श्रीमद भागवतम 1.18.34: क्यों परीक्षित महाराज ने एक साधारण मनुष्य की तरह व्यव्हार किया?

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  • Опубліковано 8 вер 2024
  • SB 1.18.34: Why did Parikshit Maharaj behave like an ordinary human being?
    16/07/2022 at Sridham Mayapur
    #JayapatakaSwamiHindi #Iskcon #Spirituality #Bhagvan #Bhakt #SrimadBhagvatam #RevealedScriptures #HariKatha #Krsna
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    इस आध्यात्मिक श्रीमद्भागवत प्रवचन में श्रील जयपताका स्वामी महाराज बताते हैं:
    परीक्षित महाराज को भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा माया में डाला गया l परीक्षित महाराज साधारण व्यक्ति की तरह भूख प्यास से व्याकुल होने वाले नहीं थे। परीक्षित महाराज को प्यास लगी और तब वे एक ऋषि के आश्रम में गए l यद्यपि राजा से त्रुटि हुई परंतु ऋषि पुत्र श्रृंगी ने अहंकारवश, छोटी सी बात पर, मृत्यु दंड का श्राप दे दिया। यह अनुचित था l
    परीक्षित महाराज के इस त्याग से ही श्रीमद्भागवतम का प्राकट्य हुआ l हमें इसका अध्ययन गंभीरता से करना चाहिए l
    श्रील प्रभुपाद को यह चिंता थी कि भक्त कृष्णभावनामृत के सिद्धांत को नहीं समझेंगे तो पथभ्रष्ट हो सकते हैं l इसलिए वह श्रीमद्भागवतम पढ़ने पर ज़ोर देते थे l वह कहते थे कि ब्राह्मण दीक्षा के लिए भक्ति शास्त्री, सन्यासी के लिए भक्ति वैभव व गुरु के लिए भक्ति वेदांत की पदवी लेना अनिवार्य है l
    एक बार जब नारद मुनि भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए द्वारका आये, तब वहाँ भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी देवी भी थे l भगवान ने तीन बार कहा, "मैं कलियुग में भक्त रूप में आऊंगा l" इस लीला में नारद मुनि ने देखा कि राधा और कृष्ण एक हैं तथा संकीर्तन आंदोलन को उन्होंने आरम्भ किया l
    विष्णु सहस्त्रनाम में एक स्थान पर यह वर्णन है कि भगवान एक गृहस्थ होंगे फिर संन्यास लेंगे l श्री चैतन्य महाप्रभु ने संपूर्ण भारत में संकीर्तन आंदोलन का प्रचार किया l उन्होंने कहा था कि मैं दक्षिण एशिया में प्रचार करूँगा और मेरा सेनापति भक्त इसका प्रचार संपूर्ण विश्व में करेगा l चैतन्य महाप्रभु परम दयालु हैं l वह कहते हैं कि नाम जप द्वारा धीरे - धीरे आपकी भौतिक आसक्ति समाप्त हो जाएगी l
    आज से एक माह बाद भद्र पूर्णिमा है l हमें श्रीमद्भागवतम को अधिक से अधिक वितरित करने का प्रयास करना चाहिए l
    जब चैतन्य महाप्रभु बहुत बड़ी संख्या में चाँद काज़ी के पास कीर्तन करते जा रहे थे l बहुत से नास्तिक इस संकीर्तन में जुड़ गए। इसके बाद भगवान को स्वयं का कीर्तन करते देखकर, पहले इंद्र व वायु देव मूर्छित हो गए। परन्तु मूर्छा खुलने पर उन्होंने मनुष्य रूप धारण किया व महाप्रभु के संकीर्तन में सम्मिलित हो गये l
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