हर किसी को शिक्षा का मौका भी नहीं मिलता है सौरभ जी, और अगर जो आप कह रहे है कि अपने मन का काम करे हर व्यक्ति यह इतना ही आसान होता तो कोई दुखी न होता, आप अपने न्यूज़रूम में इसपे डिबेट न कर रहे होते, और सबकी ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं होती है सौरभ जी। सादर प्रणाम...
@ Before jumping to conclusions, kindly take a moment to understand the post thoroughly. I never suggested Saurabh should leave India, nor do we have any right to say such things. If you watch the video carefully, you'll see who actually made that kind of statement. Wishing you a good sense of humor and understanding!
आज में पहली बार सौरभ जी की बातों से पूरी तरह असहमत हूँ। ज्यादादार में उनकी बातों से सहमत रहता हूं। कुछ मुद्दों को लेकर जैसे आरक्षण etc आप भी एक मध्यम परिवार से निकल कर आए है। और बाते बढ़े स्तर या विकसित भारत के स्तर की कर रहे है। भारत का नागरिक के पास चयन कम होते है। अरे उसे तो इतना तक पता नहीं रहता कि वह जिस फील्ड में है वह सही है या नहीं। मुझे नहीं लगता आधी से ज्यादा आबादी जो उसे पसंद है। वह काम कर रहे है। अरे आधी से ज्यादा आबादी को तो यही नहीं पता कि उसे क्या पसंद है कुछ % लोग हो सकते है। जिन्हें पता है हम गलत फील्ड में काम कर रहे है। बाकी लोग तो यह सोचते है कि हमे काम मिला है। यही बहुत है। यहां मतलब भारत में लग शौक से नौकरी नहीं करते पैसे के लिए करते है। यह भारत है आपको इस बात को तथ्य में लेकर बात करनी चाहिए थी। काम करना आधी से ज्यादा आबादी के लिए जीवन यापन का माध्यम है।
Bhai, he is talking about being self-aware... how much you work should be by choice and not by rule. Set priorities and work on that, don't be a slave for any company. Especially ones that have CEOs who think everyone should work for 90 hours because THEY feel like it.
No, Saurabh ji said that employees need to get their priorities right, have faith in their 'purusharth' and leave the place where they feel they are being exploited. This is a very privileged position to take by someone who realizes their self-worth. Majority of workers don't. They have too many life pressures and are facing a massive job crunch in the market. This is leading to their exploitation and the reason why some toxic managers get too much power over their employees. Do not agree with Saurabh ji in this instance.
@nosin5124 All he is saying is do something about it. Just cribbing won't change or solve anything. Either you consider leaving the company, or if you don't like the job profile, then reconsider the carrier itself. It you can't do either of these, then challenge the unacceptable conditions at your job. If you cannot do ANYTHING, then what is the point of cribbing about it? Saying we don't have a choice, so we have to work 90 hours when they say it... is a slave mentality and will result in more exploitation.
Samajh nahi aata bikas america wala sahi hai ya russia china wala Ya phir apna bhi kuch hona chahiye bikas ka Paimana. Aakhir sab des aur sthiti ek si nahi hai phir bikas ka paimana ek sa kyun ho ........
सौरभ भाई परमात्मा ने आपको बोलने का अच्छा हुनर दिया है, सही है लेकिन अन्य साथियों को भी पूरा सम्मान देने का प्रयास करें । खुद को फन्ने खां न मानो । सलाह
एक सत्य ये हे कि हर काम खुशी से नि होता हर काम मनलायक नहीं होता हे सौरभ जी AC me बैठकर मन की बाते बोलना आसान हे ज्यादातर काम मजबूरी में करना पड़ते हे इसलिए उन कामों के लिए लिमिटेड टाइम होना चाहिए 8:8:8 best he 8 hour rest (compulsary) 8 hour work(Needs) 8 hour own work whatever(on self)
यह अमरीका, कनाडा या कोई विकसित देश नहीं है, जिसमें सौरभ जी की बातें तार्किक हो, हम अभी भी उस दौर से गुजर रहे हैं जहां हम अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे, देश के सन्दर्भ मे। जहां अधिकांश लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए संघर्ष करते रहते है, विकल्प बहुत ही कम है, चाहे वो किस विद्यालय में पढ़ने का हो या पढ़ाने का हो और कौनसी नौकरी करने का हो। जहां तक बात रही स्किल्स अपनाने की, तो हमारा education system अभी भी अपने आप की मरम्मत में लगा है, हमे सहारा देना तो दूर की बात है,
सौरभ भैया को खुशफहमी की बीमारी है। थोड़ा दार्शनिक, थोड़ा पाठक, थोड़ा लेखक,थोड़ा प्रेमी, थोड़ा पत्रकार इन्हें सब होना है। ज्ञानी बाबा। जो लोग अच्छा बोल लेते हैं वो बड़े प्यार से धीरे धीरे दूसरों को दबाना जानते हैं
@@ajiteshpratapsingh3500 it seems like India is full of vacancies, more than 90% of Employed Indians, don't like their jobs, there is a study. We don't have opportunities that we can leave n job & find another job easily, finding new job is extremely tough nowadays.
आदरणीय सौरभ जी के विचार सुनना हमेशा ही जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण (काम) होता है। इस चर्चा में भी उन्होंने काफी व्यवहारिक एवं तार्किक बातें की जो अनेकों के जीवन में महत्वपूर्ण हो सकती है। मैं मानता हूं कि सौरभ जी इन सब पेहलूओ को लेकर हमेशा ही संवेदनशील रहे हैं और वह इन वास्तविकताओं को कभी नजर अंदाज नहीं करेंगे। पर मुझे ऐसा लगता है कि इस चर्चा में उन्होंने उन मुद्दों को ध्यान में रखकर चर्चा को आगे नहीं बढ़ाया। उन्होंने विषय के एक ही पेहलू को सही साबित करने कि कोशिश में और कैसे व्यक्तिगत तौर पर कोई व्यक्ति अपनी स्थिति सुधार सकता हैं या मनपसंद जीवन जी सकता हैं, यह साबित करने के चक्कर में इस विषय के अनेक पहलुओं पे जो चर्चा हो सकती थी, उस संभावनाओं को नष्ट किया, ऐसा लगा ( मुझे ऐसा लगा । मैं गलत भी हो सकता हूं।) । किसी ने बातचीत में यह बात रखी थी की कंपनियों में काम करने वाले लोग किस सामाजिक - आर्थिक पृष्ठभूमि से आते है, इसका भी विचार होना चाहिए। लेकिन इस मुद्दे पे किसी ने चर्चा आगे नहीं बढाई या सौरभ जी ने उसपे अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी। हमारे जाती-वर्ग आधारित समाज के बेसिक स्ट्रक्चर में ही इतनी गड़बड़ी है कि बहुसंख्य लोग केवल अपने बलबूते पर अपनी स्थिति नहीं सुधार सकते। अपना मनपसंद काम नहीं कर सकते। आप ही सोचकर देखो की कितने लोग हैं जो अपने मनपसंद का काम कर पा रहे हैं? और अगर नहीं कर पा रहे हैं तो क्यों नहीं कर पा रहे? केवल व्यक्तिगत कारणों से या इसमें हमारे समाज के सामाजिक - आर्थिक घटको की भी भुमिका होती हैं? इसमें कोई दोराय नहीं कि व्यक्तिगत मेहनत जीवन अर्थपूर्ण बनाने की बुनियाद है। लेकिन सामाजिक -आर्थिक जैसे संस्थात्मक घटकों को नज़र अंदाज़ कर सब जिम्मेदारी व्यक्ति पर छोड़कर केवल उसे दोषी ठहराना, सच के साथ बेईमानी होगी।
Sourav Dwivedi interrupting when others were speaking multiple times while claiming foul when he got interrupted once - sounds like a typical boss. Also, nobody talked about the fact that these CEOs make people work for 70 hours while not paying overtime - no talk about labor laws and such. This was overall a very weak and trifling debate and didn't take the labor issues very seriously. Also, like the last speaker stated, they seem to be living in their own bubble and oblivious to problems of other industries. Lallantop should think about diversity hiring from other fields and not just good journalism and literature majors.
Sourav is not their colleague, he is their mentor and therefore he is also maintaining and streamlining narrative while keeping it entertaining and watchable. So that is why he is just doing his job.
discussion is not about Saurabh or his behaviour. I would appreciate Saurabh for having guts to such a discussion on his platform. Allowing his every team member to express his views and I m sure no other channel would even both to have such an issue of discussion.
i agree with 90% of what you said except you can't really dictate to a journalism firm to hire from other degrees, like you cant tell IT firm to hire lawyers or english majors. hiring is based on requirement not whims and fancy
द्विवेदी जी के बारे में कुछ अजीब बात है। मैं तथ्यों और राय दोनों को व्यक्त करने की क्षमता का सम्मान करता हूं। हालाँकि, जब वे अपने दृष्टिकोण को साझा करने की कोशिश कर रहे थे तो हर व्यक्ति के बीच में काटना बेहद अपमानजनक और कष्टप्रद लगा..
बेरोजगारी इतनी बड़ी है,कि भारतीय युवा से आप 24×7 काम भी कराओगे तब भी तैयार है, उनको अभि अपनी physical or mental health कि बिलकुल फ़िक्र नहीं है बस रोजगार चाहिए, इस पर भी चर्चा हो जाये प्रिये दा लल्लनटॉप
सौरभ आप जिस बौद्धिक स्तर पर पहुंच चुके हैं वहां इस तरह की बातें करना बहुत आसान है। लेकिन वह लड़का जो आठवीं दसवीं और बारहवीं पास होकर बाहर किसी ऐसी कंपनी में काम करता है वह इस मानसिक स्थिति पर भी नहीं है कि मैं इसे बदल सकता हूं। और कहीं और नौकरी कर ली जाए। बदलाव बहुत बड़ा बौद्धिक स्तर मांगती है। शायद इस बात का एहसास आपको हो लेकिन आप उसे स्वीकार नहीं करना चाहते।
नेचर ने बताया कि दिन में काम करो और रात में आराम हमने रात को भी जगमग कर दिया इसका मतलब यह नहीं की 24 घंटे काम करने के लिए ही है खुद,परिवार ओर नेचर कोई भी टाइम देना आवश्यक है
सौरभ जी भारत अभी इतना विकसित नहीं है कि सभी प्रकार के अवसर मिल सके और खास कर छोटे शहरों और कस्बों में यह समस्या और अधिक है रोज़मर्रा के संघर्ष ही इतने अधिक हो जाते है एक सामान्य व्यक्ति के लिए कि वह बेमन का काम करने को मजबूर हो जाता है I agree Ashish ji Berojgari itni h ki bdi asni se replacement ho jayega I agree abhinav ji
I love love love love LOVE how he said at 3:02 "jo bhi unka CHOSEN GENDER hai". Thank you, teh dil se, sir. Dwivedi Saheb, ek hi dil hai, kitni baar jeetenge. I wish a person like him (or he himself 🤞🏾) runs our country someday.
सौरभ जी भारत जैसे देश में कुर्सी खाली नहीं रह सकती जहां आबादी और बेरोजगारी दोनों उच्च हैं। समस्या यह भी है कि 90 घंटे बोल रहे और 70 घंटे को नॉर्मलाइज कर दिया तो...
सौरभ जी संपादक हैं इसी कारण सौरभ, नारायण मूर्ति और सुब्रमण्यम जी की बातों में समानता दिख रही है। कंपनी की मार्केट वैल्यू में जितना अंतर है उतना ही विचार में। दर असल सौरभ यहां 50 बरस के नारायण मूर्ति ही हैं।
आज भी मजदुर, कंपनी में 84 घंटे काम करते हैं सौरभ जी आप अपने अवधारणा को किसी और पर नहीं थोप सकते यह उन मजदूरों के लिए काफी दुखदाई हो जाएगी वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं कि फिर उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है
Saurabh used to engage in intellectually stimulating discussions, but lately, it feels like his approach has shifted. Now, he often focuses on using sophisticated Hindi words without addressing the core issues, as we see in this video. For instance, he talks about changing jobs if you're not passionate or interested. While this may sound appealing, it overlooks a crucial reality: not everyone has the privilege to pursue their passions. We are socially conditioned to take on specific roles and responsibilities, and many people are bound by these constraints. Breaking free from them is often not feasible. Therefore, this idea of simply changing jobs based on passion doesn't seem relevant to the broader debate. The fundamental issue isn't whether you're in the "right place" or not. It's about ensuring that people who are working aren't exploited under the guise of productivity, hustle, or contributing to national growth. In India, people are undeniably hardworking, but the question remains: are they fairly compensated for their efforts? The emphasis should be on fair wages and proper work-life balance, not just on working harder for the sake of growth or ambition. Another critical point is the power imbalance in the workplace. When CEOs or top executives discuss increasing working hours or pushing for higher productivity, they have the authority to enforce these changes. This can corrupt the mindset of other top management officials and further perpetuate the cycle of exploitation. The issue isn’t just about working long hours, but about the growing pressure on employees, without regard to their well-being or fair compensation. Saurabh also references SRK’s comment about not needing 8 hours of sleep to chase your dreams. While this sentiment may inspire some, it doesn’t account for the fact that those pursuing their dreams often have the flexibility to manage their time differently. On the other hand, everyday workers are often trapped in a system where their time is dictated by the needs of the job, without the same opportunity for personal growth or work-life balance. The narrative of “chasing dreams” often ignores the harsh reality faced by many employees who are working hard, not because of passion, but due to economic necessity and a lack of choice. While Saurabh’s points may seem disconnected from the real struggles of everyday workers, it’s important to acknowledge that others in this discussion have valid arguments.
I agree with the Saurabh sir issue. Now a days its just looks like he is flex his vocab and lately he is never on point btw… or I am not intellectual enough to get him.. aur doosra point ye kaam krne wala bayan jo hai wo office hours ke liye hi kaha hai ab Saurabh sir ab Kriya ka path pdhane lag gaye. I am 10 min into the video and still he has not addressed the issue.
Lallantop is a pop channel now. Saurabh makes really good money and spends time with all popular celebrities out there. He doesn't give a shit about true journalism. He has decorated language with very basic and sometimes stupid things. All of it had started after Lallantop merged with TOI
जो भी अपना खुद का व्यवसाय करता है उसके लिए काम के घंटे मायने नहीं रखते क्योंकि वो अपने ही घर,ऑफिस या कारखाने में बैठकर अपने लिए काम कर रहा है. दूसरों के लिए काम करने में ये सिद्धांत लागू नहीं हो सकता क्योंकि वो दूसरे के घर ऑफिस या कारखाने में बैठकर दूसरे के लिए काम कर रहा होता है. उसे काम के घंटों के अतरिक्त अपने व अपने परिवार के काम के लिए भी समय चाहिए होता है.।
Saurabh you are talking about purusharth, but I believe you are not aware that these consulting firms have 3 month notice period which makes it really hard for these employees to leave this toxic place. My parents supported me i was financially in a proper place thats why i could leave
पत्नी को कितनी देर देखेंगे सभी संडे को भी ऑफिस काम करे इसपर मेरा जवाब चेयरमैन सुब्रमण्यम जी आप वि,याग्रा का इस्तेमाल कर ले अपनी निराशा कृपया दूसरों पर ना थोपे 🙏🙏
Saurabh ki batein bilkul wahi samajik soch ki upaj he jaha hum hum muh faad ke har successful admi ka lecture sunte he is ummeed me, ki hum bhi wahi karenge to successful ho jaenge. Aur har successful admi ko ye ghamand rehta he ki mene bakio se zyada intelligent choices kie he, isilie me successful hu. 800 crore ki abadi me success me chance, privilege ka role purusharth se kai zyada he
Saurabh Dwivedi un Capitalist logo ki JUBAAN bol rahe hai jaha woh bhi pohochna chahte hai lekin shaayad unka SURNAME Murthy, Subrahmanyan nehi hai to abhi DUKHI hai.
I completed my graduation in engineering, but the mass layoffs during Covid changed my perspective on jobs. Now, I'm preparing for government exams. At the same time, I have a strong interest in working in the media industry. I've been reading newspapers daily since 4th grade. Mostly I enjoy reading articles on geopolitics, economics, infrastructure, defense, and policies. However, I often feel uncertain because I haven't studied journalism, and I worry that might prevent me from getting a chance in the media field.
हमारे सभी गरीब, बेबस, लाचार, प्रताड़ित, अशिक्षित, बेरोजगार, उदास, अकर्मण्य, असफल, भूखे नंगे और जीवन का दुखणा रोने वाले भाई - बहन कृपया इस धरती का बोझ हल्का करें और अमीरों को सुख, चैन और शान्ति से जीने दें। 🙏🙏🙏🙏🙏
Ashish bhai ne bilkul shi bat khi h . Ground ki bat khi h . Iti wale diplome wale bache kya kre . Or jo saurabh kh rhe h find your mozo .Jeb m pasa chaiye mozo k liye sahab
Working for 9 or 18 hours will not have any effect because after working for a fixed time, when a person does not feel like working, then the quality of work will fall... so it is important to focus on the quality of work and not the working hours
I enjoyed the conversation. And I really feel that the working environment is really great at lallantop. It's good always to encourage no holds bar conversations with everyone. Kudos to the team and the leadership at Lallantop
Kuldeep did short but very very effective comment. Saurav seems dominating his perception that is not proper. I totally disagree with saurav. But his podcast is too good.
Ye sabse accha example hai. Agar wo sach mein 18 ghante kaam karte hain toh isse accha example mil hein nahi sakta hai ye prove karne ke liye long working hours ka productivity se koi lena dena nahi hai
Saurabh ji, as you mentioned, an employee who considers the company as their own is willing to work not just 8-9 hours but even longer. So, can you please share whether the facilities and benefits that the company's owner enjoys are also made available to the employees? I believe if the owners or CEOs provide the same facilities for their employees as they do for themselves, then employees wouldn’t just work 8-9 hours but would be ready to work as many hours as the owner works.
I joined a company last year where they asked to work 12-13 hours per day no rest day means continue 18 days of working they promised a good incentive against it, One day due to some medical emergency i asked for just half day and assured to work on Sunday, but they fired me without any pre information, not a single penny paid from incentive and now I follow-up from last 6 months they are not responding, what should I do ?? Don't know
Saurabh, in the name of working to build a nation, why don't you hire 2x the ppl , put them in 2 shifts & then ensure your Rohit Sharma's brand of Selflessness commitment to Nation Building? If you can do this to your newsroom then hopefully we'll get in a position to see what net difference did your org make v/s when you were bound by labour laws to extract 40 hrs/week?
I understand how impractical of an idea I had put up. The idea is that instead giving opinions of people like saurabh want to do this , this is one of many humanitarian ways.. Comply with 8-9 hrs caps Allow for paid overtime for max 3-4 hrs That way each person can clock and work 12 hrs at max & be entitled to compensation. Working 12 hrs at a time will still be too much but atleast it won't hurt them for being sweet talked into working for > 12 hrs Baaki Jo aapka remaining kaam hai , uske liye aap 2nd shift staff hire kigiye, work handoff process bnaiye and unko employment deke thoda "National building" wala gimmick kartavya nibhao..
@vatsaltewari You didn't understand his view then... If you are not doing something by choice, you will count even 45 hours. But if you love what you do, you can work all the time without feeling bad about it. But if anyone is trying to MAKE you work, you are at wrong place and should start looking at options.
आप सब लोग इस मुद्दे पर बात कर पा रहे हैं , ये भी एक सौभाग्य समझिए , क्योंकि भारत की एक बहुत बड़ी बेरोजगार आबादी इस मुद्दे पर बात करने के लिए तरस रही है ।
एक ऐसा विषय जिसके बहुत गंभीर सामाजिक परिणाम हम सब अपने इर्द गिर्द देख रहे है, उस पर इस तरह के हल्के पन से मौज मस्ती करते हुए पत्रकारों का वाद प्रतिवाद चिंतनीय है। क्या इनमें से किसी को पता है कि भारत की कुल आत्महत्याओं में युवाओं का प्रतिशत कितना है? ये जो बड़े बड़े लोग घंटों में काम करने की बात कह रहे हैं, इनका पिछले 5 वर्षों का वार्षिक मुनाफा या व्यापार की वृद्धि दर देख लीजिए, और साथ में इनके द्वारा अपने कुशल कर्मचारियों को दिए जाने वाले भत्तों की वृद्धि दर देख लीजिए। सारा खेल समझ आ जाएगा। ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसा ईस्ट इंडिया कंपनी ने नील के किसानों के साथ किया था।
Sourabh Shahab ke dikkat ye hai wo bhi boss ke kursi per hai unko actual problem dikhai nahi degi, Jab boss 90 hours kaam ko bolta hai phir G.M ya project manager boss ko khus karne ke liye staff ko peelne lagte hai specially L&T to pehle se 12 ghante ke 2 shift karate hai uske baad bhi boss bakwas karta hai 🙏🙏🙏
This time Saurabh didn't make sense, he didn't understand what the real issue issue is. There are people who are exploited, getting peanuts for works they slog for...they don't have any other place to go. Saurabh was lucky to get to do what he likes, very few get so lucky.
Iske alawa ek aur benefits hota hai hai weekend ka Economic Agr Hume weekend ni milega to hum shopping aur ghumna firna, bahr Jake kuch khana kaise karege Log sirf paise kamayege to khrach kab karege Agr hafte me sirf Sunday ki jagh Saturday bhi chutti milti to sayd sabhi log online ki jagh offline Jake shopping karte Ya sayd aaj pass ki jagh ghumne jate jisse economy ko bhi bahut support milta
Kuch nahi, bass overtime pay ka law implement karo, fir dekho ye Subramanian jaise log hi bolenge ki mental health zaroori hai, take good rest etc, aur saare employees bolenge hume overtime work karna hai 😂
That's the point, ye chiz jald se jald implement honi chahiye, employees ki saari complaints jaise office hours ke baad bhi roka ja raha hai wo band ho jayegi, aur employer bhi kabhi kisi ko force nahi kar sakenge
हमें ये बात नही भुलना चाहिए की हमारे physical body की भी कूछ लिमिटेशन्स है, और उस शरीर की productivity maintain rakhane ke लिये रेस्ट भी जरुरी है, hours me काम करना प्रोग्रेस को नही दर्शाता बल्की काम की productivity ज्यादा मायने रखती है, ऑर अगर productivity और creativity को मेन्टेन रखणा है तो बॅलन्स जरुरी है
Saurabh Dwivedi is just beating around the bush here! Mostly dusre topics pe aapka opinion ekdm sahi rehta hai. par yaha aap bhi dagmaga gaye . yaha waha ki baat kr rhe hain sachai se alag hatt k , clear ni h Agar boss work culture ko exploit kar raha hai , to employee ko jagah change karna chahie .. ye kya wahiyaad logic hai.. matlab victim hi aesi tesi karaye apni .. boss ko improve karna chahie na culture, its not a choice or subjective to do or not do . it is required by law. Ye ni ki work culture improve kia jaaye . Standard protocalls ho work k . Hawa me baat karna asaan hai . Learning, Passion job ko le k etc, But hours to fix hi hona chahie . Extra hours ka kya IT companies reality me paisa dete hain ye dekhna chahie pehle, ya kewal on paper hi hai. Extra time/day ka paisa do tab banda kaam karega. Uska utna stake bhi hona chahie na. 25,000-30,000 me agar 90 ghanta kaam karega koi to wo uss salary me apni health ka khyal thodi rakh sakta hai .. ek boss ek paas to gaadi hai , househelp hai khud ka cabin hai sab savidhaye hain apni life easy karna k lie, maa baap k lie bhi househelp rakh sakta h boss. healthy food pe kharch kar sakta h paisa , cook rakh sakta hai, ghar me uske ac laga hau but 25000 kamane wale bande ko to apne bacche ko bhi padhana hai tution ka paise h ni uske pas, maa baap ka khyal rakhna hai , khaana banana hai , kapda dhona hai, apna personal life bhi manage karna hai.. normal aadmi PG me bekar khana kha raha h, pg me garmi reh raha h bhai IT walo ko paise to kuch milta hai ni ki apni life improve kar paaye, to wo limited hi kaam karengay na. 45 hours k upar kaam karne pe extra paise to deti ni company. 100 baat ki ek baat ye hai 1. km salary pe kum kaam hi kia jaana chahie, companies paisa de extra jaada kaam chahie to. kuch hadd tk extend kar lengay log . extra paise se log apni life improve kar sakte hain na 2. is chiz pe discussion hone ka koi logic nahi hai khaas , isko aesa dikhaya jaa raha h jese ki ye subjective h . Ye koi subjective chiz ni h ki kahi jaada kahi kaam kaam ho, corporate me strict policy hona chahie, sachchai ye hai ki companies extra kaam karane k baad paisa nahi de rhi hain COMP OFF. Exploitation hai khulla learning aur support k naam pe. 3. aaj bhi T*S 10 saal phle jo package deti thi wahi deti h, T*S me banda ko 3 year work k baad 29000-30000 milta hai, aur aaye din extend karne ko bol dia jaata h, subah raaat weekend apni marwata rahe banda bus , likihit me 9 hrs likhwa k exploitation kar rahe hain . extra kaam karne pe koi extra payment COMP off ka hisab ni hai yaha. kya incentive h ek normal aadmi ko phir extra kaam karna ki 4. last but not the least its not subjective topic. laws ko abide karna chahie instead ki hawa me baat kare. wese me law se nhi hu but i think but ye kuch laws hain - a. Shops and Establishments Act (State-Specific) b. Code on Wages, 2019 In Uttar Pradesh, IT companies are governed by the Uttar Pradesh Shops and Commercial Establishments Act, 1962. Here's an overview of the working hour regulations under this law: Working Hour Regulations in Uttar Pradesh: Daily and Weekly Working Hours: Maximum Daily Hours: 9 hours per day. Maximum Weekly Hours: 48 hours per week. Overtime: Any work beyond 9 hours a day or 48 hours a week is considered overtime. Overtime Pay: Employees must be paid at twice their regular hourly wage for overtime hours. Weekly Off: Employees are entitled to one day off per week. Typically, Sunday is the weekly holiday unless otherwise stated. Spread Over: The total working hours, including rest intervals, must not exceed 12 hours a day. Rest Intervals: A break of at least 1 hour must be provided after 5 hours of continuous work. Night Shift Work: Female employees are generally not permitted to work between 7 PM and 6 AM, unless specific exemptions are granted (e.g., IT companies with proper safety measures). Applicability to IT Employees: IT companies operating in Uttar Pradesh must comply with these rules. Any employment agreement cannot legally require employees to exceed the daily or weekly limits without compensating them for overtime. Ye mene example dia hai.. Many IT companies ( like T*S ) ghanta nhi comply karti h in sab chizo se .. ye topics subjective nahi hai . it is exploitation by companies . LAW tel lene jaaye sab apna hisab se chal rahe hain . bilkul galat hai. hawa me baatein chal rhi hain sabki.. PS: me koi law student ni hu, to kuch chize upar niche ho skti h. Anyone reading till here , pls like & reply to move this to top comment!
1st I agree with sonal And 2nd for what you are working - Happiness, peace love and to spend time with our families . But if you will not find with work then what is the value of money. At rest days we can spend time with our children. Root of children can be fragile if they will solely dependent on school, social media and frnd. They need discussion and guidance from real one like parents. It will also help to build strong bond with parents that will help at older age.
Once Anil Agrawal Sir Said in office "Ask yourself, am i doing my work correctly?, Why i am here ?" Your answer is yes then you will enjoy your work if not then even 2hrs will be very difficult for you.
Saurabh bhai - Its not easy to switch the job when you have certain responsibilities on your shoulders. Baaki jo apne skill seekhne ki baat ki hai wo munasib nahi hai agar aap 90 ghante kaam mein ho toh. Agar dusri company join bhi kar liye toh you never know ki wahan bhi aisa hi culture ho. In my opinion, the best way is to regularise the working hours and have certain audits from the government to make sure ki wahan exploitation na ho. And it’s not all about the working hours, it’s all about the culture of the company - Jahan ache kaam ko recognition mile aur kharab performance ko on time feedback. Aaj ke time pe it’s all about socialising and boot licking. I agree on the point that says ki it’s not about the time you spend on your job instead what value you bring to the company. Thank you!
बिल्कुल ठीक बात,, मुझे लगता है आप भी हिंदी साहित्य की विद्यार्थी हैं,, मैं भी यही कमेंट बॉक्स में लिखने जा रहा था किन्तु आपने पहले ही स्पष्टीकरण कर चुकी हैं।
Saurabh doesn't have a spine anymore to say what is right and to stand up against what is wrong. Providing 10k excuses to justify a wrong stance. Shameful!
The guy who came in last had such a nice pint of view. So sensitive and gentle- slow and gentle is what we want the temper of te world should become for us to survive and live well.
18:25 kab tak rasta badlenge.. Fir koi aur aayega raste par.. Ho sakta h kisi ki majboori Ho. Ye normalize karne ki pehli koshish h.. Corporate work culture is not that good already..
सौरभ सर आप बात तो ठीक कह रहे हैं लेकिन भारत इतना विकसित नहीं हुआ की यहाँ बहुत सारी opportunity है की इस नौकरी में नहीं तो कहीं और कर लेंगे यहाँ तो इतनी बेरोजगारी हैं कि नौकरी मिल जाये वही काफी है और सुब्रमनियम साहब तो 90 घण्टे काम करने की बात कर रहे हैं l
2:09 ye bahut galat baat h mere back me dard rhta h mai hot water bag lene ki soch rha tha aur ye saurabh sir isko seedhe seedhe periods se jod de rhe hain. Ab yaar mn me duvidha aa gya. Aise hi typecast k karan deewali me sonpapdi nhi khareed paya
Saurabh ji ki baat bahari desho me saarthak ho saktee he. Yahan utnee kargar isiliye nahi hogi kyuki pehli baat Yahan baat un passionate logo ki nahi ho rahi jo apni khushi se kaam kr rahe ho...unhe ghante batane ki toh zarurat hi nahi he... Or vo kaam ko kaam samajhte bhi nahi.... Or khaskr jab. Jab aap khood kuch scratch se bana rahe ho jaise aapne ghar kaa example diya tha... Yahab baat un logo ki ho rahi he joki responsibility ke chalte sirf or sirf paise kamane ke chakkar me kaam kr rahe he...vo bhi us profession me jana unka man nahi lagta bss paison ke chakkar me kaam kr rahe he ... Unhe naa kaam me maza aata he naa ownership ki feeling hoti he. Naa man mutabit incriment hota he salary me jiski vjah se vo kaam kr rahe he.... Is chalte ye baat toh svabhavik he ki vo tay ghanto se zyada kaam toh bilkul nahi krna chahenge...or zyada kaam krne kaa pressydalna ghalat bhi hoga.... Or rahi baat skill sikhne ki Ye itna hi aasan hota .... Tohvo apni collage life me hi naa kr leta.... Uske liye bhi bohot himmat or mehnat chahiye...or hr koi naa kr leta....bacpan se hi usko nokri kaa laddu dikhaya gaya. Ab nokri lag gyi toh krne kaa man nahi kr raha. Pr paise kmaane he toh kr raha he ab yaha new skill sikhna us unpassionate insaan se ke liye aasan nahi... Or yahan pr company owner toh thodi narmi dikhana chahiye...
Aj pata chala comment pe 3tripple tap krne se reply hota hai 🤣🤣🤣
Gajjab
Muje kal pata chala ki teri maa meri biwi hai
हर किसी को शिक्षा का मौका भी नहीं मिलता है सौरभ जी, और अगर जो आप कह रहे है कि अपने मन का काम करे हर व्यक्ति यह इतना ही आसान होता तो कोई दुखी न होता, आप अपने न्यूज़रूम में इसपे डिबेट न कर रहे होते, और सबकी ज़िन्दगी इतनी आसान नहीं होती है सौरभ जी। सादर प्रणाम...
Saurabh sounds like “if you are not happy in India then just leave it”
Who are you tell anyone to leave the country, this country is not bought by you.
As if India is full of vacancies.
India tere pita ji ka hai 😂
@ Before jumping to conclusions, kindly take a moment to understand the post thoroughly. I never suggested Saurabh should leave India, nor do we have any right to say such things. If you watch the video carefully, you'll see who actually made that kind of statement. Wishing you a good sense of humor and understanding!
@@avikbhattacharjee3567 i agree
Aaj ye baat yaad aati hain ki ,"majdoor ke pas ek hi malik hain par malik ke pass bahot sare majdoor"🧐🤔
आज में पहली बार सौरभ जी की बातों से पूरी तरह असहमत हूँ। ज्यादादार में उनकी बातों से सहमत रहता हूं। कुछ मुद्दों को लेकर जैसे आरक्षण etc
आप भी एक मध्यम परिवार से निकल कर आए है। और बाते बढ़े स्तर या विकसित भारत के स्तर की कर रहे है।
भारत का नागरिक के पास चयन कम होते है।
अरे उसे तो इतना तक पता नहीं रहता कि वह जिस फील्ड में है वह सही है या नहीं।
मुझे नहीं लगता आधी से ज्यादा आबादी जो उसे पसंद है। वह काम कर रहे है।
अरे आधी से ज्यादा आबादी को तो यही नहीं पता कि उसे क्या पसंद है कुछ % लोग हो सकते है। जिन्हें पता है हम गलत फील्ड में काम कर रहे है।
बाकी लोग तो यह सोचते है कि हमे काम मिला है। यही बहुत है।
यहां मतलब भारत में लग शौक से नौकरी नहीं करते पैसे के लिए करते है। यह भारत है आपको इस बात को तथ्य में लेकर बात करनी चाहिए थी।
काम करना आधी से ज्यादा आबादी के लिए जीवन यापन का माध्यम है।
Bhai, he is talking about being self-aware... how much you work should be by choice and not by rule. Set priorities and work on that, don't be a slave for any company. Especially ones that have CEOs who think everyone should work for 90 hours because THEY feel like it.
@@amitpatilamitwahi to Bataya usne. Slave ke pas option nahi hota bhai self awareness hoke bhi. Wo paisa Kamane ke liye slavery kar rha hai
No, Saurabh ji said that employees need to get their priorities right, have faith in their 'purusharth' and leave the place where they feel they are being exploited. This is a very privileged position to take by someone who realizes their self-worth. Majority of workers don't. They have too many life pressures and are facing a massive job crunch in the market. This is leading to their exploitation and the reason why some toxic managers get too much power over their employees. Do not agree with Saurabh ji in this instance.
@nosin5124 All he is saying is do something about it. Just cribbing won't change or solve anything. Either you consider leaving the company, or if you don't like the job profile, then reconsider the carrier itself. It you can't do either of these, then challenge the unacceptable conditions at your job. If you cannot do ANYTHING, then what is the point of cribbing about it? Saying we don't have a choice, so we have to work 90 hours when they say it... is a slave mentality and will result in more exploitation.
Samajh nahi aata bikas america wala sahi hai ya russia china wala
Ya phir apna bhi kuch hona chahiye bikas ka Paimana.
Aakhir sab des aur sthiti ek si nahi hai phir bikas ka paimana ek sa kyun ho ........
सौरभ सर आप जैसा मालिक किसी को नहीं मिलेगा।
आप और एक फिजिक्स वाला के ऑनर हैं।
आप दोनो बेस्ट ऑनर हैं।
सैल्यूट है आप दोनों को...
सौरभ भाई परमात्मा ने आपको बोलने का अच्छा हुनर दिया है, सही है लेकिन अन्य साथियों को भी पूरा सम्मान देने का प्रयास करें । खुद को फन्ने खां न मानो ।
सलाह
आप समझ आ है एक बांस अपने कर्मचारियों से बात कर रहा है
जेएनयू का छात्र है सौरभ
सौरभ बाबू वहां के हेड है और हेड के सामने सीमित मात्रा में ही बोला जाता है।
सौरभ भाई से किसी भी टॉपिक पर बकैती करा लो....हगेंगे ज़रूर।
@@e-learningwithmahesh6538jab unhone 4-5 logo ke sath channel start Kiya tha aaj. Yaha tak pauch gaye tm bs jnu jnu karte raho
Last 5 mins are the real and accurate discussion on the topic which was picked.
Saurabh :
Sense ❌
Pravachan ✅
नौकरी में तुम खर्च हो जाओगे..तुम्हारा रिप्लेसमेंट आ जाएगा फट से...😢
लेकिन दुनियां में तुम्हारा रिप्लेसमेंट नहीं आएगा.. these words ❤❤
The last 5-7 mins of discussion had very valid points.
Yes you are right
Bilkul last me hi kam k discussion hai😂
एक सत्य ये हे कि हर काम खुशी से नि होता हर काम मनलायक नहीं होता हे सौरभ जी AC me बैठकर मन की बाते बोलना आसान हे ज्यादातर काम मजबूरी में करना पड़ते हे इसलिए उन कामों के लिए लिमिटेड टाइम होना चाहिए 8:8:8 best he
8 hour rest (compulsary)
8 hour work(Needs)
8 hour own work whatever(on self)
यह अमरीका, कनाडा या कोई विकसित देश नहीं है, जिसमें सौरभ जी की बातें तार्किक हो, हम अभी भी उस दौर से गुजर रहे हैं जहां हम अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे, देश के सन्दर्भ मे। जहां अधिकांश लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए संघर्ष करते रहते है, विकल्प बहुत ही कम है, चाहे वो किस विद्यालय में पढ़ने का हो या पढ़ाने का हो और कौनसी नौकरी करने का हो। जहां तक बात रही स्किल्स अपनाने की, तो हमारा education system अभी भी अपने आप की मरम्मत में लगा है, हमे सहारा देना तो दूर की बात है,
@@massstatus6909 बिल्कुल सही बात है
He is totally knowingly trying to avoid the point.
Not agree
सौरभ भैया को खुशफहमी की बीमारी है। थोड़ा दार्शनिक, थोड़ा पाठक, थोड़ा लेखक,थोड़ा प्रेमी, थोड़ा पत्रकार इन्हें सब होना है। ज्ञानी बाबा। जो लोग अच्छा बोल लेते हैं वो बड़े प्यार से धीरे धीरे दूसरों को दबाना जानते हैं
right analysis, English to dhng se aati nhi aur sirf dikhwa krna hai isko
What makes you think so
First time Saurabh sir arguments doesn't make sense
Bilkul
Always 😂
It totally make sense for me
Right
@@ajiteshpratapsingh3500 it seems like India is full of vacancies, more than 90% of Employed Indians, don't like their jobs, there is a study. We don't have opportunities that we can leave n job & find another job easily, finding new job is extremely tough nowadays.
आदरणीय सौरभ जी के विचार सुनना हमेशा ही जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण (काम) होता है। इस चर्चा में भी उन्होंने काफी व्यवहारिक एवं तार्किक बातें की जो अनेकों के जीवन में महत्वपूर्ण हो सकती है।
मैं मानता हूं कि सौरभ जी इन सब पेहलूओ को लेकर हमेशा ही संवेदनशील रहे हैं और वह इन वास्तविकताओं को कभी नजर अंदाज नहीं करेंगे। पर मुझे ऐसा लगता है कि इस चर्चा में उन्होंने उन मुद्दों को ध्यान में रखकर चर्चा को आगे नहीं बढ़ाया। उन्होंने विषय के एक ही पेहलू को सही साबित करने कि कोशिश में और कैसे व्यक्तिगत तौर पर कोई व्यक्ति अपनी स्थिति सुधार सकता हैं या मनपसंद जीवन जी सकता हैं, यह साबित करने के चक्कर में इस विषय के अनेक पहलुओं पे जो चर्चा हो सकती थी, उस संभावनाओं को नष्ट किया, ऐसा लगा ( मुझे ऐसा लगा । मैं गलत भी हो सकता हूं।) ।
किसी ने बातचीत में यह बात रखी थी की कंपनियों में काम करने वाले लोग किस सामाजिक - आर्थिक पृष्ठभूमि से आते है, इसका भी विचार होना चाहिए। लेकिन इस मुद्दे पे किसी ने चर्चा आगे नहीं बढाई या सौरभ जी ने उसपे अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी।
हमारे जाती-वर्ग आधारित समाज के बेसिक स्ट्रक्चर में ही इतनी गड़बड़ी है कि बहुसंख्य लोग केवल अपने बलबूते पर अपनी स्थिति नहीं सुधार सकते। अपना मनपसंद काम नहीं कर सकते। आप ही सोचकर देखो की कितने लोग हैं जो अपने मनपसंद का काम कर पा रहे हैं? और अगर नहीं कर पा रहे हैं तो क्यों नहीं कर पा रहे? केवल व्यक्तिगत कारणों से या इसमें हमारे समाज के सामाजिक - आर्थिक घटको की भी भुमिका होती हैं?
इसमें कोई दोराय नहीं कि व्यक्तिगत मेहनत जीवन अर्थपूर्ण बनाने की बुनियाद है। लेकिन सामाजिक -आर्थिक जैसे संस्थात्मक घटकों को नज़र अंदाज़ कर सब जिम्मेदारी व्यक्ति पर छोड़कर केवल उसे दोषी ठहराना, सच के साथ बेईमानी होगी।
lol
Sourav Dwivedi interrupting when others were speaking multiple times while claiming foul when he got interrupted once - sounds like a typical boss. Also, nobody talked about the fact that these CEOs make people work for 70 hours while not paying overtime - no talk about labor laws and such. This was overall a very weak and trifling debate and didn't take the labor issues very seriously. Also, like the last speaker stated, they seem to be living in their own bubble and oblivious to problems of other industries. Lallantop should think about diversity hiring from other fields and not just good journalism and literature majors.
Sourav is not their colleague, he is their mentor and therefore he is also maintaining and streamlining narrative while keeping it entertaining and watchable. So that is why he is just doing his job.
Drifted from actual topic.... cant expect it at lallantop
discussion is not about Saurabh or his behaviour.
I would appreciate Saurabh for having guts to such a discussion on his platform.
Allowing his every team member to express his views and I m sure no other channel would even both to have such an issue of discussion.
He clearly has started thinking himself the king of the jungle. Popularity and politeness ka combination is gone perhaps - MMS was the last perhaps
i agree with 90% of what you said except you can't really dictate to a journalism firm to hire from other degrees, like you cant tell IT firm to hire lawyers or english majors. hiring is based on requirement not whims and fancy
The Best Line ' नौकरी में तुम्हारी रिप्लेसमेंट मिल जायेगी दुनिया में तुम्हारी रिप्लेसमेंट नहीं मिलेगी सी❤❤❤
द्विवेदी जी के बारे में कुछ अजीब बात है। मैं तथ्यों और राय दोनों को व्यक्त करने की क्षमता का सम्मान करता हूं। हालाँकि, जब वे अपने दृष्टिकोण को साझा करने की कोशिश कर रहे थे तो हर व्यक्ति के बीच में काटना बेहद अपमानजनक और कष्टप्रद लगा..
Khud ko zyada smart samajhta hai woh
बेरोजगारी इतनी बड़ी है,कि भारतीय युवा से आप 24×7 काम भी कराओगे तब भी तैयार है, उनको अभि अपनी physical or mental health कि बिलकुल फ़िक्र नहीं है बस रोजगार चाहिए, इस पर भी चर्चा हो जाये प्रिये दा लल्लनटॉप
Tabhi to itna virodh hone ke bad v log Agniveer ban rahe
सौरभ आप जिस बौद्धिक स्तर पर पहुंच चुके हैं वहां इस तरह की बातें करना बहुत आसान है। लेकिन वह लड़का जो आठवीं दसवीं और बारहवीं पास होकर बाहर किसी ऐसी कंपनी में काम करता है वह इस मानसिक स्थिति पर भी नहीं है कि मैं इसे बदल सकता हूं। और कहीं और नौकरी कर ली जाए। बदलाव बहुत बड़ा बौद्धिक स्तर मांगती है। शायद इस बात का एहसास आपको हो लेकिन आप उसे स्वीकार नहीं करना चाहते।
Sahi baat hai
सौरभ समझ नहीं पा रहे हैं। फुल बकवास कर रहे हैं। मालिक समझ भी नहीं पाते।
@@sankashpandiya8428 Right
बौद्धिक स्तर बढ़ाने के लिए सौरभ नहीं आएगा आप को खुद अच्छे से पढ़ाई करने होगी सिर्फ अच्छी रैंक आने से बौद्धिक स्तर नही बढ़ता है
Doctors in India mainly residents laughing in hospital on duty watching this video at 4 am
नेचर ने बताया कि दिन में काम करो और रात में आराम
हमने रात को भी जगमग कर दिया इसका मतलब यह नहीं की 24 घंटे काम करने के लिए ही है
खुद,परिवार ओर नेचर कोई भी टाइम देना आवश्यक है
सौरभ जी भारत अभी इतना विकसित नहीं है कि सभी प्रकार के अवसर मिल सके और खास कर छोटे शहरों और कस्बों में यह समस्या और अधिक है रोज़मर्रा के संघर्ष ही इतने अधिक हो जाते है एक सामान्य व्यक्ति के लिए कि वह बेमन का काम करने को मजबूर हो जाता है I agree Ashish ji
Berojgari itni h ki bdi asni se replacement ho jayega I agree abhinav ji
I love love love love LOVE how he said at 3:02 "jo bhi unka CHOSEN GENDER hai". Thank you, teh dil se, sir. Dwivedi Saheb, ek hi dil hai, kitni baar jeetenge. I wish a person like him (or he himself 🤞🏾) runs our country someday.
सौरभ जी भारत जैसे देश में कुर्सी खाली नहीं रह सकती जहां आबादी और बेरोजगारी दोनों उच्च हैं। समस्या यह भी है कि 90 घंटे बोल रहे और 70 घंटे को नॉर्मलाइज कर दिया तो...
A very privileged conversation.. conversation between all the privileged employees of a newsroom..
In Every discussion I like kuldeep's explanation... Love to hear him... And Saurabh Dwivedi always discussed very cleverly like an Owner 😂
Ye hoti h real journalism without diverting people mindset to misguide❤❤ #hatsoff
सौरभ जी संपादक हैं इसी कारण सौरभ, नारायण मूर्ति और सुब्रमण्यम जी की बातों में समानता दिख रही है। कंपनी की मार्केट वैल्यू में जितना अंतर है उतना ही विचार में। दर असल सौरभ यहां 50 बरस के नारायण मूर्ति ही हैं।
इसका मतलब आप सौरभ की बात समझे ही नहीं
@@adeshshukla5247Comments mein bahot saare hai jinko baat samajh hi nahi aaye hai.
Vo Saurabh ji ki baten samjh Gaye hain saurabh ji ka irada aap nahi samjhe @@adeshshukla5247
Ek manager, manager ki tarah hi baat karenga😅😅
Sourav Diwedi ❌Acharya Prashant lite✅
Kya hua Acharya prashant aisa kya bol diya wahi 24*7 waali baat hai kya 😂
We should thank L&T chairman unintentionally he brought back serious and dark issue of corporate that top boss don't want
Start paying hourly basis.. no one will mind
आज भी मजदुर, कंपनी में 84 घंटे काम करते हैं सौरभ जी आप अपने अवधारणा को किसी और पर नहीं थोप सकते यह उन मजदूरों के लिए काफी दुखदाई हो जाएगी वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं कि फिर उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है
Saurabh used to engage in intellectually stimulating discussions, but lately, it feels like his approach has shifted. Now, he often focuses on using sophisticated Hindi words without addressing the core issues, as we see in this video. For instance, he talks about changing jobs if you're not passionate or interested. While this may sound appealing, it overlooks a crucial reality: not everyone has the privilege to pursue their passions. We are socially conditioned to take on specific roles and responsibilities, and many people are bound by these constraints. Breaking free from them is often not feasible. Therefore, this idea of simply changing jobs based on passion doesn't seem relevant to the broader debate.
The fundamental issue isn't whether you're in the "right place" or not. It's about ensuring that people who are working aren't exploited under the guise of productivity, hustle, or contributing to national growth. In India, people are undeniably hardworking, but the question remains: are they fairly compensated for their efforts? The emphasis should be on fair wages and proper work-life balance, not just on working harder for the sake of growth or ambition.
Another critical point is the power imbalance in the workplace. When CEOs or top executives discuss increasing working hours or pushing for higher productivity, they have the authority to enforce these changes. This can corrupt the mindset of other top management officials and further perpetuate the cycle of exploitation. The issue isn’t just about working long hours, but about the growing pressure on employees, without regard to their well-being or fair compensation.
Saurabh also references SRK’s comment about not needing 8 hours of sleep to chase your dreams. While this sentiment may inspire some, it doesn’t account for the fact that those pursuing their dreams often have the flexibility to manage their time differently. On the other hand, everyday workers are often trapped in a system where their time is dictated by the needs of the job, without the same opportunity for personal growth or work-life balance. The narrative of “chasing dreams” often ignores the harsh reality faced by many employees who are working hard, not because of passion, but due to economic necessity and a lack of choice.
While Saurabh’s points may seem disconnected from the real struggles of everyday workers, it’s important to acknowledge that others in this discussion have valid arguments.
I agree with the Saurabh sir issue. Now a days its just looks like he is flex his vocab and lately he is never on point btw… or I am not intellectual enough to get him.. aur doosra point ye kaam krne wala bayan jo hai wo office hours ke liye hi kaha hai ab Saurabh sir ab Kriya ka path pdhane lag gaye. I am 10 min into the video and still he has not addressed the issue.
Flexing*
Lallantop is a pop channel now. Saurabh makes really good money and spends time with all popular celebrities out there. He doesn't give a shit about true journalism. He has decorated language with very basic and sometimes stupid things. All of it had started after Lallantop merged with TOI
So true reality is really harsh for some people.. Ghar ki zimmedaari ke aage apni chahte bahut peeche rah jati h
जो भी अपना खुद का व्यवसाय करता है उसके लिए काम के घंटे मायने नहीं रखते क्योंकि वो अपने ही घर,ऑफिस या कारखाने में बैठकर अपने लिए काम कर रहा है. दूसरों के लिए काम करने में ये सिद्धांत लागू नहीं हो सकता क्योंकि वो दूसरे के घर ऑफिस या कारखाने में बैठकर दूसरे के लिए काम कर रहा होता है. उसे काम के घंटों के अतरिक्त अपने व अपने परिवार के काम के लिए भी समय चाहिए होता है.।
Saurabh you are talking about purusharth, but I believe you are not aware that these consulting firms have 3 month notice period which makes it really hard for these employees to leave this toxic place.
My parents supported me i was financially in a proper place thats why i could leave
Some law should be implemented by gvt in pvt sector, like PF, income tax, maximum notice period, minimum increment, etc
कहां जी रहे हो,only 1 month notice
Last Person mention is right point - we should not go with fast - we need to slow down the things, that is helpful to society.
पत्नी को कितनी देर देखेंगे सभी संडे को भी ऑफिस काम करे इसपर मेरा जवाब चेयरमैन सुब्रमण्यम जी आप वि,याग्रा का इस्तेमाल कर ले अपनी निराशा कृपया दूसरों पर ना थोपे 🙏🙏
😂😂😂😂😂 well said 😂
Jabardast😂
😂
सही कहा
Saurabh ki batein bilkul wahi samajik soch ki upaj he jaha hum hum muh faad ke har successful admi ka lecture sunte he is ummeed me, ki hum bhi wahi karenge to successful ho jaenge. Aur har successful admi ko ye ghamand rehta he ki mene bakio se zyada intelligent choices kie he, isilie me successful hu. 800 crore ki abadi me success me chance, privilege ka role purusharth se kai zyada he
Saurabh Dwivedi un Capitalist logo ki JUBAAN bol rahe hai jaha woh bhi pohochna chahte hai lekin shaayad unka SURNAME Murthy, Subrahmanyan nehi hai to abhi DUKHI hai.
you don't understand humor or sarcasm.
I completed my graduation in engineering, but the mass layoffs during Covid changed my perspective on jobs. Now, I'm preparing for government exams. At the same time, I have a strong interest in working in the media industry. I've been reading newspapers daily since 4th grade. Mostly I enjoy reading articles on geopolitics, economics, infrastructure, defense, and policies. However, I often feel uncertain because I haven't studied journalism, and I worry that might prevent me from getting a chance in the media field.
Jo maa baap bole wohi karna bhai. Tum confuse ho rahe ho
You can go for media start-up
हमारे सभी गरीब, बेबस, लाचार, प्रताड़ित, अशिक्षित, बेरोजगार, उदास, अकर्मण्य, असफल, भूखे नंगे और जीवन का दुखणा रोने वाले भाई - बहन कृपया इस धरती का बोझ हल्का करें और अमीरों को सुख, चैन और शान्ति से जीने दें। 🙏🙏🙏🙏🙏
Saurabh Dubey is reacting like a CEO
Baki se jyada milta hai n
Or
Ghar pe kaam bhi nhi hoga sayad
Buddha ho rha hai ab ye bhi un buddho ki tarah baate kr rha hai
Disappointment
Now people will realise the value of ambedkar why did he put efforts to decrease the working hours up to 8 hrs😢
Ashish bhai ne bilkul shi bat khi h .
Ground ki bat khi h . Iti wale diplome wale bache kya kre .
Or jo saurabh kh rhe h find your mozo .Jeb m pasa chaiye mozo k liye sahab
Working for 9 or 18 hours will not have any effect because after working for a fixed time, when a person does not feel like working, then the quality of work will fall... so it is important to focus on the quality of work and not the working hours
सौरम सर आपने पूरे टीम को अपनी वाक्तित्व का सारांश दे दी है😂😂 ये सब झलकता है ललन टॉप के टीम में
I enjoyed the conversation. And I really feel that the working environment is really great at lallantop. It's good always to encourage no holds bar conversations with everyone. Kudos to the team and the leadership at Lallantop
इस तरह की बहस मे अगर कुलदीप जी आ जाए मजा ही दोगुना हो जाता है।
I love lallantop. Watching since 2017
Saurav here talking like 'Bhakt' - 'Desh to aisa hi chalega, na pasand to desh badal lo, padoshi mulk chale jao'.
bhakk
Kuldeep did short but very very effective comment. Saurav seems dominating his perception that is not proper. I totally disagree with saurav. But his podcast is too good.
बेहतर से बेहतर सौरभ द्विवेदी जी लगते हैं, उनका तो कोई जोड़ ही नहीं है।🎉🎉🎉❤❤❤
18-20 घंटे रोज़ काम करने वाले तो 56 इंच है।
90 घंटे वीक वाले कितनी इंची है?
Ye sabse accha example hai. Agar wo sach mein 18 ghante kaam karte hain toh isse accha example mil hein nahi sakta hai ye prove karne ke liye long working hours ka productivity se koi lena dena nahi hai
@@kumarayush7748 Jahaan pe jakar wo 18 ghante kaam karne ki baat karte hai, wo baat karne ko hi wo kaam karna bolte hai
Saurabh ji, as you mentioned, an employee who considers the company as their own is willing to work not just 8-9 hours but even longer. So, can you please share whether the facilities and benefits that the company's owner enjoys are also made available to the employees? I believe if the owners or CEOs provide the same facilities for their employees as they do for themselves, then employees wouldn’t just work 8-9 hours but would be ready to work as many hours as the owner works.
काम जरूरी है, लेकिन शोषण ना करें, कम्पनी ओवरटाइम दे तो काम करने वाले बहुत है.
Best comment
I joined a company last year where they asked to work 12-13 hours per day no rest day means continue 18 days of working they promised a good incentive against it,
One day due to some medical emergency i asked for just half day and assured to work on Sunday, but they fired me without any pre information, not a single penny paid from incentive and now I follow-up from last 6 months they are not responding, what should I do ?? Don't know
इतनी चिंता और चर्चा करने की जरुरत ही नहीं है, Ai अगले ५ साल में आपको काम करने के लायक नहीं रखेगा। ये सीरियसली ली जिए
Yes fir 100 hrs kaam karenge
Saurbhs position is ' there is choice '
But 'choice' is also circumstantial.
दिन में 24 घंटा काम करना चाहिए पर 8 घंटे की ड्यूटी हो ओर 3 लोगो से 24 घंटा काम करना चाहिए सबको काम मिलेगा और कंपनी का भी फायदा हो
Agar aap Lallantop me bhi kisi se 40 hours se uppar kaam karvaa rahe ho usko extra pay kre aur kaam karvaane se pehle unka consent lijiye.
This is the law in New Zeland and Australia
STRICT LABOR LAWS... WE NEED THAT
ये बात कोई नहीं बोलेगा किसी भी कंपनी को हर एक मजदूर को कम से कम 30000 हजार रुपए महीना का होना चाहिए
Saurabh, in the name of working to build a nation, why don't you hire 2x the ppl , put them in 2 shifts & then ensure your Rohit Sharma's brand of Selflessness commitment to Nation Building? If you can do this to your newsroom then hopefully we'll get in a position to see what net difference did your org make v/s when you were bound by labour laws to extract 40 hrs/week?
Double staff Paisa bhi mangega.
Profit ghtega bro jo badi company h unka share price girenge aur ha india europe nhi bna h kaam km h log jada toh jhak maar ka kroge kaam yhi sach h
I understand how impractical of an idea I had put up. The idea is that instead giving opinions of people like saurabh want to do this , this is one of many humanitarian ways..
Comply with 8-9 hrs caps
Allow for paid overtime for max 3-4 hrs
That way each person can clock and work 12 hrs at max & be entitled to compensation. Working 12 hrs at a time will still be too much but atleast it won't hurt them for being sweet talked into working for > 12 hrs
Baaki Jo aapka remaining kaam hai , uske liye aap 2nd shift staff hire kigiye, work handoff process bnaiye and unko employment deke thoda "National building" wala gimmick kartavya nibhao..
@vatsaltewari You didn't understand his view then... If you are not doing something by choice, you will count even 45 hours. But if you love what you do, you can work all the time without feeling bad about it. But if anyone is trying to MAKE you work, you are at wrong place and should start looking at options.
आप सब लोग इस मुद्दे पर बात कर पा रहे हैं , ये भी एक सौभाग्य समझिए , क्योंकि भारत की एक बहुत बड़ी बेरोजगार आबादी इस मुद्दे पर बात करने के लिए तरस रही है ।
एक ऐसा विषय जिसके बहुत गंभीर सामाजिक परिणाम हम सब अपने इर्द गिर्द देख रहे है, उस पर इस तरह के हल्के पन से मौज मस्ती करते हुए पत्रकारों का वाद प्रतिवाद चिंतनीय है। क्या इनमें से किसी को पता है कि भारत की कुल आत्महत्याओं में युवाओं का प्रतिशत कितना है? ये जो बड़े बड़े लोग घंटों में काम करने की बात कह रहे हैं, इनका पिछले 5 वर्षों का वार्षिक मुनाफा या व्यापार की वृद्धि दर देख लीजिए, और साथ में इनके द्वारा अपने कुशल कर्मचारियों को दिए जाने वाले भत्तों की वृद्धि दर देख लीजिए। सारा खेल समझ आ जाएगा। ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसा ईस्ट इंडिया कंपनी ने नील के किसानों के साथ किया था।
सर के कई रूप एक साथ सामने आ गए जैसे- एक मालिक, एक पत्रकार, एक साहित्यकार और एक व्यक्ति।
25:16 Jai Ho Prabhu Aapki
❤😂❤😂❤😂
Sourabh Shahab ke dikkat ye hai wo bhi boss ke kursi per hai unko actual problem dikhai nahi degi,
Jab boss 90 hours kaam ko bolta hai phir G.M ya project manager boss ko khus karne ke liye staff ko peelne lagte hai specially L&T to pehle se 12 ghante ke 2 shift karate hai uske baad bhi boss bakwas karta hai 🙏🙏🙏
This time Saurabh didn't make sense, he didn't understand what the real issue issue is. There are people who are exploited, getting peanuts for works they slog for...they don't have any other place to go. Saurabh was lucky to get to do what he likes, very few get so lucky.
Unhone uss baare me bola na 11.40 ke baad aap suno dhyan se
Saurabh Dwivedi and Sarwat ji ki jodi kafi achi lagti h😂
Iske alawa ek aur benefits hota hai hai weekend ka
Economic
Agr Hume weekend ni milega to hum shopping aur ghumna firna, bahr Jake kuch khana kaise karege
Log sirf paise kamayege to khrach kab karege
Agr hafte me sirf Sunday ki jagh Saturday bhi chutti milti to sayd sabhi log online ki jagh offline Jake shopping karte
Ya sayd aaj pass ki jagh ghumne jate jisse economy ko bhi bahut support milta
Very well said saurabh sir... Agree with every point
मज़दूर एकता जिंदाबाद के बाद हमारे प्रिय सौरभ द्विवेदी जी और इनकी मजदूर संघ रिपोर्टिंग के लिए निकल पड़ेंगे
The real bossy Saurabh and ground reporter Saurabh bifurcation episode 🤣
Kuch nahi, bass overtime pay ka law implement karo, fir dekho ye Subramanian jaise log hi bolenge ki mental health zaroori hai, take good rest etc, aur saare employees bolenge hume overtime work karna hai 😂
So truee
That's the point, ye chiz jald se jald implement honi chahiye, employees ki saari complaints jaise office hours ke baad bhi roka ja raha hai wo band ho jayegi, aur employer bhi kabhi kisi ko force nahi kar sakenge
हमें ये बात नही भुलना चाहिए की हमारे physical body की भी कूछ लिमिटेशन्स है, और उस शरीर की productivity maintain rakhane ke लिये रेस्ट भी जरुरी है, hours me काम करना प्रोग्रेस को नही दर्शाता बल्की काम की productivity ज्यादा मायने रखती है, ऑर अगर productivity और creativity को मेन्टेन रखणा है तो बॅलन्स जरुरी है
Saurabh Dwivedi is just beating around the bush here!
Mostly dusre topics pe aapka opinion ekdm sahi rehta hai. par yaha aap bhi dagmaga gaye . yaha waha ki baat kr rhe hain sachai se alag hatt k , clear ni h
Agar boss work culture ko exploit kar raha hai , to employee ko jagah change karna chahie .. ye kya wahiyaad logic hai..
matlab victim hi aesi tesi karaye apni .. boss ko improve karna chahie na culture, its not a choice or subjective to do or not do . it is required by law.
Ye ni ki work culture improve kia jaaye . Standard protocalls ho work k . Hawa me baat karna asaan hai . Learning, Passion job ko le k etc,
But hours to fix hi hona chahie . Extra hours ka kya IT companies reality me paisa dete hain ye dekhna chahie pehle, ya kewal on paper hi hai. Extra time/day ka paisa do tab banda kaam karega. Uska utna stake bhi hona chahie na. 25,000-30,000 me agar 90 ghanta kaam karega koi to wo uss salary me apni health ka khyal thodi rakh sakta hai .. ek boss ek paas to gaadi hai , househelp hai khud ka cabin hai sab savidhaye hain apni life easy karna k lie, maa baap k lie bhi househelp rakh sakta h boss. healthy food pe kharch kar sakta h paisa , cook rakh sakta hai, ghar me uske ac laga hau
but 25000 kamane wale bande ko to apne bacche ko bhi padhana hai tution ka paise h ni uske pas, maa baap ka khyal rakhna hai , khaana banana hai , kapda dhona hai, apna personal life bhi manage karna hai.. normal aadmi PG me bekar khana kha raha h, pg me garmi reh raha h
bhai IT walo ko paise to kuch milta hai ni ki apni life improve kar paaye, to wo limited hi kaam karengay na. 45 hours k upar kaam karne pe extra paise to deti ni company.
100 baat ki ek baat ye hai
1. km salary pe kum kaam hi kia jaana chahie, companies paisa de extra jaada kaam chahie to. kuch hadd tk extend kar lengay log . extra paise se log apni life improve kar sakte hain na
2. is chiz pe discussion hone ka koi logic nahi hai khaas , isko aesa dikhaya jaa raha h jese ki ye subjective h .
Ye koi subjective chiz ni h ki kahi jaada kahi kaam kaam ho,
corporate me strict policy hona chahie, sachchai ye hai ki companies extra kaam karane k baad paisa nahi de rhi hain COMP OFF. Exploitation hai khulla learning aur support k naam pe.
3. aaj bhi T*S 10 saal phle jo package deti thi wahi deti h, T*S me banda ko 3 year work k baad 29000-30000 milta hai, aur aaye din extend karne ko bol dia jaata h, subah raaat weekend apni marwata rahe banda bus , likihit me 9 hrs likhwa k exploitation kar rahe hain . extra kaam karne pe koi extra payment COMP off ka hisab ni hai yaha. kya incentive h ek normal aadmi ko phir extra kaam karna ki
4. last but not the least its not subjective topic. laws ko abide karna chahie instead ki hawa me baat kare. wese me law se nhi hu but i think but ye kuch laws hain -
a. Shops and Establishments Act (State-Specific)
b. Code on Wages, 2019
In Uttar Pradesh, IT companies are governed by the Uttar Pradesh Shops and Commercial Establishments Act, 1962. Here's an overview of the working hour regulations under this law:
Working Hour Regulations in Uttar Pradesh:
Daily and Weekly Working Hours:
Maximum Daily Hours: 9 hours per day.
Maximum Weekly Hours: 48 hours per week.
Overtime:
Any work beyond 9 hours a day or 48 hours a week is considered overtime.
Overtime Pay: Employees must be paid at twice their regular hourly wage for overtime hours.
Weekly Off:
Employees are entitled to one day off per week.
Typically, Sunday is the weekly holiday unless otherwise stated.
Spread Over:
The total working hours, including rest intervals, must not exceed 12 hours a day.
Rest Intervals:
A break of at least 1 hour must be provided after 5 hours of continuous work.
Night Shift Work:
Female employees are generally not permitted to work between 7 PM and 6 AM, unless specific exemptions are granted (e.g., IT companies with proper safety measures).
Applicability to IT Employees:
IT companies operating in Uttar Pradesh must comply with these rules.
Any employment agreement cannot legally require employees to exceed the daily or weekly limits without compensating them for overtime.
Ye mene example dia hai.. Many IT companies ( like T*S ) ghanta nhi comply karti h in sab chizo se .. ye topics subjective nahi hai . it is exploitation by companies . LAW tel lene jaaye sab apna hisab se chal rahe hain . bilkul galat hai. hawa me baatein chal rhi hain sabki..
PS: me koi law student ni hu, to kuch chize upar niche ho skti h.
Anyone reading till here , pls like & reply to move this to top comment!
Absolutely correct.
You are right, there is lot of exploitation in IT sector.
Sach bolunga to kahi mujhe company se na nikal dia jaaye!
@@abhijeetverma1331
1st I agree with sonal
And 2nd for what you are working
- Happiness, peace love and to spend time with our families . But if you will not find with work then what is the value of money.
At rest days we can spend time with our children.
Root of children can be fragile if they will solely dependent on school, social media and frnd. They need discussion and guidance from real one like parents.
It will also help to build strong bond with parents that will help at older age.
Why Nikhil leave lallantop?
Kya sach m nikhil leave lanlltop
Khabargaon me
Company ka mahaul alag hota bhai
Once Anil Agrawal Sir Said in office "Ask yourself, am i doing my work correctly?, Why i am here ?" Your answer is yes then you will enjoy your work if not then even 2hrs will be very difficult for you.
Saurabh is trying to dominate with baseless illogical facts...
Saurabh bhai - Its not easy to switch the job when you have certain responsibilities on your shoulders. Baaki jo apne skill seekhne ki baat ki hai wo munasib nahi hai agar aap 90 ghante kaam mein ho toh. Agar dusri company join bhi kar liye toh you never know ki wahan bhi aisa hi culture ho. In my opinion, the best way is to regularise the working hours and have certain audits from the government to make sure ki wahan exploitation na ho. And it’s not all about the working hours, it’s all about the culture of the company - Jahan ache kaam ko recognition mile aur kharab performance ko on time feedback. Aaj ke time pe it’s all about socialising and boot licking. I agree on the point that says ki it’s not about the time you spend on your job instead what value you bring to the company. Thank you!
सौरभ सर अंधेर नगरी और भारत दुर्दशा अलग है।
भारत दुर्दशा नाट्य रचना है भारतेंदु जी की जबकि अंधेर नगरी प्रहसन है।
बिल्कुल ठीक बात,, मुझे लगता है आप भी हिंदी साहित्य की विद्यार्थी हैं,, मैं भी यही कमेंट बॉक्स में लिखने जा रहा था किन्तु आपने पहले ही स्पष्टीकरण कर चुकी हैं।
भारत सबसे अच्छा देश है। 25:48
Saurabh doesn't have a spine anymore to say what is right and to stand up against what is wrong. Providing 10k excuses to justify a wrong stance. Shameful!
The guy who came in last had such a nice pint of view. So sensitive and gentle- slow and gentle is what we want the temper of te world should become for us to survive and live well.
Sourav bhaiya me subramanyam ji ghus hye hai kisi ke sunne bale nhi hai...... 😂
सर जी बिल्कुल सही कहा आपने जब काम करो तो पूरी ईमानदारी बिना ब्रेक के करो काम पूरा 🎉
18:42 अनुभव भाई ये तो आप किसी को personal टारगेट कर रहे हो 😅😅😅😅
Just loved dis conversation....great team ...lallantop
18:25 kab tak rasta badlenge.. Fir koi aur aayega raste par.. Ho sakta h kisi ki majboori Ho. Ye normalize karne ki pehli koshish h.. Corporate work culture is not that good already..
First time i m not fully agree with Saurabh.😢😂😊
सौरभ सर आप बात तो ठीक कह रहे हैं लेकिन भारत इतना विकसित नहीं हुआ की यहाँ बहुत सारी opportunity है की इस नौकरी में नहीं तो कहीं और कर लेंगे यहाँ तो इतनी बेरोजगारी हैं कि नौकरी मिल जाये वही काफी है और सुब्रमनियम साहब तो 90 घण्टे काम करने की बात कर रहे हैं l
Nice and free discussion without filter
Lv it
2:09 ye bahut galat baat h mere back me dard rhta h mai hot water bag lene ki soch rha tha aur ye saurabh sir isko seedhe seedhe periods se jod de rhe hain. Ab yaar mn me duvidha aa gya. Aise hi typecast k karan deewali me sonpapdi nhi khareed paya
Jai Ho Saurabh Saab, you're truly Amazing ❤❤✨🌟✨🌟🌹🌹💫💫
Saurabh ji ki baat bahari desho me saarthak ho saktee he. Yahan utnee kargar isiliye nahi hogi kyuki
pehli baat
Yahan baat un passionate logo ki nahi ho rahi jo apni khushi se kaam kr rahe ho...unhe ghante batane ki toh zarurat hi nahi he... Or vo kaam ko kaam samajhte bhi nahi.... Or khaskr jab. Jab aap khood kuch scratch se bana rahe ho jaise aapne ghar kaa example diya tha...
Yahab baat un logo ki ho rahi he joki responsibility ke chalte sirf or sirf paise kamane ke chakkar me kaam kr rahe he...vo bhi us profession me jana unka man nahi lagta bss paison ke chakkar me kaam kr rahe he ... Unhe naa kaam me maza aata he naa ownership ki feeling hoti he. Naa man mutabit incriment hota he salary me jiski vjah se vo kaam kr rahe he.... Is chalte ye baat toh svabhavik he ki vo tay ghanto se zyada kaam toh bilkul nahi krna chahenge...or zyada kaam krne kaa pressydalna ghalat bhi hoga....
Or rahi baat skill sikhne ki
Ye itna hi aasan hota .... Tohvo apni collage life me hi naa kr leta.... Uske liye bhi bohot himmat or mehnat chahiye...or hr koi naa kr leta....bacpan se hi usko nokri kaa laddu dikhaya gaya. Ab nokri lag gyi toh krne kaa man nahi kr raha. Pr paise kmaane he toh kr raha he ab yaha new skill sikhna us unpassionate insaan se ke liye aasan nahi... Or yahan pr company owner toh thodi narmi dikhana chahiye...
I liked Kuldeep's argument and the presentation of his argument
Hum Saurabh sir se agree nahi h wo har pahlu ko nahi ke soche