में हुआ होगा. "संस्कृति के चार अध्याय " में वर्णित तथ्यों का समावेश विचारणीय है.
आपके तर्क ने हमें सोचने पर और लिखने के लिए प्रेरित किया आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी। हिन्दुस्तान में जाति व्यवस्था बाहर से आई हो मैं इस बात से कभी सहमत नहीं हो सकता। मैं भी समाजशास्त्र का एक विद्यार्थी रहा हूं और समाजशास्त्र में शोधकर्ताओं में से एक हूं। जाती व्यवस्था स्थानीय होती है। नामकरण और व्यंग्यात्मक भाषा से होती है,। अगर इस बात को समझना है तो आप हिमाचल प्रदेश में आकर देखिए। बहुत सी बातों को आप खुद समझ सकेंगे। आना जाना तो लोगों का लगा रहता है। पर आकर एक अलग जाति बना ली यह तो आप क्रमवार व्यवस्था बता रहे हैं। समाज कभी भी क्रमवार नहीं चलता। इसमें विषमता होती है। जिस जगह पर जो लोग रहे उनका नामांकन या जातीकरण उसी जगह पर है। जब जाती व्यवस्था में ही अपनी ही कुशलता और आजीविक के लिए संघर्ष होता है फिर पलायन होता है और पहचान और काम में कुशलता ने ही जातिवाद को मजबूत किया है और अब राजनीति मजबूत बना रही है
त्रिपाठी जी जाति उसी ने बनाई है जो जातिवाद का फायदा ले रहा है इसमें इतना रिसर्च की कोई आवश्यकता नहीं और वही है जो जातिवाद कायम रखना चाहते हैं उसमें आप भी आते हो
जातिवाद का विष आपके के अंदर भरा हुआ है आपके द्वारा जातिवाद को सपोर्ट कियाजा रहा है
Bahar se aane wali bat to sahi hai magar yahan ke mool niwasi kikyabyawastha thi
Raja dahir se shuru hui
Charles Darwin explained theory of evolution in his prominent book Origin of Species which reveals that we the civilized people of today were like wild animals.Cronologically we have become civilized people.Thanks??
@@alirazaanjraulvi2804mulle kbse yha k mul niwasi ho gye be😂😂😂😂😂
Tune to puri history hi change kr di😂
मनुस्मृति पर भी प्रकाश डालिए त्रिपाठी जी जिसने भारत में मूल निवासी लोगों को वर्ण और जाति में बांटकर ऊंच-नीच की गहरी खाई खो दी थीं लोगों को अछूत बनाया था उन्हें पशुओं जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर किया था उनसे शिक्षा का ,संपत्ति का ,व्यापार का अधिकार छीन लिया गया था ।इस पर भी कुछ प्रकाश डालिए
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े। जय मूलनिवासी।
I agree it's point
इन स्वर्णों की तरफ से लाठी चलाने कौन जाता था। जिनकी संख्या इतनी कम थी ओ किसके बल पर शासन किया।
@@BhagwanSingh-yz9hp कृपया मेरा जनरल कॉमेंट पढ़ने का कष्ट करें। जय मूलनिवासी।
Very good ji bilkul sahi kaha aapne Jay Bheem Jay savidhan namo buddhay Jay science and vigyan
मान गए साहब, आप तो पक्के पक्षपात वाले खिलाड़ी निकले।सच्ची बात बचा गए। ऐसे घुमाया जैसे मुंह में राम और बगल में छुरी।
त्रिपाठी जी मैं जाटव जाती से हु ,आंबेडकर,बुद्ध से प्रेरित हूं,अगर अच्छाई और भी महापुरुष में है भले ही वो मेरी विचारधारा से मेल नहीं करता हो लेकिन अगर बात तार्किक करके समझने में सफल है तो उसे मानने से मुझे कोई गुरेज नहीं है।
आपकी बात से सहमत हूँ ।
शायद भारत के इतिहास में से नया विश्लेषण है।हो सकता है कि और भी इतिहासकार है जिनका ध्यान इस तरफ जाए ।
मिशनरी आंबेडकर वादी कभी ब्राह्मण के खिलाफ नहीं रहता बल्कि ब्राह्मणवाद(अर्थात शोषणवाद ) के खिलाफ रहता है ।
आज कुछ आपसे हट के सीखा ।
सवाल कुछ और भी है,जबाव फिर कभी मांगेगे आपसे ।
मुझे वो लोग बहुत पसंद है जो लॉजिकली बात करते है चाहे वो किसी भी समाज से हो । जो डिबेट में प्रमुखता से अपने विचार और तथ्य रखे ,न कि झगड़े पर उतारू हो जाए ।
@@RSM--- पता है आप लोग उन्हीं लोगों के चेले सपेरे बनोगे जो लोग अपनी जात-पात छोड़-छाड़ करके ब्राह्मणों की तरफ भाग खड़े हुए अंबेडकर मंगेशकर कानितकर जवाली कर बनकर के जो लोग ब्राह्मणवाद और जाति पार्टी का बढ़ावा दे रहे हैं तुम लोग उनकी तो पूजा करोगे ही और इसीलिए जाति के कारण परेशान रहते हो
Good ❤
शालीनता ही विद्वता की पहचान है ❤
Tyre said
To inse ye bhi puch lete manusmarti kaha se ayi
बहुत अच्छा त्रिपाठी साहब लेकिन वर्ण व्यवस्था के आधार पर ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से अपने आप को सर्वोच्च स्थापित करने और बाकी सब को नीचे स्थापित करने का क्या औचित्य है और शूद्रों को शिक्षा से दूर रखने का क्या तात्पर्य है कृपया इसको स्पष्ट करने का प्रयास करें
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। जय मूलनिवासी।
Gajab bhai shahb kya jawab diye ho…❤❤❤
@@SunilYadav-qx6petumhara to dimage 12 bje k baad khulta hai
Jra ye bta do ki kha likha gya hai ki chamar nhi padh skta
Aklavya ka ungli kyu kata Gaya 😂😂@@nmt3994
मेरे भाई, सिरोही से पांव तक आदमी पूर्ण है, तो राष्ट्रपूर्ण है, मुख यानी मेंदू, जोज्ञानी हो, बlहु यानी बलवान, पेट यानी व्यापार वह , वेश्य, जो सब कार्यकर्ता वह शुद्ध, यह गलत वाक्य नहीं है, आज भी प्राध्यापक , सैनिक व्यापारी, नौकरशाही कहतेहैंl औरतों औरsir se paon Tak ek hi khoon firta hail हमारा सब का मूल एक ही है l संपत्ति के लिए सगे भाई भाई झगड़ा हैंloml
हम बटकर कटते रहे और सदियों गुलाम रहे इसका मूल कारण जाति प्रथा रहा। भारत विश्व गुरु बनने की राह पर हैं और इसमें सबसे बड़ी चुनौती,हिंदुओ को जाति प्रथा में बटे रहना जिसे समाप्त करने का समय आ गया है।सबका साथ सबका विकास और सबको न्याय मिलना चाहिए।
आप गोल गोल बातें बहुत घुमा रहे हो जातियों के उपर पर ये क्यों नहीं बताते हैं कि सभी जातियों में ब्राह्मण हीं सबसे श्रेष्ठ क्यों है उससे सब जातियाँ नीच क्यों है
Beta Brahmano se nafrat ye koi nyi baat nhi hai
Tere se phle mulle, usse phle Buddha, usse phle sikandar aadi sbhi krte the aur aaj bhi krte hai
Pr itne saal k nafrat k baad bhi kya ukhad liya tum sbne
ये कैसा बताएगा ये इसके पास कोई जवाब ही नहीं है।😀
Esko koye gayan nahi hai
Ye bas bakwas kar raha hai
Sab jatiya apne karam se hoti hai
तुम अपने आप को नीच क्यों मानते हो.....हम सब बराबर है....ब्राह्मणों को उच्च सभी जातियों ने माना है..उसका कारण यह है कि हम घर के दैनिक कार्यो में सबसे ऊंचा कार्य ईश्वर की पूजा करना. और पिता द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को ज्ञान और सिख देना है....यही कार्य ब्राह्मण करता था इसलिए श्रेष्ठ कहलाया 🙏🙏
@@वशिष्ठआबशिष्ठ, जिसने वर्ण व्यवस्था में सर्वोपरि त्यागपूर्ण भूमिका स्वीकार किया किया, उसे पूज्य ब्राह्मण कहा गया .
अरे भाई साहब जातियों का स्रोत केवल मनुस्मृति ही है !
Very good ji 💯
ब्राह्मण लिखित जितने ग्रंथ हैं ज्यादातर में ही जातिओ का वर्णन क्यों? जिसमें सिर्फ ब्राह्मण को सर्वोच्च दिखाया गया है क्यों?
मनु स्मृति में कुल कितनी जातियों का उल्लेख है??
आज थोड़ी ही देर में यह वीडियो जाएगी।
मनुस्मृति आपने पढ़ा है
@@thelogicalindian99 जाती भास्कर किताब एक बार पढ़िए
जाती व्यवस्था बंद होनी चाहिए जाती प्रमाण पत्र बनना बंद होना चाहिए , जाती केवल भारतीय होना चाहिए , लेकिन वो लोग जो जाती व्यवस्था से सब से ज्यादा लाभ ले रहे हैं वो ही जाती व्यवस्था का रोना रट हैं। अगर आप को यह व्यवस्था बंद करनी है तो सबसे पहले अपने जाती प्रमाण पत्र जला दो और सरकार से कहो की जाती प्रमाण पत्र बनाना बंद करो हम सुब एक हैं और आर्थिक आधार पर मदद करो , ऐसे ही लोग देश से जाती व्यवस्था को ख़तम नहीं हो रहे।
आपकी बात ठीक हैं लेकिन क्या इससे जाति देखकर जो भेदभाव होता हैं वो बंद हो पाएगा, अपने घर पर अपनी खाट पर बैठा पाओगे अपनी गिलास में पानी पिलाओगे, अपनी थाली में खाना खिलाओगे, अपने बच्चो की शादियां करोगे, अगर ये सब कुछ कर सको तभी जातिवाद खत्म माना जाएगा।
पंकज जी व्याहारिक कारण जो मनुवादी व्यवस्था से चल रहा है , उसपर कुठाराघात करो तो अच्छा होगा।
@@kamleshbamaniya9073 Yes bithate bhi hain of use kahte hain ki khud apne aap matke se pani nikal kar pi lo or mujhe bhi pila do , Gande hathon se brahmin bhi pani dega to nahi piyunga or safai se kisi bhi Jati or dharm ka aadmi Pani dega to piyunga or use bhi pilayunga.
१०% आरक्षण जो कुछ जाती विशेष को दिया गया है वो आर्थिक स्थिति के आधार पर है परंतु सिर्फ एक जाती विशेष के लोगों के लिए ही हैं ये जाती विशेष के लिए न होकर सब लोगों के लिए होना चाहिए आर्थिक स्थिति के आधार पर।
जातियां उसी ने बनाई हैं जो अपने को सबसे उच्च समझता है।जो अपने को सबसे उच्च समझता है वही जातियों को बनाए रखना भी चाहता है।चार वर्णों को बनाने वाले के चेलों ने जातियों को बनाया है।श्लोक 1/88 में क्या लिखा है।मनू स्मृति अध्याय/श्लोक 2/31व 2/135 व,4/80 ,व 8/380 व8/417 व 8/272 व 10/125 में क्या लिखा है।
जब से अम्बेडकर वाद बढ़ा है जाति पांति कम हुई है।ति्रपाठी जी शूद्रों को समझाने की, वेबकूव बनाने की जरूरत नहीं है।वह इतिहास भी जानते हैं, मनू स्मृति भी पढ़ते हैं,सम्विधान भी पढ़ते हैं।
Abe tere jaise anpdho k liye nhi hai ye
Ja abhi tere khelne khane k din hai smjha 😂
Tu to bevkuf hai jati is dharti ne banai hai .par teri buddi hi bhrast hai janwar main kisney banai jati?dharti ne banai.vahan koi brahamman gaya tha kya?
मनुस्मृति के विरोधी लोग पहले आपस मे शादी संबंध क्यों नहीं शुरू करते हैं। पासवान करते हैं मुसहर में शादी ? रविदास डोम में करें शादी, धोबी पासी में, मेहतर तांती से अपनी बेटियों की शादी क्यों नहीं शुरू कर रहे ?
अपनी जाति में शादी करना जातिवादिता नहीं है। इसलिए क्योंकि यह एक सामाजिक व्यवस्था है और इसे समाज के हर जाति समुदाय की स्वीकार्यता हासिल है। यदि प्रेम विवाह को छोड़ दें तो हर समुदाय के शादी योग्य लड़की के पिता की यही इच्छा होती है कि अपनी बेटी की शादी अपने समुदाय में ही करे और उसी हिसाब से योग्य वर की तलाश होती है। और ये हर जाति के लोग कर ही रहे हैं तो इसके लिए जातीय जनगणना की क्या आवश्यकता है ????????
बनना सबको अमीर है, निशाना केवल सवर्ण है।
त्रिपाठी जी सम्राट असोक के अभिलेख में जाति व्यवस्था नही बल्कि गण व्यवस्था थी 🎉
मनुस्मृति को बैन और नाम के साथ जात लिखना गैर कानूनी/असंवैधानिक घोषित कर देना चाहिए 😊😊😊
ये देश 1000साल इसलिए गुलाम रहा कि यहां कायरो नपुसंक जाहिलो का झुण्ड था। कुछ देशभक्त योद्धाओं को छोड़कर। जाति पूरी दुनिया में है जाहिलो को लगता है सिर्फ भारत में है। देश सड़ा सविधान से चल रहा है और बोल रहा है मनुस्मृति बैन कर दो। खतना करवा चुके हो क्या।
विश्व लेवल के दार्शनिक ने लिखा है भारत की गुलामी का कारण वर्ण व्यवस्था और विज्ञान का तिरस्कार वर्ल्ड अवस्था में ब्राह्मण सर्वोच्च रहा और आज भीसरोज है डॉ अंबेडकर साहब 32 डिग्री लेकर आते हैं भारत में अछूत ही रहजाते हैं आज भी जातियां ही सर्वोच्च है जिस जाति में पैदा हो गया उसकी जाती हो गई कितना अच्छा कम करें लेकिन यदि छोटी जात का है दलित जाट का है तो दलित ही रह जाता है
आज भी बाबा साहेब आते तो उनको आज के नेता कही खड़े नहीं होने देते।
कितने विद्वानों को आज के नेता महत्व देते हैं??
पूरी दुनिया में विज्ञानवाद 20वीं सदी में फैला है।
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े भ्रम दूर हो जाएगा। जय मूलनिवासी।
जानकारी अच्छी है सभी को पढ़ना चाहिए जो अपनी व अपनों से कुछ देना चाहते है एजूकेशन शिक्षा देना चाहिए न कि किसी तरह के विवाद में पड़ ना चाहिए
त्रिपाठी जी, आप के अनुसार भारत भूमि मानव विहीन थी, सभी बाहर से आए। क्या यह बात तार्किक आधार पर सही है।मुलुक या सिन्धु सभ्यता में जाति व्यवस्था नहीं थी।
जातियों की उत्पत्ति जैसा आप ने बताया, तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती ।
Kya brahmano ke kah dene se jatiya ban gai thi.
सभी जाति के लोग बाहर से नहीं आए हैं। पहले का कोयामुरी द्वीप, जम्बूद्वीप, गोंडवाना लैंड कहे जाने वाला भुभाग के लोग एक ही कुल के थे जो पशुता जीवन से धीरे धीरे विकास करते मानव कोई काम करना सीखें, जो जिस काम को अधिक बेहतर करना जानते थे उसे उन्हीं धंधा से सम्बंधित नाम से पुकारते थे, लेकिन आपस में किसी प्रकार की ऊंच-नीच की भेदभाव नहीं रखते थे। खासकर आज के जिस एसटी एससी और ओबीसी।हर जाति, परीवार में छुट-पुट झगड़ा और कोई न कोई बदमाश किस्म के लोग रहते ही हैं सो उस समय भी रहे होंगे, लेकिन विदेशीयों के भारत में आने के बाद इस ऊंच-नीच जाति धर्म-कर्म को किसी विशेष प्रयोजन से चरम पर पहुंचाया गया है और उसे बनाए रखने के लिए अभी भी कई कोशिशें जारी है।आज हम इस जाति व्यवस्था को झुठलाने के लिए लाखों तर्क दें कोई नहीं मानेगा। क्योंकि आजाद भारत में इन सबको बराबर करने की बात कही गई है तो फिर उसे क्यों नहीं माना जा रहा है।
@@SagramKallo-v6z Jatiwad ke nafrat ko khatam karne ki jarurat hai.
त्रिपाठी जी मेरा मानना है कि पंडितो ने ही जाति और धर्म बनाए कियो कि शासन करने के लिए ये सत्य है कि कायस्थ और पंडित दिमाग मै तेज होते थे भारत पहले धर्म बनाए फिर भी काम नही बना फिर जातियो मै बाटा फिर भी उनका काम न बना फिर कुल गोत्र बाटे तब धर्म और जातीयो फूट पैदा हो गई और पंडितो का काम बन गया
इसका अर्थ यह हुआ कि भारत में कोई नहीं रहता था सब लोग बाहर से आए हैं फिर यहां रहता कौन था
इस पर दो शोध हैं। एक शोध के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति अफ्रीका में हुई है और पूरी दुनिया में लोग अफ्रीका से फैले हैं।
दूसरे सिद्धांत के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति उत्तरी ध्रुव के आस पास हुई है, क्योंकि धरती सबसे पहले वहीं जीवन के उत्पन्न होने के योग्य ठंडी हुई थी।
@@thelogicalindian99par maine to history me dekha h africa me hui
ये ड्रामेबाज है । जैसे जैसे पोल खुल रही हैं हाथ पैर मार रहे है इधर उधर।
मगर आदिवासी कहां से आए
@@narnarayanverma1728 jo aadikaal me pahle aa gye wo aadi niwasi
जब सब बाहर से आये तो भारत वाले मूल निवासी कौन थे कहा गये,यहां पर लाखों वर्ष से लोग रह रहें है क्यो की सबसे ज्यादा मनुष्यो के जीवन के अनुकूलित वातावरण भारत में ही है, केवल तुर्क,मुग़ल,और पश्चिमी देशो के लोग आये
गुरु जी आपके पूरा वीडियो का सारांश ये समझ आ रहा है कि भारत खंड पे रहने वाला कोई भी मूल निवासी नहीं है यानि सब बाहर से आया है। तो फिर भारत खंड पे क्या मानवजाति नहीं शुरू हुआ ये सब दूसरे द्वीप से आए है ये कहा तक तार्किक है! कृपया इस शंका का समाधान दे।
मुझे जानना है कि ब्राम्हण और संस्कृत भाषा कि उत्पति कब हुई मानव लिखना पढना कब जाना आप। का संदेश बहु सुन्दर लगा ।।।धन्यवाद
Aapka adhyayan सही नाही है
इसमें भाषा का सामंजस्य कैसे बना होगा जब सभी जातियाँ बाहर से आयीं तो हर जाति की भाषा भिन्न होनी चाहिए मगर ऐसा दिखता नहीं तमिलनाडु केरल उड़ीसा और कर्नाटक आदि की सभी जातियों की भाषा लगभग समान है इसी तरह उत्तर भारत में सभी जातियों की भाषा बोली समान है अतः आप की थ्योरी सही नहीं है मनुस्मृति में जातियों का उल्लेख किया गया है और उनके कार्यों का भी उल्लेख है दंड सम्मान की व्यवस्था जातियों के आधार पर है
भाषा भिन्नता बिल्कुल थी।
आज इलाहाबाद में बहुत से अंग्रेज परिवार रहते हैं उन सबको यहां की भाषा बोलने आती है।
समय के साथ भाषा सीख लेता है मनुष्य।
मनुस्मृति में कुल कितनी जातियों का उल्लेख है??
बमुश्किल 20 जातियों का ही उल्लेख है।
फिर शेष जातियां किसने बना दी??
@@thelogicalindian99 सर , सबसे पहले आपको नमस्कार | मै आपके मंसा पर संदेह नही कर रहा हूँ लेकिन फिर भी जितने भी धारमिक पुसतक है सभी मे जातियौ के बारे मे लिखा गया है सभी गरंथो मे लगभग जातियो का विशलेषण एक जैसा ही है कुछ जातियो कौ काफी बरीयता दी गयी महान बताया गया बही दूसरी तरफ कुछ समुदायौ जातियो को नीच अछूत कह कर अपमानित किया गया , अधिकारो से बंचित कर दिया गया जिससे उनकी दसा दयनीय हो गयी है || फिर भी आपका बिशलेषण अच्छा लगा || बहुत बहुत धनयबाद ||
@@thelogicalindian99 Sir aaj chahe jitna chhipana chahe log lekin ab o chhip nhi payega .. jati kisne banaya kisne fayda uthaya kaun sataya gaya kaun sataya o sabko achhe se pata hai apko bhi ... Aap se achha koi nhi jaan sakta .
हिस्ट्री को ऐसे देखे कि इंसान को जानवर की तरह रहने पर मजबुर किया उस पर न चलने पर उनके द्ववारा दंडित किस प्रकार से किया कौन से लोग हैं जो शिक्षा से सम्पत्ति से दूर रखा ऐ इंसान भारत किस तरफ से आया इस पर ध्यान दें
वाह सर आपने तो बहुत अच्छी कल्पना गढ़ी है ।आपके अनुसार भारत भूमि में कोई पैदा ही नहीं हुआ, आपके अनुसार सभी जातियां बाहर से आईं हैं। यहाँ कोई मूल निवासी था या नहीं इस पर भी प्रकाश डालने की कृपा करें सर
योगी आदित्यनाथ महन्त जातियों के बिषय में विषेश जानकारी कर लीजिए तत्पश्चात योगी जी जातिवाद खत्म करने का प्रयास कीजिए हिन्दू मुस्लिम न बांटिए,अपना दिमाग ठीक कर लीजिए।
आपका रिचार्ज एकदम गुड गोबर है भाई
जैसे जिसका धंधा समय रहते उनकी जाती बन गई जिसने सिलाई काम किया वो दर्जी बन गए जिसने लुहारी काम किया वो लुहार बन गए जिसने सोनी काम किया वो सोनी बन गए जिसने लोगों का रक्षक का काम किया वो क्षत्रिय बन गए जिसने सुतारी काम किया वो मिस्त्री बन गए जिसने मकान बनाने का काम किया वो कड़ियां बन गए ये सब तो धंधा आधारित बने पहले सब आर्य कहलाते थे जिनका ज्रिक महाभारत में मिलता है वहां आर्य पुत्र से संबोधन से मिलता है.
बिल कुल सही कहा आपने राम जय जय
तिरपाल जी इतिहास के किताब मे भी आपके कुछ बातो का जिक्र था जिसमे कि,सी जाती को बाहर से आया हुआ बताया गया था बच्चे पढ़े 4 महिने फिर जाति विरोध करने पर इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया।
Darje koi jaati nhi hai ye to Rojee rote hai
समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हर कर्म जरूरी था,जिसने जो कर्म किए उनके कर्म के आधार पर पुकारे जाने लगे,फिर वह एक पहचान बन गई और उसी पहचान के आधार पर उनके वंशज जाने जानें लगे।
और मेरे भाईयो यही है जाति का गुना गणित।
मात्र राजनीतिक लाभ के लिए लोग जातियों का राग अलाप रहे हैं।
अच्छी जानकरी ।। पर एक सवाल मन मे उत्तपन्न हो रहा है के ये जो इतने सारे देवी देवता हुवे है इनको इंसानो ने हि बनाया है, हमारे जीवन मे भगवान का कोई रोल नही है,
क्योकि पैदा मा बाप् ने किया ,
जीवन भर हम अपनी मेहनत् करके पेट भरते हैँ, तो भगवान का तो कोई रोल नही दिखता। थोड़ा इसपे भी प्रकाश डालें।
भाई सब हुए है हमारे जीवन में उनका ही रोल है। आप सिर्फ भौतिक जीवन को देख पा रहे हैं। ये धरती करोड़ों साल से है इसपर बहुत कुछ घट चुका है। एक बार वेद पुराण गीता रामायण जरूर पढ़े आपके सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा। कभी आध्यात्मिक साधू संतों से मिलो। झूठ है तो सत्य होगा पुण्य है तो पाप होगा भक्त है तो भगवान भी होगा।
Bhakt bhagwan kuchh nahi hai kewal hero worship hai.adhinayak wadi drishtikon hai.dharm ka relation raj niti se hi hota hai.rajnniti ke bina dharm ko ahinsak dharm kahate hai .rajniti ke raste par chal kar adarsh ki kalpana nahi ki ja sakati hai .buddh aur jain ke alawa duniya me koi ahinsak nahi hai matalab raj niti ka sahara liya.rajnniti me exploitation hai to dharm bhi exploitation se free nahi ho sakata.
@sukkhuram7818 भक्त भगवान जबसे सृष्टि बनी तबसे है। इसका प्रमाण हमारे ऋषि मुनि साधू संत योगी महंत आज भी दे रहे हैं। आपका विश्वास भगवान बुद्ध या महावीर जी में अच्छी बात।। अगर दुनिया में कोई वस्तु है तो बनाने वाला भी है सभी जीव प्राणी मनुष्य को बनाने वाला ईश्वर भी। और पूरी दुनिया अपने अपने तरीके से मानती है। आपके मानने ना मानने से कोई फर्क नहीं पड़ता। आज के घटिया दोगले नेताओ की राजनीति से धर्म को मत जोड़ो। धर्म संस्कृति अध्यात्म विश्वास दया दान तप त्याग ही ईश्वर से जोड़ता है
भगवान् न्याधीश है,
कर्म अस्तित्व,
जो भगवान् को नहीं मानता फिर वो अपने अनुसार जी क्यों नहीं रहे हैं?
@@santoshsuman8875 ईश्वर ने जिसको बनाया वो ईश्वर को बना दे ये असम्भव है। लोग भीख मांगने के लिए मिट्टी को अपना ही आकार दे दिया जो कुछ कर नहीं सकता उसके आगे बैठ भीख मांगते हैं तो ईश्वर क्या करे? ईश्वर दर्शक बन देखता है कर्मों का लेखा-जोखा रखता है। समयानुसार फल देता है।
एक झोली फूल पड़े हैं एक झोली में कांटे रे,
कोई कारण होगा, अरे कोई कारण होगा। ओ३म्
140 करोड़ लोग हैं और उतना ही दिमाग ,तो संभाल लोगे त्रिपाठी जी क्योंकि,
हर दिमाग अपने हिसाब से काम करता है😅
आपकी विश्लेशण शैली बहुत बढ़िया है,आपकी कुछ बातें मानने लायक है परन्तु कुछ बातों से लगता है कि बड़े चतुराई से यह नकारने का एक प्रयास है कि जातियां ब्राह्मणों द्वारा नहीं बनाई गयी मेंरा मानना है कि जिस तरह डा भीमराव अंबेडकर अकेले पचास ग्रेजुएट से अधिक विद्ववता रखते थे और संविधान समिति के लगभग सभी सदस्यों द्वारा बहाने बाजी करने के बाद पूरी जिम्मेदारी बाबा साहब ने अकेले उठाई और संविधान लिखा, ठीक उसी प्रकार मनुस्मृति लिखने वाला व्यक्ति उस दौर का बहुत ही चतुर व्यक्ति रहा होगा और अपने लोगों का हित संरक्षण निरंतर बना रहे , दूरदर्शी व्यक्ति रहा होगा , दूसरी बात कि जो जितने बाद में आया अपने से पहले वालों को अपने से इंफिरियर माना यह तर्क पूर्ण सही नहीं हो सकता क्योंकि ब्राह्मणों के बाद मुगल आए परन्तु फिर भी ब्राह्मण से नीचे सभी माने जाते हैं
Iska matlab baba sahab bhi galat kam kiya hai jai manusmriti Likhnewale ne kiya
Or aapko bahut bada doubt hai ki svidhan kewal baba sahab ne likha hai, baki log kaya bhojan karne ke liye gaye the
सनातन में वर्ण का उल्लेख मिलता है जातियो अस्तित्व
बहुत बाद का है l
भारत के पूर्व से कोई मानव
समाज/समूह का अस्तित्व तो रहा होगा क्या यह जरूरी
है कि भारत का हर निवासी
बाहर से ही आया हो ?
अतः इसमें व्यापक चर्चा हो
सकती है आज के वैज्ञानिक
युग में बहुत से साधन हैं जिसमें स्थान और मूल प्रजाति का निर्णय हो सकता
है ll
Aapka vishleshan bilkul galat hai
😊 सबसे पहले हम लोग इ.स. और उसके पिछे दो - तीन हजार साल तक ही , इतिहास का अध्ययन और खोज करने मे धन्यता मान रहे है ! 😂 सनातन जांबूद्वीप भारतवर्ष की विश्वात्मक संस्कृती , कई युगोंसे - मतलब लाखो - करोडो वर्षोसे - आदर्श भेदहीन नीती का आचरण करते चला आ रहा है ! 💐👍 प्रत्येक ८००० वर्षोके बाद प्रलय आ जाता है ! बहुत सारा उसमे बह
जाता है ! तो फिरसे सबकुछ नऐसे शूरु हो जाता है ! वेद - उपनिषद , पुराणसाहित्य , फिरसे बनाना पडता है ! सनातन पौराणिक साहित्य मे -- कहिभी -- ' जाती ' का उल्लेख नही आता ! सिर्फ ' वर्ण ' का उल्लेख है और उसका अर्थ सिर्फ और सिर्फ --
' व्यवसाय - प्रोफेशन ' के बारेमे है ! ' मनुस्मृती ' का इंग्लिश भाषांतर ' मॅक्समुल्लर ' ने किया था , जो बहुत ही ' विकृत ' मानसिकता से प्रेरित था ! उसने -- ' वर्ण ' का अर्थ - ' कास्ट ' ( जात ) बताया और वो - ग्रंथ मा .डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने जलाकर - ' निषेध ' व्यक्त किया था ! 👍
जो लोग भारत मैं आ कर ब्राह्मण बने वो आक्रमण करके नहीं आये.
ये लोग भारत की सत्ता और शिक्षा के इर्द गिर्द रहें.
कई पीढ़ीयों बाद भारत मैं पकड़ बन जाने के बाद सारा खेल शुरू हुआ.
सर जी आपने अपना अनुभव बहुत ही अच्छा बताया लेकिन हिंदू राष्ट्र के लिए इन जातियों को एकजुट कैसे किया जाए क्योंकि बाल्मीकि समाज, चमार समाज आदीवासी समाज अपने आप को हिन्दू नहीं समझते क्योंकि इनको हिंदू मंदिरो मे नहीं जाने देते इसके लिए भी जरूरी सोचे धन्यवाद लेखराम शर्मा चन्डीगढ
इस चैनल का नाम द लॉजिकल इंडिया है, व्याख्यान में कोई लॉजिक नहीं है आपने संविधान का व्याख्यान वैसे ही कर रहे है जैसे सब ब्राह्मण विद्वान ढोल, गंवार, शूद्र पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी का व्याख्या करते है । तर्क कहां लगा पाओगे गपोड़ने के अलावा।
चारकर्म = शिक्षण + शासन + उद्योग + व्यापार
चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम।
ब्रह्म वर्ण = ज्ञानी वर्ग।
क्षत्रम वर्ण = ध्यानी वर्ग।
शूद्रम वर्ण = तपसी वर्ग।
वैशम वर्ण = तमसी वर्ग।
1- अध्यापक चिकित्सक = ब्रह्मन
2- सुरक्षक चौकीदार = क्षत्रिय
3- उत्पादक निर्माता = शूद्रन
4- वितरक वणिक = वैश्य
पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत = दासजन सेवकजन राजसेवक ।
बिल्कुल सही पकड़ा है, ये गापोडियों का धंधा है भ्रम फैलाना। मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े विस्तार से वास्तविकता बताई है। जय मूलनिवासी।
ताड़ने का अर्थ अवलोकन या ध्यान रखना होता है, मंदबुद्धि पीटने से अर्थ निकालते हैं क्योंकि अम्बेडकर ही पसंद पाया, अन्य कोई अम्बेडकर नहीं पैदा हुआ?
Easy bharat may bhaut janni pada huya ha koi sambdhian ke duhai data ha or malli khud kha Rahy sharkar ke sari subdhya Free Kom padhi honay per parmosan per parmosan sambdhian may Aartik Aadhar per hona jurrari ha
दोस्तों,
2000 साल पहले जातियाँ नही थी। भारत बौद्ध राष्ट्र था।ब्राह्मणों ने सम्यक समाज को 6743 जातियों में बांटा और आज बहुजन एक जुट होरहे हैं तो वही लोग धमकी देरहे हैं कि बटोगे तो कटोगे?जातियॉं जबतक रहेगी तबतक जातिवाद भी रहेगा?मूलनिवासी राष्ट्रवाद ज़िंदाबाद।
Gotra kya hai jante bhi ho ??
Gotra pehle aya ki jaati jis din jan jaoge us din ye so called theory bhool jaoge
बेटे गोत्र एक तरह का dna है जातियां बाद में बनी हैं
भगवान बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 में हुआ बुद्ध पूर्व काल में वर्ण व्यवस्था थी
लेकिन शूद्रों को जातियों में नहीं बाटा गया था। इसलीए सम्राट अशोक के जमाने में भी जातियों का उल्लेख नहीं मिलता तथागत बुद्ध के 750 वर्ष बाद पैदा हुए सुमति भार्गव (मनु) ने मनुस्मृति की रचना की तब से ही शूद्रों को विभिन्ना 6243 असमान जातियों में विभाजित किया गया। क्योंकि इनकी सांख्य ऊपर के वर्णो से अधिक थी जो आगे चलकर उनके लिए खतरा साबित हो सकती थी जतिया ऐसे बानी
लगभग जातियों की निर्मिति इसी तरीके से हुई होगी ऐसा मैं भी सोच रहा था अच्छा हुआ आपने जस्टिफाई कर दिया। पहले माइग्रेशन करके आए होंगे फिर बाद में इन्वेंशन करके, यह मेरा मानना है।कबीले ही विभिन्न जातियों में बंटते गए। ब्राह्मणों का दोष तो था कि इसे धार्मिक रूप देकर दृढ़ कर दिया और मनु स्मृति जैसी आचार संहिता लिखकर बदनामी मोल ले ली।
इस थेवरी सही नहीं बैठता है
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े। जय मूलनिवासी।
सर जाट आर्यो की जाती getae है जिन्होंने सिर्फ उपजाऊ जमीनों पर कब्जा रखा,steppe के मैदानों से चलने के बाद पाकिस्तान और उत्तर भारत मे जाटो को उपजाऊ जमीन और भरपूर पानी मिला तो यही बस गए आगे जाने की जरूरत नही पड़ी
अशोक महान के वाद बौद्ध धर्म का पतन हुआ और सनातन धर्म कि स्थापना के समय मनुष्य को जाती मे बांटकर उंच नीच बनाए गए होंगे
सम्राट अशोक का समय के बाद मुग़लों का फिर अंग्रेज आए मुग़लों से पहले बौद्ध काल था
@@SatydevSign-vm6sd matlab ye Chouhan, pratihar, satvahan, rashtrakut, chola
Ye samarajhya ashoke ke pahele the 😅😅😅😅
Hawabaji mut karo
बिल्कुल सही दिशा में आगे सोचे हो सर, आपने बिल्कुल सही कहा,मैं भी पहले से ऐसा ही सोचा करता रहा हूं,और यही वजह है कि इसी एरिया के कुछ देशों में ही सबसे ज्यादा आबादी है बाकी दुनिया से, और इसीलिए कहा जाता है कि भारत में हर कुछ किलोमीटर में बोली ,भाषा और पहनावा बदल जाता है,इस विषय पर सोचने के लिए बहुत व्यापक रूप से कई हजार साल पहले से सोचना पड़ता है,इस पर बहुत बड़े व्यापक रूप से रिसर्च होना चाहिए...
लेकिन अब जातिवाद में केसे बदलाव किया जाए कि अब सब एक समान समझने लगे इसके उपर भी वीडियो बनाओ
या फिर सिर्फ ब्राह्मणों की वकालत करने के लिए वीडियो बनाया है
अधिकांश यूट्यूब चैनल टीवी चैनल पर धर्म और जाति की राजनीति सेप्रभावित होकर तरह तरह की बातेंकी जाती है और अलग अलग जाति धर्म के लोगों को एक दूसरे के सामने दृढ़ता से खड़ा करने का प्रयास किया जाता है इससे समस्या खत्म नहीं होती है जैसे कोयल को घिसने पर काला ही होता है वैसे ही यह समस्याएं भी बढ़ते ही नजर आती है
मेरा ऐसा मानना है कि यदि स्कूल शिक्षा से लेकर महाविद्यालय शिक्षा तक सबको निशुल्क कर दिया तो आने वाले लगभग बीस वर्षों में जाति आधारित समस्या स्वयं ही समाप्त हो सकती है
इसलिए समस्याओं पर नहीं समाधान पर सबको चिंतन करना चाहिए
जिन्हें आज़ादी के बाद से निःशुल्क शिक्षा दी गई वे ही सबसे पहले गलियां देने लगे थे।
जो हजारों वर्षों से ग में लिख लिखकर गलियां दे रहे थे नीचा दिखा रहे थे उसकी तुलना में आजादी के बाद शिक्षा का अधिकार मिलने पर है मानवी आधार पर भेदभाव का विरोध करना वह भी गाली देना लग रहा है आपको !
अब दूसरी बात यह है कि सम्राट अशोक के समय के शिलालेख मैं जातियों का उल्लेख नहीं है तो संभवत बुद्धिस्ट कलचर के बाद ही जातियों एवं वर्ण का उदय हुआ है और धर्म एवं जातियों की बात धार्मिक ग्रंथों में प्रमाणिता लिखित रूप में मिलती है और आप विभिन्न प्रजातियांके रूप में लोगों के बाहर से भारत में आने की थ्योरी बताने का प्रयास कर रहे हैं जो जातियां जंगल में है वनवासी है आदिवासी है उन्हें सबसे पहले आना और उसके बाद बाकी लोगों का आना बता रहे हैं जो संघर्ष के कारण ज्यादा विकसित हुए हैं परंतु अलग अलग जगह से अलग अलग समय में आने वाले लोगों के शारीरिक लक्षण जिसमें शरीर की बनावट संस्कृत लक्षण जिसमें भाषा बोली ईश्वर के प्रतिमान्यताएं खान पान रहन सहन आते हैं इस प्रकार की कोई विषमता है पद के आने वाली प्रजातियों से स्पष्ट भिन्नता देखनी चाहिए थी वह नहीं दिखती है इन बातों का विशेष उल्लेख मानव भूगोल एवं प्रजातियां का विभिन्न विभागों में निवास एवं आवश्यकता के अनुरूप पलायन एवं अनुकूलता के अनुसार स्थाई निवास बनाना उनका उल्लेख मिलता है
बहुत सुन्दर धन्यवाद जयभीम
मेरे विचार से जातिवाद कि जड मनुस्मृति ही है।।।।।धन्यवाद जयभीम
त्रिपाठी जी की लॉजिकल बात सही प्रतीत होती है। क्योंकि worlds latest DNA थ्योरी के अनुसार हम सब अफ्रीका से आए थे, उनकी प्रजाति आज भी उसी जंगली स्वरुप में अंडमान निकोबार में मौजूद हैं।
सरकार आने के बाद राखीगढ़ी में मिले कंकाल की dna की मान्यता को बदल दिया गया है इतिहास वही लिखता है जिसका शासन होता है।आज इनकी सरकार है तो इन्होंने इतिहास बदल दिया है समझना होगा।
@@KrishnaKumar-so6gr हां हां हां तुम पक्के दक्षिण अफ्रीका की हब्सी हो तुम्हारी बातों से यह अंतर साफ झलकता है
@@Jay-bhim.-cx6zzमेरा जनरल कॉमेंट पढ़े। जय मूलनिवासी।
@shaileshdwivedi7171 जी बिलकुल। क़ल ही तो लखनऊ वाले एडवोकेट पंकज त्रिपाठी जी ने ( लॉजिकल पर ) बताया है कि सबके पूर्वज अफ्रीका से आए थे, अंडमान में अपने पुरखे आज भी उसी रूप में जरावा द्वीप पर उपलब्ध है।
कभी जाकर मिलिए 😁😁😁
@@Jay-bhim.-cx6zzare bhimta jb Teri sarkar thi to tune q nhi bdal liya
Koi bhi muh utha k kuch bhi bol de rha hai😂😂😂😂😂
त्रिपाढ़ी जी बहुत अच्छा से समझाया आपने लेकिन मान गए गुरु मनुस्मृति को बड़ी खूबसूरती से बचा ले गए धन्य हो
Ek number bhai❤❤
😄😄. Sahi notice kiye ho !!
Qqqaaqq1@qqq@q1qqqqaaqqaqqaqqqqqqqqqqqqqaqaqqqqqqqqaq1qqqqq1q11qaaa1@@aaaaaaa@aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa@aaaaaaaaaaaaaaaaaa1aaaaaaqaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa@aaaaaa@qaa@aaaaaaaaaaaaaqa@a111111qqq11p@@ap_0011
त्रिपाठी सर हमारे इतिहासकार बताते हैं कि भारत में सभ्यता पहले आई क्या यह बात सही है या गलत है कृपया जवाब दें जय बाबा रविदास जय भीम
नहीं भाई!
अपने को सबसे आगे दिखाने के लिए इस तरह की बातें लिखी जाती हैं।
मिस्र की सभ्यता सबसे पुरानी मानी जाती है।
जाति है संविधान की शक्ति का बिरोद है आजाद अपराध मुक्त भीम का भारत यानि संविधान की शक्ति
@@Pariiiiiime तुम संविधान की मूर्ति बनाकर के उसकी रात दिन पूजा किया करो और चरण अमृत पान किया करो
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े। जय मूलनिवासी।
आपके प्रस्तुत विचार से पहली बार जातियों का वैज्ञानिक चित्रण है ओर आपने बहुत मेहनत व दिमाग से समझाया है। कुछ लोग राजनीति व फायदे मे जातियों का उपयोग करते हैं ऐसे लोग आपके शोध पर प्रश्न खड़ा करेगे परन्तु आप निरन्तर एक एक जाति के विशेष पहचान से दुनिया में कहा से उठे उसे जोडिए
वकील साहब आप ये बताए भारत में किसी भौगोलिक कारण से जाति बनी लेकिन जातियों में भेद भाव किस जाति के कारण बना जब दूसरे देश में जातियां है ही नहीं तो जाति भारत मे कैसे बनी।
जातियां बनी नहीं, सब लोग अलग अलग हैं।
फिर उनमें एक दूसरे से भेदभाव होना स्वाभाविक है।
@@mgp_play1M भेदभाव करोगे तो भेदभाव होगा खुद अपनी जाति से परेशान रहते हो और दूसरों को परेशान करते हो सत्य को स्वीकार कर लो और सृष्टि के समस्त प्राणियों की जातियां और उपजातियां का स्वयं वर्गीकरण और ज्ञान प्राप्त करके परमानंद को प्राप्त करो
@@mgp_play1M भारत में जाति बनाने के लिए प्राचीन काल में मनु महाराज ने फैक्ट्री लगाई थी इस फैक्ट्री में जातियां बनाई जाती थी इसके अलावा शीशे को गला करके गैर जातियों के कान में भरने का काम किया जाता था
@@thelogicalindian99 जातियां तो पशुओं, जानवरों में होती है जो आदमी दूर से देख पहचान जाता है वह गाय या भैंस बकरी है और जानवर एक दूसरे जानवर या पशु को प्रजनन नहीं करा सकता लेकिन मनुष्य जाति एक होती है जो दूर या पास देखने से पता नहीं चलता कि किस जाति का है हमे ऐसा लगता है इस जाति कुप्रथा को जागरूप समाज बदलना नहीं चाहता है।
@@thelogicalindian99 और एक तरफ कहते की ब्रह्मा ने सबको बनाया हिंदू धर्म चार वर्ण कर दिया
जब सब भगवान की संतान है एक भगवान की संतान को एक सामान होना चाहिए सच्चाई तो पहले जो समाज जागरूप था वही बता सकता है ।
जातियों का मूल आधार ब्राह्मण ही है क्योंकि मनुस्मृति ब्राह्मण ने ही लिखी है वह किताब नहीं है वह एक उनका संविधान है और अपने लोगों के हित के बारे में सब कुछ है
Do not spread misinformation. Manu smriti was written by Manu, a Kshatriya.
Thoda padh lo manu smriti brahman ne likhi whatsapp gyan ke alawa reserch kar lo😂😂
ब्राह्मण जिंदाबाद
त्रिपाठी जी आपने जो भौगोलिक आधार पर जो रिसर्च किया है वह इस तरह काल्पनिक है जिस तरह से रामायण और महाभारत काल्पनिक है इससे पहले के अवशेष भी बहुत हैं रिसर्च करने के इसमें संघीय व्यवस्था थी उन्हें रिसर्च ओं के आधार के ऊपर यह सारे क्रियाकलाप हुआ है आपका रिसर्च काल्पनिक है धन्यवाद
वैदिक ब्राह्मणी धर्म के लेखक श्रीकांत पाठक कहते है
निग्रेटो के बाद यहाँ पर आद्य निषाद ही रहते है
विश्व विद्द्यालय अयोध्या जी की पढ़ो किताब ये ध्यान से
नाग निषाद की गाथा गाऊँ सुन ले भैया ध्यान से
स्वर्ग से सुन्दर देश हमारा जम्बूदीप इसे कहते है
राजा ( धम्म ) असोक के शिलालेख से आओ मिलकर पढ़ते है
रामग्राम के निषाद ( नाग ) कोलियों ( जामुनीय ) ने नाम दिया था शान से
नाग निषाद की गाथा गाऊँ सुन ले भैया ध्यान से
भीम जोहार। बुद्ध वन्दामि
Welcome. Thanks
कलिंग में कत्लेआम करने वाला चंडअशोक।
साउथ अफ्रीका में भी तो पूरी हरियाली है तो वहां क्यों नहीं लोग गये। यह जगह तो उत्तर अफ्रीका से नजदीकी स्थान है।विवरण देने की कृपा करें।
जाति उत्पत्ति पर त्रिपाठी जी, एतिहासिक अवलोकन में भौगोलिक संदर्भ को लेकर आपकी समीक्षा ग्राह्य एवं चिंतन योग्य है।
आपके तर्क के अनुसार बाहर से लोग भारत आए। पर जो सभ्यता भारत में ही थी उसका तो अपने जिक्र ही नहीं किया।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस बात का वोल्गा से गंगा नामक उपन्यास में इसका विशद वर्णन किया है।
आधुनिक परिस्थितियों में राहुल सांकृत्यायन का ऐतिहासिक अनुसंधान अज्ञानता पूर्ण है
@@shaileshdwivedi7171 अच्छा होता अगर आधुनिक परिस्थितियों के ज्ञान से लोगों को अवगत कराते? महापंडित राहुल सांकृत्यायन ३६ भाषाओं के ज्ञाता थे और बहुत बड़े घुमक्कड़/ यायावर थे। आर्यों के कबीलों के भारत में आगमन के प्रमाण र्ऋगवेद में भी है।
@@kirtikumarpal9193 आपका साहित्य ज्ञान प्रसंशनीय है परंतु सांकृत्यायन ज़ी के ऐतिहासिक अन्वेषण काल्पनिक प्रमाणित हो रहे हैं।
36 भाषाओं के ज्ञान का सीधा अर्थ यह है कि भाषा के विकास के पहले का उनका ज्ञान कपोल कल्पित था
@@kirtikumarpal9193 ऋग्वेद में आर्यों का भारत आगमन कहां प्राप्त होता है उत्तर दीजिए क्या आपको प्राचीन अवस्था ग्रंथ के बारे में कुछ ज्ञान है
जो जातियां विदेश से आती हैं वह जातियां अपनी प्राचीन देश की पूजा सदैव मुसलमान और ईसाइयों की तरह करती ही रहती हैं परंतु सनातन धर्म में इस प्रकार की कोई परंपरा और मान्यता प्राप्त नहीं होती है इससे यह प्रमाणित होता है की की प्राचीन आर्य जाति कहीं किसी विदेश से इस देश में नहीं आई
त्रिपाठी जी आपने सभी बिन्दुओं को गहराई से अध्ययन किया है और अपना मंतव्य भी दिया है । लेकिन जातिव्यवस्था में समाज या प्रांत का विकास संभव है क्या ? अगर नही है तो जाती व्यवस्था समाप्त करने पर अपना मंतव्य देना चाहिए ।
जातिवाद का सोर्स चचनामा नामक पुस्तक में विस्तार से है ,शुभ प्रभात त्रिपाठी जी
Abhi tk Manu Manu kr rhe the ab chachnama pe chale gye😂
Lgta hai sj ki kuch jyada lete ho😂😂😂😂😂
आपने सही बताया .... जाति किसी व्यक्ति विशेष ने नही बनाई लेकिन जातियों में ऊंच नीच ,घृणा ,भेदभाव ब्राम्हण ग्रंथों में मजबूत है।
ये ब्राह्मण देवता है tri ved के ज्ञाता है, अब क्या ही बोले in मुख पुत्रों के बारे मै, इनका पाखंड फैलाना अभी भी चालू है,
बाकी यहां के मुल निवासी समाधान रहे.
जातियों में बांटने वाला कोई भी नही था
जिसको जो कार्यक्षेत्र, रहन - सहन,, खान -पान पसंद आता रहा,,,,, वही उसका,,,, समूह बनता गया होगा
अलग अलग कार्य,, रहन-सहन के तरीके,, खान-पान के तरीकों ने,, अलग अलग वर्ण व्यवस्था को जन्म दिया होगा।। आपका विश्लेषण सटीक है
ब्राह्मण यूरेशिया से आए हैं l
ब्राह्मण जिंदाबाद।
@bapparawal9709 तू पक्का बीजेपी और आरएसएस का नफ़रत और दंगाई एजेंट है
पाकिस्तान में भी जाती का नियुज देखना भाई संविधान तो कल आया है भाई
डैमेज कन्ट्रोल मे लगे हुए है
Inka bap dada ne damage Kiya kya?
सर आपने बिल्कुल सही बात पकड़ी है यह आरएसएस के लिए स्लीपर सेल का काम कर रहा है
Abe kaun sa Brahman ki party' bni hai jo damage control Krna pd rha hai tum jaise logo k vote k liye ye bta do😂😂😂😂😂
@@nandankumar4835rss ka sleeper cell hai aur tu angrezo ka sleeper cell hai 😂😂😂😂😂
Are pagle itni population hai bharet me 20 saal baad khud demeğe ho jawoge
🙏सर आपकी....... धन्यवाद
सर मै बोलयू जैसे जितने लोग वीडियोदेखा सुना मेरे बगल के 3 चाचा 2 चाची लोग उतना समय तक तों मान सही बात है फिर बाद मे वही बात शुरू हो गईं
@@ramawatarbharti1880 सत्य कभी मिटेगा नहीं बहस करने से जाती बदलेगी नहीं बाप बदलना कोई हंसी खेल नहीं आज छुपाओगे 50 साल बाद डीएनए टेस्ट करके सब बता दिया जाएगा
7:20*सुप्रभात 🌄 मित्रों सादर नमस्कार 🙏🙏 त्रिपाठी जी आप का विश्लेषण बढ़िया है जात ना पूछे पता न पूछे ना पूछे तेरा धर्मा पूछे तेरा कर्मा!
कर्म से ही जातियां होती हैं और कर्म के अनुसार ही जातियों को बना दिया गया इंसान को जो कार्य करने में सक्षम विशेषज्ञ हो जाता था दूसरे मानों आदमी उसको उसी कार्य से मिलते हुवे हिन्दी भाषा शब्दों से पुकारने लगे थे लेकिन अब समय बदल गया है सत्यार्थ प्रकाश में भी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी यही समझाया है बहुत बहुत धन्यवाद 🎉
जातियां कैसे बनीं इसका हल मनुस्मृति से निकलेगा।
मेरा जनरल कॉमेंट पढ़े। जय मूलनिवासी।
Pahle aap yah bataiye ki manusmriti galat hai ya sahi hai
Ye nahi bataega.
अच्छा प्रयास है , लेकिन आरक्षित वर्ग का मस्तिष्क ......😂😂😂 मैं समझ गया... आप भी समझ गए होंगे 😅 राधे राधे
तो फिर यह वर्ण व्यवस्था किसने बनाई है अब यह भी kaihe दे यह ब्राह्मण ने नहीं बनाई ब्राह्मण ने यह वर्ण व्यवस्था अपने स्वार्थ के लिए बनाई है
क्लास १ सरकारी नौकर
क्लास २ सरकारी नौकर।
क्लास ३ सरकारी नौकर।
क्लास ४ सरकारी नौकर।
जाति- प्रजाति हर देश और हर धर्म में है, मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं है
बहुत ही बढीया, कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था, फीर भेदभाव क्यो, ब्राम्हा के मुख से पैदा हुये ब्राह्मण बाहू से क्षत्रीय जांघ से वैश्य पग से शुद्र , पुत्र श्रेष्ठ पुत्री कनिष्ठ कहे गरुड पुराण ये कैसा न्याय, पहले वैदीक धर्म फीर आर्य धर्म अब हिंदू धर्म और अब सनातन धर्म की मांग हो रही, जय हो धन्यवाद
बहुत ही सुंदर विश्लेषण सभी बाते तर्क पूर्ण है सहमत होने लायक तर्क है फिर भी अभी और अध्ययन की जरूरत है और सुधार कैसे हो सोचना चाहिए
लाखों लोगों के बीच में एक दिन एक ब्राह्मण आया उसने अलग अलग लाइन लगवाया और हर लाइन के लोगों से बोला कि तुम लोगों की फला जाति है और सारे लोगों ने ब्राह्मण की बात स्वीकार किया और ब्राह्मण को सम्मानित भी किया ।।वही आज तक सब मान रहे हैं
अरे sir अब आप ये बताओ कि जातिवाद कब और कैसे खत्म होगा
@@ajayroast8355 तुम पहले अपनी जाति को मिटा दो खुद तो बाजपेई बनने के लिए चले जा रहे हो
Tub too sumbhidhan ko app khatem kur dena chahte hai
Pankaj Kumar Tripathi Ji, aap ka yah research bhi bahut hi sarahniey hai,aap 50% safal hain ki jaatiyan kaisey bani hongi,haan Manusmriti jis ney likha hoga us par bhi gahan research kijiey,kyun ki Manusmriti hi janamna jaatibayawastha ki root hai.
Agree
आप के सुझाव योग्य है जय भीम जय भारत जय संविधान
जातियाँ अपने लाभ और समाज में वरचश्व कायम के लिए ब्राह्मणों की देन हैं।
To tum q pichhe rh gye, ruk k khi so gye the kya😂😂😂😂😂 jo is race me pichhe rh gye
बिल्कुल सही कहा आपने
जातियां ब्राह्मणों की देन नहीं हैं।
ब्राह्मण जिंदाबाद।
जाति आधारित समाज सिर्फ भारत में हीं है सर । जाति समाप्त करने का एक हीं उपाय है,वो है बौद्ध धम्म।
Logical baat karni hai to aise sochiye.
Dharti bani
Bandar se insaan bana
Insaan ne ghar, gaanv, samaj banaya.
Samaj ko chalane ke liye shareer ki takat ke hisaab se kaam banaye.
Is sab ke dauraan wo prakriti ko poojta tha.
Fir prakriti ko moorti roop me poojna shuru kiya.
Fir dhire dhire jaanwaron ko paalna aur kheti shuru ki.
Is sabke baad jo log adhyatmik gyaan aur vigyaan khoj rahe the unhone alag alag principal / discoveries/ aavishkaar diye.
Wo sab gyaan ke basis par bharatvarsh bana.
Kisi naa kisi mahapurush ne ved puraan ityaadi ki rachna ki. Shayad adhyatmik gyaan mila hoga.
Usse varna vyavastha ko naam mila. Aisa nahi ki varna pehle nahi the. Yadi aadimanv me se koi achha sgikaari tha to chahe uska pita kheti me raha ho par santaan shikari bani. Par ek formal naam kaafi samay baad aaya.
Jo log varna vyavastha ko galat bataate hain wo europe ka itihaas bhi padhe. Vahan bhi kaam ke hisaab se varna the. Kaun kis kaabil hai wo kaam karta tha.
Surely agar chinese ya south american natives ka itihaas study kiya jaega to wahan bhi aisa kuchh milega.
Ek baat aur samjhne ki hai. Hamare ved puraan 4 varna vyavastha bataate hain. Agar dhyaan se soche to puraane se leke naye tak sab profession in chaar varnon me classify kiye jaa sakte hain. To jisne bhi aise naam aur vyavastha di usne bhi bahut soch samjh ke di.
Aur agar sanatan me jaat paat khatm karni hai to naam ke aage ya to sanatani likh lijiye ya bharti. Jaati ek ho jaegi. Kaam apni kaabiliyat / zarurat / ichhaa ke hisaab se karte rahiye.
त्रिपाठी जी जाति वाद की व्यवस्था के बनने के करणों पर आप का चिन्तन सराहनीय है
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
एक बात तो सच है कि बृाह्मण अपने आप को सही साबित करने के लिए बहुत कोशिश करता है सब कहानी सुनाने के बाद ओ अपने को निर्दोष साबित करता है परन्तु तब तक तो ठीक था पर अब क्या
To tu khud ko jhutha Maan le n😂😂😂😂😂
@nmt3994 Abe jahil gawar murkh Insan mein naastik hun tere bhagwan aur Brahman mere L...d se🤪
कानून राजाओं द्वारा बनाया जाता है । ब्राह्मण कभी राजा नहीं थे
मनुष्य ने समाज की जरूरत के जो कार्य /पेशा आरम्भ किया उनके आने वाली संतनो ने भी उसे अपनी छमता के अनुसार सीखा और अपने भरण पोषण के लिये पिढ़ी दर पिढ़ी अपना लिया जिसक कार्य का नमकरण समाज द्वारा ही हुआ और कार्य के आधार पर जाति का सृजन हो गया. यह भी स्पष्ट है की जब मनुष्य काबिलाई से समाज,राज्य का निर्माण हुआ कार्य के हिसाब से जाति का निर्माण हो गया
सर आज पहली बार अद्वितीय जानकारी मिली है अद्भुत परंतु मेरा एकप्रश्न है अफगानिस्तान की साइड से जो भारत में लोग आते थे वह नीचे क्यों नहींजाते थे ऊपर तो रूस की साइड में ज्यादा ठंड बताई है आपने मगर नीचे भी तो भारत के जैसा ही लग रहा है साउथ अफ्रीका गाबोन केन्या सोमालिया इस साइड में भी तो भारत जैसा ही लग रहा है मैप में प्लीज सर मेरी इस शंका कासमाधान करें धन्यवाद
Krishi bharat me shuru hone k wajah se Jo log yaha aaye unko khnana peena milne laga Jis wajah se wo aage nahi Gaye. Sadiyon se log yaha se wajah aate jate Rahe hain, ye silsila continuous hai.
बहुत सुंदर विश्लेषण किया गया ऐसी खोज के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद अपनी खोज जारी रखें किसी के कमेंट पर ध्यान ना दे
प्रोफेसर सहाब आप के लेक्चर मे छल दिखाई देते हैं आपने कहा पहले आया. मनुष्य कोपी करते हैं. देखा देखी . आपने कहा मैं मनुस्मृति पढा हैं और जाति मे दो ही जाति दिखाई दिया. और वो जहा था वोही रहगया. मनुस्मृति मे कितना छल कपट था वो नहीं बताया.
त्रिपाठी जी आपकी खोज अधूरी है।जब कबीले आए तब यहां भारत खाली स्थान था क्या, यदि खाली था तो क्यों था जबकि यहां भरपूर हरियाली थी।यदि 13:04 ख़ाली नहीं था तो यहां कौन जातियां थीं या नहीं थी।मिश्र में सभ्यता आ चुकी थी तो क्या भूखे मरने लगा गये थे जो उनको भागना पड़ा। मनुस्मृति ही इसका उत्तर है। समय के साथ सक्षम लोगों ने इसको विकृत कर दिया और आगे भी इसमें बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आपकी परिकल्पना अधूरी है। समाज में ऊंचा नीचा हमेशा रहा है और रहेगा, आधार चाहे कोई भी हो।
Pankaj sir aapko dil se Salaam kyonki aap bahut achche insaan hai because you are throwing nafrat and spreading love with each other.
त्रिपाठी जी हमें लगता है आपको कोई यूट्यूब का वीडियो बनाना नहीं आता क्योंकि आप पूरी वीडियो में खाली नफरत की बात कर रहे हैं समझदार लोग समझ रहे हैं आप नफरत वादी है नफरत वाली आप श्रवण है आप छोटी जातियों का मन कर रहे हो
श्रीमान जी हम आप अपने पुरखों के जीवन संघर्ष को भूलने के कारण ही आज सामाजिक अपराधों में उन्नति देख रहे है।
सर आपने जो जाती कैसे बनीं है, उसके बारे मे जो भी जानकारी दी है ओ ही मुझे ठीक से सही अनुमान लग रहा है। जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
बहुत बढ़िया रिसर्च है आपकी सब इतिहास से ढूंढ कर निकालते हैं पर आपने भूलोल से निकाला बहुत सही विश्लेषण किया अब मै वर्ण से क्षत्रिय हूं हमारे कुलदेवता महाराजा अजमीढ़ जी है जो महाराज दशरथ व भगवान श्री राम के समकालीन है हस्तिनापुर मे इनका शासन था जिसको इन्होंने हरियाणा, राजस्थान मुख्य तक बढ़ाया पर यहा से ही अजमीढ़ जी ने विश्वकर्मा जी से स्वर्ण कला का ज्ञान लेकर कला की जो आगे जाकर सुनार जाति बनी तो मै आपकी इस बात से बिल्कुल सहमत हूं कि जो जिस कार्य को करता था तो अपने बच्चों का विवाह उसी कार्य के करने वालो से करता था
आपने सही बात बताया है त्रिपाठी जी ऐसे ही अच्छे-अच्छे इतिहास का ज्ञान पर विडियो बनाईये।
बहुत अच्छा लगता है
Your thoughts are quite natural and accurate.It might be happened so.I extend my thanks on your wisdom.
Problem is untouchability
मुगल बाद में आए थे और वे हिंदुओं को अपने से नीचे मानते थे , उन्हें अपनी बेटिया नहीं देते थे जबकि लेते थे । आपने एकदम सही कहा है।
जब तक लोग आए या आ रहे हैं तब तक जाति भी आए हैं. यहां अलग से कोई जाति नहीं बना पाया है. हाँ वर्ण में उनके आचार व्यावहार, कर्तब्यों से किया गया होगा. यह भी बात सही है कि लोग अधिक की संख्या में भारत में ही क्यों आए. यह खोज हो सकता है. इसलिए त्रिपाठी सर का बात सही लगता है कि लोग भोजन पानी के लिए यहां आए होंगे. 😊
जाति, वर्ण व्यवस्था का ही विकसित रूप है यह बात सारी दुनिया जानती है कि जाति व्यवस्था ब्राह्मणो ने बनाई केवल ब्राह्मण ही नहीं जानते हैं।
बहुत सटीक और पूर्णतः लॉजिकल analysis हैं और सही दिशा मे है,बिलकुल आपसे सहमत हूं
जिन महानुभावों को यह लगता है कि ब्राम्हणों ने अपने को श्रेष्ठ बना लिया और शुद्धों को निम्न बना दिया उनसे निवेदन है कि जन्म लेना किसी ब्राह्मण के हाथ नहीं है। अपने आप को शुद्र मान कर आप लोग जन्म देने वाले परमात्मा का अपमान न करें।
एक विशेष और विशिष्ट दृष्टिकोण! प्रशंसनीय प्रयास!
भारत भूमि पर पश्चिम के रास्ते लोगों के निरंतर आने पर ही विशेष बल दिया जाना एक पहलू हो सकता है, परंतु यहाँ भी तो मानव - जाति का एवोलूशन कालक्रम में हुआ होगा.
"संस्कृति के चार अध्याय " में वर्णित तथ्यों का समावेश विचारणीय है.
आपके तर्क ने हमें सोचने पर और लिखने के लिए प्रेरित किया आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी। हिन्दुस्तान में जाति व्यवस्था बाहर से आई हो मैं इस बात से कभी सहमत नहीं हो सकता। मैं भी समाजशास्त्र का एक विद्यार्थी रहा हूं और समाजशास्त्र में शोधकर्ताओं में से एक हूं। जाती व्यवस्था स्थानीय होती है। नामकरण और व्यंग्यात्मक भाषा से होती है,। अगर इस बात को समझना है तो आप हिमाचल प्रदेश में आकर देखिए। बहुत सी बातों को आप खुद समझ सकेंगे। आना जाना तो लोगों का लगा रहता है। पर आकर एक अलग जाति बना ली यह तो आप क्रमवार व्यवस्था बता रहे हैं। समाज कभी भी क्रमवार नहीं चलता। इसमें विषमता होती है। जिस जगह पर जो लोग रहे उनका नामांकन या जातीकरण उसी जगह पर है। जब जाती व्यवस्था में ही अपनी ही कुशलता और आजीविक के लिए संघर्ष होता है फिर पलायन होता है और पहचान और काम में कुशलता ने ही जातिवाद को मजबूत किया है और अब राजनीति मजबूत बना रही है
बिल्कुल स्टीक विश्लेषण सर ❤❤❤❤
इसमें कोई दो राय नहीं